काशी हिन्दी की जननी : अमित शाह
अपनी भाषा
में
बच्चों
से
करें
बात,
मुझे
गुजराती
से
ज्यादा
हिंदी
भाषा
पसंद
हिंदी भाषा
पर
कॉनट्रोवर्सी
करने
वालों
का
समय
अब
हुआ
खत्म
लोकतंत्र तभी
सफल
हो
सकता
है
जब
प्रशासन
की
भाषा
स्वभाषा
और
राजभाषा
हो
वीर सावरकर
ने
हिंदी
के
संरक्षण
व
संवर्धन
में
अहम
योगदान
दिया
है
सुरेश गांधी
वाराणसी। काशी हमेशा विद्या की राजधानी रही है। काशी सांस्कृतिक नगरी है। देश के इतिहास को काशी से अलग कर नहीं देख सकते। काशी भाषाओं का गोमुख है। हिंदी का जन्म काशी से हुआ है। 1868 में काशी से ही शिक्षा हिंदी में हुई। हिंदी और हमारी सभी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे गुजराती से ज्यादा हिंदी भाषा पसंद है। हमें अपनी राजभाषा को मजबूत करने की जरूरत है। यह बाते केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कही। शाह वाराणसी के दो दिवसीय दौरे के दसरे दिन हस्तकला संकुल में आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में आएं लोगों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने
कहा कि हिंदी को
मजबूत करने का और घर-घर पहुंचाने का
काम ’काशी’ से उचित जगह
को छोड़ कहीं हो ही नहीं
सकता। हिंदी भाषा के चर्चे पर
कई बार कॉनट्रोवर्सी खड़ी करने का प्रयास किया
गया, लेकिन अब वो समय
समाप्त हो गया है।
स्थानीय भाषा को मजबूत करने
का दायित्व राजभाषा विभाग का है राजभाषा
को मजबूत करने का दायित्व आप
सब का है। आप
सभी अभिभावकों से अपील है
कि अपने घरों में बच्चो से स्थानीय भाषा
में बात करें।
उन्होंने
कहा कि लोकतंत्र तभी
सफल हो सकता है
जब प्रशासन की भाषा स्वभाषा
और राजभाषा हो। वीर सावरकर जी को हम
उनके अनेकों कार्यों हेतु जानते है, मगर बहुत कम लोग जानते
हैं कि सावरकर जी
ने हिंदी के संरक्षण व
संवर्धन में अहम योगदान दिया है। उन्होंने हिंदी का शब्दकोश बनाकर
हमें कई ऐसे शब्द
दिए जो अगर सावरकर
जी न होते तो
शायद हम अंग्रेजी शब्दों
का ही प्रयोग कर
रहे होते।
श्री
शाह ने कहा कि
हिंदी के उन्नयन के
लिए काशी से शुरुआत हुई।
पहली हिंदी पत्रिका काशी से ही शुरु
हुई। मालवीय ने हिंदी में
बिना चंता के पढ़ाई की।
गृहमंत्री ने कहा कि
तुलसी दास को कैसे भूल
सकते हैं। अगर उन्होंने राम चरित मानस नहीं लिखी होती तो आज रामायण
लोग भूल जाते। उन्होंने कहा कि जब देश
की आजादी के 100 साल पूरे हों तो हमारी राजभाषा
और सभी क्षेत्रीय भाषाओं का दबदबा रहना
चाहिए, ताकि कोई भी विदेशी भाषा
हमारे सामने खड़ी न हो सके।
उन्होंने
कहा कि अखिल भारतीय
राजभाषा सम्मेलन को राजधानी दिल्ली
से बाहर करने का निर्णय हमने
वर्ष 2019 में ही कर लिया
था। कोरोना काल की वजह से
हम नहीं कर पाएं, लेकिन
आज मुझे खुशी हो रही है
कि ये नई शुभ
शुरुआत आजादी के अमृत महोत्सव
में होने जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है
कि अमृत महोत्सव, देश को आजादी दिलाने
वाले लोगों की स्मृति को
फिर से जीवंत करके
युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने
के लिए तो है ही,
ये हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष
है।
अमित
शाह ने कहा कि
आजादी के अमृत महोत्सव
के तहत में देश के सभी लोगों
का आह्वान करना चाहता हूं कि स्वभाषा के
लिए हमारा एक लक्ष्य जो
छूट गया था, हम उसका स्मरण
करें और उसे अपने
जीवन का हिस्सा बनाएं।
गृहमंत्री ने कहा कि
पहले हिंदी भाषा के लिए बहुत
सारे विवाद खड़े करने का प्रयास किया
गया था, लेकिन वो वक्त अब
समाप्त हो गया है।
पीएम मोदी ने गौरव के
साथ हमारी भाषाओं को दुनिया भर
में प्रतिस्थापित करने का काम किया
है। गृहमंत्री ने कहा कि
जो देश अपनी भाषा खो देता है,
वो देश अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक
चिंतन को भी खो
देता है। जो देश अपने
मौलिक चिंतन को खो देते
हैं वो दुनिया को
आगे बढ़ाने में योगदान नहीं कर सकते हैं।
दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली लिपिबद्ध भाषाएं भारत में हैं। उन्हें हमें आगे बढ़ाना है। अनेक हिंदी के विद्वानों यहीं
से भाषा को आगे बढ़ाया।
हिंदी भाषा में विवाद
खड़ा किया गया। एक समय ऐसा
आएगा कि लोग हिंदी
नहीं बोल सकेंगे तो लघुता महसूस
होगी। जो देश अपनी
भाषा को खो देता
है तो वह संस्कृति
को खो देता है।
उन्होंने
कहा कि भाषा जितनी
सशक्त और समृद्ध होगी,
उतनी ही संस्कृति व
सभ्यता विस्तृत और सशक्त होगी।
अपनी भाषा से लगाव और
अपनी भाषा के उपयोग में
कभी भी शर्म मत
कीजिए, ये गौरव का
विषय है। शाह ने कहा, ’मैं
गौरव के साथ कहना
चाहता हूं कि आज गृह
मंत्रालय में अब एक भी
फाइल ऐसी नहीं है, जो अंग्रेजी में
लिखी जाती या पढ़ी जाती
है, पूरी तरह हमने राजभाषा को स्वीकार किया
है। बहुत सारे विभाग भी इस दिशा
में आगे बढ़ रहे हैं।’
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र ने हिंदी की
संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डाला।
कहा कि प्रधानमंत्री व
गृहमंत्री की अगुवाई में
निरन्तर हिंदी के उत्थान को
लेकर कार्य हो रहा है।
राज्यसभा के सभापति हरिवंश
नारायण सिंह ने हिंदी के
अब तक के विकास
के सफर को विस्तार से
रखा। राजभाषा की सचिव ने
स्वागत संबोधन तो कुमुदलता ने
संचालन किया। मंच पर केन्दीय मंत्री
महेंद्र पांडेय, भाजपा
प्रदेश अध्यक्ष स्वतन्त्र देव सिंह, पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी समेत अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।
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