ट्रंप का टैरिफ़ वार, भारत का वैश्विक विजय रथ
ट्रंप की टैरिफ़ नीति एक सख्त झटका है, लेकिन भारत के पास इसे अपने आर्थिक पुनर्जागरण का आधार बनाने का मौका है। राजनीतिक इच्छाशक्ति और ठोस नीतियों के साथ यह तूफ़ान हमारे लिए स्वर्णिम अवसर बन सकता है। मतलब साफ है ट्रंप का टैरिफ़ हमला एक चेतावनी है, लेकिन यह हमें वैश्विक नेतृत्व की ओर भी धकेल सकता है। करों में कटौती, निवेश के द्वार खोलना और तकनीकी आत्मनिर्भरता ही इस संकट को विजय में बदल सकती है। अब समय है, मेक इंडिया ग्रेट, साहस और शानदार ढंग प्रस्तुति की। या यूं कहे डॉलर को मजबूत बनाए रखने के लिए अमेरिका का भारत पर दबाव बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन भारत के पास ऐसे वैकल्पिक बाजार मौजूद हैं, जहां निर्यात बढ़ाया जा सकता है। खाड़ी देश (जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन और कुवैत) भारतीय वस्त्र, कालीन, खाद्य और इंजीनियरिंग उत्पादों के लिए बड़े एवं संभावनाओं से भरे बाजार साबित हो सकते हैं। वहां की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, उच्च क्रय-शक्ति और भारतीय उत्पादों के प्रति पारंपरिक विश्वास को देखते हुए, उद्यमी वहां अपने व्यापार का विस्तार कर सकते हैं। यदि केंद्र और प्रदेश सरकारें मिलकर उद्यमियों को ठोस सहयोग दें, बिजली व लॉजिस्टिक लागत घटाएं और खाड़ी सहित अन्य उभरते बाजारों पर फोकस बढ़ाएं, तो यह चुनौती एक बड़े अवसर में बदली जा सकती है
सुरेश गांधी
अंतरराष्ट्रीय
मुद्रा कोष (आईएमएफ) की
प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने कहा, “भारत
इस साल वैश्विक आर्थिक
वृद्धि का इंजन रहेगा,
अकेले 15 फीसदी योगदान देगा“। मूडीज़
और अन्य संस्थाएं मान
रही हैं कि 2026 में
भी यह आंकड़ा 16 फीसदी
रहेगा। इसकी गवाही भारत
का दुनिया की चौथी सबसे
बड़ी अर्थव्यवस्था होना, तीसरा सबसे बड़ा स्टॉक
एक्सचेंज का होना, तीसरा
सबसे बड़ा सिविल एविएशन
बाज़ार का होना, तीसरा
सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल निर्माता
और मोबाइल हैंडसेट उत्पादन में दूसरे नंबर
पर होना है। पूर्व
वित्त मंत्री चिदंबरम ने कभी सवाल
उठाया था कि भारत
के लोग डिजिटल तकनीक
अपना पाएंगे या नहीं, लेकिन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वास
और जनता की क्षमता
ने देश को डिजिटल
ट्रांजैक्शन में विश्व का
नंबर-1 बना दिया। ट्रंप
सरकार द्वारा 50 फीसदी टैरिफ़ की धमकी के
बावजूद फार्मास्युटिकल, स्मार्टफोन और सर्विस सेक्टर
को छूट मिली, ये
बताता है कि योग्यता
और प्रतिस्पर्धा के आगे दुनिया
झुकती है।
50 फीसदी शुल्क से 74 अरब डॉलर का
निर्यात खतरे में तो
है, लेकिन भारत के उद्यमियों
एवं सरकार के साहसिक सुधारों
से संकट को अवसर
में बदलेगा. हालांकि यह सच है
डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फ़र्स्ट’
नीति अब भारत की
अर्थव्यवस्था पर सीधा वार
करने को तैयार है।
50 फीसदी तक के टैरिफ़
का खतरा हमारे 74 अरब
डॉलर के अमेरिकी निर्यात
- फार्मा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो, के
लिए वज्रपात जैसा है। इससे
जीडीपी में 0.5 फीसदी से अधिक की
गिरावट और 40 करोड़ के मध्यम
वर्ग की क्रयशक्ति पर
गहरा असर पड़ सकता
है। डॉलर के मुकाबले
रुपये की कमजोरी इस
दर्द को और बढ़ा
देती है। लेकिन हर
तूफ़ान में एक राह
छिपी होती है। भारत
के पास इस चुनौती
को अवसर में बदलने
का ऐतिहासिक मौका है, साहसिक
सुधारों और स्पष्ट रणनीति
के साथ। इसके लिए
सबसे पहले, मांग को बढ़ावा
देना होगा। मध्यम वर्ग पर कर
का बोझ घटाकर (15 लाख
तक की आय पर
15 फीसदी दर), 50 अरब डॉलर की
नई खपत पैदा की
जा सकती है। ग्रामीण
भारत के लिए प्रत्यक्ष
नकद हस्तांतरण, जैसे पीएम गरीब
कल्याण अन्न योजना का
विस्तार, ग्रामीण मांग को 10 फीसदी
तक बढ़ा सकता है।
रोज़गार और निवेश के
मोर्चे पर, रक्षा, सड़क,
स्वच्छता, जल संरक्षण जैसे
क्षेत्रों में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और तकनीकी हस्तांतरण
से लाखों नौकरियां संभव हैं। 1 लाख
किमी नए राजमार्ग और
सुव्यवस्थित भूमि अधिग्रहण, वियतनाम
की तरह टैरिफ़-लाभकारी
निवेश आकर्षित कर सकते हैं।
तकनीक भारत का तुरुप
का पत्ता है। एआई, ब्लॉकचेन,
6जी जैसे क्षेत्रों में
स्वदेशी अनुसंधान व विकास को
बढ़ावा देकर और कंपनियों
को राजस्व का 2 फीसदी आर
एंड डी में निवेश
के लिए बाध्य कर,
हम आयात पर निर्भरता
घटा सकते हैं। वैश्विक
स्तर पर, डॉलर की
पकड़ कम करने के
लिए ब्रिक्स व्यापारिक मुद्रा, स्थानीय मुद्राओं में सौदा और
नए मुक्त व्यापार समझौते ज़रूरी हैं। विदेशी टेक
कंपनियों को स्थानीय आर
एंड डी और नौकरियों
में निवेश के लिए बाध्य
करना होगा। अमेरिकी रेटिंग एजेंसियों के विकल्प के
रूप में ब्रिक्स समर्थित
एजेंसी भारत की असली
क्षमता को सामने लाएगी।
तथ्यों में पूरा परिदृश्य
अमेरिका
को
भारत
का
निर्यात
(2024) : फार्मास्युटिकल्स
: $12.2 अरब, वस्त्र : $8 अरब, इलेक्ट्रॉनिक्स और
ऑटो : $12$ अरब, कुल : $74 अरब
संभावित
असर
: जीडीपी में 0.5 फीसदी से अधिक की
गिरावट, रुपये की कीमत : $1 = ₹87.95, मध्यम वर्ग
की खपत क्षमता घटने
का खतरा.
सुधारों
से
संभावित
लाभ
: कर कटौती से 50 अरब डॉलर की
नई खपत, ग्रामीण नकद
हस्तांतरण से 0.5 फीसदी जीडीपी वृद्धि, रक्षा व इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश
से 12 लाख नई नौकरियां
(2030 तक). ब्रिक्स एफटीए से 60 अरब डॉलर निर्यात
वृद्धि
भारतीय टेक्सटाइल-कालीन उद्योग
भारतीय टेक्सटाइल उद्योग में 4.5 करोड़ से अधिक
लोग सीधे और करीब
6 करोड़ लोग अप्रत्यक्ष रूप
से जुड़े हैं। यह
उद्योग न सिर्फ रोजगार
देता है, बल्कि बनारसी
साड़ी, कश्मीरी कालीन, खादी, चंदेरी जैसी अनूठी परंपराओं
को दुनिया तक पहुंचाता है।
अमेरिकी टैरिफ के कारण अगर
बाजार हिस्सेदारी लगातार घटती रही, तो
असर गहराई तक होगा। यानी अमेरिका के
टैरिफ फैसले ने जो अवसर
प्रतिद्वंद्वी देशों को दिए हैं,
उन्हें मात देने के
लिए भारत को रणनीतिक
पुनर्निर्धारण करना होगा। यह
सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक पहचान, रोजगार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था
का मामला है। यदि हम
लागत, नवाचार, ब्रांडिंग व बाज़ार विस्तार
को एकजुट रूप से अपनाएं
तो वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत फिर
अग्रणी बन सकता है।
इसके लिए लागत में
प्रतिस्पर्धात्मकता लाने की जरुरत
है। यानी उत्पादन लगात
घटाने के लिए सस्ती
बिजली और गैस उपलब्ध
कराने के लिए राज्य-स्तरीय नीति सुधार करनी
होगी. ऑटोमेशन और आधुनिक मशीनरी
का उपयोग, जिससे उत्पादन समय और श्रम
लागत घटे। क्लस्टर-आधारित
थोक कच्चा माल व्यवस्था लागू
करनी होगी, जिससे लागत में 8 से
12 फीसदी तक कमी आए।
मूल्य अभिसरण (प्रोडक्ट डिफ्रेंससिएशन) यानी जीआई टैग,
हस्तनिर्मित (हैंडक्राफ्टेड) पहचान और पर्यावरण-हितैषी
उत्पादन को ब्रांडिंग का
मुख्य आधार बनाना होगा.
’और्गेनिक कॉटन’ और ’प्राकृतिक रंग’
के साथ ‘प्रीमियम’ श्रेणी
में उपलब्ध कराना होंगा। वैकल्पिक बाजार जैसे खाड़ी देश,
यूरोप, जापान, और दक्षिण कोरिया
जैसे देशों में मार्केटिंग के
लिए पैठ बनानी होगी।
क्योंकि खाड़ी देश (अरब,
सऊदी अरब, कतर, ओमान)
आदि जगहों पर भारतीय प्रवासी
और उच्च क्रय-शक्ति
वाले ग्राहक ज्यादा हैं। यूरोप, जापान,
दक्षिण कोरिया, जहांंभारतीय डिज़ाइन और हस्तकला की
भारी मांग है। फ्री
ट्रेंड एग्रीमेंट्स (एफटीए), जैसे यूएई के
साथ सीपा या सीआईपीए,
का लाभ विस्तार से
उठाना होगा। डिज़ाइन एवं मार्केटिंग में
नवाचार के तहत अंतरराष्ट्रीय
मेलों, जैसे हेमटेक्स्टाइल जर्मनी,
इंडेक्स दुबई में सक्रिय
भागीदारी बढ़ानी होगी। ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म्स,
जैसे : एमाजॉन ग्लोबल, इट्सी आदि पर भारतीय
ब्रांड स्टोर स्थापित करना होगा. सप्लाई
चेन और लॉजिस्टिक्स में
सुधार के साथ ही
डायरेक्ट शिपिंग रूट और एयर
कार्गो सेवाओं को बेहतर करना
होगा. पोर्ट और कस्टम सुविधाओं
का डिजिटलीकरण और तेजी संभव
बनाएं रखना होगा। उत्पाद
को प्रीमियम ब्रांड के रूप में
बेचना होगा, सिर्फ सस्ते दाम पर प्रतिस्पर्धा
करना खतरनाक है, इसलिए जीआई
टैग वाले उत्पादों जैसे
बनारसी, कांजीवरम, कश्मीरी शॉल की अंतरराष्ट्रीय
ब्रांडिंग करनी होगी। अमेरिकी
टैरिफ का असर निश्चित
रूप से भारत के
टेक्सटाइल और कालीन उद्योग
के लिए चुनौतीपूर्ण है,
लेकिन यह चुनौती अवसर
में बदल सकती है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी
सस्ते श्रम वाली अर्थव्यवस्थाओं
को मात देने के
लिए भारत को लागत
दक्षता, डिज़ाइन में नवाचार, प्रीमियम
ब्रांडिंग और नए बाजारों
में आक्रामक विस्तार की रणनीति अपनानी
होगी। यह सिर्फ उद्योग
की मजबूती का सवाल नहीं,
बल्कि भारत की सांस्कृतिक
पहचान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था
की सुरक्षा का भी विषय
है। अगर हम अमेरिकी
टैरिफ (जिसे आपने “ट्रम्प
टैरिफ” कहा) के असर
को देखें तो यह सच
है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश
और यहां तक कि
अफगानिस्तान जैसे देशों को
इसका अप्रत्यक्ष लाभ मिल रहा
है, क्योंकि अमेरिका इन देशों से
कुछ वस्त्र और कालीन कम
शुल्क या ड्यूटी-फ्री
आयात करता है। ऐसे
में भारतीय टेक्सटाइल और कालीन उद्योग
को दो मोर्चों पर
रणनीति बनानी होगी, लागत में प्रतिस्पर्धा
और बाजार विस्तार में आक्रामकता। मतलब
साफ है अगर भारतीय
टेक्सटाइल और कालीन उद्यमी
लागत घटाकर, डिज़ाइन में अंतर लाकर
और नए बाजारों पर
तेजी से कब्जा कर
लें, तो पाकिस्तान और
बांग्लादेश की सस्ते श्रम
वाली प्रतिस्पर्धा को मात दे
सकते हैं।
उद्यमियों के लिए राह करेंगे आसान!
अमेरिका द्वारा भारतीय वस्त्र एवं कालीन उत्पादों
पर बढ़ाए गए टैरिफ
को लेकर सांसद विनोद
बिन्द ने कहा है
कि चिंता की बात जरूर
है, लेकिन घबराने की आवश्यकता नहीं
है। उनका मानना है
कि प्रदेश के उद्यमी और
निर्यातक इस चुनौती का
डटकर मुकाबला करने में सक्षम
हैं। अमेरिका को भारतीय उत्पादों
की आवश्यकता अधिक है, क्योंकि
भारत अमेरिका से अपेक्षाकृत कम
आयात करता है और
वहां को भेजे जाने
वाले माल की गुणवत्ता
व मांग उच्च स्तर
की है। ऐसे में
भारत मजबूत स्थिति में है। उन्होंने
आश्वासन दिया कि उद्यमियों
को लॉजिस्टिकल सपोर्ट, उत्पादन लागत घटाने और
वैकल्पिक बाजार तलाशने में हर संभव
सहयोग दिया जाएगा।
उद्यमियों की मांग
उद्योग जगत का भी
मानना है कि यदि
बिजली दरों में कमी
और नीतिगत समर्थन दिया जाए तो
उत्पादन लागत कम होगी
और प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलेगी।
भारत के जैविक खेती,
जीरो बजट फार्मिंग और
विशेषकर छोटे एवं मध्यम
उद्योग जैसे क्षेत्र, अर्थव्यवस्था
को मजबूती देने में बड़ी
भूमिका निभा सकते हैं।
सीईपीसी के चेयरमैन कुलदीप
राज वाट्ठल का कहना है
कि सही रणनीति और
नीति के साथ भारतीय
उद्योग “ट्रंप टैरिफ“ का प्रभावी ढंग
से मुकाबला कर सकता है।
उन्होंने यह भी सुझाव
दिया कि हर उद्योग
की जरूरत के मुताबिक नीतिगत
सहारा दिया जाए और
निर्यातकों के लिए नए
बाजारों में प्रवेश की
राह आसान बनाई जाए।
उत्पादन लागत में प्रतिस्पर्धा लाना
भारत के हैंडलूम
और पावरलूम सेक्टर में ऊर्जा, श्रम
और कच्चे माल की लागत,
बांग्लादेश और पाकिस्तान की
तुलना में अधिक है।
सस्ती बिजली और गैस आपूर्ति
पर सरकार से नीति आधारित
राहत आवश्यक। ऑटोमेशन और स्मार्ट मशीनरी
का उपयोग, जिससे समय और श्रम
लागत घटे। कच्चे माल
की थोक खरीद के
लिए क्लस्टर मॉडल अपनाना, जिससे
लागत में 8 से12 फीसदी की
कमी संभव है।
उत्पाद में विशिष्टता और प्रीमियम ब्रांडिंग
सिर्फ “सस्ती कीमत” पर प्रतिस्पर्धा करना
खतरनाक है। भारतीय कालीन,
बनारसी साड़ी, चंदेरी, महेश्वरी और खादी जैसे
उत्पादों को प्रीमियम, ऑथेंटिक
और कलात्मक पहचान के साथ बेचना
होगा। जीआई टैग और
जियो-टैगिंग से असली भारतीय
हस्तकला को अंतरराष्ट्रीय बाजार
में प्रमाणित करना। ऑर्गेनिक कॉटन और प्राकृतिक
रंगाई को ब्रांड वैल्यू
के रूप में प्रस्तुत
करना।
भारत-अमेरिका व्यापार पर एक नजर
भारत का अमेरिका
को वस्त्र निर्यात मुख्यतः कालीन, हैंडलूम, कढ़ाईदार परिधान, रेशमी साड़ियां, कपास के उत्पाद
और रेडीमेड गारमेंट्स पर आधारित है।
2023-24 में केवल टेक्सटाइल और
अपैरल सेक्टर से भारत ने
अमेरिका को लगभग 10.5 बिलियन
डॉलर का निर्यात किया,
जो कुल निर्यात का
बड़ा हिस्सा है। लेकिन टैरिफ
बढ़ने से भारतीय उत्पादों
की कीमत अमेरिकी बाजार
में प्रतिस्पर्धी नहीं रह सकती।
वैकल्पिक बाजारों की संभावना
अमेरिका के टैरिफ दबाव
के बीच कई ऐसे
देश और क्षेत्र हैं,
जो भारतीय वस्त्र और कालीन उद्योग
के लिए नए अवसर
बन सकते हैं, खाड़ी
देश, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी
अरब, कतर, बहरीन, कुवैत,
ओमान आदि में उच्च
क्रय-शक्ति, भारतीय उत्पादों के प्रति पारंपरिक
विश्वास, भारतीय प्रवासी जनसंख्या का बड़ा आधार
है। वर्तमान में 2023-24 में भारत का
खाड़ी देशों को टेक्सटाइल निर्यात
लगभग 5.2 बिलियन डॉलर रहा। यूरोपियन
यूनियन, जैसे जर्मनी, फ्रांस,
इटली, स्पेन, नीदरलैंड आदि में भी
उच्च गुणवत्ता वाले हैंडलूम, ऑर्गेनिक
टेक्सटाइल और डिज़ाइनर परिधानों
की मांग है। इन
देशों में भारत का
टेक्सटाइल निर्यात लगभग 9 बिलियन डॉलर है, जिसमें
इटली और जर्मनी प्रमुख
खरीदार हैं। इसी तरह
पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व
एशिया यानी जापान, दक्षिण
कोरिया, वियतनाम, सिंगापुर, मलेशिया आदि देशों में
भी पारंपरिक और आधुनिक फैशन
का मिश्रण पसंद करने वाले
बाजार, विशेषकर हैंडलूम और सिल्क उत्पादों
की उच्च मांग। अफ्रीकी
देश, जेसे दक्षिण अफ्रीका,
नाइजीरिया, केन्या, मिस्र आदि में भी
उभरते बाजार, जहां कीमत-संवेदनशील
उपभोक्ता होते हैं और
भारतीय टेक्सटाइल गुणवत्ता और दाम के
संतुलन के कारण आकर्षक
है। लैटिन अमेरिका, जैसे ब्राज़ील, चिली,
पेरू, मेक्सिको आदि में भी
भारतीय कपास और एथनिक
वियर के लिए नए
संभावित बाजार हो सकते है।
टेक्सटाइल-कालीन उद्योग में
प्रतिद्वंदियों की बल्ले-बल्ले
अमेरिका द्वारा हाल में लगाए
गए अतिरिक्त टैरिफ ने भारतीय टेक्सटाइल
और कालीन उद्योग की रीढ़ मानी
जाने वाली निर्यात क्षमता
को बड़ा झटका दिया
है। यह असर सिर्फ
व्यापारिक आंकड़ों तक सीमित नहीं,
बल्कि भारत की ग्रामीण
अर्थव्यवस्था, महिला रोजगार और सांस्कृतिक धरोहर
पर भी सीधा पड़
रहा है। सबसे चिंता
की बात यह है
कि इस टैरिफ से
सबसे ज्यादा फायदा भारत के पारंपरिक
प्रतिद्वंद्वी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को
हो रहा है। इन
देशों को अमेरिका के
साथ ड्यूटी-फ्री या कम
टैरिफ वाली व्यापारिक छूट
मिली हुई है, जिसके
चलते अमेरिकी खरीदार लागत बचत के
लिए तेजी से वहां
शिफ्ट हो रहे हैं।
खासतौर पर रेडीमेड गारमेंट,
हैंडलूम, पावरलूम और हैंड-नॉटेड
कालीनों के ऑर्डर भारत
से हटकर इन देशों
में जा रहे हैं।
मतलब साफ है अमेरिका
द्वारा बढ़ाए गए टैरिफ
का सबसे बड़ा लाभ
पड़ोसी और प्रतिस्पर्धी देशों,
बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को
मिल रहा है। जबकि
भारतीय उद्योग को 50 फीसदी तक टैरिफ का
सामना करना पड़ रहा
है, इन देशों में
यह सीमा केवल 19 से
20 फीसदी है। इसका सीधा
नतीजा यह हुआ कि
बड़े अमेरिकी निर्यातक गारमेंट हब जैसे बांग्लादेश
को तेज़ी से प्राथमिकता
देने लगे हैं। बांग्लादेश
की बढ़त इसलिए भी
है, क्योंकि वहां कम श्रम
लागत व बड़े पैमाने
पर उत्पादन है. बांग्लादेश में
मजदूरी औसतन 115 रुपय प्रति माह
है, जिससे उन्हें कीमत में प्रतिस्पर्धात्मक
बढ़त मिलती है। इसके अलावा
70 फीसदी तक फैब्रिक स्थानीय
स्तर पर उपलब्ध है,
जो लागत और निर्भरता
दोनों घटाता है। टैरिफ का
लाभ : अमेरिका
ने बांग्लादेश पर टैरिफ दर
घटाकर 20 फीसदी कर दी है,
जहां कई प्रतियोगियों को
25 से 37 फीसदी का सामना करना
पड़ रहा है। बढ़ी
निर्यात क्षमता : बांग्लादेश द्वारा 2025 में उत्पन्न $50 अरब
के वस्त्र निर्यातों में यूएस की
हिस्सेदारी, ज्यादातर ’रेडीमेड गारमेंट्स’ स्थिर रही। कुछ ऐसा
ही पाकिस्तान की स्थिति है।
एफवाई 2024 से 2025 में पाकिस्तान की
टेक्सटाइल निर्यात बढ़कर $17.88 अरब हो गई।
इसमें तैयार गारमेंट्स, बेडवियर और निकिटवियर की
मजबूत ग्रोथ शामिल रही। हालांकि, अमेरिका
में निर्यात घटकर $5.6 अरब (2024) रह गया, जिसमें
से केवल ्$33 मिलियन
ही कालीन और फ्लोर कवरिंग
वाला हिस्सा था। ग्रोथ के
बावजूद, यह हिस्सा बांग्लादेश
के मुकाबले बहुत छोटा है
और इसलिए प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त तुलनात्मक रूप
से सीमित है।
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