काशी के पत्रकारों को कब मिलेगा उनका हक?
पत्रकार, लोकतंत्र के उस चौथे स्तंभ का हिस्सा हैं, जो बिना किसी हथियार के हर दिन सच्चाई की लड़ाई लड़ते हैं। लेकिन विडंबना देखिए, काशी जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरी में जहां से विश्व को सत्य, संस्कृति और परंपरा का संदेश जाता है, वहीं के पत्रकार आज भी अपने बुनियादी हक़ आवास, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के लिए जूझ रहे हैं। खासतौर से यह सब तब जब खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके सांसद है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ काशी के हर तबके के उत्थान के लिए संकल्पित है। यह सवाल केवल सुविधा का नहीं, बल्कि एक पूरे पेशे की गरिमा और सुरक्षा से जुड़ा है। जब गोरखपुर में पत्रकारों को मुख्यमंत्री आवास योजना का लाभ दिया गया, तो काशी के पत्रकार क्यों अब तक प्रतीक्षा कर रहे हैं?
सुरेश गांधी
काशी, जहां से पूरे
विश्व तक साहित्य, संस्कृति
और आध्यात्मिकता का संदेश जाता
है, आज भी पत्रकारों
की बुनियादी जरूरत आवास, पेंशन और स्वास्थ्य सुरक्षाकृपूरी
नहीं हो पा रही।
दूसरी ओर, मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ द्वारा गोरखपुर में पत्रकारों के
लिए शुरू की गई
कल्याणकारी योजनाओं को लेकर सवाल
उठाए जा रहे हैंः
’’“काशी के पत्रकारों को
उनका हक क्या कभी
मिल पाएगा?”’’ जबकि मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ ने अपने गृह
जनपद गोरखपुर में पत्रकारों के
लिए आवासीय योजना का शुभारंभ कर
स्पष्ट संदेश दिया था कि
पत्रकारों के लिए सरकार
गंभीर है। कोरोना काल
में दिवंगत हुए पत्रकारों के
परिजनों को 10-10 लाख रुपये की
सहायता भी दी गई।
यह कदम सराहनीय था।
लेकिन वही योजना वाराणसी
जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र
में क्यों नहीं लाई जा
रही? जब गोरखपुर मॉडल
सफल हो रहा है,
तो काशी के पत्रकारों
को इस योजना से
क्यों वंचित रखा जा रहा
है? यह अपने आप
में एक बड़ा सवाल
है। हालांकि यह कोई पहली
बार नहीं है जब
पत्रकार आवास की मांग
कर रहे हैं। पूर्ववर्ती
सरकारों में लखनऊ, गोरखपुर,
प्रयागराज सहित कई जनपदों
में पत्रकारों को आवास उपलब्ध
कराए गए। अगर उन
योजनाओं में कुछ गड़बड़ियां
हुईं, तो जांच होनी चाहिए थी,
उन्होंने किन परिस्थितियों में
ऐसा किया, न कि पूरी
पीढ़ी को दंडित किया
जाना चाहिए। क्या यह तर्क
संगत है कि कुछ
लोगों की गलतियों का
बोझ नई पीढ़ी के
पत्रकारों पर डाला जाए?
जैसे भ्रष्टाचार के कारण विकास
योजनाएं बंद नहीं की
जातीं, वैसे ही अतीत
की त्रुटियों के कारण वर्तमान
पत्रकारों से आवास जैसी
बुनियादी सुविधा छीनना भी एक किस्म
का अन्याय है।
हाल ही में
लखनऊ में पत्रकारों के
प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ से मुलाकात कर
छह महत्वपूर्ण मांगें रखीं, जिसमें 1. आवास योजना : राज्य
व जिला स्तर पर
पत्रकारों को सस्ती दरों
पर मकान या फ्लैट
उपलब्ध कराए जाएं। 2. पेंशन
योजना : 60 वर्ष से अधिक
उम्र के पत्रकारों को
मासिक पेंशन सुनिश्चित की जाए। 3. स्वास्थ्य
सुविधा : एसजीपीजीआई में इलाज के
लिए विशेष फंड बनाया जाए
और आयुष्मान योजना पुनः लागू की
जाए। 4. मुआवजा : आकस्मिक मृत्यु पर ₹20 लाख की राहत
राशि पुनः बहाल की
जाए। 5. स्थायी समितिः जिला स्तर पर
पत्रकार-प्रशासन समन्वय समिति बनाई जाए। 6. विशेष
नोडल अधिकारी : स्वास्थ्य बीमा और इलाज
के मामलों की देखरेख के
लिए अलग अधिकारी नामित
किए जाएं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में
पत्रकार सुरक्षा अधिनियम लागू हो चुका
है। कई राज्यों में
पत्रकारों को पेंशन, बीमा
और विशेष मेडिकल सुविधाएं मिल रही हैं।
उत्तर प्रदेश में यह कदम
अपेक्षाकृत धीमे हैं, जबकि
यहां पत्रकार हर दिन जान
जोखिम में डालकर रिपोर्टिंग
करते हैं, खासकर काशी
जैसे संवेदनशील धार्मिक शहर में, जहां
के सांसद खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी है। केंद्र सरकार
के भी कई विभागों
में पत्रकारों के लिए आयुष्मान
योजना जैसी स्वास्थ्य सुविधाएं
चल रही हैं, पर
उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के
आयुष्मान कार्ड निलंबित होने की शिकायतें
लगातार आ रही हैं।
पत्रकारों के लिए एसजीपीजीआई
जैसी संस्थानों में इलाज के
लिए विशेष फंड की मांग
लखनऊ में जोरशोर से
उठी। पत्रकारों का कहना है
कि जब प्रशासनिक अधिकारी
और जनप्रतिनिधि विशेष चिकित्सा सुविधा पा सकते हैं,
तो पत्रकार क्यों नहीं?
हालांकि मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश
अवस्थी ने इस मुद्दे
पर गंभीरता से विचार का
भरोसा दिया है। मुख्यमंत्री
ने भी पेंशन योजना
और चिकित्सा सुरक्षा पर सकारात्मक रुख
दिखाया है, लेकिन ज़मीनी
अमल अब भी बाकी
है। काशी के पत्रकार
संगठनों ने स्थानीय स्तर
पर बैठक कर जल्द
ही मुख्यमंत्री को एक अलग
ज्ञापन देने और सीधी
मुलाकात की तैयारी कर
ली है। सवाल यह
नहीं है कि सुविधा
कब मिलेगी, सवाल यह है
कि जिन लोगों ने
दशकों इस पेशे को
ईमानदारी से निभाया, उन्हें
कब तक अनदेखा किया
जाएगा? पत्रकारों के प्रति सरकार
का सकारात्मक रवैया केवल बयानों तक
सीमित न रहे, यह
वक्त की मांग है।
पत्रकार आवास, पेंशन और स्वास्थ्य सुविधाएं
कोई अनावश्यक मांग नहीं हैं।
यह उनके हक़ की
लड़ाई है, जो पूरी
तरह से न्यायसंगत है।
पूर्व की गलतियों का
हवाला देकर नई पीढ़ी
को सुविधाओं से वंचित करना
उसी तरह है जैसे
एक बगीचे को इसलिए न
सींचना क्योंकि किसी समय किसी
ने गलत बीज बो
दिया था। अगर उत्तर
प्रदेश सरकार ने गोरखपुर में
पत्रकारों के लिए आवास
दिया है, तो काशी
क्यों वंचित रहे? जब अन्य
राज्यों ने पत्रकार सुरक्षा
अधिनियम लागू किया है,
तो उत्तर प्रदेश में अब तक
क्यों नहीं? काशी के पत्रकारों
को अब वादों से
नहीं, ठोस निर्णय की
जरूरत है। यह हक़
की मांग है, जिसे
नजरअंदाज करना लोकतंत्र के
चौथे स्तंभ को कमजोर करने
जैसा होगा
लखनऊ में 36 से
अधिक सरकारी फ्लैट्स आवंटित करने की मांग
की गई थी, जिसे
मुख्यमंत्री ने शीघ्र कार्यान्वयन
का आश्वासन दिया। स्थानीय संगठन भी इस दिशा
में सक्रिय हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश में 2024 में 60 वर्ष से ऊपर
के पत्रकारों के लिए पेंशन
स्कीम की शुरुआत हुई।
मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश
अवस्थी ने स्पष्ट कहा
: “पत्रकारों के पेंशन और
आवास की समस्या का
समाधान किया जाएगा”।
मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कई राज्यों
में पत्रकार को ₹3 से ₹5 हजार मासिक मिल
रही है. यूपी में
यह राशि अभी अस्पष्ट
है, पर जल्द घोषणा
की उम्मीद जताई जा रही
है। काशी में भी
वरिष्ठ पत्रकार आर्थिक संकट से जूझ
रहे हैं, और उनकी
मांग है कि यह
पेंशन जल्द लागू हो।
पत्रकारों की एक और
मांग है, एसजीपीजीआई में
इलाज के लिए फंड
₹25 लाख से बढ़ाकर ₹50 लाख
किया जाए। जब सरकार
दावा करती है मानव
सेवा का, तो पत्रकारों
का जीवन-उपयोगिता का
मानक जोड़ा जाना अनिवार्य
है। पत्रकारों की आकस्मिक मृत्यु
या दुर्घटना पर ₹20 लाख की राहत
राशि बहाल करने की
मांग दोहराई गई। कार्यकर्ता यह
भी कह रहे हैं
कि सिर्फ कल्याण योजनाएं नहीं, बल्कि पत्रकारों के मूल संरक्षण
के लिए सुरक्षा कानून
लागू होना चाहिए। हो
जो भी काशी के
पत्रकारों की मांग सिर्फ
सुविधाओं की नहीं है,
यह सम्मान की लड़ाई है।
जब गोरखपुर और अन्य राज्यों
में मॉडल साकार हो
रहे हैं, तब यहां
देर क्यों? अब वक्त है,
केवल आश्वासनों तक सीमित नहीं
रहना चाहिए। सरकार को पात्र आवासीय
समयसीमा तय करे, पेंशन
राशि स्पष्ट करे, स्वास्थ्य कवर
को व्यापक बनाए, सुरक्षा कानून लागू करे, और
पत्रकारों को वास्तविक, जमीन
पर साबित इज्जत दे।
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