Wednesday, 6 August 2025

गंगा का जलस्तर थमा, लेकिन मुश्किलें बरकरार, बीमारी का खतरा बढ़ा

अब राहत की लहरों के बीच संक्रमण और जलभराव से जूझेगा बनारस  

गंगा का जलस्तर थमा, लेकिन मुश्किलें बरकरार, बीमारी का खतरा बढ़ा 

बाढ़ के बाद अब बीमारियों और गंदगी से लड़ाई, साफ-सफाई में लगेंगे कई हफ्ते 

राहत की लहर के बाद अब जिम्मेदारी की लहर 

गंगा का जलस्तर 71.98 मीटर रिकॉर्ड किया गया, जो खतरे के निशान 71.262 मीटर से थोड़ा ही ऊपर है

सुरेश गांधी 

वाराणसी। बनारस ने राहत की सांस तो ली है, लेकिन मुश्किलें अब भी कम नहीं हुई हैं। बीते एक सप्ताह से लगातार बढ़ते गंगा के जलस्तर ने जिस तरह काशी की सांसें अटका दी थीं, उसमें अब कमी आई है। केंद्रीय जल आयोग, राजघाट द्वारा बुधवार रात 8 बजे जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, गंगा का जलस्तर 71.98 मीटर रिकॉर्ड किया गया, जो खतरे के निशान 71.262 मीटर से थोड़ा ही ऊपर है। साथ ही, 2 सेमी प्रति घंटे की गिरावट दर्ज की गई है, जो इस संकट में एक बड़ी राहत का संकेत है। लेकिन सवाल यह नहीं है कि गंगा उतर रही है या नहीं, सवाल यह है कि गंगा के साथ जो विपदाएं आईं, उनका मलबा कितनी जल्दी हटेगा? क्योंकि पानी उतरने के बाद जो बीमारियों और गंदगी का दौर शुरू होता है, वह कहीं अधिक जटिल, दीर्घकालिक और खतरनाक होता है। 

वाराणसी के अनेक मोहल्लों में अब भी गली-गली पानी भरा है। आदमपुर, सरैया, अस्सी, नगवा, लहरतारा, वरुणा पार क्षेत्र, करौंदी और शास्त्रीनगर जैसे क्षेत्रों में जलभराव बना हुआ है। कई घरों के भीतर तक कीचड़ और सड़ा हुआ पानी घुस चुका है। नगर निगम और जलकल की टीमें अपनी सीमित संसाधनों के साथ प्रयासरत हैं, परंतु सच्चाई यह है कि जलमग्न मोहल्लों को पूरी तरह सामान्य स्थिति में लाने में कम से कम दो सप्ताह का समय लग सकता है। इस बीच डायरिया, टाइफाइड, वायरल फीवर, स्किन रोग, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां पांव पसारने लगी हैं। जिला अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में जलजनित बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। साफ पानी और शौचालयों की अनुपलब्धता से हालात और बिगड़ सकते हैं।

बता दें, गंगा नदी का जलस्तर बुधवार रात को राहतकारी संकेत देते हुए धीरे-धीरे घटने लगा है। अच्छी बात यह रही कि जलस्तर में 2 सेमी प्रति घंटे की दर से गिरावट जारी है, लेकिन बाढ़ की मार झेल रहे शहर के लिए यह केवल एक पड़ाव है, असली चुनौती अभी बाकी है। वह है मुहल्लों में फैली गंदगी, जलभराव, टूटे रास्ते, बदबू और संक्रमण का खतरा, जो लोगों की चिंता का कारण बन गया है। कई इलाकों में अब भी कमर तक पानी जमा है, नालियों से गंदा पानी सड़कों पर फैला हुआ है। आदमपुर, नगवा, मैदागिन, वरुणा पार क्षेत्र और अस्सी के कई हिस्सों में घरों में घुसे पानी से लोग अभी भी जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बाढ़ के पानी के उतरने के साथ ही जलजनित और संक्रामक बीमारियों का प्रकोप तेजी से बढ़ सकता है। डायरिया, टाइफाइड, स्किन इंफेक्शन, डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा उन इलाकों में सबसे ज्यादा है जहां पानी लंबे समय तक जमा रहा।

प्रशासन की चुनौती और जिम्मेदारी

प्रशासन ने राहत शिविर, स्वास्थ्य जांच शिविर, फॉगिंग और दवा छिड़काव का अभियान प्रारंभ कर दिया है, परंतु यह प्रयास तब तक अधूरे हैं जब तक नागरिक सहभागिता हो। सैकड़ों मोहल्लों में सफाई, कीटनाशक छिड़काव और पीने योग्य पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने में अभी समय लगेगा। ऐसे में नालियों की सफाई, पीने योग्य पानी की आपूर्ति, और मच्छर नियंत्रण जैसे उपाय अब प्राथमिकता बनने चाहिए। इसके साथ ही आवश्यक है कि सभी विभागों के बीच बेहतर समन्वय बने, नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग, विद्युत विभाग, और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के बीच नियमित समीक्षा बैठकें हों और कार्रवाई धरातल पर दिखे। नगर निगम के अधिकारियों के अनुसार, पूरे शहर को सामान्य स्थिति में लाने में कम से कम 2 से 3 सप्ताह का समय लग सकता है, वो भी तब जब बारिश अब हो।

नागरिक भी निभाएं दायित्व

हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अपने स्तर पर सावधानी बरते, गंदे पानी से दूर रहें, उबला हुआ पानी पिएं, खुले में रखे भोजन से बचें, नियमित रूप से हाथ धोएं, साबुन का प्रयोग करें, बच्चों को गंदे पानी से दूर रखें, घर के आसपास की साफ-सफाई में सहयोग करें और बच्चों तथा बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें। मच्छरों से बचाव के लिए मच्छरदानी, स्प्रे का उपयोग करें, यदि किसी मोहल्ले में बीमारी के लक्षण बढ़ते दिखें, तो प्रशासन को तुरंत सूचित करें।

राहत की लहर के बाद अब जिम्मेदारी की लहर

काशीवासियों के लिए यह समय सावधानी और संयम का है। गंगा का रौद्र रूप तो शांत हो गया है, लेकिन अब शहर को बीमारी और गंदगी से बचाने की जिम्मेदारी प्रशासन और आम नागरिक दोनों की है। मतलब साफ है गंगा के जलस्तर में गिरावट भले ही राहत का संकेत है, लेकिन बाढ़ से उबरना केवल पानी के उतरने से नहीं होता। असली लड़ाई अब शुरू हुई है - बीमारियों से, गंदगी से, अव्यवस्था से और प्रशासनिक शिथिलता से। काशीवासियों ने संकट की इस घड़ी में धैर्य और संयम का परिचय दिया है। अब समय है कि प्रशासन और समाज मिलकर यह सुनिश्चित करें कि यह संकट और बढ़े, बल्कि इससे सीख लेकर भविष्य के लिए बेहतर तैयारी की जाए। मतलब साफ है, बाढ़ आती है, चली जाती है, पर उसके निशान स्वास्थ्य, साफ-सफाई और सामाजिक व्यवस्था में गहरे गढ़ जाते हैं। अब ज़रूरत है उन्हें भरने की।

संभावित बीमारियां

डायरिया, टाइफाइड, वायरल बुखार, डेंगू - मलेरिया, स्किन इंफेक्शन, हेपेटाइटिस- आदि.

इन मुहल्लों में संक्रमण का खतरा ज्यादा

आदमपुर, नगवा, सरैया, वरुणा पार क्षेत्र (रजघाट, करौंदी, शास्त्रीनगर), अस्सी, लंका-नगवा मार्ग, खिड़किया घाट, कंचनपुरवा, नई बस्ती, मंडुआडीह का निचला इलाका आदि.

शहर की स्थिति 

बाढ़ के चलते शहर के कई निचले इलाके जैसे आदमपुर, नगवा, सरैया, अस्सी, राजघाट, खिड़किया, नगवा-लंका मार्ग वरुणा किनारे बस्तियां प्रभावित थीं। कई जगह नावों से लोगों को निकाला गया, जबकि कुछ स्थानों पर एनडीआरएफ सिविल डिफेंस की टीमें तैनात रहीं। अब जलस्तर में गिरावट के चलते इन इलाकों में राहत की उम्मीद जगी है। कुछ स्थानों पर पानी वापस लौटने लगा है और साफ-सफाई का काम शुरू किया गया है।

प्रशासन की ओर से सक्रियता

कमिश्नर जिलाधिकारी लगातार हालात की निगरानी में जुटे हैं। नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग, विद्युत विभाग जलकल की टीमें राहत पुनर्वास के लिए तैयार रखी गई हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में नावों बचाव दलों की गश्त जारी है। जल भराव वाले मोहल्लों में मेडिकल टीमें, क्लोरीनयुक्त पानी का छिड़काव, और राशन वितरण की व्यवस्था भी की जा रही है।

नागरिकों से अपील

प्रशासन ने नागरिकों से अपील की है कि जब तक जलस्तर खतरे के निशान से पूरी तरह नीचे नहीं जाता, तब तक सतर्क रहें। घाटों, जलमग्न मार्गों और तेज धाराओं वाले क्षेत्रों से दूर रहें। आपात स्थिति में हेल्पलाइन नंबरों पर संपर्क करें।

जनता ने ली राहत की सांस

लगातार बढ़ते जलस्तर ने लोगों को 1978 की भयावह बाढ़ की याद दिला दी थी, लेकिन अब जब गंगा मइया की धार वापस लौटने लगी है, तो काशीवासियों के चेहरों पर राहत लौटती दिख रही है। नरेश पासवान ने कहा, “पिछले चार दिन बहुत तनाव में बीते, लेकिन अब गंगा उतर रही है, भगवान शिव की कृपा रही कि हालात और नहीं बिगड़े।जलस्तर में लगातार 2 सेंटीमीटर प्रति घंटे की दर से गिरावट दर्ज की जा रही है, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले 12 से 18 घंटों में गंगा का स्तर खतरे के निशान के नीचे सकता है।

 

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