जनभागीदारी से
राष्ट्रनिर्माण
की
नई
इबारत
नशामुक्त भारत का नया मंत्र : बच्चों से
पंचायत तक उठी जनचेतना की लहर
हिमाचल मॉडल
को
मिला
राष्ट्रीय
सराहना,
ब्रह्माकुमारी
और
113 संस्थाओं
ने
उठाया
संकल्प
का
दीप
जब तक
मांग
खत्म
नहीं
होगी,
आपूर्ति
बंद
नहीं
होगी
: राज्यपाल
शिव
प्रताप
शुक्ल
8 साल के बच्चों तक
फैली
नशे
की
लत,
ध्यान
और
संस्कार
ही
एकमात्र
समाधान
बच्चों से
बुजुर्ग
तक
उठा
जनजागरण
का
दीप
राज्यपाल शुक्ला
का
’हिमाचल
मॉडल’
बना
प्रेरणा
स्रोत
“नशा नहीं करेंगे,
और
नशा
करने
वालों
को
रोकेंगे,”
तो
एक
नैतिक
क्रांति
संभव
है
सुरेश गांधी
वाराणसी. देश में तेजी से पैर पसारते नशे के जाल के विरुद्ध एक राष्ट्रव्यापी जनआंदोलन का सूत्रपात हो चुका है। ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ के अंतर्गत हुए राष्ट्रीय संवाद में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल, ब्रह्माकुमारी संस्थान, जनकल्याण नशा मुक्ति केंद्र, जीवन विद्या मिशन समेत 113 संस्थाओं ने एकस्वर में यह संकल्प लिया कि अब बचपन से लेकर पंचायत तक नशे के खिलाफ व्यापक चेतना फैलाई जाएगी। कार्यक्रम में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि 8 से 14 वर्ष तक के बच्चे भी नशे की गिरफ़्त में आ रहे हैं। स्कूलों के वातावरण को सकारात्मक और संस्कारित बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए वक्ताओं ने सुझाव दिया कि हर जिले में मेडिटेशन और योग केंद्र स्थापित हों।
विद्यालयों में नशा मुक्त छात्रों को प्रमाण-पत्र दिए जाएं। ग्राम पंचायत निधि से खेल मैदान और संस्कारशालाएं विकसित हों। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब उन्होंने प्रदेश में नशे के विरुद्ध अभियान की शुरुआत की, तो सबसे पहले पंचायत प्रतिनिधियों और युवाओं को जोड़ा। “गांव-गांव जाकर लोगों को समझाया, यदि मांग बंद कर दो, तो आपूर्ति खुद रुक जाएगी।” आज हिमाचल में छात्र-छात्राएं, शिक्षक, अभिभावक और सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर नशा विक्रेताओं का सामाजिक बहिष्कार कर रहे हैं। स्कूलों में प्रवेश के समय ही शपथ दिलाई जा रही है, “मैं नशा नहीं करूंगा और नशा करने वालों को भी रोकूंगा।”
उन्होंने कहा, आज जब युवा पीढ़ी जीवन के दोराहे पर खड़ी है, यह अभियान उन्हें भटकाव से बचाकर उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाने का मार्गदर्शक बन सकता है। हिमाचल से उठी यह लौ अब देश के हर कोने तक पहुंचे, यही इस राष्ट्रीय प्रयास की सफलता का मंत्र होगा। काशी ने आज यह संदेश दिया है कि यदि युवा जाग जाएं और आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ जुड़ जाएं, तो भारत को नशा मुक्त और विकसित बनाना कोई दूर का सपना नहीं।“उड़ता पंजाब“ से “संवेदनशील हिमाचल“ तक
राज्यपाल शुक्ला ने कहा कि एक समय था जब पंजाब नशे के कारण बदनाम था, पर आज हिमाचल को आदर्श मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुझे यह मंत्र दिया था कि जब तक नशे की मांग नहीं खत्म होगी, आपूर्ति नहीं रुकेगी। उसी आधार पर हमने गांव-गांव जाकर लोगों को चेताया और आज हिमाचल जागरूक है।” डॉ. मनसुख मांडविया, केंद्रीय युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्री, ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “यह केवल घोषणा नहीं, बल्कि भारत की युवा शक्ति का साझा संकल्प है। भारत की आध्यात्मिक शक्ति अब इस नशा मुक्ति अभियान की रीढ़ बनेगी।“ उन्होंने इस अभियान को जन आंदोलन बनाने पर बल दिया और कहा कि यह केवल सरकारी प्रयास नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं की साझेदारी से ही सफल होगा।
आध्यात्मिक संस्थाओं का संकल्पः ध्यान ही समाधान
ब्रह्माकुमारी संस्थान और जीवन विद्या
मिशन जैसे आध्यात्मिक संगठनों
ने कहा कि “नशे
की समस्या सिर्फ शरीर की नहीं,
यह आत्मा की बीमारी है।
इसका इलाज ध्यान, आत्मबोध
और संस्कारों से ही संभव
है।” इन संस्थाओं ने
गांव-गांव निःशुल्क ध्यान-शिविर, नशा उन्मूलन पाठशालाएं
और आध्यात्मिक प्रेरणा केंद्र चलाने की प्रतिबद्धता जताई।
ब्रह्माकुमारी जैसी आध्यात्मिक संस्थाओं
ने इस अवसर पर
कहा कि नशे का
इलाज केवल शरीर का
नहीं, बल्कि मन और आत्मा
का उपचार भी है। ध्यान
और आत्मबोध के ज़रिए व्यक्ति
को जागरूक करना होगा। संस्था
ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों
में निःशुल्क ध्यान-शिविर और मानसिक जागरूकता
शिविर चलाने का प्रस्ताव रखा।
राष्ट्रीय ’नशा मुक्त भारत संकल्प पत्र’ जारी
कार्यक्रम में एक विस्तृत
कार्ययोजना प्रस्तुत की गई, जिसमें
निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं : स्कूल-कॉलेजों में नियमित नशा
जागरूकता अभियान. मनरेगा और पंचायत निधियों
से खेल एवं संस्कार
केंद्र. जिला स्तर पर
उपचार केंद्रों की स्थापना. मीडिया, समाज
और धर्मगुरुओं की सहभागिता. युवाओं
को प्रमाणपत्र देकर सम्मानित करना.
संकल्प से सिद्धि तकः
युवा बनेंगे अग्रदूत. कार्यक्रम के अंत में
सभी प्रतिभागियों ने सामूहिक शपथ
ली, “हम नशा नहीं
करेंगे, नशे को समाज
से उखाड़ फेंकेंगे और
दूसरों को भी रोकेंगे।”
यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं,
बल्कि एक राष्ट्रव्यापी चेतना
आंदोलन की शुरुआत है,
जो भारत के भविष्य
को नई दिशा देने
जा रहा है।
‘फिट इंडिया’ साइकिल अभियान और ‘काशी घोषणा’ से युवाओं को मिला नया मार्ग
केंद्रीय युवा कार्यक्रम एवं
खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया
ने रविवार को बनारस हिंदू
विश्वविद्यालय (बीएचयू) परिसर में फिट इंडिया
संडेज ऑन साइकिल के
32वें संस्करण में 3000 से अधिक युवाओं
संग साइकिल चलाकर “नशा मुक्त युवा,
विकसित भारत” का संदेश दिया।
उन्होंने कहा कि स्वस्थ
शरीर और संयमित जीवनशैली
से ही युवा राष्ट्र
निर्माण में सशक्त भूमिका
निभा सकते हैं। इस
अवसर पर योग, ज़ुंबा,
मेडिटेशन और पारंपरिक खेलों
का आयोजन भी हुआ। कार्यक्रम
में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रीगण, जनप्रतिनिधि
और प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हुए।
इसी क्रम में रुद्राक्ष
कन्वेंशन सेंटर में तीन दिवसीय
युवा आध्यात्मिक समिट का समापन
हुआ, जिसमें देशभर से आए 600 से
अधिक युवा प्रतिनिधियों और
120 से ज्यादा आध्यात्मिक-सांस्कृतिक संगठनों ने भाग लिया।
समिट के अंत में
‘काशी घोषणा’ जारी की गई,
जो नशा मुक्ति अभियान
का पांच वर्षीय रोडमैप
है। डॉ. मांडविया ने
कहा, “यह सिर्फ घोषणा
नहीं, बल्कि भारत की युवाशक्ति
का साझा संकल्प है।
भारत की आध्यात्मिक चेतना
अब नशा मुक्त भारत
अभियान की रीढ़ बनेगी।”
काशी घोषणा में नशा को
सामाजिक व सार्वजनिक स्वास्थ्य
संकट मानते हुए शिक्षा, संस्कृति,
तकनीक और सेवा-आधारित
संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया
गया है। अब डल्
भारत के स्वयंसेवक देशभर
में शपथ, जागरूकता और
पुनर्वास कार्यक्रमों का संचालन करेंगे।
इसकी प्रगति की समीक्षा विकसित
भारत युवा संवाद-2026 में
की जाएगी। इस समिट में
केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार,
गजेंद्र सिंह शेखावत, नित्यानंद
राय, श्रीमती रक्ष खडसे सहित
कई विशिष्ट अतिथियों ने विचार रखे।
भयावह होती आदतों का सामाजिक प्रतिकार
कार्यक्रम में वक्ताओं ने
बताया कि 8 से 14 वर्ष
तक की आयु के
बच्चों में भी अब
नशे की प्रवृत्ति देखी
जा रही है, जो
देश के भविष्य पर
गहरा संकट है। इस
संदर्भ में सुझाव आया
कि सरकार हर जिले में
’मेडिटेशन सेंटर’ और योग-साधना
केंद्र स्थापित करे ताकि मानसिक
रूप से बच्चों को
मजबूत बनाया जा सके। नशा
मुक्त होने वाले विद्यार्थियों
को प्रमाणपत्र देने, स्कूलों में खेल सुविधाएं
बढ़ाने और ग्राम पंचायत
निधि से खेल मैदान
विकसित करने जैसे सुझावों
को बल मिला। यह
माना गया कि अगर
प्रारंभिक अवस्था में ही बच्चों
को सही दिशा मिल
जाए, तो नशे की
ओर बढ़ता कदम रोका
जा सकता है।
प्रधानमंत्री के आह्वान को जन आंदोलन बना रहे युवा
कार्यक्रम में युवा वक्ताओं ने कहा कि जब देश की 65 फीसदी आबादी युवा है, तो यह जरूरी है कि यह पीढ़ी नशे से बचे। कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थितों ने सामूहिक संकल्प लिया, “हम भारत के युवा संकल्प लेते हैं कि नशा नहीं करेंगे, नशे को समाज से उखाड़ फेंकेंगे और नशा मुक्त भारत के निर्माण में सक्रिय भागीदार बनेंगे।“ कार्यक्रम के अंतिम चरण में वक्ताओं ने कहा कि यह संवाद अब केवल रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी चेतना आंदोलन का बीजारोपण है। अब इसे प्रत्येक नागरिक, हर युवा, हर अभिभावक, शिक्षक और जनप्रतिनिधि को मिलकर वटवृक्ष बनाना होगा। “जब तक नशे का अंधकार रहेगा, तब तक भारत के विकास की गति बाधित रहेगी। लेकिन अगर आज का युवा जाग जाए, तो भारत निश्चित ही नशा मुक्त और विकसित राष्ट्र बनेगा।” इस रिपोर्ट को ‘राष्ट्रीय नशा उन्मूलन कार्ययोजना 2030’ के संदर्भ में एक दस्तावेजीय उदाहरण माना जा सकता है, जिसे नीतिगत स्तर पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
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