Saturday, 1 November 2025

“खेत से नीति तक : योगी सरकार की किसान क्रांति, आत्मनिर्भर कृषि की दिशा में यूपी”

खेत से नीति तक : योगी सरकार की किसान क्रांति, आत्मनिर्भर कृषि की दिशा में यूपी” 

यूपी की ग्रामीण अर्थव्यवस्था आज एक मोड़ पर खड़ी है जहां किसान केवल उत्पादक नहीं, उद्यमी बन रहा है। योगी सरकार की नीतियां गन्ना किसानों के हित में गन्ना समर्थन मूल्य में ऐतिहासिक वृद्धि, मिलों की पुनरावृत्ति, क्रेडिट-सुविधाओं का विस्तार, दुर्घटना कल्याण और योजनाओं का डिजिटलीकरण, प्राकृतिक खेती सिर्फ योजनाएं नहीं, बल्किगांव की दिशा बदलने की रूपरेखाहैं। हालांकि, बहुत कुछ अब भी किया जाना बाकी है, जैसे भुगतान-गति सुनिश्चित करना, लागत-नियंत्रण, छोटे किसानों की भागीदारी बढ़ाना, गो- आधारित खेती, विविधीकरण को आगे ले जाना और जलवायु-संकट से निपटना, सीमांत किसानों की पहुंच, लेकिन गति सही है। मतलब साफ है अगर सरकार और इसके प्रशासनिक तंत्र इन चुनौतियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ जाएं, तो यूपी सिर्फ गन्ना-उत्पादन में बल्कि किसानों की सामाजिक-आर्थिक उन्नति में भी देश का मॉडल राज्य बन सकता है। या यूं कहे अब समय हैमूल्य-वृद्धिकोस्थायी किसान-समृद्धिमें बदलने का। किसान आज यह महसूस करता है कि उसकी आवाज़ सत्ता तक पहुंचती है, और खेत में पसीने की कीमत तय होती है। मतलब साफ हैजब किसान मुस्कुराता है, तभी देश खिलता है।और यूपी के खेत-खलिहान में यह मुस्कान अब दिखाई देने लगी है, योगी सरकार की नीतियों ने मिट्टी से फिर से आत्मविश्वास की फसल उगाई है। 2017 के बाद किसानों के लिए केंद्र किसान-आय बढ़ाना, कृषि-विविधीकरण, सिंचाई सुधार, वित्त-सशक्तिकरण और पारदर्शिता बढ़ाना जैसी योजनाएं किसानों की सिर्फ सकारात्मक्ता बढ़ाई है, बल्कि किसानों की आय और आत्मविश्वास में नई चमक आई है. आने वाला दशक यूपी के गन्ना-किसानों के लिए स्वयं-निर्भरता और सतत समृद्धि का दशक बन सकता है 

सुरेश गांधी

उत्तर प्रदेश, भारत की राजनीति का ध्रुवतारा और कृषि का प्राणकेंद्र। यहां की 65 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़ी है। यह वही धरती है जहां खेतों की हरियाली सिर्फ अन्न पैदा करती है, बल्कि लोकतंत्र के मानस को भी आकार देती है। 2017 में जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब प्रदेश के किसान ऋण, बकाया भुगतान, सिंचाई संकट और मूल्य असमानता जैसी समस्याओं के जाल में उलझे थे। आठ वर्षों में तस्वीर बदली है, गन्ना मूल्य बढ़ा है, भुगतान तेज हुआ है, बीमा सरल हुआ है और किसानों के जीवन में एक नई नीति संस्कृति का प्रवेश हुआ है। बता दें, यूपी देश के कुल गन्ना उत्पादन का 45 प्रतिशत देता है। 2017 में योगी सरकार ने इसेकृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़घोषित किया। अब तक 2.35 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान, गन्ना मूल्य ₹315 से बढ़ाकर ₹370 प्रति क्विंटल, और भुगतान की औसत अवधि 14 महीने से घटाकर 14 दिन, यह आंकड़े सिर्फ प्रशासनिक नहीं, किसानों के जीवन के अर्थशास्त्र को बदलने वाले हैं। पहली बार-गन्ना पोर्टलऔर एसएमएस पर्ची सिस्टमलागू हुआ। किसानों को अब अपनी तौल, भुगतान और परिवहन का रीयल टाइम अपडेट मिलता है। गन्ना विभाग के सूत्रों के अनुसार, “अब एक भी किसान को दलाल के माध्यम से पर्ची नहीं लेनी पड़ती। यह डिजिटल क्रांति ग्रामीण क्षेत्र तक पहुँची है।भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किए गए सर्वेक्षण (2024) में उत्तर प्रदेश के 78 फीसदी किसानों ने कहा, “सरकार की योजनाओं से हमारी आमदनी में सुधार हुआ है।गन्ना किसानों का संतोष स्तर सबसे ऊंचा रहा (85 फीसदी)

हालांकि पूर्वांचल और बुंदेलखंड के कुछ इलाकों में सिंचाई लागत और बाजार मूल्य के बीच संतुलन की समस्या अब भी है। किसान संगठनों का कहना है किसरकार की नीयत साफ है, लेकिन स्थानीय स्तर पर क्रियान्वयन में और गति चाहिए। योगी जी ने जो दिशा दी है, वह ऐतिहासिक है।कहा जा सकता है योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश को कृषि-सुधार के राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित किया है। गन्ना मूल्य वृद्धि, मिल-पुनरुद्धार, डिजिटल भुगतान, क्रेडिट सुविधा और किसान-कल्याण योजनाएँ मिलकर एक नएकृषि मॉडल यूपीकी नींव रख रही हैं। अगर यही रफ्तार बरकरार रही तो आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश केवल देश का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य रहेगा, बल्कि किसानों की समृद्धि का आदर्श भी बनेगा। यूपी में गन्ना खेती लंबे समय से सामाजिक-आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण रही है। परंतु पिछले दशकों में यहपर चर्चाका विषय भी बनी, बिचौलिया, भुगतान-विलम्ब, बंद पड़ी मिलें, किसानों की कर्ज-दबाव आदि की त्रासदियाँ भी सामने आईं। पिछले दौर में गन्ना किसानों की शिकायतें लगातार बढ़ी थीं कि उत्पादन तो वही हो रहा है, लेकिन लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में अब जो बदलवा देखने को मिल रहा है, वो सिर्फ एक मूल्य वृद्धि नहीं है, बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण का रूप ले रहा है, जिसमें गन्ना उद्योग को पुनर्जीवित करना, किसानों की आमदनी बढ़ाना, भुगतान-पारदर्शिता सुनिश्चित करना और बहु-उत्पादन विकल्पों (जैसे एथेनॉल, बायोगैस) के माध्यम से खेती को सिर्फमौसमीनहीं बल्किसाल भर-व्यवसायबनाना शामिल है।

सरकार ने 2025-26 क्रशिंग सत्र के लिए गन्ने का राज्य सलाह-मूल्य (एसएपी) प्रति क्विंटल ₹400 (जल्दी पकने वाली किस्म के लिए) तथा ₹390 (सामान्य किस्म के लिए) तय किया है, जो पूर्व की दरों से ₹30 प्रति क्विंटल अधिक है। इस वृद्धि का अनुमानित प्रत्यक्ष प्रभाव लगभग ₹3,000 करोड़ रुपये किसानों की आमदनी में होगा। सरकार के बयानों के अनुसार इस अवधि में गन्ना मूल्य भुगतान राशि ₹2,90,225 करोड़ हो गई है, जो पूर्व एक दशक के भुगतान से लगभग ₹1,42,879 करोड़ अधिक है। यह कदम संवेदनशील-समय में था। गन्ना किसान आर्थिक रूप से संवेदनशील वर्ग हैं, और मूल्य वृद्धि ने उन्हें सिर्फ राहत नहीं दी, बल्कि एक प्रतीक-संदेश दिया, “आपका काम मायने रखता है, आपका मुनाफा सुनिश्चित होगा।वर्तमान में 122 चीनी मिलें कार्यरत हैं, जो गन्ना उद्योग के लिए बड़ी क्षमता का संकेत है। पिछले वर्षों में सरकार ने 4 नई मिलें स्थापित कीं, 6 बंद मिलें पुनरारंभ कीं तथा 42 मौजूदा मिलों में क्षमता विस्तार किया गया है।स्मार्ट सुगरकेन फार्मर सिस्टमनामक डिजिटल प्रणाली लागू की गई है, जिसमें किसान-पर्ची, क्षेत्र-रजिस्ट्रेशन, भुगतान जानकारी आदि मोबाइल-आधारित हुईं और बिचौलियों की भूमिका कम हुई है। मिलों द्वारा समय-पर भुगतान करने पर सरकार ने सख्त निर्देश जारी किये हैं कि क्षेत्र-आवंटन वहीं मिलेगा जहाँ भुगतान इतिहास बेहतर होगा। इन उपायों के पीछे एक स्पष्ट सोच है, गन्ना सिर्फ कृषि नहीं, बल्कि उद्योग-संवृद्धि का केंद्र बने। मिलें चलेगीँ, किसान मिलेगा लाभ, ग्रामीण अर्थव्यवस्था सक्रिय होगी।

एथेनॉल से आत्मनिर्भरता

योगी सरकार ने केंद्र कीएथेनॉल ब्लेंडिंग नीतिको आगे बढ़ाते हुए 60 से अधिक शुगर मिलों को एथेनॉल उत्पादन की अनुमति दी। इससे दोहरा लाभ हुआ, मिलों की वित्तीय स्थिति सुधरी और किसानों को बकाया भुगतान समय पर हुआ। वर्तमान में यूपी देश का सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक राज्य बन चुका है।

ऋणमाफी से राहत तक : किसानों  कोकर्जमुक्तकरने की पहल

2017 में योगी सरकार का पहला ऐतिहासिक निर्णय, ‘कृषि ऋणमाफी योजनाने 86 लाख लघु सीमांत किसानों के ₹36,000 करोड़ से अधिक के ऋण माफ किए। इससे एक बड़ी सामाजिक राहत आई। किसान जो वर्षों से बैंक नोटिस और वसूली के भय में जी रहे थे, उन्होंने पुनः खेती में निवेश शुरू किया।

किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) में नई गति

अब तक यूपी के 3.5 करोड़ किसानों को केसीसी कार्ड जारी किए जा चुके हैं। साल 2024 में राज्य सरकार ने केसीसी पर ब्याज सब्सिडी बढ़ाकर 4 फीसदी तक की, जिससे किसानों को ब्याज का बोझ कम हुआ।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि औरकृषक साथीकी पहल

केंद्र की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के तहत यूपी के 2.62 करोड़ किसान प्रत्यक्ष लाभार्थी हैं, जो देश में सबसे अधिक है। अब तक किसानों के खातों में ₹65,000 करोड़ से अधिक की राशि सीधे भेजी जा चुकी है। राज्य सरकार ने इस योजना की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिएकृषक साथी पोर्टललॉन्च किया। यह पोर्टल किसानों की पात्रता, भुगतान स्थिति और शिकायत निवारण की एकीकृत प्रणाली है।

सिंचाई क्रांति : हर खेत तक पानी, हर फसल तक राहत

योगी सरकार ने सिंचाई कोकृषि आत्मनिर्भरताका दूसरा आधार स्तंभ माना।हर खेत को पानीमिशन के अंतर्गत 51 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित की गई। सरयू नहर परियोजना : 1970 से लंबित इस परियोजना को योगी सरकार ने पूर्ण कर 30 लाख किसानों को सीधा लाभ पहुंचाया। बाणसागर परियोजना ने बुंदेलखंड की बंजर जमीन में नमी की धाराएं लौटाईं। माइक्रो सिंचाई योजना से 12 जिलों में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिस्टम को सब्सिडी दी गई।

मण्डी सुधार और एमएसपी की गारंटी

योगी सरकार ने कृषि विपणन में क्रांतिकारी बदलाव किए। अब तक राज्य की सभी 250 से अधिक मंडियों में डिजिटल भुगतान व्यवस्था लागू की गई। एमएसपी पर धान, गेहूं, दलहन, सरसों की खरीद में ₹85,000 करोड़ से अधिक भुगतान हुआ। किसानों को सीधे बैंक खाते में राशि मिली, बिचौलियों की भूमिका समाप्त।

कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) मॉडल 

राज्य में 4200 से अधिक एफपीओ पंजीकृत किए जा चुके हैं। यह समूह मॉडल किसानों को थोक विपणन, पैकेजिंग, ब्रांडिंग और निर्यात में मदद कर रहा है। गोरखपुर, बाराबंकी और रायबरेली के कई किसान अब अपने ब्रांड नाम से सब्जियां और मसाले बेच रहे हैं।

बीमा और आपदा राहत में बदलाव

अब फसल बीमा कागज़ी नहीं, कारगर है।यह बदलाव योगी सरकार के फील्ड प्रशासन ने संभव किया। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 2024 तक 1.17 करोड़ किसानों को सुरक्षा दी गई। ओलावृष्टि, सूखा और बाढ़ से प्रभावित किसानों को ₹5500 करोड़ से अधिक की राहत राशि सीधे दी गई। आपदा राहत वितरण में भ्रष्टाचार लगभग समाप्त हुआ।

डेयरी, पशुपालन और मत्स्य क्षेत्र में समृद्धि

योगी सरकार ने कृषि को सिर्फ खेती नहीं, बल्किग्रामीण अर्थव्यवस्था के पूरे इकोसिस्टमके रूप में देखा। मुख्यमंत्री दुग्ध विकास योजना के तहत 4 लाख दुग्ध उत्पादक लाभान्वित।मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजनासे 65 हजार मछुआरों को आर्थिक प्रोत्साहन। गोबर गैस और जैविक खाद संयंत्र से ग्राम पंचायतों की अतिरिक्त आमदनी बढ़ी। -गोपाला एप ने पशुधन के ट्रैकिंग, प्रजनन और टीकाकरण को डिजिटल बनाया।

जैविक और प्राकृतिक खेती की ओर वापसी

कृषि में एक बड़ा बदलाव देखा गया, रासायनिक खेती से जैविक खेती की ओर संक्रमण। प्राकृतिक कृषि मिशन के तहत अब तक 10 लाख हेक्टेयर भूमि को रसायनमुक्त घोषित किया गया। अमेठी, ललितपुर, मिर्जापुर और सोनभद्र जैविक क्लस्टर के रूप में उभर रहे हैं। जैविक खाद उत्पादन इकाइयों को ₹31 करोड़ की सब्सिडी मिली। किसानों को गोबर, वर्मी कम्पोस्ट और बायो-फर्टिलाइज़र से अतिरिक्त आमदनी मिली।

तकनीकी खेती और युवाओं की नई भूमिका

योगी सरकार ने खेती को टेक्नोलॉजी से जोड़ने पर ज़ोर दिया।कृषक यंत्र सेवा केंद्र’, ‘ड्रोन स्प्रे प्रणालीऔरकृषि मित्र योजनाजैसी पहलें युवाओं को खेती से जोड़ रही हैं। 2024 में लॉन्च हुईकृषि मित्र योजनाके तहत प्रशिक्षित युवाओं को सरकारी सहायता से उपकरण किराये पर देने का अवसर मिला। ड्रोन तकनीक के माध्यम से खाद कीटनाशक छिड़काव में 35 फीसदी तक लागत घटाई गई। अब प्रत्येक जिले मेंएग्री टेक हबविकसित किए जा रहे हैं।

भविष्य की दिशा : किसान ऊर्जा सुरक्षा और नई सब्सिडी नीति

2025 के बजट में योगी सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए ₹77,000 करोड़ का आवंटन किया है। मुख्य घोषणाएं : ‘किसान ऊर्जा सुरक्षा योजनाके तहत 1 लाख सौर पंप लगाने की योजना, ‘मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि मिशनके लिए ₹1500 करोड़ का प्रावधान, कृषि प्रसंस्करण इकाइयों (एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट) के लिए 50 फीसदी तक सब्सिडी। इन योजनाओं से किसान केवल आत्मनिर्भर, बल्कि ऊर्जा स्वतंत्र भी होंगे।

कृषि कायोगी मॉडल

योगी सरकार की नीति तीन स्तंभों पर आधारित है - 1. किसान केंद्रित प्रशासन, 2. प्रौद्योगिकी आधारित पारदर्शिता, 3. ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बहुआयामी वृद्धि। यह मॉडलराजनीतिक लाभसे आगे बढ़करसामाजिक स्थिरताका साधन बना है। कृषि अब केवल खाद्यान्न नहीं, बल्कि ऊर्जा, उद्योग और नवाचार का स्रोत बन चुकी है। आठ वर्षों की यात्रा में योगी आदित्यनाथ ने किसान को नारा नहीं, नायक बना दिया है। गन्ना से लेकर गेहूं तक, सिंचाई से लेकर सौर ऊर्जा तक, किसान अब आत्मनिर्भरता के मार्ग पर है। योगी आदित्यनाथ का मानना हैजब खेत सुरक्षित होगा, तभी अन्नदाता समृद्ध होगा और जब अन्नदाता समृद्ध होगा, तब ही राष्ट्र संपन्न होगा।उनकी यह सोच आज उत्तर प्रदेश की धरती पर सच होता दिख रहा है। गांवों की गलियों से लेकर नीति गलियारों तक अब एक नई गूंज है, कृषि का नवयुग शुरू हो चुका है, योगी मॉडल के साथ।

गन्ने से समृद्धि की राह

योगी सरकार ने किसानों को मीठी राहत दी हैं. गन्ना मूल्य वृद्धि से लेकर किसान कल्याण योजनाओं तक उत्तर प्रदेश में कृषि विकास का नया अध्याय है. सरकार ने किसानों, विशेष रूप से गन्ना उत्पादक किसानों के हित में बीते वर्षों में कई ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं। गन्ना मूल्य में वृद्धि, भुगतान की पारदर्शी व्यवस्था, बंद पड़ी मिलों का पुनरुद्धार, क्रेडिट सुविधा, और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के माध्यम से अब गन्ना किसान राज्य की अर्थव्यवस्था के सशक्त स्तंभ के रूप में उभर रहे हैं। यह केवल मूल्य वृद्धि नहीं, बल्कि किसानों को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक दीर्घकालिक नीति परिवर्तन का प्रतीक है। गन्ना किसानों के लिए योगी सरकार ने इस वर्ष एक बड़ा तोहफ़ा दिया है। नई दरों के अनुसार, अगेती गन्ने का मूल्य ₹400 प्रति क्विंटल, सामान्य गन्ना ₹390 प्रति क्विंटल, पिछली दरों की तुलना में ₹30 प्रति क्विंटल की वृद्धि. यह निर्णय केवल किसानों के हित में आर्थिक राहत का माध्यम बना, बल्कि उत्तर प्रदेश को गन्ना नीति के नए मापदंड पर स्थापित किया है। अनुमान है कि इस कदम से प्रदेश के किसानों को करीब ₹3,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसेअन्नदाता के सम्मान और परिश्रम का प्रतिफलबताते हुए कहा था कि गन्ना किसानों की खुशहाली ही प्रदेश की अर्थव्यवस्था की मजबूती है।

चीनी मिलों में नई जान : पारदर्शिता और तकनीकी क्रांति

योगी सरकार ने गन्ना उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए बहुआयामी कदम उठाए, 6 बंद चीनी मिलों का पुनरारंभ, 4 नई मिलों की स्थापना, और 42 मिलों में क्षमता विस्तार।स्मार्ट गन्ना किसान प्रणालीकी शुरुआत, जिससे मोबाइल ऐप के जरिए किसानों को गन्ना पर्ची, भुगतान सूचना और तोल विवरण ऑनलाइन उपलब्ध होने लगा। इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त हुई और किसानों को सीधे भुगतान सुनिश्चित हुआ। इस डिजिटल बदलाव ने गन्ना खरीद और भुगतान प्रक्रिया में अभूतपूर्व पारदर्शिता लाई है।

किसान क्रेडिट कार्ड और वित्तीय सशक्तिकरण

योगी सरकार का फोकस केवल गन्ने तक सीमित नहीं, बल्कि समग्र किसान कल्याण पर है। वर्ष 2025 से 26 में 25 लाख नए किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। इससे किसान कम ब्याज दरों पर ऋण लेकर बीज, उर्वरक और सिंचाई के आधुनिक साधन खरीद सकते हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और राज्य योजनाओं का समन्वय कर योगी सरकार ने वित्तीय समावेशन की दिशा में ठोस कदम बढ़ाया है।

प्रशिक्षण, मिनी किट और पाठशालाएं : खेती में वैज्ञानिक सोच का समावेश

रबी सत्र 2025 से 26 के लिए 92,000 से अधिक मिनी किट किसानों को वितरित की जा रही हैं। 8,385 किसान पाठशालाएँ स्थापित कर कृषि विस्तार सेवाओं को गांव तक पहुंचाया गया है। दलहनी, तिलहनी और फसली विविधीकरण पर विशेष प्रोत्साहन योजनाएँ चलाई जा रही हैं ताकि किसान एक फसल पर निर्भर रहें। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक स्थिरता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

कृषक दुर्घटना कल्याण योजना : संकट में सहारा

कृषि कार्य के दौरान दुर्घटनाओं में पीड़ित किसानों के परिवारों को सहायता देने के लिए योगी सरकार नेकृषक दुर्घटना कल्याण योजनालागू की है। इसके तहत मृत्यु या स्थायी विकलांगता की स्थिति में ₹5 लाख रुपये तक का मुआवजा दिया जाता है। हाल ही में 11,690 किसानों के परिवारों को कुल ₹562 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। यह योजना किसान परिवारों के लिए सुरक्षा कवच बन चुकी है।

डिजिटल क्रांति : हर किसान को उसका हक

योगी सरकार ने योजनाओं के लाभ वितरण में डिजिटल पारदर्शिता को प्राथमिकता दी है। फार्मर रजिस्ट्रेशन पोर्टल और पीएम किसान पोर्टल को एकीकृत किया गया है। हर गांव में पंजीकरण शिविर आयोजित कर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई पात्र किसान वंचित रह जाए। भुगतान सीधे बैंक खाते में, बिना किसी मध्यस्थ के।

आर्थिक असर : गांवों में बढ़ी क्रयशक्ति, लौटी मुस्कान

गन्ना मूल्य वृद्धि और समय पर भुगतान से ग्रामीण बाजारों में नकदी प्रवाह बढ़ा है। किसान अब अपनी आवश्यकताओं के साथ भविष्य की योजनाओं में भी निवेश कर पा रहे हैं। स्थानीय व्यापार, ट्रैक्टर, खाद, उपकरण बिक्री में 15 से 20 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। ऋण पर निर्भरता कम हुई है, जिससे साहूकार-प्रथा घट रही है। ग्रामीण बाजारों में उत्साह और उपभोग-संवृद्धि देखी जा रही है।

अभी बाकी हैं कुछ चुनौतियां...

हालाँकि तस्वीर आशावादी है, फिर भी कुछ चुनौतियां शेष हैं,

1. मिलों का समय पर भुगतान : कई मिलें अभी भी बकाया भुगतान में विलंब कर रही हैं।

2. इनपुट लागत में वृद्धि : खाद, बिजली, श्रम और सिंचाई महंगी होने से किसानों का मुनाफा घटता है।

3. छोटे किसानों तक लाभ की पहुंच : योजनाओं की जानकारी और बैंकिंग पहुंच सीमांत किसानों तक सीमित है।

4. जलवायु परिवर्तन का खतरा : बढ़ते तापमान और वर्षा की अनियमितता से गन्ना उत्पादन पर असर पड़ सकता है।

सरकार को इन मोर्चों पर स्थायी समाधान की दिशा में कदम और तेज करने होंगे।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव : गाँव के बाजारों तक असर

गन्ना मूल्य वृद्धि से किसानों की क्रयशक्ति में वृद्धि हुई है, इससे ग्रामीण बाजार में अधिक धन प्रवाह हुआ है। मिलों के नियमित कामकाज और समय-बद्ध भुगतान से किसान-बिचौलिए-साहूकार श्रृंखला कमजोर हुई है, जिससे किसानों की निर्भरता कम हुई है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विविध हिस्सों में सक्रियता बढ़ी है, ट्रैक्टर/उपकरण बिक्री, खाद-उर्वरक की मांग, मजदूरी दरों में हल्की बढ़ोतरी जैसी प्रवृत्तियाँ देखने को मिल रही हैं। किसानों में आत्म-विश्वास बढ़ा है अब उन्हें लगता है कि उनकी समस्या सिर्फ सुनी जा रही है बल्कि हल की जा रही है। इस तरह गन्ना-सुधार सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं रहाकृ यह गाँव-विस्तार तक पहुंची है।

चुनौतियां जो अभी अनसुलझी हैं

ठीक ही है कि हमें उत्साह के साथ कदमों की सराहना करनी चाहिए, मगर कुछ मूलभूत चुनौतियाँ अभी शेष हैं और इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

1. मिलों का समय-पर भुगतान सुनिश्चित करना : मूल्य तो बढ़ा दिया गया, पर अगर मिलें भुगतान में लगातार विलम्ब करें, तो किसान का संदिग्ध अनुभव बना रहेगा। (पिछली बैठकों में इस पेंच को सरकार ने स्वीकार किया है)

2. उत्पादन-लागत का दबाव : बीज, उर्वरक, श्रम, सिंचाई की लागत लगातार बढ़ रही है। यदि लागत-उभार कम नहीं हुआ तो मूल्यवृद्धि का वास्तविक लाभ कम हो सकता है।

3. छोटे सीमांत किसानों तक पहुँच : बड़ी-खरीदार किसान आसानी से लाभ उठा रहे हैं, पर छोटे, भू-हीन, सीमांत किसानों को योजनाओं की जानकारी, बैंकिंग-संबंधित सेवाएँ एवं बाजार-उपलब्धता अभी भी सीमित है।

4. जलवायु-परिवर्तन एवं भूमि-उपजाऊता : वर्षा-अनियमितता, मिट्टी की गिरती उर्वरता, कीट-विकारों का बढ़ना जैसी चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं, इनकी अनदेखी किसान-क्षेत्र के लिए जोखिम है।

5. उद्योग-विविधीकरण में गति : गन्ना सिर्फ चीनी तक सीमित नहीं रहना चाहिए; एथेनॉल, बायोगैस, सीबीजी, जैव-ऊर्जा आदि विकल्पों को और गति देना होगा।

यदि इन चुनौतियों को समय रहते नहीं पकड़ा गया, तो मूल्य वृद्धि का लाभ क्षणिक रह सकता है। गन्ना-क्षेत्र मेंमूल्य-वृद्धिअब सिर्फ शुरुआत है। असली बदलाव तब पूरी तरह संभव होगा जब आगे की दिशा पर जोर दिया जाए। कुछ सुझाव नीचे दिए गए हैं

उत्पादन विविधीकरण : गन्ने के साथ-साथ दलहनी, तिलहनी, फसल चक्र, गन्ना उपरोक्त अनुपूरक उत्पाद जैसे बायोगैस, एथेनॉल, सीबीजी को किसानों तक ले जाना।

स्मार्ट खेत-तकनीक : सॉइल-हेल्थ कार्ड, ड्रिप/माइक्रो सिंचाई, रोग-मानिटरिंग, यांत्रिक कटाई-प्रक्रिया को और व्यापक बनाना।

मिल-उद्योग लिंक : मिलों को सिर्फ चीनी उत्पादन तक सीमित रखकर उन्हें इंटीग्रेटेड कृषि-उद्योग मॉडल (साइड-प्रोडक्ट, ऊर्जा उत्पादक संयंत्र) बनाना।

किसान शिक्षा एवं जागरूकता : सीमांत किसानों को बैंकिंग, बीमा, क्रेडिट-प्रक्रिया, योजना-लाभ के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा प्रशिक्षित करना।

भुगतान-पारदर्शिता एवं निगरानी : समय-पर भुगतान सुनिश्चित करना, बिचौलियों की भूमिका कम करना, भुगतान-मेट्रिक्स सार्वजनिक करना।

जलवायु-सक्षम खेती : जलसिंचाई-स्रोतों का संवर्धन, कृषि-मृदा संरक्षण, कीट-मानिटरिंग, बीज रोटेशन आदि पर विशेष ध्यान।

यदि ये दिशा-निर्देश सही रूप से अपनाए गए, तो उत्तर प्रदेश सिर्फ गन्ना-उत्पादन में ही अग्रणी नहीं रहेगा बल्कि किसानों की सामाजिक-आर्थिक उन्नति की मिसाल भी बन सकता है।

प्रमुख योजनाएँ एवं उनके लाभ

1.1          किसान कल्याण मिशन (2021) : यह मिशन किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था। लाभः किसानों को कृषि-विविधीकरण, पशुपालन, बागवानी आदि विकल्प दिए जाने का संकल्प था जिससे सिर्फ पारंपरिक फसल तक निर्भरता कम हो सके। उदाहरण : घोषणा में कहा गया था कियह वही उत्तर प्रदेश है जहाँ 2017 से पहले किसानों को वे सम्मान, संसाधन नहीं मिलते थे 

1.2          यूपी एफपीओ पोर्टल (2021) : किसानों एवं फसल-उत्पादक संगठन (एफपीओउस) को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए। लाभ : किसानों को बाजार, मूल्य, उत्पाद प्रबंधन आदि की जानकारी एक मंच पर मिलने लगी; बिचौलियों की भूमिका कम होने लगी। संख्या में : शुरुआत में लगभग 576 एफपीओएस शामिल हुई थीं।

1.3 प्राकृतिक/गो-आधारित खेती पहल

सरकार ने कहा है कि गो-आधारित प्राकृतिक खेती से प्रति एकड़ ₹10,000-₹12,000 तक की बचत हो सकती है। लाभ : लागत कम, मिट्टी-स्वास्थ्य बेहतर, दीर्घकालीन टिकाऊ कृषि की दिशा।

1.4 सिंचाई एवं बुनियादी ढांचा सुधार

पिछले आठ वर्षों में 29 बड़े, मीडियम और छोटे सिंचाई-प्रोजेक्ट पूरे किये गए, जिससे लगभग 19.11 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचाई क्षमता बनी। लाभ : खेतों में पानी की उपलब्धता बेहतर हुई, एक-दो फसल से अधिक फसल लेने के अवसर बढ़े।

1.5 किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) अन्य वित्त-सशक्तिकरण योजनाएं

वर्ष 2025-26 के लिए 25 लाख नए किसानों को ज्ञब्ब् से जोड़ने का लक्ष्य तय किया गया। लाभ : कम-ब्याज पर ऋण मिलने की संभावना, साहूकारों पर निर्भरता में कमी; किसानों की क्रयशक्ति बढ़ती।

1.6 हाल की अन्य घोषणाएँ

खरीफ 2024-25 के लिए डिजिटल क्रॉप-सर्वे का काम लगभग 80 फीसदी पूरा हुआ।श्रीअन्ननामक अभियान के तहत मक्का-बाजरा-ज्वार जैसी फसलों की खरीद शुरुआत 1 अक्टूबर से। आगामी दिशा मेंफार्म-स्टे” (एग्री टूरिज्म) योजना भी शुरू की गई है, ग्रामीण पर्यटन किसानों को अतिरिक्त आय के अवसर देने हेतु।

किसानों की संतुष्टि-स्थिति

गन्ना किसानों का एक समूह हाल ही में सरकार के निर्णय (गन्ना मूल्य वृद्धि) पर मुख्यमंत्री योगी को धन्यवाद दे चुका है, उन्होंने कहा है कि पारदर्शिता बढ़ी है, भुगतान प्रक्रिया बेहतर हुई है। इसके बावजूद, कुछ संकेत हैं कि पूरी तरह संतुष्टि नहीं है उदाहरण के लिए, एक रिपोर्ट में कहा गया कि ₹2,700 करोड़ किसान सहायता राशि का उल्लेख तो किया गया, लेकिन जमीन पर कार्यान्वयन में देरी पाई गई है। किसानों को यह भी कहा जा रहा है किचिंता की कोई बात नहीं है, सरकार आपका ध्यान रखेगी”, मुख्यमंत्री ने इस प्रकार आश्वासन भी दिया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि बहुत-हद तक किसानों में सकारात्मक भाव है, खासकर उन किसानों में जिनको सीधे लाभ मिला है। लेकिन संतुष्टि सर्वत्र नहीं फैली है, क्षेत्र-विशेष, छोटे-किसान, भू-हीन किसानों में अभी भी चुनौतियाँ विद्यमान हैं।

आगे की तैयारियाँ और दिशा

16 सितंबर 2025 से पूरे राज्य में “100 फीसदी किसान पंजीकरण अभियानशुरू होगा; लक्ष्य लगभग 2.88 करोड़ किसानों को पंजीकृत करना है। सरकार ने किसानों कोतीसरी फसललेने, आधुनिक खेती-तकनीक अपनाने, उच्च-मूल्य फसलें (जैसे फल, मसाले, बागवानी) बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाये हैं। प्राकृतिक/जीविका-सक्षम खेती को प्रोत्साहन देने के लिए लगभग ₹2,500 करोड़ का योजना-पैकेज तय किया गया है। कृषि माह 2025 के दौरानटेक-ड्रिवन क्रॉप-कटिंग एक्सपेरिमेंट्सलागू होंगे, जिससे फसल क्षति का आंकलन बेहतर होगा और मुआवजे बीमा प्रक्रिया को गति मिलेगी। कृषि-उद्योग एवं पर्यटन के समन्वय के लिएफार्म-स्टेयोजना जैसी पहल की गई है कृ किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलेगा।

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