नागपंचमी : श्रद्धा और पर्यावरण का अद्भुत संगम
जब सर्पों को पूजती है सभ्यता, तब संरक्षण ही संस्कृति बन जाती है। शिव के गले का वासुकी हो या खेतों का रक्षक नाग, हर फन में छुपा है सनातन का संदेश। नागपंचमी न सिर्फ पूजा है, बल्कि प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी की याद भी है। नाग भय के नहीं, ब्रह्म के प्रतीक हैं, कुंडलिनी से लेकर कालसर्प दोष तक उनका महत्व है। पर्यावरण, परंपरा और परिपक्वता, नागपंचमी में समाहित है सनातन दर्शन का सार। सनातन धर्म में नागों को विशेष स्थान प्राप्त है। भगवान शिव के कंठ में वासुकि विराजमान हैं, जो संयम, नियंत्रण और चेतना के प्रतीक हैं। भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन करते हैं, जो कालचक्र और सृष्टि के संतुलन का रूप माने जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की बाललीला में कालिया नाग को परास्त करना, केवल जीत नहीं, सर्प को मार्ग देने का बोध भी है। ये कथाएं बताती हैं कि नाग कभी शत्रु नहीं रहे, बल्कि हमारे धार्मिक, दार्शनिक और प्रकृति संतुलन के प्रतीक रहे हैं. नाग पंचमी का पर्व इस साल 29 जुलाई दिन मंगलवार को है. सावन शुक्ल पंचमी के दिन नाग पंचमी मनाई जाती है. इस दिन लोग नाग देवता की पूजा करते हैं, ताकि उनकी कृपा से जीवन सुरक्षित रहे
सुरेश गांधी
भारत की सनातन संस्कृति केवल धर्म का ही प्रतीक नहीं, बल्कि प्रकृति और उसके समस्त जीव-जंतुओं के साथ सह-अस्तित्व का शाश्वत संकल्प भी है। नागपंचमी ऐसा ही एक पर्व है, जो सर्पों के साथ मानव के रिश्ते को श्रद्धा, संरक्षण और आध्यात्मिक चेतना से जोड़ता है। यह केवल नागों की पूजा का पर्व नहीं, बल्कि उन तमाम परंपराओं का उत्सव है जो हमें यह सिखाती हैं कि हर प्राणी, चाहे वह कितना भी भयावह प्रतीत हो, उसका अस्तित्व हमारे जीवन और पर्यावरण के लिए अनिवार्य है। शास्त्रों में सर्पों को देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। विशेष रूप से भगवान शिव के गले में वासुकी नाग और विष्णु के शेषशैय्या के रूप में शेषनाग को प्रतिष्ठा प्राप्त है। मान्यता है कि सर्प वायु पीते हैं अर्थात वायुमंडल की विषाक्तता को सोखकर अन्य प्राणियों के लिए शुद्ध वातावरण बनाते हैं। शिव के कंठ में समुद्र मंथन का विष और गले में नाग, यह केवल प्रतीक नहीं, बल्कि जगत कल्याण की भावना का साक्षात् दर्शन है।
महाभारत के अनुसार, नागों
की उत्पत्ति महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी
कद्रू से हुई थी।
शेषनाग, वासुकी, तक्षक आदि प्रमुख नागों
में से हैं। शेषनाग
को तो स्वयं ब्रह्मा
ने पृथ्वी को फन पर
धारण करने का आदेश
दिया था। रामायण में
सुरसा को नागों की
माता माना गया है
और नागकन्याओं की कथाएं भी
प्रचुर हैं। बलराम और
लक्ष्मण को भी शेषनाग
का अवतार कहा गया है।
नागपंचमी का संबंध परीक्षित
की सर्पदंश से हुई मृत्यु
और जनमेजय द्वारा किए गए सर्पयज्ञ
से भी है। इस
यज्ञ को रोकने और
नाग-मानव के बीच
सौहार्द्र स्थापित करने के लिए
महर्षि आस्तिक द्वारा की गई पहल
को इस पर्व की
उत्पत्ति के रूप में
स्वीकारा गया है। नागपंचमी
के दिन घर-घर
में नागदेवता का पूजन किया
जाता है। महिलाएं नागों
की चित्र-प्रतिमाएं दीवारों पर बनाकर पूजा
करती हैं, उन्हें सिंदूर,
फूल, दूध, लावा, गुड़
आदि अर्पित करती हैं।
इस दिन : तवा
नहीं चढ़ाया जाता अर्थात अन्न
नहीं पकाया जाता, बल्कि दाल-बाटी जैसी
पारंपरिक वस्तुएं बनती हैं। खुदाई
वर्जित होती है, धरती
को खोदना निषेध होता है ताकि
नागों के निवास में
विघ्न न आए। कैंची,
चाकू आदि का प्रयोग
वर्जित होता है, यानी
हिंसा से पूर्ण विराम।
नागों की आकृति घर
के मुख्य द्वार पर बनाना शुभ
माना जाता है। यह
धन, सुख और सुरक्षा
का प्रतीक माना गया है।
मतलब साफ है नाग
केवल पूज्य नहीं, प्रकृति के रक्षक भी
हैं। खेतों में चूहों व
हानिकारक कीटों की संख्या को
नियंत्रित कर सर्प फसलों
की रक्षा करते हैं। यही
कारण है कि उन्हें
“क्षेत्रपाल“ या “खेतों के
रक्षक“ कहा गया है।
भारत में यह मान्यता
रही है कि सर्पों
के बिना खेती और
पर्यावरण दोनों संकट में पड़
सकते हैं। नागपंचमी इसलिए
भी महत्वपूर्ण है कि यह
प्रकृति के प्रति कृतज्ञता
व्यक्त करने का दिन
है। नाग केवल भौतिक
स्तर पर ही नहीं,
बल्कि आध्यात्मिक रूप में भी
अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। योग और
तंत्रशास्त्र में नागों को
कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक माना
गया है. वह ऊर्जा
जो रीढ़ की हड्डी
में सुप्त अवस्था में विद्यमान होती
है। नागपंचमी का पूजन इस
ऊर्जा के जागरण, आत्मबोध
और आध्यात्मिक उत्कर्ष का प्रतीक है।
इस दिन किया गया
पूजा-पाठ, संयम और
उपवास हमें हमारे अंदर
की चेतना से जोड़ता है।
शुभ मुहुर्त
इस साल नाग
पंचमी 29 जुलाई, मंगलवार को है. पूजा
का शुभ मुहूर्त सुबह
5 बजकर 41 मिनट से लेकर
8 बजकर 23 मिनट तक रहेगा.
कुल मिलाकर इस दिन पूजा
करने की अवधि 2 घंटे
43 मिनट की है. जबकि
समापन 30 जुलाई 2025 को सुबह 12 बजकर
46 मिनट पर होगा। पंचांग
के आधार पर इस
साल यह पर्व 29 जुलाई
को मनाया जाएगा।
कालसर्प दोष से मुक्ति और उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिन
व्यक्तियों की कुंडली में
कालसर्प दोष होता है,
उन्हें जीवन में अनेक
बाधाओं का सामना करना
पड़ता है। नागपंचमी का
दिन इस दोष से
मुक्ति के लिए विशेष
शुभ माना जाता है।
कुछ परंपरागत उपाय इस दिन
किए जाते हैं, जैसे
नागों को दूध पिलाना,
चांदी की नाग-नागिन
की मूर्ति लाकर पूजन कर
शिव मंदिर में अर्पित करना,
लावा, गुड़ और दूध
का भोग, नागों की
आकृति बनाकर उस पर हल्दी-सिंदूर चढ़ाना. कहते है इन
उपायों से जीवन में
सकारात्मकता आती है और
दुर्भाग्य दूर होता है।
कालसर्प दोष निवारण के
लिए आज के दिन
राहुकाल में भगवान शिव
की विधि विधान से
पूजा कराएं. रुद्राभिषेक कराने से भी लाभ
मिलता है. इसके अलावा
कालसर्प दोष से मुक्ति
के लिए आप नाम
जप करें. आपके जो भी
इष्ट देव हैं, उनके
नाम का जप करें.
कालसर्प दोष, पितृ दोष
आपको कुछ भी नहीं
कर पाएंगे. प्रभु कृपा से आपका
कल्याण होगा. नाग पंचमी के
अवसर पर तीर्थराज प्रयाग
में पितरों के लिए तर्पण
और श्राद्ध करें. इस उपाय से
भी कालसर्प दोष का निवारण
होता है. नाग पंचमी
के दिन सफाईकर्मी को
मसूर की दाल और
कुछ रुपए दान करें.
कुंडली के कालसर्प दोष
का नाश होगा. नाग
पंचमी पर भगवान शिव
का अभिषेक करने से कालसर्प
दोष दूर होता है.
कालसर्प दोष के निवारण
के लिए देवों के
देव महादेव के शिव तांडव
स्तोत्र का पाठ करें.
महाकाल की कृपा आप
पर होगी और इससे
भय, दोष, रोग आदि
का नाश होगा. नाग
पंचमी को सोने या
चांदी के बने नाग
और नागिन के जोड़े की
फूल, अक्षत्, धूप, दीप आदि
से पूजा करें. फिर
उन दोनों को बहते हुए
जल में प्रवाहित कर
दें. आपका कालसर्प दोष
शांत हो जाएगा. कालसर्प
दोष से मुक्ति के
लिए भगवान श्रीकृष्ण की उस मूर्ति
का पूजन करें, जिसमें
मोर पंख लगे हों.
यह कार्य रोज कर सकते
हैं. भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से
कालसर्प दोष दूर होगा.
कालसर्प दोष निवारण के
लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें.
शिवलिंग का गंगाजल और
गाय के दूध से
अभिषेक करें. बहते पानी में
कोयले के टुकड़े, मसूर
की दाल और साबुत
नारियल प्रवाहित करें, आपको लाभ होगा.
श्रद्धा और संतुलन
नागपंचमी हमें केवल धर्म
नहीं सिखाती, बल्कि एक समग्र जीवनदर्शन
देती है। जहां हिंसा
नहीं, सह-अस्तित्व है।
जहां भय नहीं, श्रद्धा
है। जहां शोषण नहीं,
संरक्षण है। सर्प की
पूजा, वृक्ष की पूजा, गोमाता
और धरतीमाता की संज्ञा कृ
यह दर्शाता है कि सनातन
संस्कृति में जीव-जगत
और प्रकृति के प्रति प्रेम
और संवेदनशीलता अंतर्निहित है। या यूं
कहें नागपंचमी केवल एक पर्व
नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की उन धरोहरों
में से एक है
जो धर्म, प्रकृति और विज्ञान को
एक सूत्र में बांधती है।
यह पर्व सिखाता है
कि संसार के हर जीव
का अस्तित्व महत्वपूर्ण है, और मानव
का धर्म है कि
वह प्रकृति के हर घटक
का सम्मान करे, उसे पूजे
नहीं तो कम से
कम उसका नाश तो
न करे। जब तक
हमारे पर्व नागों को
दूध पिलाते रहेंगे और धरती की
खुदाई रोकते रहेंगे, तब तक यह
सभ्यता केवल बचेगी नहीं,
बल्कि आगे भी पनपेगी।
मतलब साफ है सर्पों
की रक्षा, प्रकृति का सम्मान और
श्रद्धा का विवेकपूर्ण प्रयोग
ही इस पर्व की
सच्ची पूजा होगी। वैसे
भी भारत की संस्कृति
में हर प्राणी, हर
प्रतीक पूज्य है. कहीं वह
शक्ति का रूप है,
तो कहीं संतुलन का
आधार। नागपंचमी, ऐसा ही एक
पर्व है, जिसमें सर्प,
जो सामान्यतः भय का प्रतीक
माने जाते हैं, देवता
के रूप में पूजे
जाते हैं। नागपंचमी केवल
परंपरा नहीं, बल्कि श्रद्धा, पर्यावरणीय चेतना और सांस्कृतिक विवेक
का अद्भुत संगम है।
जनमेजय यज्ञ और आस्तिक मुनि की कथा
महाभारत काल में राजा
जनमेजय ने अपने पिता
परीक्षित की मृत्यु के
प्रतिशोध में सर्प यज्ञ
करवाया था। वह यज्ञ
समस्त नागजाति के विनाश का
कारण बनने वाला था,
परंतु आस्तिक मुनि ने उस
यज्ञ को रोक दिया
और नागों की रक्षा की।
उसी दिन से श्रावण
शुक्ल पंचमी को नागपंचमी के
रूप में मनाने की
परंपरा बनी। उत्तर प्रदेश,
बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड
सहित कई राज्यों के
ग्रामीण क्षेत्रों में यह पर्व
विशेष श्रद्धा के साथ मनाया
जाता है। दीवारों पर
गोबर से नाग बनाए
जाते हैं, दूध चढ़ाया
जाता है और खेतों
की मेड़ों पर नागदेवता को
प्रणाम किया जाता है।
महिलाएं व्रत रखती हैं
और नागगीत गाती हैं :
“नागिनिया रानी
गोदिया
में
सुत
जनि
देई,
दूध-अंचरा
देब
हम,
चिर
जीवन
लेबि।।
इन गीतों में
जीवन, सुरक्षा और आस्था का
समन्वय होता है। नाग
केवल पूज्य नहीं, पर्यावरण संतुलन के संरक्षक भी
हैं। खेतों में चूहों की
संख्या को नियंत्रित कर
ये सर्प फसल रक्षा
में सहायक होते हैं। नागपंचमी
हमें यह याद दिलाती
है कि प्रकृति के
हर प्राणी का इस सृष्टि
में स्थान है, चाहे वह
भुजंग हो या भृंग।
इस दिन कई जगह
जीवित सर्पों को पकड़कर मंदिरों
या मेलों में प्रदर्शित किया
जाता है, जो वन्यजीव
संरक्षण कानून के खिलाफ है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि
सर्पों को दूध पिलाना
भी हानिकारक है, क्योंकि सांप
लैक्टोज इंटोलरेंट होते हैं। आज
ज़रूरत है कि पूजा
प्रतीकात्मक हो, और श्रद्धा
के साथ संरक्षण की
भावना भी जुड़ी हो।
योग और आध्यात्म में नाग
सर्प केवल बाह्य
नहीं, आंतरिक चेतना के भी प्रतीक
हैं। कुंडलिनी शक्ति, जो योग में
जाग्रत की जाती है,
उसे सर्पाकार ऊर्जा कहा गया है।
इसका जागरण आत्मविकास और ब्रह्मज्ञान की
ओर ले जाता है।
इस दृष्टि से नाग, अज्ञान
को पराजित कर चेतना को
उजागर करने वाले तत्व
हैं। इस दिन भगवान
शिव के गण माने
जाने वाले नाग देवता
की घर-घर में
पूजा की जाती है.
इस दिन नागदेवता की
पूजा करने से आपका
धन बढ़ता है. सर्पदंश
का भय दूर होता
है.
कैसे बनता है कालसर्प दोष?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली
में राहु और केतु
से कालसर्प दोष बनता है.
राहु को काल और
केतु को सर्प का
देवता माना जाता है.
राहु और केतु की
वजह से बना कालसर्प
दोष व्यक्ति के शुभ प्रभावों
को मिटा देता है
और कई तरह से
परेशान करता है. ज्योतिष
के अनुसार, किसी कुंडली में
जब राहु और केतु
180 डिग्री पर आमने-सामने
हों, बाकी 7 ग्रह उनके किसी
भी एक तरफ हों,
तो कालसर्प दोष होता है.
मुख्यतः कालसर्प दोष 12 प्रकार के होते हैं,
लेकिन 288 प्रकार के कालसर्प दोष
बनाए गए हैं.
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