Saturday, 2 August 2025

श्रद्धा की परिक्रमा पर कब्ज़े की कालिमा : पंचकोशी यात्रा का अपमान क्यों?

श्रद्धा की परिक्रमा पर कब्ज़े की कालिमा : पंचकोशी यात्रा का अपमान क्यों?

काशी की परंपराओं में पंचकोशी परिक्रमा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, तप और मोक्ष की साधना है। यह पांचों कोस (लगभग 85 किमी) की परिक्रमा काशी की सीमा का निर्धारण भी करती है और मान्यता है कि जो इस पंचकोशी को नमन कर ले, वह मोक्ष का अधिकारी बन जाता है। परंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि आज वही परिक्रमा पथ अतिक्रमण, अव्यवस्था और प्रशासनिक उपेक्षा की शिकार बन गई है

सुरेश गांधी

पंचकोशी यात्रा सदियों पुरानी है। पांच तीर्थ, मणिकर्णिका, भीमचंडी, रामेश्वर, शिवपुर और कपिलधारा, को जोड़ने वाली यह परिक्रमा सनातन संस्कृति की जीवंत धरोहर है। लाखों श्रद्धालु हर साल विशेषकर सावन में इस यात्रा पर निकलते हैं। पैदल चलकर कठिनाइयों को सहते हुए वे शिव के सान्निध्य में पहुंचने का प्रयास करते हैं। परंतु आज इस यात्रा के मार्ग की जो दुर्दशा सामने आई है, वह श्रद्धालुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ है। हाल यह है कि रामेश्वर में धर्मशालाएं तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिए हैं, लेकिन वहां पुलिस चौकी संचालित हो रही है। जिस टीएफसी (ट्रवेल फैसीलेशन सेंटर) को लाखों रुपये खर्च कर तीर्थयात्रियों के लिए बनाया गया था, वह आज इवेंट हॉल और मैरिज लॉन बना दिया गया है।

श्रद्धालुओं से पैसे वसूले जा रहे हैं, जबकि सावन जैसे पावन अवसर पर यह व्यवस्था निशुल्क होनी चाहिए। शिवपुर, धर्मशालाओं की हालत और भी चिंताजनक है। हनुमान धर्मशाला को विवाह स्थल बना दिया गया है और बुकिंग के लिए 10 से 15 हजार रुपये लिए जाते हैं। रामलीला धर्मशाला समिति के हवाले है, मगर आम श्रद्धालुओं के लिए बंद है. इसमें फलहारी बाबा ट्रस्ट के नाम पर थाना, दुकानें और निजी आश्रम चल रहा है। गोकुल धर्मशाला के एकमात्र शौचालय पर ताला लगा है, और तालाबों में गंदगी भर चुकी है। यह सब उस तीर्थभूमि पर हो रहा है जहां एक-एक कण को पवित्र माना गया है। कपिलधारा की चार में से एक धर्मशाला खंडहर हो चुकी है, एक पर मिठाई की दुकान चल रही है। पांच किमी के मार्ग पर 30 शिवालय हैं, जिन पर दुकानों का कब्ज़ा हो गया है। कुएं पाटकर दुकानें बना दी गई हैं। राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज सरकारी जमीन (आराजी 130) पर अतिक्रमण हो चुका है। क्या यही काशी की मर्यादा है?

पर्यटन विभाग ने पंचकोशी मार्ग के सौंदर्यीकरण पर 857 लाख रुपये खर्च किए, मगर नतीजा के बराबर है। तीर्थ यात्रियों को छत नहीं, सुविधा नहीं, सुरक्षा नहीं। केवल दिखावटी बोर्ड और कागजी प्रगति। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है किसकी जिम्मेदारी है यह सुनिश्चित करना कि धर्मशालाएं श्रद्धालुओं के लिए ही रहें? क्या पंचकोशी जैसे जीवित तीर्थ मार्ग की गरिमा को बचाने की चिंता अब प्रशासन के एजेंडे में नहीं है? जब ग्राम स्तर पर लोग आवाज उठा रहे हैं, महंतगण पत्र लिख रहे हैं, तब भी कार्रवाई क्यों नहीं? बता दें, पंचकोशी यात्रा की महत्ता काशी की आत्मा से जुड़ी है। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, एक संस्कार यात्रा है, संयम, श्रद्धा, सादगी और सेवा की परीक्षा। अगर इस यात्रा का मार्ग ही बाजार, दुकान, बारात घर और कब्जों की भेंट चढ़ जाए तो यह सिर्फ मार्ग का क्षरण नहीं, हमारी सांस्कृतिक चेतना का पतन है। समय गया है कि प्रशासन, समाज और संत-महंत मिलकर पंचकोशी को अतिक्रमण मुक्त करें, धर्मशालाओं को श्रद्धालुओं के लिए लौटाएं, और इस आध्यात्मिक धरोहर को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित करें।

सीनियर पत्रकार गिरीश दुबे का कहना है कि काशी की पंचक्रोशी परिक्रमा, एक ऐसी धर्मयात्रा, जिसे सदियों से मोक्ष का मार्ग माना गया, आज अराजकता, अव्यवस्था और अवैध कब्जों की पीड़ा झेल रही है। श्रद्धालु बदहाल हैं, व्यवस्थाएं बेबस हैं और धर्मशालाएं अब श्रद्धा के केंद्र नहीं, बल्कि बारात घर, मिठाई की दुकानें और पुलिस चौकियों में तब्दील हो गई हैं। उनका कहना है कि सावन मास में लाखों श्रद्धालु पंचक्रोशी यात्रा पर निकलते हैं। लेकिन इस आस्था पथ की सच्चाई आज शर्मसार कर रही है। रामेश्वरम में तीर्थ यात्रियों के लिए बनाए गए टीएफसी में यात्रियों से खुलेआम पैसे वसूले जा रहे हैं, जबकि इसे निशुल्क देने का प्रावधान है। ऑक्सीजन क्लब जैसे सामाजिक संगठनों ने मंडलायुक्त को शिकायत पत्र सौंपा है, जिसमें साफ आरोप है कि सावन के दौरान भी यात्रियों को कमरे नहीं दिए जा रहे और इवेंट हॉल में तब्दील टीएफसी से किराया वसूला जा रहा है।

शिवपुर में मंदिर से लेकर धर्मशालाओं तक पर अवैध कब्जे हैं। हनुमान धर्मशाला को बारात घर बना दिया गया है, जहां विवाह आयोजन के लिए 15 हजार रुपये तक की वसूली होती है। रामलीला धर्मशाला को समिति द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है, लेकिन सार्वजनिक उपयोग के नाम पर दरवाजे बंद हैं। राम भट्ट तालाब में कचरा जमा है और सीढ़ियां जर्जर हो चुकी हैं। गोकुल धर्मशाला का एकमात्र शौचालय बंद है, रामलीला मैदान के दो शौचालय टूट चुके हैं, और द्रौपदी तालाब गंदगी से भरा पड़ा है। कपिलधारा में चार धर्मशालाएं हैं, जिनमें से एक खंडहर हो चुकी है और एक दो मंजिला धर्मशाला पर मिठाई की दुकान चलाई जा रही है। मार्ग पर स्थित 30 शिवालयों के आस-पास दुकानों ने कब्जा कर लिया है। कुएं पाटकर दुकानें बना दी गई हैं।

पंचक्रोशी परिक्रमा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, काशी की सांस्कृतिक आत्मा है। लेकिन जब धर्मशालाएं अतिक्रमण की शिकार बनें, तीर्थ यात्री बेहाल हों और करोड़ों की योजनाएं सिर्फ दिखावा बन जाएं, तो ये केवल असफलता नहीं कृ हमारी आस्था का अपमान है। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस पर संज्ञान लेना ही होगा, नहीं तो इतिहास गवाही देगा कि हमने धर्म और परंपरा को बाजार में गिरवी रख दिया था। इससे काशी की पंचक्रोशी यात्रा, जो हजारों वर्षों से श्रद्धा और तप की प्रतीक रही है, आज अव्यवस्थाओं और अतिक्रमण की शिकार होती जा रही है। प्रशासनिक उपेक्षा और स्थानीय मिलीभगत ने इस परंपरा को जिस तरह हाशिये पर डाला है, वह चिंता का विषय है।

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