जनविरोधी है विद्युत निगमों का निजीकरण: संघर्ष समिति
जनसुनवाई में सौंपा ज्ञापन,
कहा- निजी कंपनी से उपभोक्ता पहले से परेशान, RTI तक नहीं रहेगा लागू
सुरेश गांधी
वाराणसी. वाराणसी में शुक्रवार को आयोजित बिजली
टैरिफ जनसुनवाई के दौरान विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश ने पूर्वांचल
और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव को जनविरोधी करार देते हुए
रद्द करने की मांग की। समिति के प्रतिनिधिमंडल ने उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग
के अध्यक्ष श्री अरविंद कुमार को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि अगर निजीकरण को अनुमति दी
गई तो उपभोक्ता न केवल महंगी बिजली भुगतेंगे, बल्कि हजारों संविदा कर्मियों की नौकरियां
भी खत्म हो जाएंगी।
संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि निजी
कंपनियां पहले से ही मीटर रीडिंग, बिलिंग, मीटर लगाने जैसे कार्य कर रही हैं, फिर भी
उपभोक्ता लगातार गलत रीडिंग, अधिक बिल, जमा राशि के बावजूद कनेक्शन न जोड़ने जैसी समस्याओं
से जूझ रहे हैं। ऐसे में पूरा विभाग निजी हाथों में चला गया तो आरटीआई जैसी पारदर्शिता
भी खत्म हो जाएगी और जनता पूरी तरह लाचार हो जाएगी।
संघर्ष समिति के वरिष्ठ पदाधिकारी माया
शंकर तिवारी, अंकुर पांडेय, ई. शशि प्रकाश सिंह और ई. नीरज बिंद के नेतृत्व में जनसुनवाई
में भाग लेने पहुंचे प्रतिनिधिमंडल ने मांग की कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल वितरण निगमों
का निजीकरण न केवल कर्मचारियों के हित में हानिकारक है, बल्कि उपभोक्ताओं के अधिकारों
का भी उल्लंघन है।
झूठे घाटे का हवाला देकर निजीकरण की साजिश
संघर्ष समिति ने कहा कि पावर कॉरपोरेशन
प्रबंधन किसानों, बुनकरों व सरकारी संस्थाओं को दी जा रही सब्सिडी और बकाया राजस्व
को घाटे में शामिल कर निजीकरण का तर्क दे रहा है, जबकि यह सरकार की जिम्मेदारी है।
निजीकरण के प्रस्ताव को इसी आधार पर खारिज किया जाना चाहिए। प्रतिनिधियों ने यह भी
बताया कि 06 अक्टूबर 2020 को तत्कालीन चेयरमैन पावर कारपोरेशन रहते हुए श्री अरविंद
कुमार ने संघर्ष समिति के साथ लिखित समझौता किया था कि बिजली क्षेत्र में कोई भी निजीकरण
कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना नहीं किया जाएगा। इसके बावजूद निजीकरण का मौजूदा
प्रस्ताव उस समझौते का उल्लंघन है।
छात्रों और कर्मचारियों की उम्मीदों पर
पानी फेर देगा निजीकरण
संघर्ष समिति ने यह भी चेताया कि निजीकरण
के बाद लाखों तकनीकी विद्यार्थियों के रोजगार की संभावनाएं भी खत्म हो जाएंगी। वर्ष
2019 में पूर्वांचल निगम में 5436 पदों की स्वीकृति मिली थी, लेकिन अभी तक शासन से
स्वीकृति नहीं ली गई। इससे न केवल नौजवानों की उम्मीदें टूटी हैं, बल्कि ऊर्जा प्रबंधन
के समझौतों की अवहेलना से कर्मचारियों में भी भारी असंतोष है।
जन प्रतिनिधियों और संगठनों ने जताया विरोध
जनसुनवाई के दौरान इंडियन इंडस्ट्रीज
एसोसिएशन के उपाध्यक्ष आर.के. चौधरी, उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा, बुनकर
संगठनों, किसान संगठनों, पार्षदों, ग्राम प्रधानों और अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी निजीकरण
का विरोध किया। सभी ने एक स्वर में मांग की कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण
निगमों का निजीकरण उपभोक्ताओं और आमजन के हित में नहीं है और इस प्रस्ताव को तत्काल
प्रभाव से खारिज किया जाए।
226वें दिन भी जारी रहा विरोध आंदोलन
संघर्ष समिति ने बताया कि निजीकरण के
खिलाफ चल रहे आंदोलन का आज 226वां दिन था। इस अवसर पर प्रदेश भर के बिजली कर्मचारियों
ने जनपदों और परियोजनाओं में जनसंपर्क व विरोध प्रदर्शन किया।
No comments:
Post a Comment