‘कुंभ’ में ‘मौनी अमावस्या’ पर होगा ‘देवताओं’ का ‘जमघट’
मान्यता है कि
संगम पर स्नान
करने स्वयं देवी-देवता आते है।
वह दिन माघ
महीने में आने
वाली पहली अमावस
की होती है,
जिसे मौनी अमावस्या
के नाम से
जाना जाता है।
इस अमावस्या की
खास बात है
कि इस दिन
मौन रहकर पूजा-पाठ और
व्रत किया जाता
है। इस बार
यह अमावस्या 4 फरवरी
को है। मान्यता
है कि इस
दिन शांति के
लिए तर्पण किया
जाता है। इस
दिन चंद्रमा मकर
राशि में सूर्य,
बुध, केतु के
साथ हैं और
वृहस्पति वृश्चिक राशि में
हैं, जिससे अर्धकुंभ
का प्रमुख शाही
स्नान भी बन
रहा है। इस
दिन सुबह 7 बज
कर 57 मिनट से
पूरे दिन सूर्यास्त
तक महोदय योग
रहेगा। इस अवधि
में स्नान-दान
करना अति शुभ
फल प्रदान करेगा।
इस दिन मौन
रह कर यमुना,
गंगा, मंदाकिनी आदि
पवित्र नदियों में स्नान
करना चाहिए। मन
ही मन अपने
इष्टदेव गणेश, शिव, हरि
का नाम लेते
रहना चाहिए। अगर
चुप रहना संभव
नहीं है, तो
कम से कम
मुख से कटु
शब्द न निकालें।
जिनकी वृश्चिक राशि
दुर्बल है, उन्हें
सावधानी से स्नान
करना चाहिए
सुरेश गांधी
इस बार
71 वर्षों बाद सोमवती
व मौनी अमावस्या
पर्व 4 फरवरी को एक
साथ आ रहे
रहा हैं। इसी
दिन कुंभ मेला
का दूसरा शाही
स्नान है। इस
दिन गृहों के
चलते सोमवती व
मौनी अमावस्या का
योग बन रहा
है। इस योग
में गंगा स्नान,
दान पुण्य करने
से शनि और
केतु से संबंधित
कष्टों से मुक्ति
मिलेगी। इस दिन
श्रवण नक्षत्र, सर्वार्थ
सिद्धि योग की
भी निष्पति हो
रही है। हालांकि
यह सामान्य स्थिति
में भी बनती
है, लेकिन कुंभ
होने से इसका
महत्त्व और अधिक
बढ़ गया है।
पंड़ितों के मुताबिक
71 वर्ष पूर्व यानि फरवरी
1948 में कुंभ के
दौरान ऐसा महोदय
योग बना था।
इस महोदय योग
के दिन अमृत
का ग्रह चन्द्रमा
अपने ही नक्षत्र
में होगा। देव
गुरु और दैत्य
गुरु के बीच
सुंदर संबंध बने
रहेंगे। वहीं राहु
और बृहस्पति एक
साथ होंगे और
शनि व सूर्य
के संबंध की
वजह से मौनी
अमावस्या पर्व लाभकारी
सिद्ध होगा। मान्यताओं
के अनुसार मौनी
अमास्या के दिन
पवित्र संगम में
देवताओं का निवास
होता है। इसलिए
इस दिन गंगा
स्नान का विशेष
महत्व है। इस
दिन पितरों की
शांति के लिए
तर्पण किया जाता
है। कहा जाता
है कि यह
दिन मुनियों के
लिए अनंत पुण्यदायक
है। इस दिन
मौन रहने से
पुण्य लोक, मुनि
लोक की प्राप्ति
होती है। अमावस्या
के दिन काल
विशेष रूप से
प्रभावी रहता है।
इस दिन चांद
पूरी तरह अस्त
रहता है। इस
दिन को माघ
अमावस्या और दर्श
अमावस्या के नाम
से भी जाना
जाता है।
इसी दिन
कुंभ के पहले
तीर्थाकर ऋषभ देव
ने अपनी लंबी
तपस्या का मौन
व्रत तोड़ा था
और संगम के
पवित्र जल में
स्नान किया था।
मौनी अमावस्या का
बहुत पवित्र दिन
होता है। श्रवण
नक्षत्र होने से
पवित्र महोदय योग बना
है। इस दिन
मौन व्रत धारण
किया जाता है। माघ
अमावस्या के दिन
भगवान मनु का
जन्म हुआ था।
मौनी अमावस्या जैसे
की नाम से
ही स्पष्ट होता
है, इस दिन
मौन रहकर व्रत
रखना चाहिए। इस
दिन सूर्य नारायण
को अर्घ्य देने
से गरीबी और
दरिद्रता दूर होती
है। साथ ही
सारी बीमारी और
पाप दूर हो
जाते हैं। मौन
व्रत का मतलब
सिर्फ मौन रहना
नहीं है। मौन
व्रत का पालन
तीन तरीकों से
किया जाता है।
एक वाणी पर
नियंत्रण रखना, मीठी वाणी
बोलना, किसी से
स्वार्थवश कड़वी बात
ना बोलना। दूसरा
कारण है कि
बिना दिखावा किए
लोगों की सेवा
करना। सेवा करते
वक़्त सेवा की
तारीफ या दिखावा
ना करें। तीसरा
कारण है मौन
व्रत का सच्चे
मन से ईश्वर
की भक्ति में
लीन रहना। इससे
संतान और पति
की आयु बढ़ती
है और जीवन
में खुशहाली आती
है। माघ मास
स्नान की अमावस्या
का बहुत महत्त्व
बढ़ गया है।
खासकर यह अमावस
सोमवार और चन्द्रमा
के श्रवण नक्षत्र
में पड़ गयी
है। स्नान करने
का बड़ा लाभ
मिलता है। सारे
कष्ट मिट जाते
हैं, किस्मत चमकती
है। इसके अलावा
तिलों से बने
हुए पदार्थ रेवडियां,
गजक, लड्डू, आंवला,
गर्म कपड़े आदि
दान किया जाता
है और दक्षिणा
भी दी जाती
है। इस दिन
शिव जी और
विष्णु जी की
पूजा एक साथ
करनी चाहिए। सोमवार
का स्वामी चंद्रमा
होता है और
चंद्रमा जल का
कारक है। इसलिए
किसी पवित्र जल
से स्नान करने
से बहुत लाभ
मिलता है। जिन
महिलाओं को अखंड
सौभाग्य पति का
सुख और पति
की दीर्घायु चाहिए
और संतान की
तरक्की या संतान
का विवाह चाहते
हैं, उन्हें यह
व्रत रखना चाहिए
और पवित्र जल
से स्नान कर
दान करना चाहिए।
मौनी अमावस्या
के पर्व पर
मकर राशि में
चार ग्रहों की
युति विशेष फलदायी
है। मौनी अमावस्या
का अमृतमय स्नान
मकर राशि में
सूर्य, चन्द्र, बुध, केतु,
इन चारों ग्रहों
के सानिध्य में
होगा। शनि, शुक्र
धनु राशि में,
गुरु वृश्चिक राशि
में, राहु कर्क
राशि में एवं
मंगल मीन राशि
में स्थित होकर
तीर्थराज प्रयाग में इस
पर्व पर आकाशीय
अमृत वर्षा करेंगे।
माघमास की अमावस्या
तिथि, माघ के
महीने का सबसे
बड़ा स्नान पर्व
है। वैसे भी
मौनी अमावस्या के
दिन सूर्य चन्द्र
की मकर राशि
में युति के
सानिध्य में स्नान
करना महत्वपूर्ण माना
गया है। अनेक
वर्षों बाद ऐसा
शुभ अवसर आया
है जब सोमवती
अमावस्या पर सारे
ग्रह नक्षत्र कल्याणकारी
भूमिका में हैं
जो मानव की
हर कामना को
पूर्ण करेंगे। मौनी
अमावस्या का स्नान-दान इस
बार विशेष पुण्यदायक
रहेगा। माघ मास
की अमावस्या को
ब्रह्मा जी और
गायत्री की विशेष
अर्चना के साथ-साथ देव
पितृ तर्पण का
विधान है। सतयुग
में तपस्या को,
त्रेतायुग में ज्ञान
को, द्वापर में
पूजन को और
कलियुग में दान
को उत्तम माना
गया है परन्तु
माघ का स्नान
सभी युगों में
श्रेष्ठ है। माघ
मास में गोचरवश
जब भगवान सूर्य,
चन्द्रमा के साथ
मकर राशि पर
आसीन होते हैं,
तो ज्योतिषशास्त्र उस
काल को मौनी
अमावस्या की संज्ञा
देता है। सूर्य
की उत्तरायण गति
और उसकी प्रथम
अमा के रूप
में मौनी अमावस्या
का स्नान एक
विशेष प्रकार की
जीवनदायिनी शक्ति प्रदान करता
है। इस दिन
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान
करके देव ऋषि
और पितृ तर्पण
करके यथाशक्ति तथा
शेष दान कर
मौन धारण करने
से अनंत ऊर्जा
की प्राप्ति होती
है। शास्त्रों में
ऐसा वर्णन मिलता
है कि मौनी
अमावस्या के व्रत
से व्यक्ति के
पुत्री-दामाद की आयु
बढ़ती है और
पुत्री को अखण्ड
सौभाग्य की प्राप्ति
होती है। सौ
अश्वमेघ एवं हजार
राजसूर्य यज्ञ का
फल मौनी अमावस्या
में त्रिवेणी संगम
स्नान से मिलता
है। मौनी अमावस्या
के दिन गंगा
स्नान के पश्चात
तिल, तिल के
लड्डू, तिल का
तेल, आंवला, वस्त्र,
अंजन, दर्पण, स्वर्ण
तथा दूध देने
वाली गौ आदि
का दान किया
जाता है। 4 फरवरी
को सोमवार के
दिन सूर्योदय से
लेकर रात को
2 बज कर 44 मिनट
तक इस व्रत
की पूजा का
समय रहेगा। मान्यता
है कि यह
योग पर आधारित
महाव्रत है। इस
मास को भी
कार्तिक माह के
समान पुण्य मास
कहा गया है।
इसी महात्म्य के
चलते गंगा तट
पर भक्त जन
एक मास तक
कुटी बनाकर कल्पवास
करते हैं। इस
तिथि को मौनी
अमावस्या के नाम
से इसलिए जाना
जाता है क्योंकि
ये मौन अमवस्या
है और इस
व्रत को करने
वाले को पूरे
दिन मौन व्रत
का पालन करना
होता है। इसलिए
यह योग पर
आधारित व्रत कहलाता
है। शास्त्रों में
वर्णित भी है
कि होंठों से
ईश्वर का जाप
करने से जितना
पुण्य मिलता है,
उससे कई गुणा
अधिक पुण्य मन
का मनका फेरकर
हरि का नाम
लेने से मिलता
है। इसी तिथि
को संतों की
भांति चुप रहें
तो उत्तम है।
अगर संभव नहीं
हो तो अपने
मुख से कोई
भी कटु शब्द
न निकालें।
इन उपायों से घर में सुख-समृद्धि आएगी
इस दिन
भगवान विष्णु के
मंदिर में झंडा
लगाएं। ऐसा करने
से भगवान के
साथ-साथ माता
लक्ष्मी की कृपा
भी मिलेगी। इस
दिन शनि भगवान
पर तेल चढ़ाएं।
इसके साथ ही
काला तिल, काली
उड़द, काला कपड़ा
का दान भी
दें। शिवलिंग पर
काला तिल, दूध
और जल चढ़ाने
से घर में
शांति रहती है।
हनुमान चालीसा पढ़ें और
हनुमान जी को
लड्डू का भोग
लगाएं। पीपल पर
जल चढ़ाएं। इसके
बाद पीपल के
पेड़ की सात
परिक्रमा करें। इससे शनि,
राहु के दोष
दूर होते हैं।
गाय को आटे
में तिल मिलाकर
रोटी दें, घर-गृहस्थी में सुख-शांति आएगी। लक्ष्मी
जी और शिव
जी को चावल
की खीर अर्पित
करने से धन
की प्राप्ति होगी।
मोनी अमावस्या के
दिन 108 बार तुलसी
परिक्रमा करें। सूर्य को
जल दें। जिन
लोगों की जन्म
कुंडली में चंद्रमा
कमजोर है, वह
गाय को दही
और चावल खिलाएं।
पर्यावरण की दष्टि
से भी सोमवती
अमावस्या के दिन
पीपल के वृक्ष
की पूजा करने
का विधान माना
गया है। मुनि
से उत्पत्ति के
चलते मान्यता है
कि इस दिन
मौन धारण करने
से मुनि पद
की प्राप्ति होती
है।
संगम स्नान का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के
अनुसार, इसका कथन
सागर मंथन से
जुड़ी हुई है।
कहते है जब
सागर मंथन से
भगवान धन्वन्तरि अमृत
कलश लेकर प्रकट
हुए उस समय
देवताओं एवं असुरों
में अमृत कलश
के लिए खींचा-तानी शुरू
हो गयी। इस
छीना छपटी में
अमृत कलश से
कुछ बूंदें छलक
गइंर् और प्रयागराज,
हरिद्वार, नासिक और उज्जैन
में जा कर
गिरी। यही कारण
है कि इन
स्थानों की नदियों
में स्नान करने
पर अमृत स्नान
का पुण्य प्राप्त
होता है। प्रयाग
में जब भी
कुंभ होता है
तो पूरी दुनिया
से ही नहीं
बल्कि समस्त लोकों
से लोग संगम
के पवित्र जल
में डुबकी लगाने
आते हैं। इनमें
देवता ही नहीं
ब्रह्मा, विष्णु और महेश
यानि त्रिदेव भी
शामिल हैं। ये
सभी रूप बदल
कर इस स्थान
पर आते हैं।
त्रिदेवों के बारे
में प्रसिद्ध है
कि वे पक्षी
रूप में प्रयाग
आते हैं। इस
बार तो इस
कुंभ का महत्व
और भी बढ़
गया है क्योंकि
अमावस्या जो मौनी
अमावस्या के रूप
में मनाई जायेगी,
पर सोमवार पड़
रहा है और
वो सोमवती अमावस्या
भी बन गई
है। कहते हैं
कि यह तिथि
अगर सोमवार के
दिन पड़ती है
तब इसका महत्व
कई गुणा बढ़
जाता है। अगर
सोमवार हो और
साथ ही कुंभ
भी हो तब
इसका महत्व अनन्त
गुणा हो जाता
है। शास्त्रों में
कहा गया है
सत युग में
जो पुण्य तप
से मिलता है,
द्वापर में हरि
भक्ति से, त्रेता
में ज्ञान से,
कलियुग में दान
से, लेकिन माघ
मास में संगम
स्नान हर युग
में अन्नंत पुण्यदायी
होगा। इस तिथि
को स्नान के
पश्चात अपने सामर्थ
के अनुसार अन्न,
वस्त्र, धन, गौ,
भूमि, तथा स्वर्ण
जो भी आपकी
इच्छा हो दान
देना चाहिए, उसमें
भी इस दिन
तिल दान को
सर्वोत्म कहा गया
है। इस तिथि
को भगवान विष्णु
और शिव जी
दोनों की पूजा
का विधान है।
वास्तव में शिव
और विष्णु दोनों
एक ही हैं
जो भक्तो के
कल्याण हेतु दो
स्वरूप धारण करते
हैं इस बात
का उल्लेख स्वयं
भगवान ने किया
है। इस दिन
पीपल में अर्घ्य
देकर परिक्रमा करें
और दीप दान
दें। इस दिन
जिनके लिए व्रत
करना संभव नहीं
हो वह मीठा
भोजन करें।
संगम स्नान से प्रसंन होते है भगवान विष्णु
कहा जाता
है कि त्रिवेणी
संगम के पवित्र
जल में डुबकी
लगाकर एक व्यक्ति
अपने समस्त पापों
को धो डालता
है और मोक्ष
को प्राप्त हो
जाता है। कुंभ
मेले में स्नान
मानव के लिए
एक खास आध्यात्मिक
अनुभव होता है।
ऐसी मान्यता है
कि इस दिन
ग्रहों की स्थिति
पवित्र नदी में
स्नान के लिए
सर्वाधिक अनुकूल होती है।
इसी दिन प्रथम
तीर्थांकर ऋषभ देव
ने अपनी लंबी
तपस्या का मौन
व्रत तोड़ा था
और यहीं संगम
के पवित्र जल
में स्नान किया
था। मान्यता है
कि इस दिन
देवता गंधर्व स्वर्ग
से पधारते है।
इस दिन पवित्र
घाटों पर तीर्थयात्रियों
की बाढ़ इस
विश्वास के साथ
आ जाती है
कि वे सशरीर
स्वर्ग की यात्रा
कर सकेगें। महाभारत
में कहा गया
है कि माघ
मास में सभी
देवी-देवताओं का
वास होता है।
पद्मपुराण में कहा
गया है कि
माघ माह में
गंगा स्नान करने
से विष्णु भगवान
बड़े प्रसन्न होते
हैं। श्री हरि
को पाने का
सुगम मार्ग है
माघ मास में
सूर्योदय से पूर्व
किया गया स्नान।
इसमें भी मौनी
अमावस्या को किया
गया गंगा स्नान
अद्भुत पुण्य प्रदान करता
है। सोमवती अमावस्या
होने के कारण
कोई भी अपना
बिगड़ा भाग्य भगवान
शंकर, माता पार्वती
और भगवान विष्णु-तुलसी माता आदि
की पूजा आदि
करके सुधार सकता
है। ब्रह्मचर्य का
पालन कर शिव
जी को प्रिय
रुद्राभिषेक करना चाहिए,
विष्णुसहस्रनाम का पाठ
करना चाहिए। शनि
की प्रसन्नता के
लिये पिप्पलाद कथा
आदि का श्रवण
करना चाहिए। संभव
हो तो प्रयागराज
में षोडषोपचार पूजन
करके त्रिवेणी में
स्नान करते हुए
यह मंत्र पढें
‘ओम त्रिवेणी पापजातं
मे हर मुक्तिप्रदा
भवः‘ स्नान के बाद
संभव हो तो
ऊं नमः शिवायः
मंत्र का जाप
त्रिवेणी घाट पर
करना चाहिए। गोदावरी
आदि पवित्र नदियों
में स्नान अवश्य
करना चाहिए। न
कर सकें तो
गंगा जल मिला
कर घर में
ही स्नान करें।
No comments:
Post a Comment