‘एक राष्ट्र-एक संविधान’ की ओर बढ़ता ‘भारत’
प्रधानमंत्री मोदी ने ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से एक दो नहीं कई घोषणाएं कर भावी भारत का खाका खींचा है। इससे यदि लोकसभा और राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का मार्ग प्रशस्त होता है तो यह एक क्रांतिकारी बदलाव ही होगा। देश इस बदलाव का इंतजार कर रहा है। खासकर जम्मू एवं कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद आज हर हिंदुस्तानी गर्व के साथ कह सकता है, ’एक राष्ट्र एक संविधान’
की ओर देश आगे बढ़ रहा है। सरदार पटेल का एक भारत का सपना साकार होने को है। मतलब साफ है यह स्वतंत्रता दिवस एक नया सवेरा लेकर आया है। जिसमें कश्मीर और लद्दाख अब विकास की एक नई गाथा तो लिखेगा ही मोदी के एक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) से सैन्यबल भी और अधिक प्रभावी होगा। कहा जा सकता है एक देश एक कानून से गैरभाजपा दलों के मुस्लिम वौटबैंक की सियासत पर सदा सदा के लिए ताला लगने वाला है
सुरेश गांधी
देश भर
में आजादी का
73वां जश्न धूमधाम
से मनाया गया।
सरहद पर सैनिकों
का जश्न दिखाई
दिया तो वहीं
जम्मू से लद्दाख
तक लोगों में
जोश और उत्साह
दिखाई दिया। स्वतंत्रता
दिवस पर लाल
किले की प्राचीर
से प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने लगातार
छठीं बार देश
को संबोधित किया।
लेकिन इस बार
हालात, मुद्दे और चुनौतियां
बदली हुई थीं।
क्योंकि मोदी के
पहले 5 साल के
कार्यकाल के एजेंडे
अलग थे, लेकिन
अगले पांच साल
के एजेंडे अलग
हैं। जैसा उन्होंने
कहा भी, पिछले
पांच साल जरूरतों
को पूरा करने
का था, लेकिन
अब उनकी सरकार
देशवासियों के अरमानों
को पूरा करेगी।
उन्होंने बढ़ती आबादी
की चुनौतियों खास
ख्याल रखा। प्रधानमंत्री
ने जिस तरह
सीधे-सपाट शब्दों
में पहली बार
भारत में जनसंख्या
विस्फोट जैसे मुद्दे
को भी छुआ,
जो 1.3 अरब है
और कहा कि
जिनके पास छोटे
परिवार हैं, वे
भी बतौर देशभक्त
अपना योगदान दे
रहे हैं, वो
काबिलेतारीफ है। उन्होंने
कहा कि छोटा
परिवार रखना भी
अपनी देशभक्ति प्रकट
करने का तरीका
है और हर
किसी को यह
सोचना चाहिए कि
जो शिशु धरती
पर आने वाला
है उसकी आवश्यकताएं
कैसे पूरी की
जाएंगी, उस पर
सभी को ध्यान
देने की आवश्यकता
है। यह ऐसा
विषय है जो
किसी नियम-कानून
से अधिक जनजागरूकता
से ही हल
होगा। देशहित से
जुड़े ऐसे विषयों
पर संकीर्ण राजनीति
की कहीं कोई
गुंजाइश नहीं हो
सकती। या यूं
कहे अब मोदी
के कानून क्रांति
से विपक्षियों में
बौखलाहट बढ़ेगी। क्योंकि मोदी
के नए भारत
का एक ही
संदेश है एक
कानून एक देश।
यही मोदी का
अखंड भारत का
पराक्रम है।
जहां तक
देश की एकता-अखंडता का सवाल
है अनुच्छेद-370 की
समाप्ति के बाद
आजादी के जश्न
का आकर्षण और
उत्साह बढ़ जाना
स्वाभाविक है। ऐसे
फैसले देशवासियों को
एकजुट करने के
साथ उनमें अपने
राष्ट्र के प्रति
गौरव, समर्पण और
प्रेम को बढ़ाने
वाले होते हैं।
इस परिदृश्य में
लाल किले से
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के
संबोधन के प्रति
लोगों की रुचि
और उत्सुकता बढ़
गई है। कई
बड़े निर्णयों के
साथ अपने दूसरे
कार्यकाल की शुरुआत
कर मोदी सरकार
ने यह स्पष्ट
कर दिया है
कि वह नए
भारत के निर्माण
के अपने संकल्प
के प्रति समर्पित
है और उसकी
दिशा सही है।
मोदी सरकार के
साथ एक सकारात्मक
बात यह है
कि उसने अपने
पहले कार्यकाल में
सुधार और परिवर्तन
की जमीन तैयार
कर ली थी।
सुधारों का सिलसिला
तेज कर अब
इसे एक नया
आयाम देने का
वक्त है। एक
बड़े बहुमत से
शासन में आई
सरकार अपने मजबूत
इरादों के साथ
ऐसा कर सकती
है।
यह उल्लेखनीय
है कि प्रधानमंत्री
ने देश के
उद्योग जगत को
यह भरोसा दिलाया
कि उसे किसी
तरह की आशंका
रखने की जरूरत
नहीं है, क्योंकि
सरकार देश के
विकास में योगदान
देने और रोजगार
के अवसर पैदा
करने वाले उद्यमियों
को मान-सम्मान
देने के लिए
प्रतिबद्ध है। यह
भरोसा इसलिए जरूरी
था, क्योंकि उद्योग
जगत ही देश
की संपदा बढ़ाने
में सबसे बड़ी
भूमिका निभाता है, लेकिन
अनेक राजनीतिक दल
ऐसे हैं जो
सस्ती लोकप्रियता हासिल
करने के लिए
उद्यमियों-उद्योगपतियों के प्रति
लोगों को बरगलाने
का काम करते
हैं। लाल किले
से प्रधानमंत्री का
संबोधन कुल मिलाकर
अगले पांच साल
के लिए देश
के भावी पथ
की तस्वीर बयान
करता है। अपने
संदेश में उन्होंने
विकास के प्रति
प्रचलित धारणाओं को बदलने
पर तो जोर
दिया ही, यह
भी साफ किया
कि सुधार के
लिए साहसिक कदमों
का सिलसिला और
तेज होगा। एक
ऐसा ही सुधार
पूरे देश में
एक साथ चुनाव
के रूप में
हो सकता है,
जिसके प्रति प्रधानमंत्री
ने एक बार
फिर अपना संकल्प
व्यक्त किया है।
कहा जा
सकता है मोदी
ने स्वतंत्रता दिवस
के मौके पर
भविष्य की चुनौतियों
से देश का
सामना तो करवाया
ही है। साथ
ही देश के
सुनहरे भविष्य का सपना
भी दिखाया है।
देश को 5 ट्रिलियन
डॉलर की इकॉनमी
बनाने का 100 लाख
करोड़ रुपये का
निवेश करने जैसा
ब्लूप्रिंट भी पेश
किया। हालांकि इस
रास्ते में मंदी
वाले बड़े-बड़े
स्पीड ब्रेकर भी
हैं। अर्थव्यव्सथा को
लेकर कई बड़ी
बातें कहीं। उन्होंने
एक्सपोर्ट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, मेड इन
इंडिया, डिजिटल पेमेंट, 5 ट्रिलियन
डॉलर के लक्ष्य
को लेकर रोडमैप
बताया। पीएम मोदी
ने अपने भाषण
में 15 बार अर्थव्यवस्था
शब्द का इस्तेमाल
किया। इसी से
अर्थव्यवस्था को लेकर
सरकार की सजगता
झलकती है।
साल 2014 में देश
142वें नंबर में
था, जबकि इस
साल 190 देशों में 77वें
स्थान पर आ
गया है। यह
अपने आप में
बड़ी उपलब्धि है।
घरेलू उत्पादन की
जरूरत पर भी
मोदी का जोर
है। इससे ग्रामीण
अर्थव्यवस्था और एमएसएमई
सेक्टर में सुधार
होगा।’ देश का
निर्यात बढ़ाने के लिए
हर संभव प्रयास
किए जा रहे
है। उनका मानना
है कि हर
जिले के पास
कोई न कोई
खासियत होती है।
कहीं स्टील फेमस
है, तो कहीं
पीतल, तो कहीं
साड़ी व कालीन।
ऐसे में हर
जिले में एक
एक्सपोर्ट हब बनेगा।
महंगाई दर भी
काबू में है।
स्वतंत्रता दिवस के
मौके पर उर्वरक
कंपनी इफको ने
किसानों को तोहफा
दिया है। इफको
ने खाद के
दामों में प्रति
बोरी 50 रुपये की कटौती
कर दी है।
यह कदम मोदी
के 2022 तक किसानों
की आय को
दोगुना करने के
लक्ष्य को पूरा
करने में सहयोग
करेगा। खाद की
कीमतों में कटौती
से किसानों को
मदद मिलेगी। मोदी
ने पर्यावरण अनुकूल
खेती पर जोर
दिया। इससे न
सिर्फ रसायनिक उर्वरकों
के उपयोग घटेगा
बल्कि धरती की
उपजाउ क्षमता भी
बढ़ेगी।
मोदी ने
लोगों से प्लास्टिक
बैग का इस्तेमाल
नहीं करने और
इससे दूर रहने
का आग्रह किया।
मोदी दो अक्टूबर
को प्लास्टिक विदाई
देने की दिशा
में पहला मजबूत
कदम उठा सकते
हैं। उनका मानना
है कि जूट
के थैले होंगे
तो किसान की
मदद होगी, छोटे
छोटे काम गरीब
विधवा मां की
मदद करेंगे। भ्रष्टाचार
और कालाधन समाप्त
करने के लिये
उठाया गया मोदी
का हर कदम
स्वागत योग्य है। क्योंकि
इन समस्याओं के
कारण देश को
पिछले 70 साल में
काफी नुकसान हुआ
है। हालांकि सरकार
द्वारा इसमें लिप्त अच्छे
अच्छे लोगों की
छुट्टी कर दी
गई है। लेकिन
अभी और सख्त
कदम उठाने की
जरुरत है। जल
संकट को लेकर
भी सरकार चिंतित
है। यही वजह
है कि ’जल
जीवन मिशन’ सरकार ने
3.5 लाख करोड़ खर्च
करने का प्रारुप
तैयार है। इससे
स्वच्छ पीने का
पानी उपलब्ध होगा।
’ईज़ ऑफ लिविंग’ के जरिए मोदी
ऐसी व्यवस्था बनाना
चाहते हैं जिसमें
लोगों पर सरकार
का दबाव ना
हो। इसके लिए
कई गैरजरूरी कानूनों
को खत्म किया
गया है। अब
तक 60 गैरजरूरी कानूनों
को खत्म किया
जा चुका है।
स्वच्छता जैसे अभियान
लोगों की सक्रियता
से ही सफल
होंगे। ये कोई
बड़े काम नहीं
हैं। इस मामले
में सबसे ज्यादा
अपेक्षा यदि किसी
से है तो
वह देश के
युवाओं से है।
वे न केवल
खुद को और
लोगों को दिशा
देने का काम
कर सकते हैं,
बल्कि राष्ट्रीय भावना
को बल देने
में भी सहायक
बन सकते हैं।
निःसंदेह उन्हें अपने बेहतर
भविष्य की चिंता
करनी होगी, लेकिन
उनकी चिंताओं का
सही तरह से
समाधान तभी होगा
जब राष्ट्र का
भविष्य भी निखरता
हुआ दिखाई देगा।
आज आवश्यकता इसकी
है कि हम
यह समझें कि
एक नागरिक के
तौर पर राष्ट्र
उत्थान में हर
किसी का योगदान
होता है। दुनिया
के जिन भी
देशों ने विभिन्न
क्षेत्रों में मिसाल
कायम की है
वे ऐसा तभी
कर सके हैं
जब वहां के
लोगों ने राष्ट्रीय
संकल्प को स्वयं
के संकल्प के
रूप में अंगीकार
किया है।
केंद्र सरकार का
फैसला जम्मू-कश्मीर
को एक नए
युग में ले
जाने के लिए
कड़वी औषधि की
तरह है। इसका
असर होने में
वक्त भी लगेगा
और कुछ तकलीफें
भी होंगी। इन
तकलीफों को सहने
के लिए हर
किसी को तैयार
रहना चाहिए। अब
जब राज्य प्रशासन
की ओर से
यह बताया गया
है कि हालात
की समीक्षा करते
हुए पाबंदियों में
चरणबद्ध तरीके से ढील
दी जा रही
है तब उचित
यही है कि
सरकार को अपना
काम करने दिया
जाए। वैसे भी
यह कोई पहला
अवसर नहीं है
जब जम्मू-कश्मीर
में सुरक्षा को
लेकर आम जनता
के आवागमन और
इंटरनेट जैसी सुविधाओं
पर पाबंदियां लगाई
गई हों। बेहतर
हो कि जम्मू-कश्मीर की जनता
सेना प्रमुख जनरल
बिपिन रावत के
इस संकल्प पर
गौर करे जिसमें
उन्होंने कहा है
कि सेना स्थानीय
लोगों के साथ
वैसे ही मिलकर
रहेगी जैसे वह
30-40 साल पहले रहती
थी। रावत के
इस कथन का
संदेश साफ है
कि आतंकवाद के
कारण सुरक्षा चुनौतियों
को देखते हुए
सेना और आम
जनता के बीच
यदि कोई दूरी
बन भी गई
थी तो वह
अब समाप्त होने
वाली है।
जम्मू-कश्मीर में
सुरक्षा को चाक-चौबंद रखने का
उद्देश्य आतंकियों के मंसूबों
को नाकाम करना
है। क्योंकि कश्मीर
में आतंकवाद के
कारण सुरक्षा चुनौतियों
को देखते हुए
सेना और आम
जनता के बीच
यदि कोई दूरी
बन भी गई
थी तो वह
अब समाप्त होने
वाली है। सुप्रीम
कोर्ट ने यह
बिल्कुल सही कहा
कि जम्मू-कश्मीर
में सुरक्षा को
लेकर लगाए गए
प्रतिबंधों को हटाने
के लिए केंद्र
सरकार को वक्त
मिलना चाहिए, क्योंकि
इस राज्य के
हालात संवेदनशील हैं।
कोर्ट की इस
टिप्पणी और याचिकाकर्ता
को लगाई गई
फटकार से उन
लोगों को जवाब
मिल जाना चाहिए
जो अनुच्छेद 370 की
समाप्ति के बाद
हालात नियंत्रण में
रखने के लिए
लगाई गईं तमाम
पाबंदियों को गलत
ठहरा रहे हैं।
यदि कोर्ट को
यह कहना पड़ा
कि याचिकाकर्ता को
जमीनी हकीकत की
जानकारी नहीं है
तो फिर यह
अपने आप साफ
है कि प्रतिबंध
हटाए जाने की
मांग कितनी अतार्किक
है। बेहतर हो
कि इन पाबंदियों
से असुविधा महसूस
कर रहे लोग
यह समझें कि
ये खुद उनकी
और राज्य के
अन्य लोगों की
सुरक्षा के लिए
हैं। मौजूदा हालात
में सुरक्षा संबंधी
प्रतिबंधों को एक
झटके में वापस
नहीं लिया जा
सकता। कश्मीर के
मामले में तो
यह और अधिक
आवश्यक है कि
सुरक्षा को लेकर
अतिरिक्त सतर्कता बरती जाए।
लंबे समय से
आतंकवाद से प्रभावित
जम्मू-कश्मीर में
ऐसे तत्वों को
कोई मौका नहीं
दिया जा सकता
जो भारत को
हजार घाव देने
के मंसूबे पाले
हुए हैं और
किसी भी समय
कोई बड़ी आतंकी
घटना अंजाम देने
की कोशिश कर
सकते हैं। अनुच्छेद
370 पर सरकार के ऐतिहासिक
फैसले के संदर्भ
में सुरक्षा को
चाक-चौबंद रखने
के लिए जो
कदम उठाए गए
हैं उनका उद्देश्य
ऐसे ही तत्वों
के मंसूबों को
नाकाम करना है।
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