जनसुनवाई के दौरान उपभोक्ताओं ने खोली बिजली विभाग की पोल, दरों में बढ़ोतरी पर जताई आपत्ति
अगर अधिकारी फोन उठाते तो इतनी शिकायतें नहीं होतीं : अरविन्द कुमार
व्यवस्था में
सुधार
लाने
के
लिए
विभागीय
स्तर
पर
स्पष्ट
जवाबदेही
तय
करनी
होगी
सुरेश गांधी
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय
क्षेत्र वाराणसी में उत्तर प्रदेश
विद्युत नियामक आयोग की ओर
से शुक्रवार को आयोजित जनसुनवाई
ने एक बार फिर
दिखा दिया कि बिजली
व्यवस्था में सुधार अब
ज़रूरत ही नहीं, जन-आवश्यकता बन चुकी है।
उपभोक्ताओं को सिर्फ बिल
नहीं, सुविधा चाहिए, और यह आवाज
अब नजरअंदाज नहीं की जा
सकती। बिजली व्यवस्था की हकीकत को
आईने की तरह जिस
तरह सामने ले आई है,
वो इस बात का
संकेत है कि पूर्वांचल
में बिजली व्यवस्था सुचारु रुप से नहीं
चल रही है। यही
वजह है कि उपभोक्ताओं,
उद्यमियों और बुनकरों की
पीड़ा सुनने के बाद आयोग
के चेयरमैन अरविंद कुमार ने अधिकारियों की
कार्यशैली, खराब सेवा और
संवादहीनता पर जमकर नाराजगी
जताई।
ग्रामीण से लेकर शहरी उपभोक्ता तक नाराज
बुनकरों ने कहा : बिजली नहीं तो रोजगार कैसे चलेगा?
बुनकर समुदाय से जुड़े प्रतिनिधियों
ने कहा कि कम
वोल्टेज और लगातार ट्रिपिंग
से हथकरघा उद्योग ठप पड़ने की
कगार पर है। काशी
की पहचान माने जाने वाले
बनारसी वस्त्र उद्योग को यह बिजली
संकट धीरे-धीरे खत्म
करता जा रहा है।
उद्योगपतियों ने जताई चिंता : लागत बढ़ रही, उत्पादन घट रहा
लघु एवं मध्यम
उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधियों की
ओर से आरके चौधरी
ने बताया कि “अनियमित बिजली
आपूर्ति से मशीनें बार-बार बंद हो
जाती हैं। इससे न
केवल उत्पादन प्रभावित हो रहा है
बल्कि श्रमिकों को समय पर
भुगतान में भी दिक्कत
आ रही है।”
जनसुनवाई में उठी प्रमुख समस्याएंः
फोन
न उठाना, शिकायत पर अधिकारी कॉल
रिसीव नहीं करते
मीटर
में गड़बड़ी खराब मीटर महीनों
तक नहीं बदले जाते
गलत
बिलिंग उपभोक्ताओं को वास्तविक खपत
से कई गुना अधिक
बिल
ट्रिपिंग
और फाल्ट गर्मी
में रोजाना कई बार बिजली
ट्रिप होती है
कम
वोल्टेज ग्रामीण क्षेत्रों में बल्ब तक
नहीं जलते
अधिकारियों
का रवैया उपेक्षा
भरा, संवेदनहीन व्यवहार
अधिकारी सुधारें कार्यशैली, तय हो जवाबदेही
अरविंद कुमार ने अधिकारियों को
स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा
कि शिकायतों पर त्वरित और
समयबद्ध कार्रवाई की जाए. उपभोक्ताओं
से संवाद प्रणाली को मज़बूत किया
जाए. प्रत्येक डिवीजन स्तर पर जवाबदेही
तय हो. बिलिंग और
मीटर प्रणाली में पारदर्शिता लाई
जाए, बुनकर और औद्योगिक क्षेत्रों
की समस्याओं को प्राथमिकता मिले.
उपभोक्ता कहिन
वाराणसी जैसे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक
और औद्योगिक शहर में बिजली
सेवा की गुणवत्ता केवल
तकनीकी नहीं, सामाजिक और आर्थिक मसला
है। जनसुनवाई में उपभोक्ताओं की
एक सुर में उठी
आवाज़ें बताती हैं कि सेवा
और जवाबदेही के बीच खाई
गहरी हो गई है।
चेयरमैन अरविंद कुमार का साहसिक बयान
सराहनीय है, लेकिन असली
असर तभी दिखेगा जब
ज़मीनी अमला जागेगा और
सिस्टम की चुप्पी टूटेगी।
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश
कुमार समेत कई उद्यमियों
और आम नागरिकों ने
कहा कि “जब तक
मूलभूत सुविधाएं और आपूर्ति व्यवस्था
बेहतर नहीं होती, तब
तक किसी भी प्रकार
की दर वृद्धि को
न्यायसंगत नहीं ठहराया जा
सकता।“
वाराणसी की
जनसुनवाई
में
उपभोक्ता
फूंट
पड़े—बिजली
अफसरों
की
दलाली
में
जल
रही
है
न निजीकरण चाहिए, न महंगी बिजली—बनारस में उपभोक्ता हुए एकजुट
33122 करोड़ सरप्लस
फिर
भी
दर
बढ़ाने
की
तैयारी,
उपभोक्ता
परिषद
बोली—हाथ
में
आएगी
हथकड़ी
बिजली कंपनियों
का
घाटा
अफसरों
की
कमाई
का
जरिया
बना
: अवधेश वर्मा ने
निजीकरण के
नाम
पर
लूट
का
प्लान
बिजली अफसर
एसी
में
बैठे,
ट्रांसफार्मर
जलते
रहे—722
हादसे
फिर
भी
चुप्पी
लाखों कनेक्शन
लेट,
मुआवजा
नहीं
मिला—कानून
को
ताक
पर
रख
रही
बिजली
कंपनियां
उपभोक्ता परिषद
की
दो
टूक—निजीकरण
असंवैधानिक,
दरों
में
45% कटौती
होनी
चाहिए
सुरेश गांधी
33122 करोड़ का सरप्लस, फिर भी बढ़ोतरी क्यों?
अवधेश वर्मा ने बताया कि
प्रदेश के उपभोक्ताओं का
बिजली कंपनियों पर 33122 करोड़ रुपये सरप्लस जमा है। ऐसे
में बिजली दरों में 45 फीसदी
की कमी होनी चाहिए,
न कि बढ़ोतरी। उन्होंने
कहा कि निजीकरण का
मकसद घाटे की आड़
में मुनाफे वाली कंपनियों को
चुनिंदा पूंजीपतियों को सौंपना है,
जो उपभोक्ताओं के साथ अन्याय
है। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल-डिस्कॉम में लॉस रिडक्शन, स्मार्ट प्रीपेड मीटर और कैपेक्स में लगभग 15963 करोड़ खर्च हुआ। इसके बावजूद भी निजीकरण की बात चल रही है। लेकिन उपभोक्ता परिषद के रहते कोई भी निजीकरण नहीं कर सकता। उपभोक्ता परिषद हर अधिकारी की शत-प्रतिशत पोल खोलने को तैयार है। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17 के तहत सबसे पहले उत्तर प्रदेश सरकार व बिजली कंपनी को विद्युत नियामक आयोग से इसके लिए अनुमति लेना चाहिए था। पूर्वांचल-डिस्कॉम का निजीकरण विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131, 132, 133, 134 के अंतर्गत प्रस्तावित है, जो गलत है। यह धारा केवल राज्य विद्युत परिषद के विघटन के समय एक बार प्रयोग में लाई जाने वाली धारा है।
निजीकरण की प्रक्रिया गलत और असंवैधानिक
उपभोक्ता परिषद ने सुनवाई में
कहा कि विद्युत अधिनियम
2003 की धारा 17 के अनुसार उत्तर
प्रदेश सरकार को आयोग से
पूर्व अनुमति लेनी थी, जो
नहीं ली गई। इसके
विपरीत धारा 131 से 134 तक का उपयोग
किया जा रहा है,
जो सिर्फ एक बार राजकीय
विद्युत परिषद के विघटन के
समय के लिए लागू
की गई थीं। यह
पूरे प्रस्ताव को ही कानून
के विरुद्ध बनाता है।
कई आईएएस पर भ्रष्टाचार के आरोप, जल्द लगेगी हथकड़ी—उपभोक्ता परिषद
परिषद अध्यक्ष ने कहा कि
कुछ नौकरशाह निजीकरण के पीछे सक्रिय
हैं और उद्योगपतियों के
साथ सांठगांठ करके भ्रष्टाचार कर
रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट
शब्दों में कहा कि
"जिस दिन सच्चाई सामने
आएगी, उस दिन इन्हें
हथकड़ी लगेगी।" उन्होंने बिहार का उदाहरण देते
हुए कहा कि स्मार्ट
मीटर घोटाले में बिहार के
तत्कालीन ऊर्जा सचिव संजीव हंस
को जेल जाना पड़ा
था। वैसी ही स्थिति
यूपी में बन रही
है।
बिजली चोरी, जले ट्रांसफार्मर और दुर्घटनाओं का भी खुलासा
उपभोक्ता परिषद ने बताया कि
पूर्वांचल में हर साल
1628 करोड़ की बिजली चोरी
होती है। वर्ष 2022-23 में
जहां 80 ट्रांसफार्मर जले, वहीं 2023-24 में
यह संख्या 78 रही। यह तकनीकी
अक्षमता और लापरवाही का
उदाहरण है।
वर्ष
2023-24 में 722 विद्युत दुर्घटनाएं दर्ज की गईं,
जिनमें जान गंवाने वालों
की संख्या 250 से अधिक बताई
जा रही है।
मुआवजा अब तक क्यों नहीं मिला?
वर्ष 2022-23 में 18372, वर्ष 2023-24 में 51437 और वर्ष 2024-25 में
28509 उपभोक्ताओं को 30 दिन बाद कनेक्शन
मिला, जो नियमानुसार मुआवजा
योग्य है। बावजूद इसके
किसी को भी मुआवजा
नहीं दिया गया।
"बिजली नहीं है तो जवाब में मिलता है जय श्रीराम"
अवधेश वर्मा ने ऊर्जा मंत्री
पर कटाक्ष करते हुए कहा
कि जब उपभोक्ता बिजली
नहीं होने की शिकायत
करते हैं, तो उन्हें
जवाब मिलता है—“जय श्रीराम।”
उन्होंने कहा, "क्या यही रामराज्य
है?"
सरकारी बकाया 4489 करोड़, फिर घाटे की दुहाई क्यों?
उपभोक्ता परिषद ने खुलासा किया
कि सरकारी विभागों पर पिछले तीन
वर्षों में 4489 करोड़ रुपये का बकाया है
और 8115 करोड़ की सब्सिडी अभी
भी सरकार द्वारा विद्युत निगम को नहीं
दी गई है। फिर
यह कहना कि कंपनी
घाटे में है—एक
छलावा है। उन्होंने कहा कि कंपनियों
ने उपभोक्ताओं से बकाया राशि
के आधार पर लोन
भी लिया है, जबकि
यदि बकाया वसूला जाए तो बिजली
कंपनियां लाभ में आ
जाएंगी। उन्होंने तीखा आरोप लगाया
कि “कुछ आईएएस अफसर
निजीकरण के पीछे बुरी
तरह फड़फड़ा रहे हैं, क्योंकि
उन्हें उद्योगपतियों से सांठगांठ कर
लाभ पहुंचाना है। आने वाले
समय में इन्हीं अफसरों
के हाथ में हथकड़ी
होगी।” उन्होंने बिहार के पूर्व ऊर्जा
सचिव संजीव हंस के जेल
जाने का उदाहरण दिया।
छोटे दुकानदारों के लिए अलग स्लैब की मांग
परिषद ने मांग की
कि जो छोटे उपभोक्ता
1 किलोवाट तक का कनेक्शन
लेते हैं और 100 यूनिट
तक बिजली खपत करते हैं,
उनके लिए घरेलू श्रेणी
में अलग स्लैब बनाया
जाए, जिससे उन्हें बिजली चोरी के झूठे
मामलों से बचाया जा
सके। इसके बावजूद घाटे का हवाला
देकर निजीकरण करना जनहित के
साथ धोखा है।
जनसुनवाई में हुई उपभोक्ता एकजुटता
वाराणसी की जनसुनवाई में
उपभोक्ता संगठनों ने न सिर्फ
पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण
के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि
आर्थिक, कानूनी और तकनीकी आधारों
पर इसे गलत ठहराया।
अब यह देखना होगा
कि नियामक आयोग और राज्य
सरकार इस विरोध को
कैसे लेती है? बनारस
की यह सुनवाई इसलिए
भी खास रही क्योंकि
यह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री—तीनों का साझा क्षेत्र
है। बावजूद इसके निजीकरण की
प्रक्रिया को आगे बढ़ाना
सवालों के घेरे में
है। परिषद अध्यक्ष ने कहा—"यदि
उपभोक्ता परिषद संवैधानिक रूप से न
लड़ रही होती, तो
आज यहां अडानी का
कोई प्रतिनिधि आयोग के मंच
पर बैठा होता।" पूर्वांचल
के उपभोक्ताओं ने साफ कहा
है कि अब वे
चुप नहीं बैठेंगे। न
निजीकरण बर्दाश्त किया जाएगा और
न बिजली दरों में मनमानी
बढ़ोतरी। जनसुनवाई में जो तथ्य
सामने आए हैं, वे
सरकार और आयोग दोनों
के लिए चेतावनी हैं।
फैक्ट फोकस
33122 करोड़ : उपभोक्ताओं
का सरप्लस फिर भी बिजली
महंगी क्यों?
45% : प्रस्तावित कटौती
की मांग
4489 करोड़ : सरकारी
विभागों का बकाया
8115 करोड़ : बकाया
सब्सिडी सरकार से
722 विद्युत दुर्घटनाएं
: सिर्फ 2023-24 में
7% : बिजली चोरी
की दर पूर्वांचल में
जय श्रीराम” कहने वाले ऊर्जा मंत्री से उपभोक्ता परेशान
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