Saturday, 10 August 2019

हर ‘रिश्ते’ को जोड़ता है ‘रक्षाबंधन’


हररिश्तेको जोड़ता हैरक्षाबंधन
भाई और बहन का रिश्ता कच्चे धागे की डोर और विश्वास के ताने-बाने से बुना संसार का सबसे प्यारा रिश्ता है। दुवाओं का आधार पाकर खड़ा होने वाला यह निश्छल नाता मासूमियत के स्नेह सेे पोषण पाता है। जिसे ना समय बदल सकता है और ना ही उम्र। तभी तो प्रेम और आपसी समझ का भाव हमेशा कायम रहता है। इस रिश्ते में सुख-दुःख सब साझा है। यंू तो रक्षाबंधन उस धागे का नाम है जो एक बहन अपने भाई की कलाई पर उसकी सलामती की दुआ के साथ बांधती है। लेकिन औपचारिकताओं से परे और अपनेपन से भरे भाई-बहन के स्नेहिल रिश्ते में और बहुत कुछ होता है, जो इस बंधन को मजबूती देता है 
सुरेश गांधी
भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व रक्षाबंधन के नजदीक आते ही बाजार में रंग-बिरंगी राखियों से दुकानें सज चुकी है। दुकानों के बाहर राखियों के छोटे-छोटे काउंटर ग्राहकों को लुभाने लगें हैं। बाजार सजते ही रौनक देखने को मिल रही है। इस बार भी ग्राहकों के पसंद के हिसाब से कोलकाता, पटना, दिल्ली, के कलाकारों के द्वारा निर्मित स्टोन, रेशम डोरी, स्पंज, मोर पंख, ब्रासलेट के अलावा 15 अगस्त के दिन ही रक्षाबंधन पर्व होने के कारण तिरंगा राखी भी मंगाई गयी है जो सस्ते दामों पर उपलब्ध है। खास बात यह है कि वर्षों बाद इस बार विशेष संयोग में मनेगा स्वतंत्रता दिवस रक्षाबंधन एक ही दिन। 15 को बहनें बांधेगी भाइयों को राखी। रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा वाले दिन होता है। ज्योतिषियों के अनुसार रक्षासूत्र बांधने के लिए निर्धारित समय का अनुसरण किया जाता है। कई साल बाद इस राखी पर ऐसा अद्भुत संयोग बन रहा है। जिसमें इस दिन भद्रा या कोई ग्रहण नहीं लग रहा है। जिसकी वजह से इस साल भाई और बहन दोनों के लिए रक्षाबंधन बेहद शुभ संयोग लेकर आया है। गुरुवार के दिन पड़ने से इसका महत्व काफी बढ़ गया है। दरअसल गुरुवार का दिन गुरु बृहस्पति को समर्पित माना जाता है। रक्षा बंधन के 4 दिन पहले ही गुरु वृश्चिक राशि में मार्गी होकर सीधी चाल चलने लगेंगे। जो कि राखी की दृष्टि से बेहद शुभ माना जा रहा है। इसके अलावा इस बार रक्षाबंधन पर नक्षत्र श्रवण, सौभाग्य योग, बव करण, सूर्य राशि कर्क और चंद्रमा मकर में रहने वाले हैं। ये सभी शुभ संयोग मिलकर इस बार रक्षाबंधन को बेहद खास बनाने वाले हैं।
मान्यता है कि भद्रा काल में बहनों का अपने भाई को राखी बांधना शुभ नहीं होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रावण की बहन ने भद्रा काल में ही अपने भाई को रक्षा सूत्र बांधा था, जिसकी वजह से रावण का सर्वनाश हुआ था। इस बार बहनें सूर्यास्त से पहले किसी भी समय में भाइयों की कलाई पर राखी बांध सकती हैं।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त-
रक्षा बंधन तिथि - 15 अगस्त गुरुवार
पूर्णिमा तिथि आरंभ 14 अगस्त -1545
पूर्णिमा तिथि समाप्त 15 अगस्त- 1758
भद्रा समाप्त- सूर्योदय से पहले
आधुनिकता से परे है यह पर्व
यह सच है कि विकास और आधुनिकता की चकाचैंध में सबसे ज्यादा असर अगर किसी पर डाला है तो वे हमारे रिश्ते ही हैं। इंटरनेट, तकनीक, एक्सपोजर और बढ़ती महत्वाकांक्षाएं ये तमाम ऐसे पहलू है जिन्होंने इंसान की सोच को बदलाव की ओर उन्मुख किया है। लेकिन भाई और बहन का एक ऐसा पवित्र रिश्ता हैं, जिसका उत्साह कम दिखाई नहीं देता। बदलती जीवन शैली या यूं कहे दुनियावी बर्ताव की तपिश और स्वार्थ साधने की सोच से परे होने के भाव ने इस रिश्ते की मिठास को अभी बचाएं रखा है। परंपरागत तरीके से भाई-बहन का प्रेम भरा ये रिश्ता निभाई जा रही है। प्यार, विश्वास और मुस्कुराहट की ये अनोखी डोर दिलों को बांधने वाली है। तभी तो भाई-बहन के रिश्ते को मिश्री की तरह मीठा और मखमल की तरह मुलायम माना जाता है। दूरियां चाहकर भी जगह नहीं बना सकती इस स्नेहिल रिश्ते में। राखी का पर्व इसी पावन रिश्ते और स्नेह को समर्पित हैं। इस बंधन की गहराई का जादू ही है कि नेह का यह नाता आज भी जीवंत हैं। भाई को बड़ी बहन में मां का अक्स और छोटी बहना गुड़िया ही नजर आती है तो बहन को बड़ा भाई शक्ति स्तंभ और छोटू अपनी जान से प्यारा लगता है।
परंपरा का धागा
इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उससे खुद की सुरक्षा का भरोसा पाती है। बहन अपने भाई को सबसे ज्यादा प्रेम करती है। ज्योतिषियों की मानें तो इस दिन बहनें भाईयों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान होती है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बहनें सात समुन्दर पार से भी भाई को रक्षा बांधने चली आती है। यही वजह है कि बड़े होकर अतीत की मधुर स्मृतियों को मन जिस तरह इस रिश्ते में सहेजता है शायद ही किसी और रिश्ते में ऐसा होता हो। यह बंध नही कमाल का है। जिसमें शिकायतें भी आंखें नम करती है तो खुशी के आंसुओं से। बहनों की इस खुशी में अगर उनके मनपसंद उपहार भाईयों द्वारा दी जाएं तो वे बड़ी सहजता से देती है धन-धान्य होने का आर्शीवाद। तभी तो आज की आपाधापी भरी जिंदगी में सभी रिश्तों के रंग फीके हो चले हैं पर भाई-बहन के रिश्ते की चमक आज भी बरकरार है। दिल से जुड़े इस बंधन के मोह के धागों के ताने-बाने में ना कुछ बदला है और ना ही बदलेगा। समय चाहे कितना ही बदल गया हो लेकिन रेशमी धागे ही यह बंधन अभी तक वैसा ही है जैसा कि इसे हमारी पिछली पीढ़ियां मनाती आई हैं।
गुथा है प्यार
इस रिश्ते का डीएनए ही कुछ ऐसा है कि मुसीबत के वक्त जब कहीं से मदद की उम्मींद नहीं होती है, तब भी कलाई पर बंधा स्नेह जिन्दगी की डोर थामने के लिए खड़ा हो जाता है। अर्थात रक्षाबंधन भाई-बहन के बीच वह रिश्ता है जिसमें गंगाजल की तरह बहनें धारा तो भाई कल-कल। बहनें टहनी तो भाई श्रीफल, बहने स्नेहिल तो भाई वत्सल या यूं कहें भाई-बहनों के सभी सवालों का जवाब है रक्षाबंधन। या यूं कहें भाई-बहन का नाता स्नेह, ममता, वात्सल्य, करुणा और रक्षा के भावों के ताने-बाने में बुना होने से अनूठा ही है। यह नाता जितना स्नेहमय है उतना ही शालीन और पावन भी। क्योंकि इसमें जुड़ी होती है बचपन की यादें। साथ खेलना, झगड़ना, शरारतें और भी बहुत कुछ। जन्म से जुड़ा ये रिश्ता वक्त के साथ मजबूत होता जाता है। बेशक, कहने को राखी सिर्फ एक पतले से धागे को कलाई पर बांधने का त्योहार है। लेकिन, इस महीन सी डोर में जीवन को संबल दिशा देने वाली कितनी शक्ति है, ये तो वे ही बता सकते हैं जिनके मन में बहन के प्रति प्यार बसा है। भाई-बहन का यह भाव प्राचीन काल से हमारे यहां रहा हैं। इस संबंद्ध को लेकर सबसे प्राचीन विमर्श ऋुग्वेद के यम-यमी सुक्त मिलता है। यम और यमी दोनों विवस्वान यानी सूर्य की संतानें है, दोनों जुड़वा भाई-बहन है। यम अपनी बहन को इस संबंध की मर्यादा का बोध कराते हैं। भाई-बहन के बीच परस्पर रक्षा का संबंध भी एकतरफा नहीं है, केवल भाई ही बहन की रक्षा नहीं करता, बहन भी आड़े वक्त में भाई को बचाती है। रक्षाबंधन का पर्व और राखी के धागे इस पारस्परिक रक्ष्य-रक्षक संबंध के प्रतीक हैं।
जुड़ने की बुनियाद
यूं तो नारी, मां, बेटी या पत्नी के विभिन्न रुपों में पुरुषों से जुड़ती है पर उन सब में अपनत्व और अधिकार के साथ-साथ, कहीं कहीं कुछ पाने की लालसा रहती है। नारी का सबसे सच्चा स्वरुप बहन के रिश्ते में ही प्रकट होता है। मां-बाप भले ही लड़के-लड़कियों में भेद करें पर बहन के मन में ऐसा करने का चाव होता है जिससे भाई के जीवन में खुशहाली रहे। यही वजह है कि भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन यानी रक्षा की कामना लिए कच्चे धागों का ऐसा बंधन जो पुरातन काल से इस सृष्टि में रक्षा के आग्रह और संकल्प के साथ बांधा और बंधवाया जाता है। देखा जाए तो रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन का त्योहार नहीं है बल्कि ये इंसानियत का पर्व है। यह अनेकता में एकता का पर्व है, जहां जाति और धर्म के भेद-भाव को भूलकर एक इंसान दूसरे इंसान को रक्षा का वचन देता है और रक्षा सूत्र में बंध जाता है। रक्षा सूत्र के विषय में श्रीकृष्ण ने कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षा बंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है, एक मामूली सा धागा जब भाई की कलाई पर बंधता है, तो भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। बहनों का स्नेह, प्यार और दुलार भाइयों के लिए उनके सुरक्षा कवच का काम करता है। वहीं बहनों का मान-सम्मान भाइयों की प्राथमिकता होती है। आजकल बहनें ज्यादा सजग हो गई हैं। अब वे भाइयों के पीछे नहीं, उनके बचाव में सबके सामने खड़ी होने लगी हैं। शायद इसी सेवा भाव के रिश्ते को नमन करते हुए चिकित्सा परिचर्या में लगी महिलाओं को सिस्टर कहा जाता है। वो लोग बड़े खुशकिस्मत होते हैं जिनके बहनें होती हैं क्योंकि जीवन में यह एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जिससे आप बहुत कुछ सिखते हैं। पुरुषों के चारित्रिक विकास में मां-बाप से भी ज्यादा एक बहन का संवाद ज्यादा असर करता है। बहन से संवाद से ना केवल पुरुष के नकारात्मक विचारों में कमी आती है बल्कि उसके अंदर नारी जाति के लिए आदर भी पनपता है। 
रिश्ते में गरमाहट लाती है परंपराएं
रक्षाबंधन पर्व की भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं। गुरुकुल परंपरा के अंतर्गत शिक्षा पाने वाला युवा जब शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था, तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बांधता था, जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधता था कि वह भावी जीवन में अपने ज्ञान कासमुचित ढंग से प्रयोग करे। मौजूदा समय में पूजा आदि के अवसर पर बांधा जाने वाला कलावा भी रक्षा-सूत्र का ही प्रतीक होता है, जिसमें पुरोहित और यजमान एक-दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए एक-दूसरे को अपने बंधन में बांधते हैं। रक्षा-बंधन का पर्व हमारे सामाजिक ताने-बाने में इस प्रकार रचा-बसा हुआ है कि विवाह के बाद भी बहनें भाई को राखी अवश्य बांधती हैं, फिर चाहे उनका ससुराल मायके से कितनी ही दूर क्यों हो। या तो वे भाई के घर इसी विशेष प्रयोजन से स्वयं पहुंचती हैं अथवा भाई उनके घर जाते हैं। अगर आना-जाना संभव हो, तो डाक से राखी अवश्य भेज दी जाती है। आज के दौर में महिलाओं पर जो अत्याचार बढ़ रहे हैं, उसका मूल कारण यही है कि लोग बहन की अहमियत भूलते जा रहे हैं। बेटों का वर्चस्व बढ़ने और बेटियों को उपेक्षित करने से समाज खोखला होता जा रहा है। गौर कीजिए एक समय, बहन जी शब्द में अपार आदर छलकता था और लोग किसी भी बहन के लिए न्योछावर होने के लिए तत्पर रहते थे। आज इन रिश्तों की सामाजिक अहमियत कम होने के कारण ही महिला उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं। जबकि सच यह है कि बेटियों में छिपा बहन का प्यार ही स्वस्थ समाज की बुनियाद गढ़ पायेगा।
कच्चे धागे पक्के बंधन
वैसे भी हिन्दू धर्म में स्त्रियों का मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। लगभग हर घर में मां लक्ष्मी मां, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में वास करती हैं। अगर घर की महिलाएं खुश रहती हैं तो घर में धन-दौलत की कभी कमी नहीं होती है। इससे बड़ी बात और क्या होगी कि जो बहन और बेटियां दुसरे घर की अमानत हो गयी है, लेकिन रक्षाबंधन के दिन जरुर भाई की कलाई पर राखी बांधने जरुर पहुंचती हैं। बहन के राखी बांधने के बाद भाई उसे तोहफा देता है। मनु स्मृति में स्वयं मनु ने बताया है कि ऐसी तीन चीजें हैं जिन्हें घर की महिलाओं को देने से घर में खुशहाली आती है। यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः। माता लक्ष्मी को घर का साफ और स्वच्छ माहौल बहुत ज्यादा पसंद होता है। जिस घर के पुरुष और महिलाएं दोनों साफ-सुथरे से रहते हैं और अच्छे वस्त्र धारण करते हैं, मां लक्ष्मी उनसे काफी प्रसन्न रहती हैं। ऐसे में रक्षाबंधन के दिन आप अपनी बहन को सुन्दर वस्त्र तोहफे के रूप में दें। जो लोग ऐसा नहीं करते हैं, उन्हें जीवन में दरिद्रता का मुख देखना पड़ता है। गहनों को भी मां लक्ष्मी का प्रतिरूप माना जाता है। जिस घर की महिलाएं सुन्दर गहनों से सजती-संवरती हैं, वहां मां लक्ष्मी का बसेरा हमेशा बना रहता है। घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। जब भी कोई विशेष त्योहार हो उस मौके पर पुरुषों को घर की महिलाओं को तोहफे में सुन्दर गहने देने चाहिए। सभी तोहफों से बढ़कर मीठी वाणी होती है। जिस घर के पुरुष महिलाओं को सम्मान देते हैं और उनसे अच्छे से बात करते हैं, उस घर पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। जिस घर की स्त्रियां चिंतित होती हैं, उस घर की तरक्की रुक जाती है। जहां महिलाएं खुश रहती हैं वहां दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की होती है।
वृक्ष को भी बांधती है राखी
सदियों से चली रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है। हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है। राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है।
दुनिया के सारे संबंधमोह के धागेसे हैं जुड़े
यशराज बैनर की फिल्मदम लगा के हईशाका एक गीत है, ‘ये मोह-मोह के धागे।बड़ा प्यारा गीत है। इसे नायक-नायिका नहीं गाते, यह नेपथ्य में बजता है। पर है यह रुमानियत से संबंधित गीत। मगर मोह शब्द सिर्फ इतने में ही सीमित नहीं है। दुनिया के सारे संबंध मोह के धागे से ही जुड़े हैं। मोह के अर्थ भी तो कई हैं और प्रकार भी कई। मोह के कुछ प्रकारों को निरर्थक मोह में गिना जाता है तो कुछ प्रकारों को सार्थक मोह में। मसलन किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति से मोह की अति, मोह में उससे चिपके रहना, उसे सांस लेने का अवसर देना, अनुपयोगी वस्तुओं का संग्रह इत्यादि नकारात्मक निरर्थक मोह की श्रेणी में आते हैं। दूसरी ओर सार्थक और जरूरी किस्म का मोह तो जीने का आकर्षण होता है, यह हो तो व्यक्ति निर्जीव दीवार के समान हो जाए। इस प्रकार के मोह में हर प्रकार का लगाव, प्यार, स्नेह, ममता और अपनापन आता है। मोह का यह धागा दिखाई नहीं देता, बस महसूस होता है। इसकी सुगंध स्वार्गिक होती है। वह मोह जिसे अपनापन कहते हैं, इंसान के भावनात्मक जीवन के लिए ऑक्सीजन होता है, यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मोह में जाने क्या होता है कि वो आपमें जीने की ललक बनाए रखता है। मोह हो तो जीवन रेगिस्तान हो जाए। यह वह मोह है जो गोंद नहीं, रुई का शुभ्र-श्वेत फाहा होता है जिस पर, जिससे आप प्यार करते हैं उसी का रंग चढ़ता जाता है।
रक्षाबंधन मनाने की विधि
एक थाली में रोली, चन्दन, अक्षत, दही, रक्षासूत्र और मिठाई रख लें। भाई की आरती के लिए थाली में घी का दीपक भी रखें। पूजा की थाली को सबसे पहले भगवान को समर्पित करें। ध्यान रहे कि भाई पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के ही बैठे। पहले भाई को तिलक लगाएं। फिर राखी बांधे और उसके बाद आरती करें। फिर मिठाई खिलाकर भाई की मंगल कामना करें। इस बात का ख्याल रखें कि राखी बांधते समय भाई और बहन दोनों का सिर जरूर ढका हो। इसके बाद माता-पिता और गुरु का आशीर्वाद लें। भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि बहनों को उपहार में काले कपड़े, तीखी या नमकीन चीज ना दें। ऐसा उपहार दें जो दोनों के लिए मंगलकारी हो।
रक्षाबंधन के दिन पूजन से परिवार में खुशहाली
रक्षाबंधन का ये पावन पर्व आपकी कई समस्याओं का समाधान भी बनकर आता है। रक्षाबंधन के दिन विधि-विधान से पूजन करने से मानसिक या शारीरिक समस्याओं का समाधान संभव है। इसके लिए सबसे पहले सफेद वस्त्र धारण करके पूजा के स्थान पर बैठें। अपनी गोद में पानी वाला एक हरा नारियल रखें। इसके बाद ओउम सोम सोमाय नमः का जाप करें। फिर नारियल को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। जिन्हें नजदीकी रिश्तों में समस्या रही हो, वे रक्षाबंधन की शाम को चावल, दूध और चीनी की खीर बना कर शिव जी को अर्पित कर दें। इसके बाद सफेद फूल डालकर चन्द्रमा को अघ्र्य दें। खीर को प्रसाद की तरह समस्त परिवार के लोगों को दें और खुद भी ग्रहण करें। राखी बांधते समय बहनें अगर इन मंत्र का उच्चारण करती है तो भाईयों की आयु में वृ्द्धि होती है। जो इस प्रकार है, “येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलःद्व तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल।।
पहले और अब में फर्क
पुराने जमाने में जब स्त्री और पुरुष की भूमिकाएं बिल्कुल बंटी हुई थीं तब यह रस्म पैदा हुई होगी कि बहन भाई की कलाई पर धागा बांधें और उससे अपनी रक्षा का वचन मांगे। मगर अब स्त्री-पुरुष की भूमिकाओं में पुराने तरह का विभाजन नहीं है। यदि बहन पर आफत पड़ने पर भाई उसकी रक्षा कर सकता है तो भाई पर मुसीबत आने पर बहन भी उसकी सहायता और रक्षा कर सकती है। आज ऐसी कई बहनें हैं जिन्होंने जरूरत पड़ने पर भाई को अपनी किडनी या अन्य अंग देकर जीवनदान किया है। स्वयं के पैरों पर खड़ी ऐसी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बहनें भी हैं जिन्होंने भाइयों को आर्थिक कठिनाइयों से उबारा है। अपने प्रिय भाई को दीदियां अपने हिस्से की चॉकलेट देती आई हैं तो भाई का अपराध अपने सिर लेकर उन्हें बचपन में मां-बाप की डांट से बचाती भी आई हैं। बड़ा भाई छोटी बहन के सिर पर हाथ रखता है तो बहन भी तो ऐसा निःस्वार्थ प्रेम करना जानती है, जिससे मुकाबला सिर्फ मां का प्यार ही कर सकता है। अतः राखी को हम रक्षा-सूत्र के बजाए मोह का धागा भी कह सकते हैं। और यह रेशमी सूत्र भाई और बहन के बीच ही नहीं, बहनों-बहनों और भाईयों-भाईयों के बीच यह अद्दश्य धागा है। सच कहें तो जिस भी रिश्ते में अपनत्व भरा जुड़ाव है, मोह का यह धागा होता ही है।
पौराणिक मान्यताएं
रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले माना जाता है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायू ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था। इतिहास का एक दूसरा उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी। भविष्यपुराण के मुताबिक राखी ना केवल भाई बहनों के प्रेम और स्नेह का त्योहार है बल्कि यह पति-पत्नी के संबंध और उनके सुहाग से जुड़ा हुआ पर्व भी है। सतयुग में वृत्रासुर नाम का एक असुर हुआ जिसने देवताओं के पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इसे वरदान था कि उस पर उस समय तक बने किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए इंद्र बार-बार युद्ध में हार जा रहे थे। देवताओं की विजय के लिए महर्षि दधिचि ने अपना शरीर त्याग दिया और उनकी हड्डियों से अस्त्र-शस्त्र बनाए गए। इन्हीं से इंद्र का अस्त्र वज्र भी बनाया गया। देवराज इंद्र इस अस्त्र को लेकर युद्ध के लिए जाने लगे तो पहले अपने गुरु बृहस्पति के पहुंचे और कहा कि मैं वृत्रासुर से अंतिम बार युद्ध करने जा रहा हूं। इस युद्ध में मैं विजयी होऊंगा या वीरगति को प्राप्त होकर ही लौटूंगा। देवराज इंद्र की पत्नी शची अपने पति की बातों को सुनकर चिंतित हो गई और अपने तपोबल से अभिमंत्रित करके एक रक्षासूत्र देवराज इंद्र की कलाई में बांध दी। जिस दिन इंद्राणी शची ने देवराज की कलाई में रक्षासूत्र बांधा था उस दिन श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि थी। इस सूत्र को बांधकर देवराज इंद्र जब युद्ध के मैदान में उतरे तो उनका साहस और बल अद्भुत दिख रहा था। देवराज इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर दिया और फिर से स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। यह कहानी इस बात की ओर संकेत करती है कि पति और सुहाग की रक्षा के लिए श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन पत्नी को भी पति की कलाई में रक्षासूत्र बांधना चाहिए। एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने के लिए भी मनाया जाता है। आमतौर पर मछुआरें वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करके ये त्योहार मनाते है। इस त्योहार को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है। कहते हैं एलेक्जेंडर जब पंजाब के राजा पुरुषोत्तम से हार गया था तब अपने पति की रक्षा के लिए एलेक्जेंडर की पत्नी रूख्साना ने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुनते हुए राजा पुरुषोत्तम को राखी बांधी और उन्होंने भी रूख्साना को बहन के रुप में स्वीकार किया।
जार साल पुराना है रक्षा बंधन का इतिहास!
 1947 के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया। रवींद्रनाथ टैगोर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन त्योहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्योहार का राजनीतिक उपयोग आरंभ किया। 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता मातृभूमि वंदना का प्रकाशन हुआ, जिसमें उन्होंने इस पर्व का उल्लेख किया है। शास्त्रों के अनुसार रक्षिका को आज के आधुनिक समय में राखी के नाम से जाना जाता है। रक्षाबंधन के संदर्भ में भी कहा जाता है कि अगर इस पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व नहीं होता तो शायद यह पर्व अब तक अस्तित्व में रहता ही नहीं। हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूजा कार्य में हाथ में कलावा ( धागा ) बांधने का विधान है। यह धागा व्यक्ति के उपनयन संस्कार से लेकर उसके अन्तिम संस्कार तक सभी संस्करों में बांधा जाता है। राखी का धागा भावनात्मक एकता का प्रतीक है। स्नेह विश्वास की डोर है। धागे से संपादित होने वाले संस्कारों में उपनयन संस्कार, विवाह और रक्षा बंधन प्रमुख है। भविष्य पुराण के अनुसार, जब देव-दानव के युद्ध में दानव हावी होने लगे, तो भगवान इंद्र घबराकर गुरु बृहस्पति के पास गए। वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थीं। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। इस त्योहार से कई ऐतिहासिक प्रसंग जुड़े हैं। राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा बांधती थी। यह विश्वास था कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आएगा। मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर आक्रमण करने की सूचना मिली। रानी उस समय लड़ने में असमर्थ थी अतः उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ाई लड़ी। हुमायूं ने कर्मावती उनके राज्य की रक्षा की। एक अन्य प्रसंग में कहा जाता है कि सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पोरस (पुरू) को राखी बांधकर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को मारने का वचन ले लिया। पोरस ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान किया और सिकंदर पर प्राण घातक प्रहार नहीं किया। रक्षाबंधन की कथा महाभारत से भी जुड़ती है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। कृष्ण और द्रौपदी से संबंधित वृत्तांत में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था तब उनकी तर्जनी में चोट गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी थी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया था।

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