भागेगा कोरोना, आयेगी खुशियां, जब जलेंगे दीये
शारीरिक दूरी बनाए रखने के दौर में प्रकाश ही हमें नजदीक लाएगा।
सुरेश गांधी
वाराणसी।
कोरोना से जंग
में देश को
एकजुट करने के
लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने रविवार
यानी पांच अप्रैल
को रात नौ
बजे, नौ मिनट
तक लोगों से
घर की लाइट
बुझाकर अपने घर
से निकलकर या
छत पर दीया
जलाने की अपील
की है। उनके
मुताबिक कोरोना वायरस महामारी
के अंधकार को
मिटाने के लिए
प्रकाश की जरूरत
है। बेशक, दीया
जलाने, मोबाइल टार्च से
कोरोना भागेगा या नहीं,
कोई गारंटी नहीं
है। लेकिन यह
हकीकत है कि
दीप जलाने से
कीटाणु मर जाते
है, भस्म हो
जाते है। दीपावली
पर दीये जलाने
का यही मकसद
है। यही वजह
है कि घरों
के बाहर प्रकाश
फैलाने को देश
उसी तरह आतुर
हो उठा है,
मानो दिवाली मनाने
जा रही हो।
धर्मिक दृष्टि से
देखा जाए तो
दीप का बड़ा
ही महत्व है।
हिंदू धर्म में
दीप को आत्मा
और ईश्वर का
प्रतीक तक माना
गया है। यह
धर्म और विजय
का सूचक भी
होता है। दीप
शुभ-मंगल और
कल्याण का कारक
होता है। दीपक
जलाने से रोग
मुक्त होते हैं।
वातावरण स्वच्छ होता है।
हवा हल्की होती
है। यही वजह
है कि धर्म
ग्रंथों में रोग
को अंधकार और
आसुरी शक्तियों का
सहायक माना गया
है। जिसे हराने
के लिए दैवी
शक्ति के प्रतीक
चिह्न के रूप
में हर शाम
दीप जलाने की
बात कही गई
है। प्रधानमंत्री के
इस आह्वान के
गहरे निहितार्थ हैं।
दरअसल, यह राष्ट्रीय
जागरण का आह्वान
है, जो पूरे
देश की एकजुटता
और हर हाल
में हौसला कायम
रखने की प्रवृत्ति
का सूचक है।
इससे वातावरण के
साथ-साथ हमारे
अंतर्मन में भी
नई ऊर्जा का
संचार होगा और
हम नए संकल्प
और दृढ़ निश्चय
के साथ वर्तमान
परिस्थितियों का मुकाबला
करने के लिए
तैयार होंगे। यह
नई चेतना निश्चित
ही हमारी मानसिकता
को सकारात्मक दिशा
में मोड़ेगी और
वायरस के कुचक्र
को भी तोड़ेगी।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय‘ के हमारे
सिद्धांत से सभी
परिचित हैं। हमारी
तो जीवन और
जन्म जन्मांतर की
पूरी यात्रा ही
अंधेरे से उजाले
की ओर होती
है। इसीलिए भगवान
राम से लेकर
कृष्ण तक जब
जब भी हमने
आसुरी और आताताई
शक्तियों पर विजय
पाई है तब
तब हम ने
दीप प्रज्वलित कर
अपनी विजय का
स्वास्तिक प्रदर्शन किया है।
कोरोना के खिलाफ
भी हम जीत
के नजदीक पहुंच
रहे हैं और
जल्द ही हम
इस पर विजय
भी पा लेंगे।
हालांकि लड़ाई अभी
बाकी है लेकिन
यह उस जीत
की झांकी है
जिसके जरिए हम
कोरोना को न
केवल अपने देश
से बल्कि संपूर्ण
विश्व से समूल
नष्ट कर देंगे।
या यूं कहे
जिंदगी केवल तर्क
से ही नहीं
जीती जा सकती
उसमें भावनाओं की
भी जरूरत होती
है। नकारात्मक दौर
में आशावादी सोच
को संचालित करने
का यह एक
तरीका है। शारीरिक
दूरी बनाए रखने
के दौर में
प्रकाश ही हमें
नजदीक लाएगा। यह
मनोवैज्ञानिक तरीका है जिससे
मुश्किल वक्त से
भी पार पाया
जा सकता है।
दीप प्रज्वलन के समय इस मंत्र का स्मरण करें :
दीपज्योतिः परब्रह्मः दीपज्योतिः जनार्दनः।
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योतिः नमोस्तुति।।
यानी दीप
की रोशनी परब्रह्म
का स्वरूप है,
यह नारायण रूप
है। संध्या काल
में जलाया जाने
वाला दीप ना
सिर्फ अंधकार यानी
नकारात्मक ऊर्जा का हरण
करता है बल्कि
अनजाने में हुए
पाप का भी
शमन करता है।
दीप शत्रुओं का
विनाश करता है
और आरोग्य एवं
सुख प्रदान करता
है।
दीपक जलाने से मरते हैं जीवाणु
हमारा विज्ञान भी
कुछ ऐसा ही
कहता है। वैज्ञानिकों
के मुताबिक सरसों
के तेल में
मैग्नीशियम ट्राइग्लिसराइड और आइसोथायोसायनाइड
होता है। लाइट
जलने पर वह
कीट-पतंगों को
अपनी ओर आकर्षित
करता है और
उसके लौ वे
जल जाते हैं।
तेल में मौजूद
मैग्नीशियम हवा में
मौजूद सल्फर और
कार्बन के आक्साइड
के साथ क्रिया
कर सल्फेट और
कार्बोनेट बना लेता
है। यह विषैले
भारी तत्व इस
तरह जमीन पर
आ गिरते हैं।
इसीलिए जले दीपक
के आसपास हल्की
सफेद राख सी
दिखती है। भारी
तत्व जमीन पर
आने से हवा
हल्की हो जाती
है और सांस
लेना आसान हो
जाता है। ऐसा
घी का दीपक
जलाने पर भी
होता है। देशी
गाय के दूध
से निर्मित घी
का दीपक भी
कीटाणुओं को मारता
है। वैज्ञानिकों का
कहना है कि
इससे वातावरण स्वच्छ
और खुशनुमा होता
है। जिससे शरीर
में इम्यून बढ़ता
है। दिवाली की
बात करें तो
नरक चतुर्दशी के
दिन भी कूड़े
के ढेर और
नाली के मुहाने
पर दीप जलाने
का भी मकसद
यही होता है।
इसलिए दिवाली पर
घर बाहर हर
जगह दीप रखा
जाता है।
दोषनाशक रवि योग में होगा कोराना का नाश
ज्योतिषियों के मुताबिक
5 अप्रैल 2020 को रात्रि
काल अर्थात रात्रि
9ः00 बजे पूर्वा
फाल्गुनी नक्षत्र है। जिससे
सिंह राशि बनती
है। जिसका अधिपत्र
सूर्य है। सूर्य
रेजी नक्षत्र में
होगा। सूर्य परमेश्वर
की ज्योति का
प्रतिनिधित्व करते हैं।
लोक में अंधकार
से प्रकाश की
स्थापना करते हैं।
अर्थात समस्त दोषनाषक रवि
योग बन रहा
है। वैसे भी
अग्नि के पांच
रूप होते हैं।
ब्राह्म, प्राजापत्य, गार्हस्थ्य, दक्षिणाग्नि
और क्रव्यादाग्नि। ब्राह्म
की उत्पत्ति अरणिमंथन
के द्वारा होती
है। इन सभी
का उपयोग उपयोग
काफी लाभप्रद है।
ब्रह्मचारी को अग्निहोत्र
के उप नयन
के समय प्राप्त
होता है। विवाह
उपरांत कुल में
प्रतिष्ठित होकर शुभ
कर्मों में इसका
प्रयोग होता है
और ग्राम में
उपद्रव के समान
अर्थात राक्षस बाधा व
अदृश्य शक्तियों के उपद्रव
को विनाश और
अवरोधन के लिए
किया जाता है।
उस समय श्री
अनंग अर्थात मंगल।
या यूं कहे
आम जनता की
जान माल की
रक्षा और सुख,
स्वास्थ्य के लिए
के लिए चतुर्थ
भाव में मंगल
और गुरु के
साथ युति महत्वपूर्ण
कारक है। जिसमें
शनि के अंधकार
को मंगल की
उर्जा को बढ़ाने
से अवश्य किया
जा सकता है।
आमजन के मनोबल
को बढ़ाने के
लिए सिंह अर्थात
सूर्य की राशि
में बैठे चंद्रमा
को जलते हुए
दीपकों से अवश्य
बल मिलेगा। अंक
विद्या के द्वारा
नव संख्या 5 अप्रैल
2020 को आ रही
है। रात्रि 9ः00
बजे 9 मिनट का
समय निर्धारण की
पूर्णता का प्रतीक
है। क्योंकि 9 संख्या
को पूर्ण संख्या
माना जाता है।
जिसवक्त मोदी का
संबोधन हुआ उस
वक्त भी योग
9 ही था।
आत्मबल
का प्रतीक है
दिया
उत्ससहो
बलवानार्थ नास्युत्साहात्परं बलम्, सोत्साहस्य हि
लोकेषु न किंचिदपि
दुलर्भम्। यानी उत्साह
बड़ा बलवान होता
है। उत्साह से
बढ़कर कोई बल
नहीं होता। उत्साही
पुरुष के लिए
संसार में कुछ
भी दुर्लभ नहीं
है। बाल्मिकी रामयण
के किष्किंधा कांड
में श्लोक दीप
प्रज्वलन परंपरा के मूल
में है। इस
परंपरा में दीप
महत्वपूर्ण है।
दीवाली जैसा ही है तापमान
कार्तिक माह में
सूर्य सर्वाधिक कमजोर
होता है। इसलिए
इस समय ऊर्जा
और प्रकाश दोनों
ही कमजोर हो
जाता है। इसलिए
इस समय दीपक
जलाकर हम ईश्वर,
ऊर्जा और प्रकाश
से सम्बन्ध स्थापित
करते हैं। दीपक
से ईश्वर की
कृपा, ऊर्जा और
समृद्धि सब कुछ
मिल सकता है।
दीपक जलाने से
नमी भी बढ़ती
है। अधिक संख्या
में जलाने पर
वातावरण का तापमान
बढ़ता है। दोनों
स्थितियां कोरोना से लड़ने
के लिए मुफीद
हैं। चूंकि इस
बार मार्च-अप्रैल
का औसत तापमान
कमोबेश अक्टूबर जैसा ही
है, जैसा कि
दिवाली के समय
रहता है, इसलिए
हवा भारी है।
दीपक जलाने से
वह हल्की और
साफ होगी। इसमें
स्निग्ध चीजें और मेवे
खाने की सलाह
दी जाती है।
जिन चीजों का
स्वभाव गर्म हो
और लम्बे समय
तक ऊर्जा बनाए
रखें, ऐसी चीजों
को खाना चाहिए।
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