Wednesday, 1 April 2020

‘तबलीगी जमात’ बना देश के लिए ‘आफत’

तबलीगी जमातबना देश के लिएआफत
कोरोना वायरस मानवता के लिए एक बड़ा खतरा है। इससे भारत भी अछूता नहीं है। बड़ा डर ये है कि कोरोना वायरस भी कहींस्पानिस फ्लूजैसी महामारी ना बन जाए। इस वायरस ने एक सदी पहले दुनियाभर में 5 करोड़ लोगों की जान ली थी। उस वक्त भी लोगों द्वारा इस वायरस को हल्के में लेना भारी पड़ गया था, आज भी वैसा ही नजारा है। तमाम मनाही के बाद भी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में हुए तबलीगी जमात अब देश के सवा सौ करोड़ के लिए आफत बन गया है। इस पूरे मामले ने कोरोना से लड़ाई लड़ रही केंद्र और राज्य सरकारों की नींद उड़ा दी है। केवल दिल्ली में ही नहीं जमात से जुड़े लोग जहां-जहां गए है वहां से बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित के मरीज मिल रहे है। महाराष्ट्र, हरियाणा, यूपी, बिहार, राजस्थान, एमपी, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल सहित देश के कोने-कोने से हजारों लोग शामिल हुए थे। अब जब इनके संक्रमण होने की जानकारियां मिल रही है तब पुलिस इनकी जांच कराने में जुटी है। सैकड़ों पॉजिटिव मिलने के बाद अब इन्हें यूं ही खुला छोड़ना देश के लिए घातक होगा। इसलिए जरुरी है जमात के लोग जहां है उन्हें तत्काल पकड़कर होम क्वारंटाइन कराया जाएं
सुरेश गांधी
फिरहाल, चोरी-छिपे इलाके के अति संवेदनशील मस्जिदों में डेरा जमाएं तबलीगी जमात के लोग मिल रहे है, जांच में कोरोना पॉजिटिव पाएं गए है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है तबलीगी जमात के लिए इलाके के संवेदनशील मस्जिदों में ही क्यों ठहरे है? मनाही के बावजूद दिल्ली जैसी चाकचौबंद व्यवस्था वाली राजधानी में हजारों की संख्या में जमा कैसे हो गए? अगर जमा हुए भी तो लॉकडाउन की सख्ती के बाद ये दिल्ली समेत यूपी, बिहार, राजस्थान से लेकर तमिलनाडू तक पहुंच कैसे गए? हो जो भी इसमें जरुर कहीं कहीं बड़ी साजिश और किसी बड़े दल की संरक्षण से इंकार नहीं किया जा सकता। जहां कहीं भी तबलीगी जमात के लोगों की धर-पकड़ हो रही है, जांच के लिए ब्लड सैंपल में कोरोना की पुष्टि हो रही है। खास बात यह है कि सभी के सभी भारतीय नहीं है, बाहर देशों से आएं हुए है और अपनी पहचान बनाकर उन्हीं मस्जिदों में डेरा बनाएं है जिन्हें पहले से ही कट्टरता के लिए जाना जाता रहा है। दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके की मस्जिद में इतनी बड़ी संख्या में एकत्रित होना और जलसे को सफल होने के साथ देशभर में इन्हें भेजा जाना किसी बड़ी साजिश की ओर ही इशारा करता है। आश्चर्य इसलिए भी है कि तबलीगी जमात के लोगों को मनाही के बाद भी आयोजन करने में सफल कैसे हो गए।
बता दें, 28-29 मार्च की रात तबलीगी जमात के मौलाना साद ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल से वादा किया था, कार्यक्रम नहीं होंगे। मतलब साफ है अजीत डोवाल और गृह मंत्री अमित शाह इस मसले को लेकर काफी गंभीर थे। उनकी गंभीरता के बाद भी अगर कार्यक्रम हुए तो जरुर किसी बड़े पहुंच वाले की संरक्षण इन्हें हासिल थी। यह अलग बात है कि निजामुद्दीन के आलमी मरकज में 36 घंटे का सघन अभियान चलाकर पूरी बिल्डिंग को खाली करा लिया गया है। इस इमारत से कुल 2361 लोगों में से 617 संक्रमित पाएं गए है। जिसमें 24 पॉजिटिव है। देश के अन्य हिस्सों में भी पहुंचे जमात के लोगों की धरपकड़ तेज कर दी गयी है। महाराष्ट्र से लेकर यूपी बिहार, एमपी दक्षिण भारत तक में जहां कहीं भी ये मिल रहे है अधिकांश पॉजिटिव ही पाएं गए है। कोरोना के शुरुआती लक्षणों की वजह से इन्हें अस्पतालों में या मस्जिदों में ही क्वारंटाइन के लिए रखा गया है। जबकि इस जमात से जुड़े करीब 8 लोगों की देश के अलग अलग हिस्सों में मौत हो चुकी है। अब तक देश भर में जमात से जुड़े 84 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। इनमें दिल्ली के 24, तेलंगाना के 15 और तमिलनाडु के 45 लोग हैं। खास बात यह है कि ये मस्जिदों में छुपे थे और अधिकांश विदेशी है। इनमें सबसे ज़्यादा इंडोनेशिया से 72 लोग, थाईलैंड से 71, श्रीलंका से 34 लोग, म्यांमार से 33 लोग, किर्गिस्तान से 28 लोग, मलेशिया से 20 लोग, बांग्लादेश और नेपाल से 19-19 लोग, फिजी से 4 लोग, इंग्लैंड से 3 लोग, कुवैत से 2 लोग, फ्रांस, अल्जीरिया, जिबूती और अफगानिस्तान से एक-एक लोग शामिल हैं।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि दुनिया में इस्लाम के जो मुख्य केंद्र हैं, वहां पर मस्जिदें खाली हैं, धार्मिक आयोजन बंद हैं। नवरात्र के बाद भी देश के लगभग सारे मंदिर बंद हैं। गुरुद्वारे और चर्च भी लॉकडाउन में है। ज्यादातर मस्जिदों में भी इसका पालन हो रहा है। लेकिन निजामुद्दीन जैसी मस्जिद में बड़ी आसानी से इस्लामिक आयोजन करने का अभिप्राय है कि हर ये लोग लॉकडाउन का पालन नहीं कर रहे है। देश के संविधान, कानून और पुलिस के आदेशों के मुताबिक नहीं चलना चाहते। ऐसा इसलिए कि क्योंकि यहां इस्लाम सिर्फ धर्म नहीं राजनीति का हिस्सा बनाया जा चुका है। इसके नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं और इसे वोटबैंक की तरह देखा जाता है। कुछ दिनों पहले तक शाहीन बाग में भी ऐसा ही हो रहा था। वहां भी विरोध प्रदर्शन कर रहे लोग कानून, पुलिस और संविधान की सुनने को तैयार नहीं थे। यानी हर बार कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए सारे नियमों और अपीलों को ताक पर रख देते हैं और देश इनकी गलतियों का नतीजा भुगतता है, ऐसे लोगों के लॉकडाउन को लेकर अपने नियम होते हैं और अपने वैचारिक ताले होते हैं। इसलिए ऐसे लोगों की पहचान करना भी बहुत ज़रूरी है।
या यूं कहे दिल्ली ही नहीं देश भर में लॉकडाउन नियमों का सख्ती से पालन नहीं हुआ तो कोरोना से जीत के संघर्ष में परेशानियां ही खड़ी होने लगेंगी। इसीलिए शक्ति जरूरी है। खासकर तब जब कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या देशभर में लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले दिनों दिल्ली से लेकर मुंबई और इंदौर से लेकर जयपुर तक जहां भी कोरोना संक्रमित मरीज सामने आए वहां एक ही समानता नजर आई है। वह यह है कि जहां भी लोग कोरोना से जुड़े तथ्य छिपा रहे हैं या नियमों को अवहेलना कर रहे हैं वही लोग कोरोना को पांव पसारने में जगह मिली है। तबलीगी जमात के मरकज में कोरोना संक्रमण के इतनी बड़ी संख्या में आए मामले आपराधिक कहानी बया कर रही है। जमात के आयोजक तो इसके लिए जिम्मेदार हैं ही सरकार को भी देखना होगा उससे चूक कहां हुई। क्योंकि दुनिया के 10 से ज्यादा देशों के 1700 लोगों का एकजगह इकठ्ठा होना बड़ा सवाल है। इनके एक शहर से दूसरे शहर में जाने से संक्रमण का खतरा और बढ़ गया है। खतरा दिल्ली तक ही सीमित नहीं है तेलंगना, तमिलनाडु से लेकर उत्तराखंड तक कोरोना का खतरा फैल चुका है। क्योंकि यह सभी लोग देश के अलग-अलग हिस्सों से आए और गए हैं।
भारत में धार्मिक प्रचार के लिए आने के लिए मिशनरी वीज़ा लेना होता है जिसमें कम से कम तीन महीने का वक्त लगता है। इस वीज़ा को पाने के लिए कड़े नियम हैं। इसलिए तबलीगी जमात जैसे कार्यक्रमों में आने वाले लोग गलत जानकारी देकर टूरिस्ट वीज़ा पर भारत आते हैं। फिर धार्मिक प्रचार प्रसार में जुट जाते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि तबलीगी जमात में शामिल कई विदेशियों ने वीज़ा नियमों का उल्लंघन किया है और इनको विदेशियों को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है। यानी इनके भारत आने पर अब प्रतिबंध लग जाएगा। जहां तक कोरोना के खतरे का सवाल है तो कहा जा रहा है कि यह महामारी वर्ष 1918 में हुए प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान आई स्पैसिक फ्लू से भी बड़ी है। सालभर में ही इस वायरस ने दुनिया की एक तिहाई आबादी यानी करीब 50 करोड़ लोग इससे संक्रमित हो चुके थे। जिनमें 5 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। ये आंकड़ा उस वक्त दुनिया की आबादी का 1.7 प्रतिशत था। इस महामारी से भारत में करीब एक करोड़ 80 लाख लोगों की मौत हो गई थी। हर रोज 230 लोगों की मौत हो रही थी। उस वक्त भी बार-बार हाथ धोने जैसे जागरूकता अभियान चलाए जाते थे। जैसे आज चलाए जा रहे हैं। लेकिन उस वक्त भी ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो लॉकडाउन जैसे नियमों का पालन नहीं कर रहे थे। परिणाम यह हुआ कि करोड़ों लोगों की उस वायरस ने जिंदगी छीन ली। कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है। हमें इतिहास से सबक सीखना चाहिए। कोरोना वायरस के खिलाफ पूरी मजबूती के साथ लड़ें।

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