चेतावनी : टेंडर जारी हुआ तो होगा अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार और जेल भरो आंदोलन
बिजली का निजीकरण : कर्मचारियों की
नौकरी और जनता की जेब दोनों पर चोट!
संघर्ष समिति
का
आरोप
: निजी
घरानों
की
तिजोरी
भरने
की
साजिश,
जनता
को
झेलनी
पड़ेगी
महंगी
बिजली
आरएफपी डाक्यूमेंट
निरस्त
करने
की
मांग
सुरेश गांधी
वाराणसी. उत्तर प्रदेश में बिजली के
निजीकरण की तैयारी ने
न केवल हजारों कर्मचारियों
बल्कि आम जनता की
नींद भी उड़ा दी
है। वाराणसी समेत पूरे प्रदेश
में बिजलीकर्मियों ने मंगलवार को
ज़बरदस्त प्रदर्शन कर सरकार और
पावर कार्पोरेशन प्रबंधन पर तीखा हमला
बोला। संघर्ष समिति ने साफ चेतावनी
दी कि यदि निजीकरण
का टेंडर जारी हुआ तो
न सिर्फ कार्य बहिष्कार होगा बल्कि सामूहिक
जेल भरो आंदोलन भी
होगा।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने नियामक आयोग
को भेजे पत्र में
कहा है कि निजीकरण
का आर.एफ.पी.
डाक्यूमेंट सीधे-सीधे निजी
घरानों के हित में
तैयार किया गया है।
इससे न केवल 50 हजार
संविदा कर्मियों और 16,500 नियमित कर्मचारियों की नौकरी खतरे
में पड़ जाएगी, बल्कि
उपभोक्ताओं पर भी अतिरिक्त
बोझ पड़ेगा। समिति ने सवाल उठाया
कि क्या सरकार जनता
को सस्ती बिजली देने आई थी
या फिर चंद कंपनियों
के मुनाफे के लिए आम
लोगों की जेब काटने?
समिति ने कहा कि
यह सीधा हमला बिजलीकर्मियों
के भविष्य पर है, लिहाजा
नियामक आयोग को बिना
कर्मचारियों की राय सुने
किसी दस्तावेज को स्वीकृति नहीं
देनी चाहिए।
नेताओं ने चेतावनी दी
कि निजीकरण होते ही बिजली
बिल आसमान छूने लगेंगे, उपभोक्ताओं
को समय पर सेवा
नहीं मिलेगी और ग्रामीण क्षेत्रों
में तो बिजली पहुंचना
ही मुश्किल हो जाएगा। “निजी
कंपनियां सिर्फ मुनाफा देखेंगी, जनता का हित
नहीं,” यह आरोप हर
वक्ता ने दोहराया। संघर्ष
समिति ने पूर्व निदेशक
वित्त निधि नारंग और
ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थार्टन की मिलीभगत का
मुद्दा भी उठाया। आरोप
लगाया गया कि निजी
घरानों को फायदा पहुंचाने
के लिए डाक्यूमेंट तैयार
कराया गया था।
समिति ने कहा कि
जब दस्तावेज ही संदिग्ध है
तो उस पर कोई
भी निर्णय जनता के साथ
धोखा होगा। सभा में अंकुर
पांडेय, मनोज यादव, रोहित
कुमार, योगेंद्र कुमार, एस.के. भूषण,
राजू सिंह, अरुण कुमार, रमेश
सिंह, आदित्य पांडेय, पी.एन. चक्रधारी,
अभिषेक कुमार, गुलजार, प्रवीण सिंह, वीरेंद्र कुमार व अरुण कुमार
सिंह ने कहा कि
“बिजली का निजीकरण केवल
कर्मचारियों की लड़ाई नहीं
है, यह हर उपभोक्ता
की लड़ाई है। महंगी
बिजली और खराब सेवा
को रोकने के लिए जनता
को भी साथ आना
होगा। सभी ने एक
स्वर में कहा कि
“बिजली का निजीकरण किसी
भी कीमत पर स्वीकार
नहीं।
कर्मियों के भविष्य के साथ खिलवाड़!
सरकार का यह कदम
साफ तौर पर जनता
और कर्मचारियों दोनों के भविष्य से
खिलवाड़ है। निजीकरण का
सीधा अर्थ है, जनता
के लिए महंगी बिजली
और कर्मचारियों के लिए असुरक्षा।
ऐसे में यह सरकार
की जिम्मेदारी है कि वह
बिजली को मुनाफे का
साधन न बनाकर लोकसेवा
का साधन बनाए। यदि
सरकार अपनी जिद छोड़कर
संवाद का रास्ता अपनाए
तो न सिर्फ हजारों
परिवारों की आजीविका सुरक्षित
होगी बल्कि आम जनता भी
राहत की सांस ले
सकेगी। वरना यह संघर्ष
केवल बिजलीकर्मियों तक सीमित नहीं
रहेगा, यह हर घर
की लड़ाई बन जाएगा।
बता दें, उत्तर प्रदेश
में बिजली के निजीकरण का
मुद्दा तूल पकड़ चुका
है। सरकार और पावर कार्पोरेशन
प्रबंधन जिस तेजी से
निजीकरण की ओर बढ़
रहे हैं, उसने प्रदेश
भर के बिजलीकर्मियों के
भविष्य को असुरक्षित कर
दिया है। कॉमन केडर
अभियंता और जूनियर इंजीनियर
भी या तो बेरोजगार
होंगे या पदावनति का
शिकार। सवाल यह है
कि जिस योजना से
हजारों परिवारों का भविष्य अंधकारमय
हो रहा है, उसे
किसके हित में आगे
बढ़ाया जा रहा है?
No comments:
Post a Comment