Sunday, 5 December 2021

आज भी लोगों के जेहन में अयोध्या गोलीकांड की त्रासदी

आज भी लोगों के जेहन में अयोध्या गोलीकांड की त्रासदी

31 साल पूर्व सपा के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव ने 2 नवंबर 1990 को अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देकर मुस्लिमों के हीरों बन गए। उस वक्त उन्हें मुल्ला मुलायम के नाम से पुकारा जाने लगा। यह अलग बात है चला-चली की बेला में हजारों कारसेवकों की ख्ून से लतपथ मुलायम सिंह यादव अब अफसोस जता रहे है, लेकिन उनके सुपुत्र अखिलेश यादव का सत्ता खातिर मुस्लिम प्रेम इस कदर हावी है कि कारसेवकों के प्रति श्रद्धाजंलि तो दूर जिन्ना को अपना आदर्श मानने लगे है। जबकि रामभक्तों पर बर्बर और निर्मम गोलीकांड की हर भारतीय ने निंदा की थी। लेकिन सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने वाले तब और अब भी मौन है। तुष्टीकरण की पराकाष्ठा को पार करते हुए मुलायम कुनबा इसे जायज ठहराने का कुत्सित प्रयास कर रहा है। : लेकिन सच तो यही है अरसे बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण ही कारसेवकों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी

सुरेश गांधी

फिरहाल, उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में अयोध्या और राममंदिर निश्चित तौर से बड़ा मुद्दा रहने वाला है। ऐसे में अयोध्या से जुड़े किसी भी मामले पर राजनीतिक पार्टियां विपक्षियों पर हमला करने से नहीं चूकतीं। आज से 31 साल पहले अयोध्या में कारसेवकों पर हुई जघन्य गोलीबारी के मामले को लेकर अब भारतीय जनता पार्टी ने उस समय सत्ता में रहकर यह गोलीकांड कराने वाली समाजवादी पार्टी पर लगातार यह कहकर हमलावर है किभूले तो नहीं हैं अब्बा जान ने चलवाई थी निहत्थे रामभक्तों पर गोलियां बता दें, ’30 अक्टूबर से 2 नवम्बर 1990 तक यही काले दिन थे, जब अयोध्या में पहली बार हजारों निरीह, निहत्थे, निर्दोष रामभक्तों पर मुलायम सिंह यादव ने गोलियां चलवाकर उन्हें मौत की नींद सुला दिया था लेकिन लंबे अंतराल के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वहां भव्य राम मंदिर निर्माण तेज गति से चल रहा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण कोठारी बंधुओं सहित उन हजारों कारसेवकों के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि है।

यहां जिक्र करना जरुरी है कि मुलायम सिंह के गोलीकांड से बाबरी मस्जिद कम से कम दो साल के लिए तो उस समय बच गई, लेकिन भारतीय राजनीति की दशा और दिशा हमेशा के लिए बदल गई। मुलायम सिंह यादव की छवि हिंदू विरोधी बन गई। देश ने उन्हेंमुल्ला मुलायमके नाम से नवाजा। ये हिंदू विरोधी छवि अब तक मुलायम सिंह और उनकी समाजवादी पार्टी से पूरी तरह हटी नहीं है। खासकर यूपी विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट के बीच एक बार फिर 31 साल पहले घटी उस घटना की काली यादें ताजा हो गई हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी गोरखपुर के एक कार्यक्रम में गोलीबारी की घटना का कई बार जिक्र किया। 

योगी के भाषणों के उन अंशों की क्लिप बीजेपी उत्तरप्रदेश में अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की हैं। बहुत सारे ऐसे लोग होंगे, जिन्होंने 30 अक्टूबर 02 नवम्बर, 1990 की त्रासदी को अपनी आंखों से देखा हो। लाखों कारसेवकों ने उस दर्द को महसूस किया था। हर भारतीय परिवार ने उस दर्द को महसूस किया था। बता दें, 90 के दशक में अयोध्या आंदोलन पूरे चरम पर था और उत्तर प्रदेश की सत्ता की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथ में थी। उस समय चल रहे राम मंदिर आंदोलन के क्रम में हिंदूवादी संगठनों ने 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा की तारीख तय की थी। उनके इस आह्वान पर मुलायम ने बयान दिया था कि उनके मुख्यमंत्री रहते हुए बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा पर भी नहीं मार सकता।

मुलायम सिंह यादव के आदेश पर पूरे प्रदेश को सील कर दिया था। रास्तों में खाइयां खुदवा दी थीं, पुलों पर तार लगवा दिये थे सड़कों पर बैरियर थे। सरकार बाबरी मस्जिद के ढांचे को बचाना चाहती थी। कार सेवा वाले दिन 30 अक्टूबर, 1990 को पुलिस ने विवादित ढांचे के 1.5 किमी के दायरे में बैरिकेडिंग कर दी। कर्फ्यू का धता बताते हुए हजारों कारसेवक हनुमानगढ़ी पहुंच गए, जो ढांचे के करीब ही था। ये सभी विवादित  परिसर के पास जमा हो गए थे। सुरक्षाकर्मी आंधी-तूफान की तरह आए इन करीब 5000 कारसेवकों को काबू करने में जुट गए। तब तक अयोध्या में इतनी भीड़ जमा हो चुकी थी कि उन्हें काबू में नहीं किया जा सकता था। निश्चित समय पर कारसेवकों ने कारसेवा शुरू कर दी। मुलायम सिंह यादव ने  ऊपर से साफ निर्देश दे दिए थे कि मस्जिद को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए, पर कारसेवक पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने पहले तो लोगों को तितर-बितर करने के लिए केवल आंसू गैस के गोले छोड़े, पर जब कुछ कारसेवक मस्जिद के गुंबद पर चढ़ने लगे और विवादित स्थल पर भगवा ध्वज भी लगा दिया। इससे तिलमिलाई स्टेट सरकार ने पुलिस सुरक्षाबलों को वह आदेश दे दिया जो देश के इतिहास में एक धब्बा बन गया। यह निर्णय था बंदूकों के मुंह खोलने का।

कारसेवकों को तंग गलियों में और मंदिर के परिसरों में खदेड़ खदेड़कर मारा गया। उनमें से कुछ ने लाठियों और पत्थरों से मुकाबला किया। उत्तेजित स्थानीय लोगों ने भी कारसेवकों का समर्थन किया, पर अब सुरक्षाबल आगे बढ़ चुके थे। किसी को भी सरकार से इस तरह की जघन्यता का अनुमान नहीं था। उसके बाद चीख-पुकार मच गई। कारसेवकों और सुरक्षाबलों के बीच पूरे तीन दिनों तक लड़ाई चलती रही। 30 अक्टूबर के बाद 2 नवम्बर को तो और भी बडा गोली चालना हुआ। इस गोलीकांड में कितने कारसेवक मरे इसका सही सही आंकड़ा आज भी किसी के पास नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अयोध्या में 30 अक्टूबर, 1990 को फायरिंग में 5 कारसेवक मारे गए। घटना के चश्मदीद रहे अखबारों के रिपोर्टर्स ने तो मरने वालों को 40-50 तक बताया। गुस्से से भरे कारसेवकों का कहना था कि यूपी सरकार ने मृतकों का जो आंकड़ा दिया है, वह हकीकत की तुलना में बेहद कम है। पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने एक चर्चा के दौरान कहा था कि अयोध्या में 56 लोग मारे गए थे। मुलायम ने कहा कि वास्तव में, 28 मारे गए थे। मुझे छह महीने बाद आंकड़े का पता चला था।

6 दिसंबर अयोध्या के लिए बड़ी तारीख

दरअसल 6 दिसबर 1992 में लाखों कारसेवकों के द्वारा बाबरी ढांचा का विध्वंस किया गया था। इसके बाद से इस तारीख को दोनो समुदाय अलग-अलग रूप में मना रहे हैं। हिंदू धर्म से जुड़े लोग इस दिन को शौर्य दिवस के रूप में मानते हैं। तो वहीं मुस्लिम समुदाय के लोग इसे काला दिवस के रूप में मनाते हैं। लेकिन 9 नवंबर 2019 में फैसला आने के बाद 6 दिसंबर को होने वाले सभी आयोजनों पर रोक लगा दिया गया। तो वहीं इस बीच विवाद को लेकर राम जन्मभूमि परिसर आतंकी निशाने पर भी पहुंच गया कई बार आतंकी घटनाओं का प्रयास भी किया गया है। लेकिन पूर्णतया सफल नहीं हो सके। और आज अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है। और पूरी दुनिया की नजर अयोध्या पर है। जिसके कारण आतंकी अब अयोध्या पर नजरें लगाए हुए हैं।

आज भी लोगों में कौंधता गोलीकांड

यूपी में इन दिनों जहां कहीं भी उद्घाटन या लोकापर्ण शिलान्यास हो रहा है, सपा मुखिया अखिलेश यादव हो या बसपा सुप्रीमों मायावती, उसे अपने शासनकाल की उपलब्धि बताने में रंच मात्र की देरी नहीं कर रहे है। उनके मुताबिक उत्तर प्रदेश में चाहे पूर्वांचल एक्सप्रेस वे हो या बुंदेलखंड एक्सप्रेस हो या जेवर ऐअरपोर्ट से लेकर अयोध्या-वाराणसी के विकास सब उन्होंने ही किया है। योगी केवल फीता काट रहे है। जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर पीएम मोदी तक यही कह रहे है अगर काम किया है तो पूरा क्यों नहीं हुआ। हमने तो पुराने कामों को पूरा करने के साथ ही जो वादे किए या शिलान्यास सब पांच साल में ही निपटा दिया। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या अखिलेश यादव अयोध्या में राम भक्तों पर गोली चलवाने को भी अपनी बड़ी उपलब्धि मानते है? फिरहाल, जैसे-जैसे विधान सभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे सियासी पार्टियों के बीच शह-मात का खेल तेज हो गया है। उत्तर प्रदेश का सियासी पारा लगातार चढ़ता जा रहा है। चाहे सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हो विपक्ष के अखिलेश यादव से लेकर मायावती ओवैसी तक सबके सब एक-दुसरे पर शब्दभेदी बाणों के जरिए हमलावर हैं। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट से बवाल मच गया है। डिप्टी सीएम ने ट्वीट किया है कि अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है, मथुरा की तैयारी है। जय श्री राम, जय शिव शम्भू, जय श्री राधे कृष्ण। मतलब साफ है यूपी विधानसभा से पहले बीजेपी हिंदुत्व की पिच पर उतरने की हरसंभव कोशिश कर रही है। मतलब साफ है यूपी इन दिनों सियासी समर का अखाड़ा बन चुका है। सत्ता दोहराने के फिराक में जुटी बीजेपी इस बार पूर्वांचल को अपनी धुरी बनाना चाहती है तो सपा सत्ता तक रफ्तार भरने के लिए चाहे एक्सप्रेस-वे हो जेवर पोर्ट हो अन्य विकास कार्यो का क्रेडिट ले रही है।

वोटबैंक जो ना कराएं

काशी के सनवारुलहक कहते है सपा की विकास की कोई सोच ही नहीं थी। वो सिर्फ घोषणाएं करते थे, माफियाओं बाहुबलियों के संरक्षणदाता थे, वोटबैंक के लिए पहले दंगे बाद में विरोधियों पर फर्जी मुकदमें। आज भी अखिलेशकाल के प्रशासनिक गुंडई हो या सपाई तांडव लोगों के जेहन में है। कनेक्टिविटी या यूं कहे विकास तो बीजेपी सरकार ने दी है। बिना भेदभाव मजहब की पहचान किए बगैर हर पात्र को मकान से लेकर राशन हो अन्य योजनाएं मिल रही है। 2017 से पहले जहां एक घंटे का सफर तीन घंटे में होता था, वो अब 30 मिनट में पूरा हो रहा है। जहां तक अयोध्या या वाराणसी से लेकर अन्य जिलों के विकास का सवाल है तो इसके लिए कौन उन्हें रोका था। यदि विकास किए हो तो बीजेपी सपने में भी सत्ता नहीं पाती। सपा-बसपा में तो सिर्फ माफियाओं गुंडों के मुकदमे वापस लिए जाते थे। उन्हें खुशी है इंसान तो दूर बिना चीटी मरे अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बन रहा है। जनतादोहरे चरित्र और गिरगिट की तरह रंग बदलने वालों को अब समझ रही है। हो जो भी सनवारुल के बातों में दम है। भाजपा के कथनी और करनी के फर्क को इस बात से भी समझा जा सकता कि अखिलेशकाल की घोषणाएं तो वह पूरा कर ही रही है अपनी नयी योजनाओं को भी अपने ही शासनकाल में पूरा कर रही है। चाहे वह बनासर का कैंसर हास्पिटल हो या पूर्वांचल एक्सप्रेस हो अन्य योजनाएं सब वास्तविकता के धरातल मूर्तरुप लेती दिख रही है। भाजपा का नारा था राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे और अब भव्य राम मंदिर बनने जा रहा है। जबकि मुलायम सिंह यादव हो या अखिलेश यादव तो कहते थे कि वहां परिंदे को भी पर नहीं मारने देंगे। रामभक्तों पर गोलियां तक चलवा दी थीं। 86 लाख किसानों का 36 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज योगी ने ही माफ किया। तकरीबन हर घर में शौचालय बन गया। औसतन हर तीसरे-चौथे दिन प्रदेश में एक बड़ा दंगा होता था। दंगा किसी ने भी किया हो नुकसान दोनों पक्षों का होता था। लेकिन अब प्रदेश दंगा मुक्त है। इससे प्रदेश में माहौल बदला है, निवेश का माहौल बना है। बेरोजगारी कोई नई समस्या नहीं है, वो सपा-बसपा काल में भी था और अब भी है। इसे खत्म करने के सामूहिक प्रयास होने ही चाहिए। कौन नहीं जानता पूर्वांचल एक्सप्रेसवे सपा के भ्रष्टाचार का गढ़ बन गया था। जमीन अधिग्रहण भी नहीं हुआ था ओर पैसे बांट दिए गए थे। गंगा एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पर अब काम शुरू हुआ है। आगरा एक्सप्रेसवे का सपा ने उद्धाटन तो कर दिया लेकिन काम योगी ने ही पूरा किया।

जातिय समीकरण का ताना-बाना

यूपी चुनाव में जातीय समीकरण शुरु से ही अहम भूमिका निभाता आया है, ऐसे में सभी पार्टियां अपनी चुनावी रणनीति जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए ही बनाती हैं। सियासी दलों के विकास के तमाम दावे उस वक्त खोखले हो जाते हैं जब वह प्रदेश में टिकटों के बंटवारे का समय आता है। यही वजह है इस चुनावी माहौल में राहुल अखिलेश मायावती योगी कोई भी एक मौका नहीं छोड़ना चाहता है। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सभी प्रयास में लगे है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी यूपी की सत्ता पाने के लिए योगी सरकार को गिराने में लगे हैं और अब वे कांग्रेस को अपने पाले में करने में लगे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ हाथ मिलाकर पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करने का दांव चला है। जबकि अखिलेश के इस जातीय कॉम्बिनेशन पर बसपा सुप्रीमो मायावती की भी नजर है। मायावती पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण पर दिन-रात काम कर रही हैं। मायावती ने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), मुस्लिम और जाट को एक साथ जोड़ने के लिए जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी के हिसाब से टिकट देने की बात कहीं है। मायावती ने अब कांशीराम के फ़ार्मूले पर यूपी चुनाव लड़ने की तैयारी की है। अब तक ब्राह्मण दलित गठजोड़ वाली पॉलिटिक्स कर रहीं मायावती की उम्मीदें बैक्वर्ड कास्ट पर टिक गई है। बीएसपी की रणनीति सुरक्षित सीटों पर जीत दर्ज कर यूपी में सत्ता पाने की है। उन्हें लगता है कि दलित और पिछड़े मिल गए तो उनका हाथी लखनऊ तक पहुंच जाएगा। यूपी में 86 सुरक्षित सीटें हैं। चुनावी इतिहास गवाह है कि इन सीटों पर जिस पार्टी ने बाज़ी मारी, यूपी में सत्ता उसको ही नसीब हुई है। 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इन सीटों पर बढ़त ली थी। जबकि 2012 के चुनावों में यही करिश्मा अखिलेश यादव ने किया था।

मुस्लिम वोट बैंक

यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिम वोट बैंक पर कब्ज़ा को लेकर सियासत तेज हो गई है. मुस्लिम वोट बैंक को लेकर कांग्रेस और सपा बिल्कुल आमने सामने है. कांग्रेस ने सपा पर आरोप लगाया है कि सत्ता तक पहुंचने के लिए सपा ने सिर्फ मुस्लिमों का इस्तेमाल किया. सत्ता में आने के बाद सपा ने सिर्फ एक जाति विशेष को फायदा पहुचाने का काम किया. सपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि जो पार्टी आज़म खान की हो सकी वो मुसलमानों का क्या भला कर सकती है. उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले चुनाव से पहले यूपी की सियासत खासकर मुस्लिम वोट को लेकर गरम होती जा रही है. यूपी में करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोटों को लेकर सपा और कांग्रेस आमने सामने है. कांग्रेस का सपा पर आरोप है कि पिछले कई सालों से यूपी का मुसलमान समाजवादी पार्टी पर भरोसा करता रहा है लेकिन सत्ता में आने के बाद सपा सिर्फ एक जाति विशेष को फायदा पहुंचाती है. कांग्रेस का कहना है कि कांग्रेस इसी मुद्दे को लेकर अब मुस्लिम समाज के बीच जा रही है और मुस्लिम समाज के लोगों को समझा रही है कि मुसलमानों का भला सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है और कांग्रेस की सरकारों में ही मुसलमान सुरक्षित हैं। हालांकि मुस्लिम वोटबैंक को लेकर सपा पहले की तरह इसबार भी आश्वस्त नज़र रही है.सपा को इसबात का भरोसा है कि मुसलमान वोटर उससे दूर नही जाएगा.यही वजह है कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सपा में मुस्लिम उम्मीदवारों पर जमकर भरोसा दिखाया है.सियासी जानकारों की माने तो विधानसभा चुनाव से पहले ज़िला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में मुस्लिम  उम्मीदवारों को मैदान में उतार सपा ने ये मैसेज देने की कोशिश भी की है कि मुस्लिम समाज की रहनुमा सपा ही है.वही गाज़ियाबाद प्रकरण में सपा नेता की भूमिका सामने आने के बाद ये कहा जा रहा है कि मुस्लिम वोटों में फूट से बचने के लिए सपा की ये एक रणनीति हो सकती है. इन सबके बीच मुस्लिम वोटों को लेकर चल रही खींचतान के बीच भाजपा ने विपक्ष पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए कहा कि ये कुछ भी कर लें 2022 में जीत भाजपा की होगी. देखा जाय तो करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोटों की आबादी वाले राज्य यूपी में करीब 140 सीटों पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में होता है. यही वजह है कि यूपी में हाशिये पर चल रही कांग्रेस मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने की हर कोशिश कर रही है।

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