Tuesday, 17 April 2018

शादी-ब्याह के सीजन में कैश की किल्लत


शादी-ब्याह के सीजन में कैश की किल्लत
देश के कई हिस्सों में एक बार फिर कैश का संकट है। कुछ जगह तो ये हालात नोटबंदी के जैसे हो गए हैं। ग्रामीण इलाकों में फसल कटाई जोरों पर है। जबकि शादी-ब्याह का बाजार भी पूरे शवाब पर है। लेकिन लोगों के पास मजदूरों को देने के लिए पैसे है और नहीं मां बाप बेटी के हाथ पीले करने के लिए मार्केटिंग कर पा रहे है। क्योंकि एटीएम तो कब का खाली पड़े हैं। रही सही कसर बैंकों ने भी पूरी कर दी है। घंटों लाइन में लगने के बारी बारी आने पर बैंकों से यह कहकर लौटाया जा रहा है कि कैश खत्म हो गया है
सुरेश गांधी
फिरहाल, नोटबंदी के दो साल बाद एक बार फिर देश में कैश की जबरदस्त किल्लत है। लोग एटीएम और बैंक की लाइन में लगे हैं। लेकिन उन्हें कैश नहीं मिल रहा हैं। बैंकों की सबसे बड़ी चुनौती अक्षय तृतीया को लेकर है। क्योंकि बाजारों में इस दिन ज्यादा खरीदारी होगी। जबकि सरकार दावा पर किए जा रही है कुछ जगहों को छोड़कर कैश की किल्लत नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि अगर कैश की किल्लत नहीं हैं, बाजार में पर्याप्त कैश है तो ये दिक्कत क्यों हो रही है? क्यों लोग घंटों लाइन में लगने के बाद पैसे नहीं पा रहे है? दो दो हजार के नोट मार्केट से अचानक क्यों गायब होते चले जा रहे है? इसे कौन दबा कर रख रहा है? कौन कैश की कमी पैदा कर रहा है? ये दिक्कतें पैदा करने के लिए षडयंत्र है तो सरकार इसकी जांच क्यों नहीं करवा रही है? आखिर सरकार को क्यों कहना पड़ रहा है कि अब ज्यादा मात्रा में नोट छापे जाएंगे? अगर पर्याप्त मात्रा में कैश है तो फिर ज्यादा कैश छापने की जरूरत क्यों पड़ रही है? मतलब साफ है सरकार की दोनों बातें एक दूसरे की विरोधाभाषी हैं। उधर, बैंक कर्मचारियों की मानें तो केवल बिहार और यूपी के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को प्रति दिन 550 से 650 करोड़ कैश की जरूरत होती है। लेकिन उसे प्रति दिन सिर्फ बिहार में 125 यूपी में 175 करोड़ ही मिल पा रहे है। ऐसे में कैश की किल्लत होना स्वाभाविक है। मगर सरकार है जो मानने को तैयार ही नहीं हैं।
एक महीने पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों के एक सर्कल से दूसरे सर्कल में ज्यादा कैश ट्रांसफर करने पर रोक लगा दी थी। एनसीआर के बैंकों का कहना है कि इस समय उसे आरबीआई की ओर से उसे 200 और 100 के नोट मुहैया कराए जा रहे हैं। बैंकों का कहना है कि 2000 के नोट छोड़िए, 500 के नोट भी काफी कम मात्रा में रहे हैं। लेकिन यह जरूरत के सापेक्ष केवल 30 फीसदी ही है। यही वजह है कि त्योहारी सीजन होने की वजह से एक बार फिर एटीएम और बैंकों में नकदी निकालने के लिए लाइन लगने लगी हैं। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि देशभर में लोगों में केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित एफआरडीआई बिल का खौफ है, लिहाजा लोग बैंक में पैसा जमा करने की जगह कैश अपने पास रखने को तरजीह दे रहे हैं। उनका कहना है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया डिजिटल इकोनॉमी बनाने के लिए कैश की राशनिंग कर रहा है जिससे कई राज्यों में कैश का संकट देखने को मिल रहा है। 2000 रुपये और 500 रुपये की करेंसी सर्कुलेशन से बाहर जाने के चलते पैदा हुई है। इस तथ्य से यह साफ है कि देशभर में लोगों को बैंकिंग व्यवस्था में संभावित बदलावों का डर पनप रहा है और लोग अधिक से अधिक पैसा बड़ी करेंसी में घर पर रखने को तरजीह दे रहे हैं।
बता दें, सरकार दावा कर रही है कि देश में इस वक्त कैश की कोई कमी नहीं है। नोटबंदी के समय से ज्याद कैश अभी मौजूद है। नोटबंदी से चार दिन पहले चार नवंबर 2016 को 17.97 लाख करोड़ कैश मौजूद था। 31 मार्च 2017 को बाजार में 13.35 लाख करोड़ कैश की मौजूदगी बताई गई। 6 अप्रैल 2018 को 18.42 लाख करोड़ यानी नोटबंदी के समय के ज्यादा कैश बाजार में मौजूद है। बैंकिंग सचीव राजीव कुमार का दावा है कि देश के 85 प्रतिशत एटीएम काम कर रहे हैं। अगर उनके इस दावे में सच्चाई है तो बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश में कैश की भारी किल्लत कैसे हो गई है। लोगों की मानें तो कई ऐसे परिवार हैं जिनके पास रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं। जिन बैंकों और एटीएम में कैश है वहां लोगों की लंबी कतारें देखी जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक देश के 75 प्रतिशत से अधिक एटीएम में पैसा नहीं है, जिस कारण वे बंद पड़े हैं। लोग इस हालात को नोटबंदी जैसा बता रहे हैं। इस मामले पर राजनीति भी खूब हो रही है। कई विपक्षी दलों का कहना है कि बीजेपी ने यह संकट कर्नाटक चुनाव के चलते खड़ा किया है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक में 12 मई को चुनाव हैं, इसलिए वहां भी नकदी की मांग काफी बढ़ गई है। चुनाव के दौरान रैलियों में होने वाले खर्चे के चलते पार्टियों ने भारी मात्रा में कैश निकाला है, जिसका इस्तेमाल चुनाव में होगा। हालांकि, अब तक ऐसा कोई भी मामला सामने नहीं आया है. केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि फिलहाल रिजर्व बैंक के पास 1,25,000 करोड़ रुपये की नगदी है। समस्या बस कुछ असमानता की हालत बन जाने की वजह से हुई है। कुछ राज्यों में कम करेंसी है तो कुछ में ज्यादा। सरकार ने राज्यवार समितियां बनाई हैं और रिजर्व बैंक ने भी अपनी एक कमिटी बनाई है ताकि एक से दूसरे राज्य तक नकदी का ट्रांसफर हो सके। रिजर्व बैंक पैसों की राज्यों में असमानता को खत्म कर रहा है। एक राज्य से दूसरे राज्य में पैसे पहुंच रहे हैं। हो जो भी सच तो यही है कि असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में लोगों के जरूरत से ज्यादा नकदी निकालने की वजह से यह संकट खड़ा हुआ है। यह कैश संकट एक झटके में देशभर के एटीएम से हुई निकासी के चलते पैदा हुआ है। आर्थिक मामलों के सचिव ने बताया कि पिछले 15 दिनों में सामान्य से तीन गुना ज्यादा नोटों की निकासी हुई है। सरकार के मुताबिक जहां आम तौर पर एक महीने के दौरान 20 हजार करोड़ करेंसी की खपत होती है, वहीं अप्रैल के पहले 12-13 दिनों के दौरान लगभग 45 हजार करोड़ रुपये की निकासी अलग-अलग तरीकों से की जा चुकी है। इन आंकड़ों के बावजूद केन्द्र सरकार ने दावा किया है कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में करेंसी मौजूद है और अगले 2 से 3 दिनों के अंदर स्थिति को सामान्य कर लिया जाएगा।
                गौर करने वाली बात यह है कि प्रस्तावित एफआरडीआई बिल के जरिए केन्द्र सरकार सभी वित्तीय संस्थाओं जैसे बैंक, इंश्योरेंस कंपनी और अन्य वित्तीय संगठनों का इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड के तहत उचित निराकरण करना चाह रही है। इस बिल को कानून बनाकर केन्द्र सरकार बीमार पड़ी वित्तीय कंपनियों को संकट से उबारने की कोशिश करेगी। इस बिल की जरूरत 2008 के वित्तीय संकट के बाद महसूस की गई जब कई हाई-प्रोफाइल बैंकरप्सी देखने को मिली थी। इसके बाद से केन्द्र सरकार ने जनधन योजना और नोटबंदी जैसे फैसलों से लगातार कोशिश की है कि ज्यादा से ज्यादा लोग बैंकिंग व्यवस्था के दायरे में रहें। इसके चलते यह बेहद जरूरी हो जाता है कि बैंकिंग व्यवस्था में शामिल हो चुके लोगों को बैंक या वित्तीय संस्था के डूबने की स्थिति में अपने पैसों की सुरक्षा की गारंटी रहे। इस बिल में एक रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन का प्रावधान है जिसे डिपॉजिट इंश्योरेंस और क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन की जगह खड़ा किया जाएगा। यह रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन वित्तीय संस्थाओं के स्वास्थ्य की निगरानी करेगा और उनके डूबने की स्थिति में उसे बचाने का प्रयास करेगा। वहीं जब वित्तीय संस्था का डूबना तय रहेगा तो ऐसी स्थिति में उनकी वित्तीय देनदारी का समाधान करेगा। गौरतलब है कि रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन का एक अहम काम ग्राहकों को डिपॉजिट इंश्योरेंस देने का भी है हालांकि अभी इस इंश्योरेंस की सीमा निर्धारित नहीं की गई है। मौजूदा प्रावधान के मुताबिक किसी बैंक के डूबने की स्थिति में ग्राहक को उसके खाते में जमा कुल रकम में महज 1 लाख रुपये की गारंटी रहती है और बाकी पैसा लौटाने के लिए बैंक बाध्य नहीं रहते। प्रस्तावित एफआरडीआई बिल में फिलहाल सरकार ने गांरटी की इस रकम पर अभी कोई फैसला नहीं लिया है।

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