क्रिसमस : जब सर्द रातों में जलती है इंसानियत की लौ
दिसंबर की सर्द हवा, कोहरे में लिपटी सुबहें और शहर, शहर जगमगाती रोशनियां, क्रिसमस केवल एक पर्व नहीं, बल्कि मानवता की सामूहिक अनुभूति है। चर्चों की घंटियों से लेकर बच्चों की हंसी तक, सैंटा क्लॉज़ की कल्पना से लेकर सेवा और करुणा के वास्तविक कर्म तक, यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अंधकार चाहे जितना गहरा हो, प्रेम की एक लौ उसे चीर सकती है. क्रिसमस 2025 ऐसे दौर में आया है जब दुनिया युद्ध, तनाव, महंगाई और सामाजिक विभाजन से गुजर रही है। ऐसे समय में ईसा मसीह का जन्म-संदेश, त्याग, क्षमा और पड़ोसी से प्रेम, और अधिक प्रासंगिक हो उठता है। भारत में यह पर्व केवल चर्चों तक सीमित नहीं, बल्कि बाजारों की रौनक, सामाजिक सेवा, सांस्कृतिक सौहार्द और साझा उत्सव के रूप में सामने आता है। क्रिसमस यह पर्व आज भी उम्मीद जगाता है, समाज को जोड़ता है और याद दिलाता है कि सच्चा उत्सव वही है, जिसमें सबके लिए जगह हो
सुरेश गांधी
दिसंबर की सर्द हवा जब शहरों और कस्बों की गलियों में ठिठुरन घोलती है, तभी कहीं दूर से चर्च की घंटियों की मधुर ध्वनि सुनाई देती है। यह केवल एक पर्व की आहट नहीं, बल्कि मानवता के जागरण का संकेत है। क्रिसमस हर वर्ष हमें याद दिलाता है कि अंधेरे समय में भी प्रेम, करुणा और आशा की रोशनी बुझती नहीं, बस उसे जलाए रखने का साहस चाहिए। साधारण गौशाला में हुआ। यह तथ्य ही क्रिसमस का सबसे बड़ा दर्शन है, ईश्वर का अवतरण वैभव में नहीं, विनम्रता में। यीशु का जीवन प्रेम, त्याग और सेवा की मिसाल है। उन्होंने कहा “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो।” आज, दो हजार वर्षों बाद भी, यह वाक्य उतना ही प्रासंगिक है जितना तब था। जब दुनिया नफरत की भाषा बोलने लगे, तब क्रिसमस हमें प्रेम की व्याकरण सिखाता है। आज, जब दुनिया युद्ध, आर्थिक अनिश्चितता, सामाजिक तनाव और वैचारिक विभाजन से जूझ रही है, तब यीशु का संदेश और अधिक प्रासंगिक हो उठता है, अपने पड़ोसी से प्रेम करो, कमजोर का साथ दो, और क्षमा को जीवन का आधार बनाओ।
भारत में क्रिसमस केवल ईसाई समाज का पर्व नहीं रहा। यह अब साझी संस्कृति और सौहार्द का उत्सव है। चर्चों की सजावट के साथ बाजारों की रौनक, प्रार्थनाओं के साथ सेवा-कार्य और सैंटा क्लॉज़ के साथ बच्चों की मुस्कान, सब मिलकर यह बताते हैं कि क्रिसमस हमें जोड़ता है, तोड़ता नहीं। क्रिसमस 2025 ऐसे समय आया है, जब ठिठुरती रातों में इंसानियत की सबसे ज्यादा जरूरत है, और यही इस पर्व का असली संदेश है। मतलब साफ है दिसंबर की ठिठुरती रातें, कोहरे में लिपटी सड़कें, चर्चों से आती घंटियों की मधुर ध्वनि, घरों और बाजारों में सजी रंगीन रोशनियां, क्रिसमस केवल एक पर्व नहीं, बल्कि मानवता की साझा धड़कन है। यह वह दिन है जब सीमाएं, धर्म, भाषा और राष्ट्र पीछे छूट जाते हैं और आगे आता है प्रेम, क्षमा और करुणा का सार्वभौमिक संदेश।भारत में क्रिसमस
एक धार्मिक पर्व से कहीं
आगे बढ़ चुका है।
यह अब एक सांस्कृतिक
उत्सव है, जिसमें हर
धर्म, हर वर्ग और
हर समुदाय की भागीदारी दिखाई
देती है। काशी से
कोच्चि तक, दिल्ली से
दीमापुर तक, गोवा और
केरल में समुद्र किनारे
चर्चों में विशेष प्रार्थनाएं,
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता में ऐतिहासिक गिरिजाघरों
में मध्यरात्रि मास, उत्तर प्रदेश,
खासकर वाराणसी में चर्चों के
साथ-साथ स्कूलों, सामाजिक
संस्थाओं में सामूहिक उत्सव,
पूर्वोत्तर भारत में क्रिसमस
पूरे एक सप्ताह तक
चलने वाला लोकपव, चर्चों
में तैयारी और सुरक्षा व्यवस्थाः
श्रद्धा के साथ सतर्कता.
क्रिसमस केवल धार्मिक या
सांस्कृतिक पर्व नहीं, बल्कि
स्थानीय अर्थव्यवस्था का उत्सव भी
है। क्रिसमस ट्री और सजावटी
सामान, केक, प्लम केक,
कुकीज, सैंटा क्लॉज़ की पोशाकें, गिफ्ट
आइटम और हस्तशिल्प, छोटे
दुकानदारों, बेकरी संचालकों और घरेलू उद्यमियों
के लिए क्रिसमस कमाई
का सुनहरा अवसर बन गया
है।
सैंटा क्लॉज़ केवल एक पात्र
नहीं, बल्कि बचपन की मुस्कान
है। लाल पोशाक, सफेद
दाढ़ी और उपहारों से
भरी थैली, यह छवि बच्चों
के मन में उदारता
और दान का भाव
भरती है। आज भी
अनगिनत स्वयंसेवी संगठन सैंटा बनकर, झुग्गियों में बच्चों को
उपहार, अस्पतालों में बीमार बच्चों
के चेहरे पर मुस्कान लाने
का प्रयास कर रहे हैं।
गरीबों को कंबल और
गर्म कपड़े, सामुदायिक भोज, रक्तदान शिविर,
नशा मुक्ति और शिक्षा अभियान,
यह साबित करता है कि
क्रिसमस का असली अर्थ
उपहार लेना नहीं, बल्कि
देना है। इस वर्ष
क्रिसमस ऐसे समय में
है जब, कई देशों
में युद्ध जारी हैं, शरणार्थी
संकट गहराया है, जलवायु परिवर्तन
चिंता बढ़ा रहा है,
ऐसे में चर्चों और
समुदायों में विश्व शांति
के लिए विशेष प्रार्थनाएं
की जा रही हैं।
यह पर्व हमें याद
दिलाता है कि शांति
कोई सपना नहीं, बल्कि
साझा जिम्मेदारी है।
क्रिसमस तकनीक से भी जुड़ा
है, ऑनलाइन प्रार्थनाएं, डिजिटल ग्रीटिंग कार्ड, सोशल मीडिया पर
शुभकामनाएं, वर्चुअल फैमिली गेदरिंग, तकनीक ने दूरी कम
की है, लेकिन क्रिसमस
हमें याद दिलाता है
कि दिलों की दूरी मिटाना
सबसे जरूरी है। आज जब
समाज में वैचारिक ध्रुवीकरण,
धार्मिक असहिष्णुता, सामाजिक तनाव देखने को
मिलते हैं, तब क्रिसमस
का संदेश और भी महत्वपूर्ण
हो जाता है। यह
पर्व सिखाता है, अलग-अलग
होते हुए भी एक
साथ कैसे जिया जाएं,
कमजोर के साथ खड़ा
कैसे हुआ जाए, क्षमा
और संवाद से कैसे पुल
बनाया जाए. मतलब साफ
है क्रिसमस केवल 25 दिसंबर तक सीमित नहीं
होना चाहिए। यदि हम साल
भर करुणा रखें, जरूरतमंद को देखें, नफरत
की जगह संवाद चुनें
तो हर दिन क्रिसमस
बन सकता है। जब
चर्च की घंटियां शांत
हो जाएं, रोशनियां उतर जाएं और
केक खत्म हो जाए,
तब भी यदि दिल
में प्रेम जीवित है, तो समझिए
क्रिसमस सफल है।
प्रभु यीशु का जन्म यह स्मरण कराता है कि परमेश्वर हर मनुष्य के निकट है, विशेषकर उन लोगों के, जो कमजोर, वंचित और संघर्षरत हैं। क्रिसमस हमें यह भी सिखाता है कि इमैनुएल, ईश्वर हमारे साथ, मानव जीवन में प्रवेश कर चुका है और उसने मानव पीड़ा, आशाओं और संघर्षों को स्वयं अपनाया है। उसकी आस्था केवल उपासना तक सीमित नहीं, बल्कि सेवा कार्यों में प्रकट होती है।
गरीबों,
वंचितों और जरूरतमंदों की
सेवा के मार्ग पर
विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु मित्रता
और सहयोग के साथ चल
सकते हैं। यही क्रिसमस
का सच्चा संदेश है, मानवता सबसे
बड़ा धर्म। क्रिसमस हमें करुणा, सत्य
और जिम्मेदारी का मार्ग दिखाता
है। आज की दुनिया
विस्थापन, आर्थिक असमानता, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक
तनाव से जूझ रही
है। ऐसे समय में
क्रिसमस का पर्व समाज
को निराशा से ऊपर उठने,
घृणा को अस्वीकार करने
और सभी धर्मों व
समुदायों के बीच करुणा,
संवाद और मेलजोल को
मजबूत करने का संदेश
देता है।








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