काशी में जन्माष्टमी की धूम, घाट से लेकर मंदिरों तक भक्ति का उत्सव
हर-हर महादेव की नगरी में गूंजी ‘नंद के आनंद भयो...’ जय श्रीकृष्णा
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उल्लास, बाबा
विश्वनाथ
धाम
से
लेकर
स्कॉन
मंदिर
व
पुलिस
लाइन
तक
के
मंदिरों
में
विशेष
आयोजन
रोशनी से
नहाए
मंदिरों
में
दर्शनार्थियों
की
कतार
गोविंदा आला
रे..
आला
रे...
के
जय
घोष
के
साथ
फोड़ी
दही
हाड़ी
इस्कॉन मंदिर
में
51 रजत
कलश,
51 प्रकार
के
द्रव्य
से
हुआ
लड्डू
गोपाल
का
महाभिषेक;
गूंजा
हरे
कृष्ण
मंत्र
भव्य सजावट
के
बीच
झांकियों
में
दिखी
झलकियां
काशीवासियों में
दिखा
भक्ति
और
उत्साह
का
अद्भुत
संगम
सुरेश गांधी
‘राधे-श्याम’, ‘जय
कन्हैयालाल की’ के जयघोष
और ढोल-मंजीरों की
ताल ने रातभर उत्सव
का रंग जमाए रखा।
भक्तों ने उपवास कर
मध्यरात्रि में भगवान श्रीकृष्ण
का जन्मोत्सव मनाया और प्रसाद पाकर
पुण्य लाभ अर्जित किया।
इस दौरान भक्तों ने बालगोपाल की
महाआरती उतारी। इसके बाद पूरा
परिवेश कृष्णमय हो गया। चाहे
पुलिस लाइन हो या
बाबा विश्वनाथ धाम या इस्कॉन
मंदिर सहित अन्य श्रीकृष्ण
मंदिरों में मध्यरात्रि हवाई
गर्जनाओं के साथ श्री
कृष्ण प्रकट हुए। जन्म के
साथ ही भगवान कृष्ण
का अभिषेक कर उन्हें पंचमेवा,
माखन मिश्री व पंजीरी आदि
का भोग लगाया। प्रभु
की बलाइयां लेने के लिए
हजारों हाथ एक साथ
उठे। घरों में भी
श्रद्धालुओं ने भगवान का
अभिषेक कर नवीन पोशाक
पहनाई व पूजन आरती
की। साथ ही व्रत
भी रखा। दर्शन के
लिए भक्तों का ताता देर
रात तक लगा रहा।
पुलिस लाइन स्थित श्रीकृष्ण
मंदिर में जन्माष्टमी पर
पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल ने परिजनों संग
विधि-विधान से पूजा-अर्चना
कर भगवान का आशीर्वाद लिया।
पुलिस परिवार के साथ शहरवासी
भी यहां जुटे और
देर रात तक भक्ति
रस में डूबे रहे।
इसके अलावा दशाश्वमेध घाट, संकट मोचन
मंदिर, दुर्गाकुंड और अन्य प्रमुख
मंदिरों को झालरों, पुष्पमालाओं
और विद्युत रोशनियों से सजाया गया।
लड्डू गोपाल की झांकियां और
नंदोत्सव के दृश्य श्रद्धालुओं
के लिए विशेष आकर्षण
का केंद्र बने। कई स्थानों
पर मटकी सज्जा और
गोपाल लीला के कार्यक्रम
भी हुए। हरिनाम संकीर्तन,
कलश महाअभिषेक और भजन संध्या
ने भक्तों को अध्यात्म की
गहराइयों में डुबो दिया।
मध्यरात्रि में निशिता काल
पर विशेष महाभिषेक और आरती संपन्न
हुई। इस प्रकार, भक्ति,
अध्यात्म, संस्कृति और पर्यावरण चेतना
के अद्भुत संगम के साथ
वाराणसी ने इस वर्ष
जन्माष्टमी को ऐतिहासिक और
अविस्मरणीय बना दिया।
कई श्रद्धालु बच्चों को भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप में मंदिर पहुंचे
हाथों में सजे-धजे भगवान लड्डू गोपाल, और मस्तक पर राधे-कृष्ण नाम का तिलक लगाएं श्रीकृष्ण नाम संकीर्तंन करते भक्त। मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण की एक झलक के लिए मौजूद जन सैलाब...। घंटे घड़ियाल... शंख की ध्वनि... मृदंग... मंजिरों की धुन... भक्ति माहौल में बधाई गीतों के बीच दोनों हाथ ऊपर उठाकर भगवान श्रीकृष्ण का जयघोष करते श्रद्धालु, जन्मे कृष्ण कन्हाई, बधाई हो बधाई। फिर हाथी-घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की गूंज। जन्माष्टमी पर शहर में तड़के से रात को शयन झांकी तक मंदिरों एवं घरों में ऐसा ही नजारा देखने को मिला। कई श्रद्धालु बच्चों को भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप में सजाकर मंदिर पहुंचे व सेल्फी क्लिक की। इस दौरान कहीं मथुरा-वृंदावन तो कहीं नंदगांव साकार हो उठा। समूची काशी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रंगी नज़र आई।
प्लास्टिक मुक्त काशी विश्वनाथ धाम
इस बार काशी
विश्वनाथ धाम पूरी तरह
प्लास्टिक मुक्त रहा। पुजारियों और
श्रद्धालुओं ने बांस व
धातु की परंपरागत सामग्री
से पूजा संपन्न की।
स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण
का यह प्रयास भी
जन्माष्टमी उत्सव का प्रमुख संदेश
बना।
झांकी प्रतियोगिताओं में दिखी लोक-संस्कृति
शहर भर के विभिन्न मोहल्लों और कॉलोनियों में झांकी प्रतियोगिताओं का आयोजन हुआ। कहीं नंदोत्सव, कहीं गोवर्धन लीला तो कहीं रास-लीला के दृश्य जीवंत रूप में प्रस्तुत किए गए।
बच्चों ने बाल कृष्ण का रूप धारण कर श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। विजयी झांकियों को पुरस्कृत भी किया गया। ग्रामीण अंचलों में भी मंदिर में मध्य रात्रि 12ः00 बजे श्री कृष्ण का जन्म हुआ।
पंचामृत अभिषेक व शालिग्राम पूजन के बाद ठाकुर जी को पंजीरी लड्डू खीर, सावा, रबड़ी आदि का भोग लगाया गया। उन्हें नवीन पीली पोशाक और विशेष अलंकार धारण कराए गए। सुबह से ही शिव की नगरी पूरी तरह से कृष्णमय हो चुकी थी। घरों में जहां सोहर गूंज रहे थे तो वहीं मंदिरों में हरेकृष्णा महामंत्र का जाप हो रहा था। घरों में जगह-जगह लड्डू गोपाल की झांकी सजाई गई थी।
कहीं शिव स्वरूप में कान्हा तो कहीं बुलडोजर पर तो कहीं रोपवे पर सवार भक्तों का मन मोह रहे थे। अशोक की पत्तियों और करौंदे से कदंब की डाल सजी थी तो छोटे-छोटे खिलौने भी लड्डू गोपाल के स्वागत में सजाए गए थे। जगह-जगह गोशालाओं में गायों की पूजा की गई। उन्हें गुड़, चना और केला खिलाया गया।
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