तीर्थों की त्रिवेणी से राष्ट्रधर्म की यात्रा
काशी से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंगों के बीच तीर्थ जल आदान-प्रदान की आध्यात्मिक परंपरा का शुभारंभ
प्रयागराज, वाराणसी
और
रामेश्वरम
के
मध्य
सनातन
समन्वय
का
साक्षात
चित्र
सुरेश गांधी
वाराणसी. भारत की सनातन
परंपरा सदियों से नदी, तीर्थ,
परंपरा और पूजा के
माध्यम से राष्ट्र को
जोड़ती रही है। उसी
कड़ी को पुनः जीवंत
करते हुए रविवार को
काशी और रामेश्वरम के
दो पवित्र ज्योतिर्लिंगों के मध्य तीर्थ
जल के पारस्परिक आदान-प्रदान की परंपरा का
शुभारंभ किया गया। यह
आयोजन न केवल उत्तर
और दक्षिण भारत के आध्यात्मिक
समन्वय का प्रतीक है,
बल्कि राष्ट्रधर्म, श्रद्धा और सांस्कृतिक एकता
की प्रेरणास्पद मिसाल भी है।
यह अभिनव प्रयास
काशी, प्रयागराज और रामेश्वरम : तीनों
सनातन तीर्थ स्थलों को धर्म, संस्कृति
और राष्ट्रभावना के सूत्र में
जोड़ने की दिशा में
एक महत्वपूर्ण कदम है। इस
आयोजन की सार्थकता केवल
धार्मिक अनुष्ठान में नहीं, बल्कि
उस व्यापक संदेश में है जो
यह समस्त भारत को देता
है कि हमारी आस्था
की धाराएं चाहे कहीं से
भी बहें, उनका संगम राष्ट्र
की एकता में ही
होता है।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण मिश्र ने बताया कि ये तीर्थ अब एक पवित्र परंपरा से और अधिक सुदृढ़ रूप में जुड़ने जा रहे हैं। श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग और श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के मध्य अब पवित्र तीर्थ जल का पारस्परिक आदान-प्रदान होगा, जो उत्तर और दक्षिण भारत की आध्यात्मिक एकता का अद्वितीय प्रतीक बनेगा। इस नवाचार के अंतर्गत प्रयागराज स्थित त्रिवेणी संगम से पवित्र जल एवं रेत तथा रामेश्वरम से प्राप्त कोडी तीर्थम सागर जल दोनों ही ज्योतिर्लिंगों पर श्रद्धा और भक्ति से पूजन व अभिषेक हेतु प्रयोग किए जाएंगे।
श्री काशी विश्वनाथ
विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद्, वाराणसी के डिप्टी कलेक्टर
एवं मंदिर न्यास प्रतिनिधियों ने त्रिवेणी संगम
से विधिवत पूजन के उपरांत
संगम जल एवं रेत
का संग्रह किया। समारोह में प्रयागराज के
अपर जिलाधिकारी सत्यम मिश्र, एडीएम श्री विवेक चतुर्वेदी,
संत समाज व सैन्य
आयुध भंडार के अधिकारी भी
उपस्थित रहे। संगम जल
को सुसज्जित वाहन से काशी
के लिए रवाना किया
गया।
सोमवार को यह पवित्र
जल श्री काशी विश्वनाथ
मंदिर में भगवान श्री
विश्वेश्वर को समर्पित किया
जाएगा। तत्पश्चात विशेष समारोह में यह जल
एवं रेत श्री रामेश्वरम
ज्योतिर्लिंग प्रतिनिधिमंडल को सौंपा जाएगा।
वहीं रामेश्वरम से भेजा गया
पावन जल श्रावण पूर्णिमा
पर काशी में भगवान
विश्वेश्वर के जलाभिषेक हेतु
उपयोग में लाया जाएगा।
यह पावन परंपरा सनातन
संस्कृति में तीर्थ एकता,
सांस्कृतिक समरसता एवं राष्ट्रधर्म की
भावना को बल प्रदान
करती है। यह आयोजन
उत्तर और दक्षिण भारत
को धर्म, श्रद्धा और भावना के
सेतु से जोड़ने की
एक ऐतिहासिक पहल है।
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