अब नहीं होती ‘राजीव गांधी’ के जमाने वाली ‘लूट’?
देश
की
राजनीति
का
ऐसा
भी
दौर
था,
जब
हर
तरफ
लूट
मची
थी।
बगैर
कमीशन
एवं
चढ़ावा
के
जनकल्याणकारी
योजनाओं
का
लाभ
आम
जनमानस
तक
पहुंच
ही
नहीं
पाता
था।
सड़क
से
लेकर
हर
विभागों
के
अधीन
होने
वाली
निर्माण
ईकाईयां
काम
शुरु
होने
से
पहले
योजना
की
85 फीसदी
राशि
का
बंदरबांट
हो
जाता
था।
हाल
यहां
तक
पहुंच
गया
कि
तत्कालीन
प्रधानमंत्री
राजीव
गांधी
को
आम
जनमानस
में
कहना
पड़ा,
‘सरकार
द्वारा
विकास
कार्यो
के
लिए
भेजी
गयी
राशि
की
85 फीसदी
मातहतों
के
जेब
में
चले
जाते
थे।
लेकिन
अब
इस
पर
हमने
पूरी
तरह
रोक
लगा
दी
है।
ये
दावे
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी
ने
वाराणसी
में
चल
रहे
प्रवासी
भारतीय
सम्मेलन
में
की।
फिरहाल,
कुछ
हद
तक
इस
दावे
में
हकीकत
भी
है
लेकिन
हमें
यह
नहीं
भूलना
चाहिए
कि
तहसील
से
लेकर
थानों
में
अब
बड़े
पैमाने
पर
घुसखोरी
जारी
है,
इसके
सफाए
बगैर
नए
भारत
की
कल्पना
अधुरी
है।
ऐसे
में
सवाल
यही
है
क्या
अब
नहीं
होती
राजीव
गांधी
के
जमाने
वाली
लूट?
सुरेश गांधी
बेशक, साढ़े चार
साल पूर्व तक
कांग्रेस सरकार में 2004-14 के
दौरान, देश में
भ्रष्टाचार चरम पर
था। एक घोटाले
की तफतीस खत्म
भी नहीं होती,
दुसरा स्कैम सामने
आ जाता था।
चाहे वो टू
जी हो या
कोयला स्कैम से
लेकर कॉमनवेल्थ तक
घोटाले थमने के
नाम ले रहे
थे। मीडिया की
सुर्खिया बनने से
कई मंत्री, विधायक,
आफिसर व ठेकेदार
जेल भी गए।
इसके बावजूद भ्रष्टाचार
की कड़िया फिर
से मीडिया की
हेडलाइन बन जाया
करती थी। लेकिन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
मई 2014 में जब
देश की बागडोर
संभाली थी, तभी
उन्होंने ऐलान कर
दिया था कि
उनकी सरकार की
नीति भ्रष्टाचार को
लेकर जीरो टॉलरेंस
की है। मोदी
सरकार ने एक-एक कर
भ्रष्टाचार के सभी
रास्तों को बंद
कर दिया है।
सरकारी पैसे की
लूट अब नहीं
हो पाती है।
पहले सरकारी मदद
और सब्सिडी, पेंशन
आदि का पैसा
अपात्रों के हाथों
में चला जाता
था, लेकिन अब
ऐसा नहीं है।
डायरेक्ट बैलेंस ट्रांसफर यानि
डीबीटी योजना के बाद
से केंद्र सरकार
द्वारा भेजा गया
पैसा सीधे जरूरतमंद
के हाथों में
पहुंचने लगा है।
मोदी सरकार ने
डीबीटी के जरिए
सन 2014 से अबतक
5 लाख करोड़ रुपए
से ज्यादा की
राशि आम लोगों
के खातों में
भेजी है। डीबीटी
मिशन के सरकारी
पोर्टल के मुताबिक
अबतक 5,07,155 करोड़ रुपए
डीबीटी के जरिए
सीधे लोगों के
बैंक खातों में
डाले गए है।
यह अलग
बात है कि
अब भी थानों,
तहसीलों, प्रखंड क्षेत्रों में
खुलेआम रिश्वतखोरी का बाजार
चल रहा है।
अधिकारी, प्रधान, वीडियों व
और वार्ड सदस्यों
द्वारा चाहे वो
निर्माण हो या
पुलिसिया उत्पीड़न हो अन्य
मसले बिचौलियों के
माध्यम से आम
जनता का शोषण
जारी है। शौचालय
निर्माण हो या
आवास योजना समेत
अन्य कल्याणकारी योजना
सरकारी लाभ के
नाम पर खुलेआम
2000 रूपया की मांग
की जा रही
है और इस
रूपये में सभी
का कमीशन बंधा
हुआ है। ऐसे
व्यक्तियों को शौचालय
प्रोत्साहन राशि का
भुगतान किया गया
है जो शौचालय
बनाये ही नहीं
या जिनके पास
शौचालय है हीं
नहीं। या यूं
कहे सरकारी विभागों
में भ्रष्टाचार का
वर्चस्व कायम है।
तहसील हो अथवा
ब्लाक या थाने
नियम से काम
कराने मे महीनों
लग जाते हैं।
लेकिन सुविधा शुल्क
देते ही काम
में तेजी आ
जाती है। जिले
के कई सरकारी
विभागों में बिना
लेन देन के
कोई काम आगे
नहीं बढ़ता है।
2009 में सर्वोच्च न्यायालय में
कालेधन पर एक
लोकहित याचिका दायर की
गई। याचिका में
सर्वोच्च न्यायालय से गुहार
लगाई गई कि
देश में पैदा
हो रहे कालेधन
को जिसे विदेशी
बैंकों में जमा
किया जा रहा
है, उसकी छानबीन
की जाए और
उस पर रोक
लगाने के लिए
आवश्यक कदम उठाए
जाएं। इस याचिका
पर, 2011 में सर्वोच्च
न्यायालय ने तब
की केन्द्र की
कांग्रेस सरकार को कालेधन
के बारे में
पता लगाने के
लिए एसआईटी गठित
करने का आदेश
दिया। लेकिन तत्कालीन
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने
कुछ विशेष लोगों
के दबाव में
एसआईटी का गठन
नहीं किया। 26 मई,
2014 को नई सरकार
बनने के साथ
ही प्रधानमंत्री मोदी
ने पहली कैबिनेट
बैठक मे ही
न्यायाधीश एम बी
शाह की अध्यक्षता
में एसआईटी का
गठन कर दिया।
एसआईटी अबतक सरकार
और सर्वोच्च न्यायालय
को कई रिपोर्ट्स
के साथ कालेधन
के मालिकों की
लिस्ट दे चुकी
है। इन जानकारियों
के ही आधार
पर सरकार ने
कालेधन पर नकेल
कसने के लिए
कई सारे कदम
उठाये हैं।
बता दें,
2014 तक देश के
केन्द्रीय मंत्रालयों के कार्यालय
और अधिकारियों में
जनता के प्रति
संवेदनहीनता चरम पर
थी। सरकारी कार्यालयों
में अस्वच्छता और
अनुशासनहीनता का आलम
था। प्रधानमंत्री मोदी
ने इस स्थिति
में जबरदस्त परिवर्तन
ला दिया है।
बायोमेट्रिक प्रणाली ने समय
पर कार्यालय पहुंचने
का अनुशासन पैदा
किया है। भ्रष्टाचार
के खिलाफ प्रधानमंत्री
की एग्रेसिव पहल
से आधार नंबर
एक के बाद
एक कई योजनाओं,
सुविधाओं और सेवाओं
के साथ जोड़ा
जा रहा है,
जिससे देश में
फर्जीवाड़ा, भ्रष्टाचार और कालेधन
में काफी कमी
आई है। सरकार
के प्रयासों से
कालेधन और भ्रष्टाचार
की लड़ाई में
आधार कारगर हथियार
बन चुका है।
हकीकत में आजादी
के बाद से
ही लूट-खसोट
का पर्याय बनी
हुई सरकारी योजनाओं
के लिए आधार
आज गेम चेंजर
साबित हो रहा
है। यह सोचने
की बात है
कि अगर कांग्रेस
ने मोदी सरकार
की तरह शुरू
से ऐसे कदम
उठाए होते तो
भारत दुनिया के
विकसित देशों में शुमार
होता। शायद यही
वजह भी था
जब पूर्व प्रधानमंत्री
(राजीव गांधी) ने कहा
था कि अगर
सरकार एक रुपये
भेजती है तो
15 पैसे ही गांव
में पहुंचता है।
अफसोस है कि
जिस पार्टी ने
कई साल तक
राज किया, उसी
पार्टी के प्रधानमंत्री
भी कुछ नहीं
कर पाए। लेकिन
मोदी सरकार ने
तकनीक का इस्तेमाल
कर इस लूट
को खत्म किया
है। अब सब्सिडी
का सारा हिस्सा
सीधे बैंक अकाउंट
के जरिए लोगों
को सीधे पहुंचते
हैं। जबकि अगर
मोदी पुरानी नीति
से पहुंचते तो
करीब 4.5 लाख करोड़
से अधिक की
संपत्ति की लूट
हो जाती। मोदी
का आरोप भी
है कि कांग्रेस
के सरकारों में
काम करने की
नीयत नहीं थी।
लेकिन वे कर
रहे है। मोदी
का दावा है
कि पिछले साढ़े
चार साल में
हमारी सरकार ने
करीब-करीब 7 करोड़
ऐसे फर्जी लोगों
को पहचानकर, उन्हें
व्यवस्था से हटाया
है। ये 7 करोड़
लोग वो थे,
जो कभी जन्मे
ही नहीं थे,
जो वास्तव में
थे ही नहीं।
उन्होंने कहा कि
ये 7 करोड़ लोग
सरकारी सुविधाओं का लाभ
ले रहे थे।
पूरे ब्रिटेन में,
फ्रांस में, पूरे
इटली में जितने
लोग हैं, ऐसे
अनेक देशों की
जनसंख्या से ज्यादा
वो लोग थे,
जो सिर्फ कागजों
में जी रहे
थे और कागजों
में ही सरकारी
सुविधाओं का लाभ
ले रहे थे।
डीबीटी आंकड़ों के
अनुसार इस साल
डीबीटी के जरिए
सबसे ज्यादा 27,417 करोड़
रुपए प्रधानमंत्री आवास
योजना (ग्रामीण), करीब 22,916 करोड़
रुपए पहल योजना,
मनरेगा में 16,349 करोड़ रुपए,
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में
7378 करोड़ रुपए, सामाजिक सुरक्षा
योजनाओं में 3953 करोड़ रुपए
और स्कॉलरशिप स्कीमों
में 3033 करोड़ रुपए
सीधे बैंक खातों
में भेजे गए
हैं। इसके अलावा
सरकार ने 54,906 करोड़
रुपए बाकि अन्य
योजनाओं के जरिए
लोगों के खाते
में भेजी हैं।
मोदी सरकार ने
बीते चार वर्षों
में भ्रष्टाचार और
सरकारी धन की
लूट-खसोट रोकने
के लिए कई
कदम उठाए हैं।
फिलहाल 54 मंत्रालयों की 434 योजनाएं
डीबीटी के दायरे
में है। आधार
से जुड़ी इस
योजना के जरिए
मार्च, 2018 तक केंद्र
सरकार को 90 हजार
करोड़ रुपये से
अधिक की बचत
हुई है। यह
वो रकम है,
जो पहले जरूरतमंदों
के हाथों में
न पहुंच कर
अपात्रों के हाथों
में जाता था
और भ्रष्टाचार की
भेंच चढ़ जाता
था। डीबीटी प्रकोष्ठ
ने आरटीआई के
तहत पिछले चार
वर्षों की मांगी
गई सूचना में
यह जानकारी दी
है। केंद्र सरकार
एलपीजी, खाद्यान्न, खाद, कई
समाजिक पेंशन समेत 400 से
अधिक योजनाओं का
पैसा डीबीटी के
जरिए सीधे लाभार्थियों
के खातों में
ट्रांसफर करता है।
मार्च, 2018 तक केंद्र
सरकार को एलपीजी
सब्सिडी में 42,275 करोड़, खाद्यान्न
सब्सिडी में
29,708 करोड़, मनरेगा में 16,073 करोड़,
एनएसएपी में 438.60 करोड़, अल्पसंख्यक
छात्रवृत्ति में
238.27 करोड़, अन्य मंत्रालयों
की योजानाओं में
1120.69 करोड़ यानी 90,012.71 करोड़ सरकार
ने बचाएं है।
इन योजनाओं को
डीबीटी से जोड़ने
से करीब पौने
चार करोड़ फर्जी
और निष्क्रिय एलपीजी
कनेक्शन हटा दिए
गए। 2.75 करोड़ फर्जी
राशन कार्ड रद्द
किए गए, छात्रवृत्ति
और सामाजिक पेंशन
पाने वाले लाखों
फर्जी लोगों को
भी हटाने में
सफलता मिली। वित्त
वर्ष 2017-18 में केंद्र
सरकार को डीबीटी
से 32,984 करोड़ रुपये
का लाभ हुआ
है।
बैंकिंग व्यवस्था के
माध्यम से लेनदेन
होने से, पूरी
अर्थव्यवस्था में रुपये
का प्रवाह पारदर्शी
होता है, लेकिन
2014 तक देश में
बहुत ही कम
लोगों का बैंकों
में खाता होता
था, जिसकी वजह
से व्यवस्था में
पूरा लेनदेन पूरी
नगद राशि में
ही होता। नगद
में लेन देन
होने से कालाधन
आसानी से पैदा
हो रहा था
और आर्थिक व्यवस्था
में भ्रष्टाचार चरम
पर था, लेकिन
कांग्रेस की मनमोहन
सरकार के पास
इसे नियंत्रित करने
के लिए राजनीतिक
इच्छाशक्ति नहीं थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
28 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री
जनधन योजना का
शुभारंभ करके, नगद में
लेनदेन की स्थिति
को बदल दिया।
आज पूरे देश
में लगभग 32 करोड़
से अधिक वयस्कों
के पास बैंक
खाता हैं। कालाधन
पैदा करने वाले
स्रोतों को बंद
करने के लिए
कानून बनाया। प्रधानमंत्री
मोदी ने एसआईटी
के गठन के
साथ -साथ देश
में उन स्रोतों
को जहां से
कालाधन पैदा हो
रहा था। नगद
में लेनदेन पर
लगाम लगाने के
लिए नये कानूनों
को संसद से
पारित करवाया। काले
धन पर लगाम
लगाने के लिए
आईडीएस इनकम डिक्लेरेशन
स्कीम 1 जून, 2016 से लागू
किया। यह स्कीम
30 सितंबर 2016 तक जारी
रही। इस योजना
के माध्यम से
ही देश में
लोगों ने हजारों
करोड़ रुपये का
कालाधन घोषित किया। रियल
एस्टेट में कालेधन
पर लगाम लगाने
के लिए इनकम
टैक्स एक्ट में बदलाव
किया गया। इस
बदलाव ने रियल
एस्टेट में 20 हजार से
ज्यादा के नगद
लेनदेन पर रोक
लगा दी। 20 हजार
से अधिक नगद
लेनदेन करने
पर 20 फीसदी जुर्माना
लगाने का प्रावधान
किया गया। 1 लाख
रुपये से अधिक
की संपत्ति की
खरीददारी या बिक्री
पर पैन देना
अनिवार्य हो चुका
है।
काले धन
पर अंकुश लगाने
के लिए बेनामी
लेनदेन (प्रतिबंध) संशोधन विधेयक
को संसद में
पास किया गया।
1 नवंबर 2016 को इस
कानून को लागू
कर दिया गया।
इससे रियल एस्टेट
और सोने की
बेनामी खरीदारी पर लगाम
लगी। कानून ने विदेशों
में काला धन
छिपाने वालों को दस
साल की
सजा और नब्बे
फीसदी का जुर्माना
कर दिया। अब
इनकम टैक्स रिटर्न
फाइल करने में
संपत्ति की जानकारी
छिपाने पर सात
साल की सजा
दी जाती है।
08 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री
मोदी ने ऐतिहासिक
निर्णय लेते हुए
500 और 1000 रुपये के नोट
को बंद करने
का निर्णय लिया।
कालेधन पर, प्रधानमंत्री
मोदी का यह
सबसे घातक स्ट्राइक
था। इसने देश
में जाली नोटों
के कारोबार को
पूरी तरह से
बंद कर दिया।
कालेधन और जाली
नोटों से चलने
वाले उग्रवादी और
आतंकवादी संगठनों की कमर
टूट गई। नोटबंदी
ने देश की
तीन लाख फर्जी
कंपनियों को बेनकाब
कर दिया। इन
कंपनियों का पता
चलते ही सरकार
ने इन्हें खत्म
कर दिया और
कंपनियों के निदेशकों
को आजीवन ब्लैकलिस्ट
कर दिया। नोटबंदी
ने देश में टैक्स
देने वालों की
संख्या को दोगुना
कर दिया। आज
देश में सात
करोड़ से अधिक
लोग टैक्स देते
हैं, जबकि अर्थशास्त्री
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की
कांग्रेस सरकार के दौरान
मात्र तीन करोड़
लोग टैक्स देते
थे। देश में
डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा
देने से काफी
हद तक लूट
खसोट पर नकेल
कसा जा सका
है। मोदी सरकार
ने कोयला, स्पेक्ट्रम,
जमीन और अयस्कों
की नीलामी में
जिस तरह से
लाखों करोड़ रुपये
का घोटाला किया
था, उसकी पुनरावृत्ति
को खत्म करने
के लिए प्रधानमंत्री
मोदी ने प्राकृतिक
संसाधनों की नीलामी
को ऑनलाइन कर
दिया। व्यवस्था पारदर्शी
बन चुकी है।
अब सरकार के
विभिन्न विभागों में सामानों
की खरीदारी के
लिए ऑनलाइन मार्केट
ळमड बना चुका
है, जिस पर
लाखों करोड़ की
खरीददारी होती है
और सरकारी कामों
में बिचौलियों के
राज का अंत
हो चुका है।
पिछले साल के
मुकाबले इस साल
भारत में घूस
देने के मामलों
में बढ़ोतरी हुई
है। पिछले एक
साल में देश
के 56 फीसदी लोगों
ने या तो
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष
तरीके से घूस
दी है। ये
दावा ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल
इंडिया एंड लोकल
सर्किल्स ने अपनी
एक रिपोर्ट में
किया है। ये
सर्वे 1.60 लाख प्रतिक्रियाओं
के आधार पर
किया गया है।
दुनियां भर में
भ्रष्टाचार के इंडेक्स
में भारत का
स्थान 79 से फिसलकर
81वें नंबर पर
पहुंच गया है।
पिछले साल 45 फीसदी
लोगों ने देश
में प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष तरीके से अपने
काम के लिए
रिश्वत दी थी।
इस साल ये
आंकड़ा बढ़कर 56 फीसदी
पर पहुंच गया।
इस सर्वे के
अनुसार, 58 फीसदी लोगों का
कहना है कि
उनके राज्य में
एंटी करप्शन हेल्पलाइन
जैसी कोई चीज
नहीं है। वहीं
33 फीसदी लोग तो
यहां तक कह
रहे हैं कि
वह इस तरह
की किसी भी
हेल्पलाइन से परिचित
नहीं हैं। सर्वे
में सबसे ज्यादा
नकद लेन देन
का इस्तेमाल हुआ
है। कुल रिश्वत
में 39 फीसदी रकम नकद
दी गई। वहीं
25 फीसदी एजेंट द्वारा घूस
दी गई. इसमें
सबसे ज्यादा घूस
पुलिसवालों को दी
गई। कुल घूस
में 25 फीसदी रिश्वत की
रकम पुलिस वालों
की दी गई।
इसके बाद नगर
निगम, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन
और दूसरे प्राधिकरण
में घूस दी
गई. 2017 में 30 फीसदी घूस
पुलिसवालों ने ली
थी। 27 फीसदी रिश्वत नगर
निगम और प्रॉपर्टी
रजिस्ट्रेशन ऑफिस में
ली गई। सर्वे
बताता है कि
पिछले साल और
इस साल रिश्वत
देने वाले 36 फीसदी
लोगों का कहना
था कि अपना
काम कराने का
यही एकमात्र तरीका
है। पिछले साल
जहां 43 फीसदी लोग कह
रहे थे कि
अपना काम कराने
के लिए वह
रिश्वत नहीं देते
तो इस साल
ऐसे लोगों का
आंकड़ा 39 फीसदी ही था।
इस रिपोर्ट में
ये भी सामने
आया है कि
लोगों को उन
सरकारी दफ्तरों में भी
रिश्वत देनी पड़ी
जहां पर सीसीटीवी
कैमरे लगे थे.
करीब 13 फीसदी लोगों ने
तो ऐसी जगहों
पर इस साल
घूस देने की
बात स्वीकारी भी
है।
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