Sunday, 4 March 2018

शांति की खोज में दौड़ा डालरनगरी




शांति की खोज में दौड़ा डालरनगरी
मन की शक्ति से फुर्र हो जाती है समस्याएं: बहन पूनम 
जिस दिन हम स्वयं को पहचान लेंगे तो हमारे भीतर छिपी हुई शक्तियां जागृत हो जाएगी और हर बात खेल लगेगी 
सुरेश गांधी
भदोही। साधकों को चाहिए कि वह मन को शक्तिशाली बनाएं। क्योंकि मन शक्तिशाली होगा तो समस्याएं स्वतः दूर हो जायेगी। मन कमजोर होने पर ही हम हर समस्या की गहराई तक में चले जाते है। राई जैसी बातों को पहाड़ बना देते है। ज्यादा सोचने से समस्या विकराल हो जाती है। कभी-कभी तो यह होता है कि समस्या चली जाती है। लेकिन सोच नहीं जाती। सोचना हमारी एक आदत बन गई है। अगर हम समस्याओं से मुक्ति चाहते है तो ज्यादा नहीं सोचे। ज्यादा सोचने से भविष्य बदलने वाला नहीं है। वहीं होगा जो इस खेल में निश्चित है।
यह बाते तनावमुक्त विशेषज्ञ ब्रह्मकुमारी पूनम बहन ने कहीं। वे प्रजापिता ब्रह्मकुमारी इश्वरीय विश्व विद्यालय के तत्वावधान में रजपुरा स्थित सनबीम स्कूल में चल रहे 12 दिवसीय अलविदा तनाव शिविर में साधाकों से को संबोधित कर रही थी। इसके पहले विश्व में सद्भावना की ज्योति की अलख जगाने के लिए सद्भावना दौड़ का आयोजन किया गया। इस दौड़ में क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या छोटा क्या बड़ा हर तबका पूरी उत्सुकता एवं तन्मयता से शिरकत की। रजपुरा रोड़ का आलम यह था मानो पूरा डालरनगरी शांति की खोज में निकल पड़ा है। हर हाथ में शांति संकल्प का मशाल जलता दिखाई दे रहा था। कार्यक्रम का उद्घाटन भदोही विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी ने शिविर स्थल पर बने कुंड में जलते मशाल को डालकर किया।
ब्रह्मकुमारी पूनम ने कहा कि आज हम सागर की गहराई तक जाने चाहते है। आकाश की ऊंचाई को छूना चाहते है। चंद्रमा पर भी पहुंच गए है। दूर-दूर तक पहुंच गए लेकिन स्वयं के बारे में नहीं जान पाए कि मै कौन हूं? जिस दिन हम स्वयं को पहचान लेंगे तो हमारे भीतर छिपी हुई शक्तियां जागृत हो जाएगी और हर बात खेल लगेगी। ब्रहृााकुमारी पूनम ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जिन्होंने भी आत्मशक्ति को कार्य में लगाया है। वे असंभव से असंभव कार्य को भी पूरे किए है एडवांस कोर्स में मेडिटेशन के द्वारा यह प्रेक्ट्रिकल में अनुभव कराया गया कि वास्तव में मै शरीर नहीं हूं। इससे अलग एक अजर, अमर, अविनासी आत्मा हूं। उन्होंने कहा कि सारी चिंताएं, रोग, शोक तभी उत्पन्न होते है। जब हम अपने शरीर को समझने लगते है। तब मालिक शरीर हो जाता है और आत्मा गुलाम। आत्मा शरीर के अधीन हो गई है और अपनी सभी कामेन्द्रियों की गुलाम हो गई है। यहीं तनाव का मुख्य कारण है।
ब्रह्मकुमारी पूनम बहन ने कहा कि यह गर्व की बात है कि हम उस देश में रह रहे है जिस देश में नवरात्र में नौ दिन देवियों की पूजा होती है। वह देविया भी तो बेटिया ही थीं। मानवीय मूल्यों और गुणों शक्तियों से संपन्न थी। नवरात्र के अंत में कन्याओं का पूजन होता है जिसमें 9 कन्याओं जिन्हे कंजक कहा जाता है उन्हे पूजा जाता है। आजकल नौ कंजक इकट्ठी करना भी मुश्किल हो जाता है। बहन लक्ष्मी दीदी ने कहा, स्त्री में वह गुण है जिससे वह सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है। उन्होंने कहा कि प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय इस दिशा में लगातार प्रयास कर रहा है। कन्या भ्रूण हत्या पर सरकार की तरफ से पहले ही रोक लग चुकी है परतु इस बारे में लोगों को जागरुक करना जरूरी है ताकि इस सामाजिक कलंक को समाज से पूरी तरह मिटाया जा सके। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलित करके किया गया।


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