Monday, 15 July 2019

गुरु ‘ज्ञान’ ही नहीं ‘दिशा’ भी देता है!


गुरुज्ञानही नहींदिशाभी देता है!
गुरु पूर्णिमा ज्ञान के स्रोत के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है। गुरु पूर्णिमा यानी गुरु को नमन करने का दिन है। इस दिन गुरु आश्रमों में आस्था का सैलाब उमड़ता है। भक्तों का रेला लगा रहता है। सबकी एक ही ख्वाहिश होती है कि गुरु मनचाहे वरदान से अपने भक्तों की झोली भर दें। गुरु अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं और इसलिए हर कोई चाहता है कि बस एक बार गुरु के दर्शन हो जाएं, तो जीवन धन्य हो जाए। ऐसी मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा पर गुरुजन अपने भक्तों को साक्षात दर्शन देते हैं। अपने भक्तों के हर दुख दर्द को सुनते हैं। शास्त्रों में गुरु को भगवान से पहले याद किया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का सत्कार करना चाहिए। इससे आपको धन, शिक्षा, सुख और शांति मिलेगी 
                               सुरेश गांधी
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है। भारतवर्ष में कई विद्वान गुरु हुए हैं, किन्तु महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे, जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी। वेदव्यास जी को आदिगुरु भी कहा जाता है इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है। सिख धर्म की एक प्रचलित कहावत है, ‘गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।। कुछ ऐसा ही हिंदु परंपरा में भी है जहां गुरू को ईश्वर से भी आगे का स्थान प्राप्त है। तभी तो कहा गया है कि हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।
कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को आदि गुरु वेद व्यास का जन्म हुआ था। उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। यही वजह है कि जीवन में गुरु और शिक्षक के महत्व को आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व आदर्श है। व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा अंधविश्वास के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए। गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए इस दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ी पूर्णिमा के साथ-साथ व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का भी जन्म हुआ था। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है अतः इस दिन वायु की परीक्षा करके आने वाली फसलों का अनुमान भी किया जाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करता है और यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करता है। शिष्य इस दिन अपनी सारे अवगुणों को गुरु को अर्पित कर देता है। अपना सारा भार गुरु को दे देता है। महान संतों का जीवन संसार के लिए होता है। सर्वश्रेष्ठ गुरु वही होता है जो सत्य का मार्ग दिखाए। मानव मात्र के कल्याण के लिए प्रेरित करे। शास्त्रों में भी गुरु अज्ञान के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश देने वाला कहा गया है। गुरु के ज्ञान और दिखाए गए मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है। ’’तमसो मा ज्योतिगर्मयअंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन ही व्यास रूपी सद्गुरु शिष्य को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का माध्यम है। जिससे सारूप्य मुक्ति मिलती है, तभी कहा गया- ’’सा विद्या या विमुक्तये।आज विश्वस्तर पर जितनी भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, उनका मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना। श्रद्धावाल्लभते ज्ञानंम।
इस बार 16 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। हिंदू पंचांग के अनुसार ग्रहण आषाढ़ पूर्णिमा की रात को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में धनु राशि में लग रहा है। इस बार ग्रह और नक्षत्रों का खास संयोग है, जो 149 साल पहले बना था। ज्योतिषाचार्यो की मानें तो इस बार ग्रहों की स्थिति तनाव बढ़ाने वाला और प्राकृतिक आपदाओं का कारक है। खंडग्रास चंद्रग्रहण समेत चार विपरीत ग्रहों के मेल का प्रभाव जातकों की राशियों पर भी दिखाई देगा। यह स्थिति इसके पहले 12 जुलाई 1870 को थी जब गुरु पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण साथ पड़े थे। उस समय चंद्रमा शनि, राहु और केतु के साथ धनु राशि में था। साथ ही सूर्य और राहु एक साथ मिथुन राशि में प्रवेश कर गए थे। इस बार भी यह चंद्र ग्रहण आषाढ़ मास की पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है। तीन साल की अवधि वाले चन्द्रग्रहण का विभिन्न राशियों के जातकों पर अच्छा तो किसी राशि पर मिश्रित प्रभाव पड़ेगा। गुरु पूर्णिमा पर शिष्यों को सूतककाल लगने से पहले ही गुरुओं की पूजा कर आशीर्वाद लेना शुभ होगा। बताया कि ग्रहण के बाद घर में गंगाजल का छिड़काव, देव प्रतिमाओं को स्नान, गर्भवती महिलाएं घर से बाहर निकलते समय चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप लगाकर निकलें।
इस चंद्र ग्रहण के समय राहु और शनि चंद्रमा के साथ धनु राशि में स्थित रहेंगे। ग्रहों की ऐसी स्थिति होने के कारण ग्रहण काफी प्रभावकारी रहेगा। क्योंकि राहु और शुक्र सूर्य के साथ रहेंगे। साथ ही चार विपरीत ग्रह शुक्र, शनि, राहु और केतु के घेरे में सूर्य रहेगा। इस स्थिति में मंगल नीच का हो जाएगा। ग्रहण के समय ग्रहों की ये स्थिति तनाव बढ़ाने वाली साबित होगी। ऐसे में प्राकृतिक आपदाएं आने की आशंका रहेगी। मेष, सिंह, वृश्चिक और मीन राशि पर चन्द्रग्रहण का सामान्य प्रभाव रहेगा। मिथुन, तुला, मकर और कुंभ राशि पर अशुभ प्रभाव और वृष, कर्क, धनु और कन्या पर चन्द्रग्रहण का मिला-जुला प्रभाव पड़ेगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक ग्रहणकाल में नकारात्मक और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए सूतक को अशुभ मुहूर्त माना जाता है। इस दौरान शुभ कार्य किया जाना वर्जित होता है। चंद्रग्रहण की पूरी अवधि कुल तीन घंटे की होगी, जो 16 जुलाई की रात 1.31 बजे से शुरू होकर 17 जुलाई की सुबह 4.31 बजे मोक्ष होगा। ग्रहण उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और धनु राशि में लगेगा। चंद्र ग्रहण का सूतक नौ घंटे पहले लगता है, जो 16 जुलाई की दोपहर 1.31 बजे से शुरू होकर 17 जुलाई की सुबह 4.31 बजे समाप्त होगी। सूतक काल में मंदिरों के पट बंद रहेंगे।
आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा इसलिए चुना गया क्योंकि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह उच्चवल और प्रकाशमान होते हैं। उनके तेज के समक्ष तो ईश्वर भी नतमस्तक हुए बिना नहीं रह पाते। गुरू पूर्णिमा का स्वरुप बनकर आषाढ़ रुपी शिष्य के अंधकार को दूर करने का प्रयास करता है। या यूं कहे शिष्य अंधेरे रुपी बादलों से घिरा होता है जिसमें पूर्णिमा रूपी गुरू प्रकाश का विस्तार करता है। जिस प्रकार आषाढ़ का मौसम बादलों से घिरा होता है उसमें गुरु अपने ज्ञान रुपी पुंज की चमक से सार्थकता से पूर्ण ज्ञान का का आगमन होता है। जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह। आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों। शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर छाए हैं। वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं। उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है! इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी। यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।
कहते हैं इस दिन अगर गुरुजनों का दर्शन आर्शीवाद जिसे मिल जाता है, उसके जीवन में कोई कामना अधूरी नहीं रहती। खास तौर पर गुरु पूर्णिमा के दिन भक्त अपने गुरुजन को गुरु दक्षिणा देकर सात जन्म संवार लेते हैं। गुरु के दरबार में बड़े-छोटे का भेद नहीं होता। ना ही ऊंच नीच या गरीब-अमीर की खाई होती है। गुरु सबके हैं और सभी गुरु के। हमारी परंपरा में गुरु का बहुत महत्व हैं। गुरु सिर्फ ज्ञान के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि सन्मार्ग पर ले जाने के लिए भी गुरु की आवश्यकता होती है। इसीलिए हमारे यहां गुरु पूर्णिमा का पर्व पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। गुरु की महिमा को समर्पित इस उत्सव में गुरु की पूजा की जाती है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं, बल्कि घर में अपने से जो भी बड़ा है- माता-पिता, भाई-बहन आदि को गुरु का रूप समझ कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। इसलिए मानव को उठते-बैठते, चलते-फिरते प्रभु का नाम लेना चाहिए। घर में पति और माता-पिता की सेवा करने वालों से परमात्मा भी प्रसन्न होते हैं।

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