Friday, 11 July 2025

अगर अधिकारी फोन उठाते तो इतनी शिकायतें नहीं होतीं : अरविन्द कुमार

जनसुनवाई के दौरान उपभोक्ताओं ने खोली बिजली विभाग की पोल, दरों में बढ़ोतरी पर जताई आपत्ति

अगर अधिकारी फोन उठाते तो इतनी शिकायतें नहीं होतीं : अरविन्द कुमार 

व्यवस्था में सुधार लाने के लिए विभागीय स्तर पर स्पष्ट जवाबदेही तय करनी होगी

सुरेश गांधी

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग की ओर से शुक्रवार को आयोजित जनसुनवाई ने एक बार फिर दिखा दिया कि बिजली व्यवस्था में सुधार अब ज़रूरत ही नहीं, जन-आवश्यकता बन चुकी है। उपभोक्ताओं को सिर्फ बिल नहीं, सुविधा चाहिए, और यह आवाज अब नजरअंदाज नहीं की जा सकती। बिजली व्यवस्था की हकीकत को आईने की तरह जिस तरह सामने ले आई है, वो इस बात का संकेत है कि पूर्वांचल में बिजली व्यवस्था सुचारु रुप से नहीं चल रही है। यही वजह है कि उपभोक्ताओं, उद्यमियों और बुनकरों की पीड़ा सुनने के बाद आयोग के चेयरमैन अरविंद कुमार ने अधिकारियों की कार्यशैली, खराब सेवा और संवादहीनता पर जमकर नाराजगी जताई। 

उन्होंने मंच से खुले शब्दों में कहा, “अगर बिजली निगम के अधिकारी उपभोक्ताओं के फोन समय से उठाते और शिकायतों को गंभीरता से लेते, तो इतनी समस्याएं इकट्ठा ही नहीं होतीं। उपभोक्ता संवाद अब केवल औपचारिकता नहीं, प्राथमिकता होना चाहिए।उन्होंने कहा, “उपभोक्ताओं की समस्याओं को सुनना और तत्काल कार्रवाई करना अधिकारियों की नैतिक और प्रशासनिक ज़िम्मेदारी है।“ “व्यवस्था में सुधार लाने के लिए विभागीय स्तर पर स्पष्ट जवाबदेही तय करनी होगी।“ “सिर्फ दरों की बात करना पर्याप्त नहीं है, जब तक सेवा गुणवत्ता सुधरे।बिजली दरों में बढ़ोतरी के सवाल पर आयोग अध्यक्ष ने सीधा जवाब नहीं दिया लेकिन कहा किदर निर्धारण एक प्रक्रिया है, जिसमें सभी पक्षों की बातों को गंभीरता से सुना जाएगा।” 
अरविंद कुमार ने जन सुनवाई में लोगों का पक्ष सुनने के बाद कहा कि पूर्वांचल-डिस्कॉम में अधिकाधिक ट्रांसफॉर्मर जलना और बिजली चोरी होना चिंता की बात है। इससे उपभोक्ता परेशान होते हैं। सरकार भी इसको लेकर काफी चिंतित है। उन्होंने स्वीकार किया कि पूर्वांचल-डिस्कॉम के अधिकारियों का परफार्मेंस उपभोक्ता हित में सबसे अधिक खराब है। इसमें सुधार की जरुरत है। अध्यक्ष अरविंद कुमार ने लोगों की शंकाओं का समधान करते हुए कहा कि बिजली कंपनियां अपने हिसाब से खर्च निर्धारित करती है। सुनवाई के बाद ही उस पर नियामक आयोग निर्णय लेता है। यह निर्णय उपभोक्ताओं के हित में ही लिये जाते हैं। 
उन्होंने कहा कि कंपनी सरकारी हो या गैर सरकारी, दर निर्धारण के लिए नियामक आयोग से अनुमति लेनी पड़ती है। कोई भी कंपनी अपने मन से दर निर्धारित नहीं कर सकती है। नियामक आयोग पर भरोसा रखिए, तय विनिमयीकरण पर ही मुनाफा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं को बिजली देने के लिए एडवांस में बिजली खरीदती है। इसमें कई प्रक्रियाएं शामिल होती है, इसलिए फिक्स चार्ज को समाप्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ओपेन एक्सेस प्रणाली में अब तीन माह के बजाय 11 माह तक का अनापत्ति प्रमाण-पत्र जारी करने का प्रावधान किया गया है। इसे लागू करने में करीब एक पखवारा लग सकता है। वैसे भी 100 किलोवॉट तक के कनेक्शन के लिए इस सिस्टम को समाप्त कर दिया गया है। उपभोक्ताओं के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि करीब 30 उपभोक्ता फोरम है। उपभोक्ता फोरम की कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता है। उपभोक्ता फोरम की जवाबदेही भी तय की जाएगी। इस दौरान नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार, सचिव सुमित कुमार अग्रवाल, सदस्य डॉ. संजय कुमार सिंह, निदेशक टैरिफ सरबजीत सिंह के अलावा डिस्कॉम के अधिकारी उपस्थित थे। 

ग्रामीण से लेकर शहरी उपभोक्ता तक नाराज

वाराणसी और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से आए उपभोक्ताओं ने बताया कि मीटर में गड़बड़ी महीनों तक नहीं सुधारी जाती, शिकायतों पर फोन तक नहीं उठते और बिलिंग में भारी गड़बड़ियां हैं। कई उपभोक्ताओं ने कहा कि उन्हें गलत बिल भेजे जाते हैं और सुधार के लिए कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। एक महिला उपभोक्ता ने जनसुनवाई में आकर रोते हुए बताया किबिना खपत के पांच हजार रुपये का बिल भेजा गया, तीन बार चक्कर लगाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई।

बुनकरों ने कहा : बिजली नहीं तो रोजगार कैसे चलेगा?

बुनकर समुदाय से जुड़े प्रतिनिधियों ने कहा कि कम वोल्टेज और लगातार ट्रिपिंग से हथकरघा उद्योग ठप पड़ने की कगार पर है। काशी की पहचान माने जाने वाले बनारसी वस्त्र उद्योग को यह बिजली संकट धीरे-धीरे खत्म करता जा रहा है।

उद्योगपतियों ने जताई चिंता : लागत बढ़ रही, उत्पादन घट रहा

लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधियों की ओर से आरके चौधरी ने बताया किअनियमित बिजली आपूर्ति से मशीनें बार-बार बंद हो जाती हैं। इससे केवल उत्पादन प्रभावित हो रहा है बल्कि श्रमिकों को समय पर भुगतान में भी दिक्कत रही है।” उपभोक्ता शैलेश ने टैरिफ बढ़ाने के प्रस्ताव की दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। कहा कि बिजली चोरी रोकने की जिम्मेदारी अधिकारियों पर है, लेकिन वे ऐसा नहीं करते। नौ हजार करोड़ रुपये सरकार को देना है। यह रकम मिल जाए तो घाटा समाप्त हो जाएगा। उन्होंने जीएमआर कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने की मांग की। जन सुनवाई के दौरान आरके चौधरी, राजेश भाटिया, योगी राज सिंह समेत तमाम उपभोक्ताओं ने अपना-अपना पक्ष रखा। इसके पूर्व पूर्वांचल-डिस्कॉम के प्रबंध निदेशक शंभू कुमार ने डिस्कॉम का प्रस्तुतीकरण किया। जन सुनवाई में उपभोक्ताओं, उद्यमियों और किसानों ने एकजुट होकर कहा कि प्रस्तावित बिजली दर में वृद्धि और निजीकरण किसी कीमत पर स्वीकार नहीं है। हम सभी प्रदेश को लालटेन युग में नहीं ले जाने देंगे। इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आरके चौधरी ने इस बात को पूरजोर तरीके से उठाते हुए कहा कि आए दिन अनाप-शनाप बिल मिलने से उद्यमियों में काफी गुस्सा है। उद्यमियों की समस्याओं का समाधान करने में विभागीय अधिकारी रुचि नहीं दिखाते हैं, जो गंभीर विषय है। उन्होंने कहा कि बिजली चोरी और लाइन लॉस कम करके घाटे की भरपाई की जा सकती है। बिजली दर बढ़ाना किसी समस्या का समाधान नहीं है। विद्युत आपूर्ति में ध्यान दिया जाए तो उद्योगों के कच्चे माल बर्बाद नहीं होंगे, जिससे सरकार को राजस्व को अधिक मिलेगा। उन्होंने एक जनवरी 2020 की भांति नेट मीटरिंग की सुविधा उपलब्ध कराने की आवाज उठायी। कहा कि ओपन एक्सेस प्रणाली के तहत औद्योगिक इकाइयों को तीन माह से मिलने वाली एसटी-11 अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने में विलंब किया जाता है। इसकी फाइलें डम्प कर दी जाती है। राजस्व के लोभ में अधिकारी टालमटोल की नीति अपनाते हैं, जिसका खामियाजा उद्योगों को भुगतना पड़ता है। उन्होंने सोलर एनर्जी बढ़ाने के लिए उद्यमियों को छूट देने की वकालत की। कहा कि निजीकरण वर्तमान प्रजातांत्रिक व्यवस्था में न्याय संगत नहीं है। इसके स्थान पर कार्यप्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है। सरकार की मंशा अधिकाधिक रोजगार देने की है। निजी हाथो में बिजली व्यवस्था जाने से मनमानी ज्यादा बड़ेगी। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश में सरप्लस बिजली एवं बिजली के संसाधन हैं। ऐसे में फिक्स्ड चार्ज का कोई औचित्य नहीं है। फिक्स्ड चार्ज को समाप्त किया जाना चाहिए। उद्यमी जगदीश झुनझुनवाला ने कहा कि उनकी 400 केवीए की एक फैक्ट्री है। अनाप-शनाप मिलने वाले बिल के चलते उन्होंने फैक्ट्री बंद करने का निर्णय लिया है। अब गुजरात में फैक्ट्री लगा रहे हैं। यह सब विभागीय अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा है। यदि उद्यमियों की समस्याओं का त्वरित समाधान हो तो गैर प्रांतों की तरफ रूख करने से परहेज कर सकते हैं। 

जनसुनवाई में उठी प्रमुख समस्याएंः

फोन उठाना,                    शिकायत पर अधिकारी कॉल रिसीव नहीं करते

मीटर में गड़बड़ी                  खराब मीटर महीनों तक नहीं बदले जाते

गलत बिलिंग                         उपभोक्ताओं को वास्तविक खपत से कई गुना अधिक बिल

ट्रिपिंग और फाल्ट                गर्मी में रोजाना कई बार बिजली ट्रिप होती है

कम वोल्टेज                          ग्रामीण क्षेत्रों में बल्ब तक नहीं जलते

अधिकारियों का रवैया         उपेक्षा भरा, संवेदनहीन व्यवहार

अधिकारी सुधारें कार्यशैली, तय हो जवाबदेही

अरविंद कुमार ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि शिकायतों पर त्वरित और समयबद्ध कार्रवाई की जाए. उपभोक्ताओं से संवाद प्रणाली को मज़बूत किया जाए. प्रत्येक डिवीजन स्तर पर जवाबदेही तय हो. बिलिंग और मीटर प्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए, बुनकर और औद्योगिक क्षेत्रों की समस्याओं को प्राथमिकता मिले.

उपभोक्ता कहिन

वाराणसी जैसे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और औद्योगिक शहर में बिजली सेवा की गुणवत्ता केवल तकनीकी नहीं, सामाजिक और आर्थिक मसला है। जनसुनवाई में उपभोक्ताओं की एक सुर में उठी आवाज़ें बताती हैं कि सेवा और जवाबदेही के बीच खाई गहरी हो गई है। चेयरमैन अरविंद कुमार का साहसिक बयान सराहनीय है, लेकिन असली असर तभी दिखेगा जब ज़मीनी अमला जागेगा और सिस्टम की चुप्पी टूटेगी। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार समेत कई उद्यमियों और आम नागरिकों ने कहा किजब तक मूलभूत सुविधाएं और आपूर्ति व्यवस्था बेहतर नहीं होती, तब तक किसी भी प्रकार की दर वृद्धि को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता।“ 

वाराणसी की जनसुनवाई में उपभोक्ता फूंट पड़ेबिजली अफसरों की दलाली में जल रही है

निजीकरण चाहिए, महंगी बिजलीबनारस में उपभोक्ता हुए एकजुट

33122 करोड़ सरप्लस फिर भी दर बढ़ाने की तैयारी, उपभोक्ता परिषद बोलीहाथ में आएगी हथकड़ी

बिजली कंपनियों का घाटा अफसरों की कमाई का जरिया बना :  अवधेश वर्मा ने

निजीकरण के नाम पर लूट का प्लान

बिजली अफसर एसी में बैठे, ट्रांसफार्मर जलते रहे—722 हादसे फिर भी चुप्पी

लाखों कनेक्शन लेट, मुआवजा नहीं मिलाकानून को ताक पर रख रही बिजली कंपनियां

उपभोक्ता परिषद की दो टूकनिजीकरण असंवैधानिक, दरों में 45% कटौती होनी चाहिए

सुरेश गांधी

वाराणसी. पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (पीवीवीएनएल) के निजीकरण और बिजली दरों में प्रस्तावित वृद्धि को लेकर शुक्रवार को वाराणसी में आयोजित जनसुनवाई में उपभोक्ताओं, उद्योगपतियों और किसानों ने जमकर विरोध दर्ज कराया। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के तत्वावधान में हुई इस सुनवाई में उपभोक्ता संगठनों ने एक स्वर में कहा कि निजीकरण स्वीकार है, दरों में बढ़ोतरी। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सुनवाई में मौजूद रहते हुए आरोप लगाया कि निजीकरण की प्रक्रिया पूरी तरह असंवैधानिक और उपभोक्ता विरोधी है। उन्होंने कहा कि देश का कोई भी कानून ऐसी प्रक्रिया की अनुमति नहीं देता, जिसका मकसद सिर्फ उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाना हो। जनसुनवाई की अध्यक्षता विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन अरविंद कुमार और सदस्य संजय कुमार सिंह ने की। इस दौरान पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के एमडी शंभू कुमार और पावर कॉर्पोरेशन के मुख्य अभियंता ने प्रस्तुतीकरण दिया, लेकिन इसके बाद माहौल पूरी तरह बदल गया. इस दौरान नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमारसचिव सुमित कुमार अग्रवालसदस्य डॉसंजय कुमार सिंहनिदेशक टैरिफ सरबजीत सिंह के अलावा डिस्कॉम के अधिकारी उपस्थित थे।

33122 करोड़ का सरप्लस, फिर भी बढ़ोतरी क्यों?

अवधेश वर्मा ने बताया कि प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33122 करोड़ रुपये सरप्लस जमा है। ऐसे में बिजली दरों में 45 फीसदी की कमी होनी चाहिए, कि बढ़ोतरी। उन्होंने कहा कि निजीकरण का मकसद घाटे की आड़ में मुनाफे वाली कंपनियों को चुनिंदा पूंजीपतियों को सौंपना है, जो उपभोक्ताओं के साथ अन्याय है। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल-डिस्कॉम में लॉस रिडक्शन, स्मार्ट प्रीपेड मीटर और कैपेक्स में लगभग 15963 करोड़ खर्च हुआ। इसके बावजूद भी निजीकरण की बात चल रही है। लेकिन उपभोक्ता परिषद के रहते कोई भी निजीकरण नहीं कर सकता। उपभोक्ता परिषद हर अधिकारी की शत-प्रतिशत पोल खोलने को तैयार है। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17 के तहत सबसे पहले उत्तर प्रदेश सरकार व बिजली कंपनी को विद्युत नियामक आयोग से इसके लिए अनुमति लेना चाहिए था। पूर्वांचल-डिस्कॉम का निजीकरण विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131, 132, 133, 134 के अंतर्गत प्रस्तावित है, जो गलत है। यह धारा केवल राज्य विद्युत परिषद के विघटन के समय एक बार प्रयोग में लाई जाने वाली धारा है। 

निजीकरण की प्रक्रिया गलत और असंवैधानिक

उपभोक्ता परिषद ने सुनवाई में कहा कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17 के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार को आयोग से पूर्व अनुमति लेनी थी, जो नहीं ली गई। इसके विपरीत धारा 131 से 134 तक का उपयोग किया जा रहा है, जो सिर्फ एक बार राजकीय विद्युत परिषद के विघटन के समय के लिए लागू की गई थीं। यह पूरे प्रस्ताव को ही कानून के विरुद्ध बनाता है।

कई आईएएस पर भ्रष्टाचार के आरोप, जल्द लगेगी हथकड़ीउपभोक्ता परिषद

परिषद अध्यक्ष ने कहा कि कुछ नौकरशाह निजीकरण के पीछे सक्रिय हैं और उद्योगपतियों के साथ सांठगांठ करके भ्रष्टाचार कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "जिस दिन सच्चाई सामने आएगी, उस दिन इन्हें हथकड़ी लगेगी।" उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि स्मार्ट मीटर घोटाले में बिहार के तत्कालीन ऊर्जा सचिव संजीव हंस को जेल जाना पड़ा था। वैसी ही स्थिति यूपी में बन रही है।

बिजली चोरी, जले ट्रांसफार्मर और दुर्घटनाओं का भी खुलासा

उपभोक्ता परिषद ने बताया कि पूर्वांचल में हर साल 1628 करोड़ की बिजली चोरी होती है। वर्ष 2022-23 में जहां 80 ट्रांसफार्मर जले, वहीं 2023-24 में यह संख्या 78 रही। यह तकनीकी अक्षमता और लापरवाही का उदाहरण है।

वर्ष 2023-24 में 722 विद्युत दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें जान गंवाने वालों की संख्या 250 से अधिक बताई जा रही है।

मुआवजा अब तक क्यों नहीं मिला?

वर्ष 2022-23 में 18372, वर्ष 2023-24 में 51437 और वर्ष 2024-25 में 28509 उपभोक्ताओं को 30 दिन बाद कनेक्शन मिला, जो नियमानुसार मुआवजा योग्य है। बावजूद इसके किसी को भी मुआवजा नहीं दिया गया।

"बिजली नहीं है तो जवाब में मिलता है जय श्रीराम"

अवधेश वर्मा ने ऊर्जा मंत्री पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब उपभोक्ता बिजली नहीं होने की शिकायत करते हैं, तो उन्हें जवाब मिलता है—“जय श्रीराम।उन्होंने कहा, "क्या यही रामराज्य है?"

सरकारी बकाया 4489 करोड़, फिर घाटे की दुहाई क्यों?

उपभोक्ता परिषद ने खुलासा किया कि सरकारी विभागों पर पिछले तीन वर्षों में 4489 करोड़ रुपये का बकाया है और 8115 करोड़ की सब्सिडी अभी भी सरकार द्वारा विद्युत निगम को नहीं दी गई है। फिर यह कहना कि कंपनी घाटे में हैएक छलावा है। उन्होंने कहा कि कंपनियों ने उपभोक्ताओं से बकाया राशि के आधार पर लोन भी लिया है, जबकि यदि बकाया वसूला जाए तो बिजली कंपनियां लाभ में जाएंगी। उन्होंने तीखा आरोप लगाया किकुछ आईएएस अफसर निजीकरण के पीछे बुरी तरह फड़फड़ा रहे हैं, क्योंकि उन्हें उद्योगपतियों से सांठगांठ कर लाभ पहुंचाना है। आने वाले समय में इन्हीं अफसरों के हाथ में हथकड़ी होगी।उन्होंने बिहार के पूर्व ऊर्जा सचिव संजीव हंस के जेल जाने का उदाहरण दिया।

छोटे दुकानदारों के लिए अलग स्लैब की मांग

परिषद ने मांग की कि जो छोटे उपभोक्ता 1 किलोवाट तक का कनेक्शन लेते हैं और 100 यूनिट तक बिजली खपत करते हैं, उनके लिए घरेलू श्रेणी में अलग स्लैब बनाया जाए, जिससे उन्हें बिजली चोरी के झूठे मामलों से बचाया जा सके। इसके बावजूद घाटे का हवाला देकर निजीकरण करना जनहित के साथ धोखा है।

जनसुनवाई में हुई उपभोक्ता एकजुटता

वाराणसी की जनसुनवाई में उपभोक्ता संगठनों ने सिर्फ पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि आर्थिक, कानूनी और तकनीकी आधारों पर इसे गलत ठहराया। अब यह देखना होगा कि नियामक आयोग और राज्य सरकार इस विरोध को कैसे लेती है?  बनारस की यह सुनवाई इसलिए भी खास रही क्योंकि यह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्रीतीनों का साझा क्षेत्र है। बावजूद इसके निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना सवालों के घेरे में है। परिषद अध्यक्ष ने कहा—"यदि उपभोक्ता परिषद संवैधानिक रूप से लड़ रही होती, तो आज यहां अडानी का कोई प्रतिनिधि आयोग के मंच पर बैठा होता।"  पूर्वांचल के उपभोक्ताओं ने साफ कहा है कि अब वे चुप नहीं बैठेंगे। निजीकरण बर्दाश्त किया जाएगा और बिजली दरों में मनमानी बढ़ोतरी। जनसुनवाई में जो तथ्य सामने आए हैं, वे सरकार और आयोग दोनों के लिए चेतावनी हैं।

फैक्ट फोकस  

33122 करोड़ : उपभोक्ताओं का सरप्लस फिर भी बिजली महंगी क्यों?

45% : प्रस्तावित कटौती की मांग

4489 करोड़ : सरकारी विभागों का बकाया

8115 करोड़ : बकाया सब्सिडी सरकार से

722 विद्युत दुर्घटनाएं : सिर्फ 2023-24 में

7% : बिजली चोरी की दर पूर्वांचल में

जय श्रीरामकहने वाले ऊर्जा मंत्री से उपभोक्ता परेशान

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