सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही भारत को बनाएंगा विश्वगुरु : स्वामी जितेंद्रानंद
महाकुंभ सनातन का गौरव पर्व है, जिसमें हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह जितनी दृश्यमान है उतनी ही अदृश्य और निराकार भी है। सभी देवी-शक्तियों के आशीर्वाद से यह महाकुंभ एक दिव्य स्नान अवसर माना जाता है। हमारी यही सांस्कृतिक विरासत हमें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ओर ले जाता है। और एक दिन यही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद भारत को विश्वगुरु बनायेगा। महाकुंभ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय जीवन दर्शन, आस्था और मानवता का उत्सव है। यह बातें अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कही। महाकुंभ के सेक्टर 19 स्थित गंगा महासभा के शिविर में श्रीस्वामी महाकुंभ के सफल आयोजन पर हमारे सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी से सनातन, राष्ट्रवाद व भारतीय संस्कृति पर विस्तार से वार्ता की। प्रस्तुत है उसके कुछ अंश : -
सुरेश गांधी
फिरहाल, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आधार क्षीण
होने की वजह से
ही देश में अलगाववाद,
आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अस्थिरता, विक्षोभ, भटकाव, बेरोजगारी, भ्रष्ट प्रशासन एवं सांस्कृतिक प्रदूषण
जैसी समस्याएं खड़ी हुई हैं।
हाल ये है कि
इसके अभाव में ये
सारी समस्याएं सुलझने की बजाए और
भी ज्यादा विकराल होती जा रहीं
है। अखिल भारतीय संत
समिति के महामंत्री स्वामी
जितेंद्रानंद सरस्वती का मानना है
कि इन समस्याओं से
अगर निपटना है तो हमें
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूत करना
होगा। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ऐसा महामंत्र है,
जो न सिर्फ हमारी
स्वतंत्रता, अखंडता, सुरक्षा और राष्ट्रीय स्वाभिमान
को बढ़ोगा, बल्कि भारत को विश्वगुरु
बनाने का मार्ग प्रसस्त
करेगा। महाकुंभ इसका जीवंत उदाहरण
है, जहां बिना किसी
भेदभाव व जातियां पूछे
संगम में करोड़ों की
संख्या में एक ही
घाट पर लोग डुबकी
लगा रहे है। इस
अमृत स्नान की महत्ता का
अंदाजा इसी से लगाया
जा सकता है कि
तमाम परेशानियों को सहते हुए
देश दुनिया के श्रद्धालु हजारों
और लाखों ही नहीं करोड़ों
की संख्या में प्रयागराज पहुंच
रहे हैं. तीन प्रमुख
अमृत संपंन हो जाने के
बावजूद देश के हर
हिस्से से श्रद्धालुओं के
पहुंचने का सिलसिला जारी
है. अब तक 42 करोड़
से भी अधिक श्रद्धालु
संगम में डुबकी लगा
चुके है।
बता दें, स्वामी
जीतेंद्रानंद (जन्म 25 फरवरी 1972), जिन्हें आचार्य जितेंद्र के नाम से
भी जाना जाता है,
एक धार्मिक नेता, साधु, पर्यावरणविद् कार्यकर्ता हैं। वे अखिल
भारतीय संत समिति के
महासचिव हैं। वे हिंद-बलोच फोरम के
संस्थापक हैं। भारत में
बलूच मानवाधिकारों के लिए जानी-मानी आवाज़ है।
समय समय पर सनातन
की मजबूती व हिन्दु राष्ट्र
के लिए आवाज उठाते
रहते है। एक सवाल
के जवाब में स्वामी
जितेन्द्रानंद सरस्वती जी ने कहा,
भारत का राष्ट्र जीवन
अर्थात् इस धरती पर
पुष्पित पल्लवित संस्कृति का आधार हिन्दुत्व
है जिसे मजहब, पंथ
एवं जातिवाद के संकुचित दायरे
में धकेलने का प्रयास किया
जा रहा है। सत्ता
की राजनीति ने इस प्रयास
को प्रोत्साहित करते हुए वोट
बैंक की समाजघातक व्यवस्था
को जन्म दिया है।
इस संदर्भ में हिन्दुत्व का
वास्तविक अर्थ समझना भी
जरूरी है। हिन्दुत्व इस
देश के किसी पंथ
(रिलीजन) का नाम न
होकर एक राष्ट्रवाचक अवधारणा
है। हिन्दुत्व भारत के भूगोल
और संस्कृति का परिचायक है।
हिन्दुत्व को धर्म के
सर्वस्पर्शी, शाश्वत और विशाल धरातल
पर रखा जा सकता
है। इसीलिए हिन्दुत्व का संबंध धर्म
के साथ है, जबकि
मजहब का संबंध पूजा
के साधारण तौर तरीकों से
होता है। अतः हिन्दू
धर्म जीवन पद्धति है
और यही भारत की
राष्ट्रीयता का आधार है,
यही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है।
स्वामी जितेन्द्रानंदजी ने कहा, भारत
में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को सनातन (यानी
हिंदू) संस्कृति मानते हुए दबाने का
प्रयास किया जाता है,
जिसे सीधे तौर पर
गंगा जमुनी तहजीब पर कुर्बान किया
जाता है. इसके सबसे
बड़े शिकार हुए हैं तो
वो भारत के मुसलमान
हुए हैं. उन्होंने कहा
कि हमारे जीवन में धर्म
तत्व की प्राप्ति होती
है। सनातन को बढ़ाने के
लिए हमें कुछ प्रयत्न
करना चाहिए. महाकुंभ सियासत का पर्व नहीं
है. ये धर्म का
पर्व है. इसमें चिंतन
और मंथन की बात
होनी चाहिए. हमारे सनातन पर कोई प्रश्न
उठाए तो उसका खड़े
होकर प्रतिकार करें. सनातन के ऊपर आघात
करने वालों का प्रतिकार करना
चाहिए. इस महाकुंभ पर
किसी भी प्रकार की
सियासत नहीं होना चाहिए।
सनातन धर्म ही युगधर्म
है। सनातन तो शाश्वत है।
ये सनातन का गौरव काल
है। पृथ्वी सनातन है, जल सनातन
है। अग्नि का धर्म तेजस्विता
सनातन है। मनुष्य में
मनुष्यता सनातन है। सनातन शाश्वत
था, शाश्वत है, शाश्वत रहेगा।
उन्होंने कहा, हमारे ऋषि-मुनियों ने तप किया.
उसी से तो हमारा
सनातन आज जिंदा है.
कुंभ में स्नान करने
से पाप धुलने के
बाबत उन्होंने कहा, कर्म का
लेखा-जोखा कोई काट
नहीं सकता. आपने पहले जो
कर्म कर लिए उनका
तो फल जरूर मिलेगा.
महाकुंभ में स्नान कर
नए संकल्प लिए जा सकते
हैं. वैसे भी आस्था
अडिग होती है। लोग
कठिनाइयों और खतरों के
बावजूद महाकुंभ में आते हैं,
क्योंकि वे जानते हैं
कि आत्मा अमर है। महाकुंभ
एकता का संदेश देता
है, नहीं तो करोड़ों
लोग एक साथ स्नान
नहीं करते। यह हमें एक-दूसरे के साथ जोड़ता
है। तभी तो करोड़ों
लोग खुले आसमां के
नीचे एक साथ स्नान
करते हैं। महाकुंभ यह
दर्शाता है कि हम
सब एक परिवार हैं।
स्वामी जितेन्द्रानंदजी ने कहा, महाकुंभ
का आयोजन आध्यात्मिक जागृति और आत्मा की
शुद्धि के लिए होता
है। इसमें पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती में
स्नान का महत्व है,
जो व्यक्ति को अपने पापों
और बुराइयों से मुक्त करने
का प्रतीक है। महाकुंभ विभिन्न
राज्यों, भाषाओं और परंपराओं से
आए करोड़ों लोगों के मिलन का
स्थल है। यह भारतीय
संस्कृति की विविधता और
एकता को दर्शाता है।
यहां विभिन्न संत, महात्मा और
विद्वान धार्मिक प्रवचन और सत्संग आयोजित
करते हैं। यह ज्ञान,
योग और ध्यान का
गहरा अनुभव प्रदान करता है। आजकल
शांति के लिए अनेक
देशों के लोग भारत
आ रहे हैं। विभिन्न
आश्रमों से जुड़कर ध्यान
और योग कर रहे
हैं। शांति सिर्फ ध्यान और योग से
ही आ सकती है।
आजकल के युवा जो
तरीका अपना रहे हैं,
वह गलत है। उससे
शांति तो नहीं मिलती
परेशानी जरूर बढ़ जाती
है। उन्होंने कहा कि सबके
पूर्वज सनातनी वैदिक आर्य हिंदू थे।
यह ऐतिहासिक तथ्य है। यह
तो विभाजन के बाद का
भारत है। अगर यह
भी हिंदू राष्ट्र नहीं है तो
कौन होगा? हिंदू राष्ट्र का लक्ष्य है
सुरक्षित, स्वस्थ, सुसंस्कृत, शिक्षित, सेवापरायण समाज की स्थापना
है। अन्यों के हित का
ध्यान रखते हुए हिंदुओं
के अस्तित्व व आदर्श की
रक्षा करना है। देश
की सुरक्षा व अखंडता के
लिए कटिबद्ध रहना है।
एक सवाल के
जवाब में उन्होंने बगैर
किसी का नाम लिए
कहा, किसी भी शंकराचार्य
को पार्टीलाइन पर नहीं बोलना
चाहिए। जहां तक सूबे
के मुखिया के कामकाज का
सवाल है तो वह
बेहतर है, महाकुंभ में
दिख भी रहा है,
लेकिन उन्हें कुछ छुटभैये बाबाओं
के संजाल से मुक्त रहना
चाहिए। ये छुठभैये कहीं
न कहीं उनकी साख
पर बट्टा लगा रहे है।
उनके नाम का दुरुपयोग
कर आपनी सियासत चमका
रहे है। एक सवाल
के जवाब में उन्होंने
कहा कि विचार में
धर्म आएगा तो आचार
व आचरण में आए
बिना नहीं रहेगा। धर्म
का ज्ञान होगा तो धर्म
आचरण के प्रति आस्था
होगी। महत्व का ज्ञान होगा
तो धर्मनिष्ठ व सदाचारी होंगे।
किसी भी वस्तु की
सत्ता व उपयोगिता जिस
पर निर्भर है उसी का
नाम तो धर्म है।
धर्म विहीन कोई वस्तु नहीं
हो सकती। धर्मनिरपेक्ष केवल एक शब्द
है। वैसे ही जैसे
खरगोश की सींग केवल
शब्द है, जबकि वह
वास्तव में होता ही
नहीं है। मंदिरों, मठों
को शासकीय नियंत्रण से मुक्त किए
जाने की मांग पर
उन्होंने कहा, अगर शासन
तंत्र स्वयं को सेक्युलर कहता
है तो उसे धार्मिक,
आध्यात्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप का
कोई अधिकार नहीं है। पर्व
का निर्धारण पंचांग के आधार पर
होता है। सरकार का
काम उसकी व्यवस्था करना
है। अन्य धर्मों से
जुड़े विषयों में कोई हस्तक्षेप
करके देखे? जबकि हिंदुओं पर
सबकी दाल गल जाती
है। जहां तक त्याग
का सवाल है तो
कर्मो पर विजय पाने
वाला ही सच्चा त्यागी
बन सकता है। उन्होंने
महाकुंभ में उमड़ती भीड़
के बाबत कहा, ये
दुश्वारियां वीवीआईपी कल्चर के चलते बढ़ी
हैं. संगम तट पर
पहुंचने के लिए 15 से
20 किमी तक पैदल चलना
पड़ रहा है. वह
भी मेला क्षेत्र में.
अगर शहर में कहीं
फंस गए तो अलग
परेशानी झेलनी पड़ रही है.
ऐसे में महाकुंभ में
हर तरह की वीआईपी
कल्चर पर काबू पाना
होगा। खासकर कुछ बाबाओं के
वीआईपी मानसिकता पर नकेल कसने
की जरुरत है। इसके अलावा
अगर किसी को महाकुंभ
के भगदड़ पर मृतकों
के आंकड़ों पर भ्रम है
तो उसे न्यायालय का
दरवाजा खटखटाना चाहिए।
जो लोग सनातन
के खिलाफ अनाप-सनाप बकते
है, वो सनातन की
शक्ति और इतिहास से
अनजान हैं। सनातन संस्कृति
हमेशा से एक हाथ
में शास्त्र और दूसरे हाथ
में शस्त्र लेकर अपने धर्म
और आस्था की रक्षा के
लिए तत्पर रही है। इतिहास
में ऐसे कई उदाहरण
हैं जब संतों ने
विरोधी शक्तियों का संपूर्ण नाश
किया है। महाकुंभ एक
ऐसा आयोजन है जहां आदिकाल
से राजा-महाराजा भी
श्रद्धा से शामिल होते
रहे हैं। यहां दान,
तप, और संतों के
मार्गदर्शन से विश्व कल्याण
की साधना की जाती है।
कुंभ लोक आस्था का
महापर्व है और लोक
के लिए ही रहेगा।
कुंभ आस्था, साधना, और विश्व कल्याण
का समय है। यह
सनातन संस्कृति की आत्मा है।
एक सवाल के जवाब
में उन्होंने कहा कि मंदिर
में भी निश्चित ड्रेस
कोड के साथ ही
प्रवेश होना चाहिए. मंदिर
में लोग आचरण युक्त
और भारतीय परिधान पहनकर आएं. आवश्यक है
कि हिन्दुओं के मठ-मंदिर
जो सरकार चला रही है
वो मंदिर वापस मिले। प्रत्येक
मंदिर की पूजा पद्धति
उनकी परंपरा उसकी रीति-नीति
से हो। हाल के
दिनों में हिंदू समाज
के अंदर वर्ण और
जात के नाम पर
संघर्ष नहीं है, यह
शुभ संकेत है। सार्वजनिक जीवन
में सामान्य हिंदू समाज को शुचिता
के साथ-साथ आक्रामक
भी होना पड़ेगा। यहूदियों
ने अपने बलिदानों को
कभी नहीं भुलाया। हम
भी अपने बलिदानों को
याद रखें। हिंदू समाज अपने महापुरुषों
के बलिदानों को भूल गया
है। हम जन्मदिन तो
मनाते हैं, लेकिन अपने
महापुरुषों की पुण्यतिथि मनाना
भूल गए, उनके संघर्षों
को भूल गए। यही
हमारे लिए घातक हो
गया। जहां तक राहुल
गांधी का सवाल है
तो चाणक्य के कथन अनुसार
विदेशी मां की कोख
से पैदा हुआ पुत्र
कभी देशभक्त नहीं हो सकता।
सनातन संस्कृति के बढ़ते प्रभाव
की वजह से इस्लामिक
संगठन, ईसाई मिशनरी और
अन्य भारत विरोधी ताकतें
बौखला चुकी हैं.
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