यूपी विधानसभा चुनाव - 2022 : अमित शाह की ’सोशल इंजीनियरिंग’ के चक्रव्यूह को भेद पायेगा विपक्ष?
यूपी
में
सवर्ण
जातियां
18 फीसदी
है,
जिसमें
ब्राह्मण
10 फीसदी
हैं।
कुल
आबादी
में
39 फीसदी
पिछड़ा
वर्ग
है,
जिसमें
यादव
12 फीसदी,
कुर्मी-सैथवार
8 फीसदी,
जाट
5 फीसदी,
मल्लाह
4 फीसदी,
विश्वकर्मा
2 फीसदी
और
अन्य
पिछड़ी
जातियां
7 फीसदी
है।
अनुसूचित
जाति
25 फीसदी
और
मुस्लिम
18 फीसदी
है।
इन्हीं
जातियों
को
अपने-अपने
पाले
में
लाने
के
लिए
सपा-बसपा
व
भाजपा
में
सिर
फुटौवल
है।
लेकिन
2014, 2017 व 2019 में भाजपा
के
थिंक
टैंक
अमित
शाह
ने
मायावती
से
इतर
अपनी
नई
सोशल
इंजिनियरिंग
के
फार्मूल
से
जातियों
के
शी-मात
के
खेल
में
सभी
दलों
को
पछाड़ते
हुए
स्वीप
किया,
बल्कि
केन्द्र
व
राज्यों
सरकार
बनवाई।
मोदी
मंत्रिमंडल
के
विस्तार
में
जिस
तरह
हिस्सेदारी
के
हिसाब
से
जाति
वाले
नेताओं
की
अमित
शाह
के
मुलाकात
के
बाद
जगह
मिली
है,
उससे
साफ
है
यूपी
में
एक
बार
फिर
से
अमित
शाह
की
सोशल
इंजिनियरिंग
सिर
चढ़कर
बोलेगा।
ऐसे
में
बड़ा
सवाल
तो
यही
है
क्या
यूपी
में
अमित
शाह
की
’सोशल
इंजीनियरिंग’
वाली
चक्रव्यूह
को
भेद
पायेगा
विपक्ष?
सुरेश गांधी
फिरहाल, विधानसभा चुनाव 2022 से पहले मोदी
सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार
में अनुप्रिया पटेल सहित 7 लोगों को जगह देकर
ओबीसी, दलित, ब्राह्मण समुदाय को साधने की
भरपूर प्रयास किया गया है। एक तरह से
मंत्रीमंडल में इन्हें जगह देकर भाजपा ने जाति समीकरण
को चाक-चौबंद करने की कोशिश की
है। माना जा रहा है
अनुप्रिया पटेल, पंकज चौधरी, बीएल वर्मा, सत्यपाल सिंह बघेल, भानु प्रताप वमा, कौशल किशोर पासी व अजय कुमार
को मंत्रीमंडल में जगह देकर पार्टी ने कुर्मी, लोध,
अनुसूचित जाति, पासी, बिंद, मल्लाह, ब्राह्मण सहित अन्य जातियों साधने की खाका तैयार
किया है। या यूं कहे
यूपी से सर्वाधिक 7 राज्य
मंत्री, 3$3$1 फॉर्मूले से ओबीसी, दलित,
ब्राह्मण समुदाय को साधने की
कोशिश की गयी है।
यूपी में लोक सभा की 80 सीटें हैं और विधान सभा
की 403 सीटें हैं। इसीलिये केन्द्र सरकार में सबसे ज्यादा मंत्री भी यूपी से
बनाए गए हैं। इस
विस्तार से पहले केन्द्र
सरकार में यूपी से 9 मंत्री थे और खुद
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यूपी के
वाराणसी से ही लोक
सभा के सांसद हैं।
यानि मोदी सरकार में अब यूपी के
कोटे से कुल 15 मंत्री
होंगे। बता दें, मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार
में यूपी के जातिगत समीकरण
साधने का प्रयास किया
गया है। ओबीसी और दलितों को
प्रमुखता से जगह दी
गयी है। यूपी से जो नये
केंद्रीय मंत्री बनाये गये हैं उनमें से तीन का
संबंध पिछड़े वर्ग, तीन का दलित समूह
है से है। जबकि
एक ब्राह्मण समुदाय से है। सात
में से केवल एक
सहयोगी दल का है
और शेष भाजपा के ही सांसद
हैं। यह सब अगले
वर्ष के शुरू में
होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव को ध्यान में
रख कर किया गया
है।
मोदी मंत्रिपरिषद में शामिल किये गये मंत्रियों में महाराजगंज संसदीय क्षेत्र से भाजपा से
छठी बार चुने गये पंकज चौधरी और मिर्जापुर से
भाजपा की सहयोगी अपना
दल (एस) से दूसरी बार
चुनी गयी सांसद अनुप्रिया पटेल पिछड़े वर्ग के कुर्मी समाज
से हैं। जबकि बदायूं निवासी राज्यसभा सदस्य बीएल वर्मा पिछड़े वर्ग के लोधी राजपूत
हैं। अनुसूचित जाति वर्ग में आगरा से भाजपा सांसद
सत्यपाल सिंह बघेल धनगर, जालौन के सांसद भानु
प्रताप वर्मा-कोरी और लखनऊ के
मोहनलालगंज क्षेत्र के सांसद कौशल
किशोर पासी समाज से आते हैं।
इनके अलावा लखीमपुर खीरी से दूसरी बार
के सांसद अजय कुमार ब्राह्मण समाज से हैं।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि 2019 में
जब फिर से मोदी सरकार
बनी तो अनुप्रिय कों कैबिनेट
में जगह नहीं मिली थी। अब मोदी सरकार
2.0 के पहले कैबिनेट विस्तार में अमित शाह के मुलाकात के
बाद अनुप्रिया पटेल को केंद्रीय मंत्री
बनाया गया है। यूपी में 2014 से अपना दल
(एस) और बीजेपी का
गठबंधन है। 2014 में इस गठबंधन के
सूत्रधार अमित शाह थे, क्योंकि इस वक्त अमित
शाह यूपी बीजेपी के प्रभारी थे।
अनुप्रिया पटेल यूपी में कुर्मी वोट बैंक का सबसे बड़ा
चेहरा हैं। पूर्वांचल और बुंदेलखंड के
कुर्मी वोट बैंक पर अपना दल
(एस) की अच्छी पकड़
मानी जाती है। यूपी में कुर्मी मतदाता 7 फीसदी है, जो सूबे की
करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटों पर निर्णायक
भूमिका निभाते हैं। यूपी में कुर्मी जाति की संत कबीर
नगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और बाराबंकी, कानपुर,
अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों
में ज्यादा आबादी है। यहां की विधानसभा सीटों
पर कुर्मी समुदाय या जीतने की
स्थिति में है या फिर
किसी को जिताने की
स्थिति में। मौजूदा समय में यूपी में कुर्मी समाज के बीजेपी के
छह सांसद और 26 विधायक हैं। केंद्र की मोदी सरकार
में दो मंत्री इसी
समुदाय से शामिल किए
गए हैं। इसके अलावा यूपी में योगी सरकार में कुर्मी समुदाय के तीन मंत्री
है। इसमें कैबिनेट मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा, राज्यमंत्री जय कुमार सिंह
’जैकी’ हैं। इस तरह से
यूपी के कुर्मियों पर
बीजेपी ने अपनी और
भी पकड़ को मजबूत बनाने
की कवायद की है।
कल्याण सिंहअब पहले की तरह राजनीति
में सक्रिय नहीं है और लंबे
समय से बीमार चल
रहे हैं। ऐसे में पीएम मोदी ने उन्हीं के
करीबी बीएल वर्मा को अपनी कैबिनेट
में लाकर यूपी के लोध समुदाय
को साधने का बड़ा दांव
चला है। बृज क्षेत्र से लेकर रुहेलखंड
और बुलंदेखंड तक लोधी समुदाय
सियासी तौर पर बीजेपी के
लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं।
मूल रूप से बदायूं के
रहने वाले बीएल वर्मा ओबीसी समुदाय की लोधी जाति
से आते हैं। एसपी सिंह बघेल यूपी की सियासत में
बहुत मशहूर है। एससी समुदाय से आने वाले
एसपी सिंह बघेल यूपी की आगरा लोक
सभा सीट से सांसद हैं।
पांचवी बार सांसद बने एसपी सिंह बघेल की पकड़ पाल-बघेल और धनगर वोटरों
में अच्छी मानी जाती है। फिरोजाबाद और सपा के
गढ़ से आने वाले
एसपी सिंह बघेल एक वक्त में
मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी
लोगों में से एक थे।
लेकिन 2017 में अपने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले के
तहत अमित शाह ने एसपी सिंह
बघेल को बीजेपी में
शामिल कराया। कौशल किशोर यूपी के मोहनलालगंज लोक
सभा सीट से सांसद हैं।
लखनऊ जिले की इस लोक
सभा सीट पर दूसरी बार
कौशल किशोर सांसद बने हैं। यूपी में बीजेपी के अनुसूचित जाति
के चेहरा माने जाते हैं कौशल किशोर। यूपी बीजेपी के अनुसूचित जाति
मोर्चा के अध्यक्ष भी
हैं, अमित शाह इन्हें बीजेपी में लेकर आए थे। यूपी
की योगी सरकार के खिलाफ पिछले
कुछ महीनों से कौशल किशोर
काफी मुखर थे। कौशल किशोर को मंत्री बनाकर
अवध और पूर्वी यूपी
के एससी वोट पर बीजेपी की
नजर है। लखनऊ, बाराबंकी, हरदोई, रायबरेली, अमेठी, कौशांबी बहराइच, उन्नाव में पासी वोटर निर्णायक भूमिका में है। इसी समीकरण को देखते हुए
पीएम मोदी ने कौशल किशोर
पर दांव लगाया है।
पंकज चौधरी यूपी के महाराजगंज से
सांसद हैं, छठी बार सांसद बने पंकज चौधरी बीजेपी के बहुत पुराने
कार्यकर्ता हैं। पंकज चौधरी तब भी लोक
सभा का चुनाव जीतते
रहे हैं जब यूपी में
बीजेपी की कोई लहर
नहीं थी। ओबीसी समुदाय में कुर्मी बिरादरी से आने वाले
पंकज चौधरी को बरेली से
सांसद संतोष गंगवार का मंत्रीपद से
इस्तीफा दिलवाकर मंत्री बनाकर पूर्वांचल के कुर्मी वोट
बैंक को साधने की
कोशिश की गई है।
भानु प्रताप वर्मा- यूपी के जालौन लोक
सभा सीट से सांसद हैं।
बुंदेलखंड की राजनीति में
बड़ा नाम है। एससी वोट बैंक के लिए भानु
वर्मा को जगह मिली।
एससी के कोरी समाज
से आते हैं भानु वर्मा। भानु वर्मा पांचवीं बार सांसद बने हैं। अजय मिश्र टेनी यूपी के लखीमपुर खीरी
से लोक सभा सांसद हैं। दूसरी बार सांसद बने हैं। इन्हें ब्राह्मण चेहरे के तौर पर
आगे बढ़ाने की तैयारी कर
रही है बीजेपी। इनके
जरिए अवध और मध्य यूपी
के नाराज ब्राह्मण वोट बैंक को अपने पाले
में लाने का प्रयास है।
यूपी में भले ही ब्राह्मण 8 से
10 फीसदी हो, लेकिन राजनीतिक रूप से वो करीब
पांच दर्जन विधानसभा सीटों पर असर रखते
हैं।
एक तरह से
2014 के लोकसभा चुनाव से ही बीजेपी
के पाले में आ खड़े हुए
यूपी में सर्वाधिक आबादी वाले पिछड़ा और अन्य पिछड़ा
वर्ग को तीन नए
मंत्री बनाकर पीएम मोदी ने ’सबका साथ और सबका विकास’
का संदेश दिया है। यह दांव पिछड़ों
को अपने पाले में खींचने का प्रयास कर
रही सपा के दांव को
बेअसर करने वाला माना जा रहा है।
इसी तरह बसपा के कोर माने
जाते रहे 22 फीसद अनुसूचित जाति के वोट में
भी भाजपा अच्छी सेंध लगा चुकी है। इस वर्ग परपर
मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए दलित
वर्ग से भी तीन
मंत्री शामिल किए गए हैं। पूर्वांचल
में पिछड़ों में कुर्मी समुदाय भी यादवों की
तरह सियासी तौर पर कफी ताकतवर
है, जिस पर सभी पार्टियों
की नजर रहती है। बीजेपी अपनी ओर खींचने के
लिए प्रदेश अध्यक्ष के साथ क्षेत्रीय
अध्यक्ष का भी चेहरा
आगे करती रही है। कहा जा सकता है
पीएम मोदी ने कैबिनेट विस्तार
के जरिए यूपी में जातिय और क्षेत्रीय संतुलन
बनाने के साथ-साथ
विपक्ष के समक्ष मजबूत
चक्रव्यूह गढ दिया है,
जिसे भेद पाना विपक्ष के लिए आसान
नहीं होगा। इस तरह पीएम
मोदी सहित यूपी से मंत्रियों की
संख्या 15 पर पहुंच गया
है। मोदी 2 में यूपी कोटे के मंत्रियों में
पांच सवर्णों की भागीदारी पहले
से हैं, जिनमें रक्षामंरक्षामंत्री राजनाथ सिंह, डा. महेंद्र नाथ पांडेय, जनरल वीके सिंह, स्मृति ईरानी और हरदीप पुरी
हैं। वहीं, अब एक और
ब्राह्मण को शामिल कर
यूपी में विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे ब्राह्मणों
से भेदभाव के मुद्दे को
भी कुंद करने का प्रयास किया
गया है।
मंत्रीमंडल में शिक्षित और युवाओं को तरजीह
यहां सबसे बड़ा मसला यह है कि
अब मोदी की टीम में
राज्यों के अनुभवी नेता
भी होंगे। जैसे मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब
सरकार में 4 नेता ऐसे हैं, जो मुख्यमंत्री रह
चुके हैं। इनमें असम के पूर्व मुख्यमंत्री
सर्बानंद सोनोवाल, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री
नारायण राणे, राजनाथ सिंह और अर्जुन मुंडा
हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी गुजरात के
चार बार मुख्यमंत्री रहे हैं। इस मंत्रिमंडल में
18 नेता ऐसे हैं, जिनके पास राज्य सरकारों में मंत्री पद का अनुभव
है और 39 नेता ऐसे हैं, जो पहले विधायक
भी रह चुके हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब
सरकार में पढ़े लिखे नेताओं की संख्या सबसे
ज्यादा हो गई है।
अब सरकार में 13 वकील, 6 डॉक्टर्स, 5 इंजीनियर्स, 7 सिविल सर्वेंट्स, 7 पीएचडी स्कॉलर, 3 एमबीए और 68 नेता ऐसे हैं, जो ग्रेजुएट हैं।
यानी प्रधानमंत्री मोदी की नई टीम
में 88 प्रतिशत नेता ऐसे हैं, जो ग्रेजुएट हैं।
इसके अलावा अब केंद्र सरकार
में 5 मंत्री अल्पसंख्यक समुदाय से भी हो
गए हैं। इसके अलावा गुजरात में भी चुनाव हैं,
जिसको देखते हुए मनसुख मंडाविया और पुरुषोत्तम रूपाला
का प्रमोशन किया गया है। इसके अलावा तीन नए चेहरों दर्शना
जरदोश, महेंद्रभाई मुंजापारा और देव सिंह
चौहान को भी जगह
दी गई। हिमाचल प्रदेश से अनुराग ठाकुर
को राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री
बनाया गया है। पीएम मोदी ने अपनी कैबिनेट
में एनडीए के सहयोगी दलों
को भी प्रतिनिधित्व दिया
है। शिवसेना और अकाली दल
के नाता तोड़ने के बाद बीजेपी
में सहयोगी दल के तौर
पर रामदास अठावले एकलौते मंत्री थे। वहीं, अब मोदी सरकार
ने अपना दल से अनुप्रिया
पटेल को राज्यमंत्री के
तौर पर शामिल किया
है तो कैबिनेट मंत्री
के तौर पर जेडीयू से
आरसीपी सिंह और एलजेपी से
पशुपति कुमार पारस को जगह दी
है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट
विस्तार में जिस तरह से पुराने चेहरे
को हटाकर नए और युवा
चेहरों को मंत्रिमंडल में
शामिल किया है। इससे साफ है कि बीजेपी
भविष्य के लिए लीडरशिप
तैयार कर रही है।
मोदी सरकार में पहली बार जीतकर आए एक दर्जन
युवा नेताओं को कैबिनेट में
जगह दी है। माना
जा रहा है आने वाले
समय में बीजेपी के यही नेता
चेहरा बनेंगे और पार्टी को
आगे ले जाने का
काम करेंगे। पश्चिम बंगाल में चार चेहरो को शामिल किया
है, जिनमें दो मंत्री ऐसे
है जिनकी उम्र 40 साल से कम है
जबकि एक मंत्री की
उम्र 45 साल है। बंगाल के नीसिथ प्रमाणिक
सबसे कम उम्र के
मंत्री हैं और वो महज
35 साल के हैं। वहीं,
तमिलनाडु से एल मुर्गन
को जगह दी गई है,
जिनकी उम्र 44 साल है जबकि महाराष्ट्र
की डॉ. भारती प्रवीण पवार को राज्य मंत्री
के रूप में शामिल किया गया है, जिनकी उम्र 42 साल है। विस्तार के बाद मोदी
कैबिनेट में 14 ऐसे चेहरे हैं जिनकी उम्र 50 साल से भी कम
है और मंत्रियों की
औसत आय 58 साल हो गई है
जबकि पहले 59 साल थी।
बड़ेही स्पष्ट रूप से जातिगत समीकरण को साधते हुए माननीय प्रधानमंत्री एवं उनके सलाहकारों ने इस नए मंत्रिमंडल में फेरबदल किया है। इस लेख के लिए लेखक भी बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteशानदार लेखन...
ReplyDeleteसमाज के हर तबके को साधना सरकार की महिती जिम्मेदारी है जिसमे वह पूरी तरह से सफल होते हुए दिख रहें है...
वाह मोदी जी वाह...