ढह गया सपा का किला, चला बाबा बुलडोजर
लोकसभा
उपचुनाव
में
सपा
को
तगड़ा
झटका
लगा
है।
यूपी
की
दो
लोकसभा
सीटों
रामपुर
और
आजमगढ़
पर
हुए
उपचुनाव
से
साफ
हो
गया
है
कि
फिलहाल
तो
यूपी
में
योगी
के
बुलडोजर
की
आंधी
के
आगे
टिकना
किसी
के
बूते
की
बात
नहीं।
ये
दोनों
सीटें
न
सिर्फ
सपा
की
गढ़
रहे,
बल्कि
उसके
मुखिया
की
पंपरागत
सीटे
थी।
लेकिन
अब
दोनों
जगह
अखिलेश
यादव
की
साइकिल
पंचर
हो
गई।
दोनों
सीटे
बीजेपी
ने
जीत
ली
है।
मतलब
साफ
है
आजमगढ़
व
रामपुर
भी
भगवा
रंग
से
सराबोर
हो
गया
है।
यह
अलग
बात
है
आजमगढ़
से
चुनाव
से
लड़े
रहे
अखिलेश
के
भाई
धर्मेन्द्र
यादव
तंज
कसते
हुए
हार
का
ठिकरा
भाजपा-बसपा
गठबंधन
पर
फोड़
रहे
है,
लेकिन
वे
भूल
गए
कि
जिस
एमवाई
फैक्टर
के
बूते
आप
जंग
जीतने
की
फिराक
में
थे,
वो
भाईजान
के
रहते
आप
वैकल्पिक
जोन
में
आते
हो,
क्योंकि
जहां
यादव
लड़ता
है,
तो
फिर
आप
नहीं
देखते
कि
वह
किस
दल
से
ताल
ठोक
रहा
है।
कहने
का
अभिप्राय
यही
है
कि
काठ
की
हॉडी
बार-बार
नहीं
चढ़ती।
अब
जनता
जागरुक
हो
गयी
है
और
जाति
की
तिलांजलि
दें
सिर्फ
और
सिर्फ
राष्ट्रवाद
में
विश्वास
रखती
है
सुरेश गांधी
फिरहाल, रामपुर व आजमगढ़ की
दोनों सीटे बीजेपी की झोली में
गयी है। योगी इसे डबल इंजन की सरकार की
डबल जीत बता रहे है। ये बीजेपी के
सुशासन का असर है।
इस जीत ने संदेश दिया
है कि 2024 में यूपी की 80 सीटें जीतेंगे। बता दें, रामपुर में बीजेपी के घनश्याम लोधी
ने 42 हजार 142 वोटों से आजम खां
के करीबी असीम राजा को हराया है।
जबकि आजमगढ़ में दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने 3,12,432 मत पाकर अखिलेश
यादव के भाई धर्मेंद्र
यादव को 7595 वोटों से हराया है।
धर्मेन्द्र को 3,03,837 मत प्राप्त हुए
है. जबकि बसपा उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डु जमाल को 2,66,106 वोट मिले है और इसी
वोट से अखिलेश यादव
ने निरहुआ को हराया था।
लेकिन इस बार एमवाई
फैक्टर के बजाय मुस्लिमों
ने अपने भाईजान का साथ दिया
तो धर्मेन्द्र ने इसे भाजपा-बसपा गठबंधन करार दे दिया। जबकि
यह ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है, पहले भी होता रहा
है,
जहां यादव लड़ता है तो स्वजातिय
यह नहीं देखते वह किस दल
से है, आंख मूंद कर वोट दे
आते है। जहां तक दिनेश लाल
यादव निरहुआ का सवाल है
तो उसे भी यादवों ने
वोट नहीं दिया है, बल्कि वह भाजपा के
कोर वोट के साथ-साथ
दलित वोट उसकी जीत में निर्णायक भूमिका निभाएं है। बता दें, पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में दिनेश लाल यादव और अखिलेश यादव
ने आजमगढ़ से एक दूसरे
के खिलाफ चुनाव लड़ा था. हालांकि उस वक्त निरहुआ
को करारी हार का सामना करना
पड़ा था. क्योंकि उस बार एमवाई
फैक्टर अखिलेश के पक्ष में
था। मतलब साफ है तीन साल
बाद उपचुनाव में भाजपा के कोर वोट
व दलित वोटों के बूते निरहुआ
ने अपनी हार का बदला ले
लिया है. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है
क्या सपा का किला ...बाबा
बुलडोजर ने ढहा दिया?
क्या रामपुर में आलम के जौहर के
आगे योगी का बुलडोजर लोगों
को पसंद आया? क्योंकि दोनों जगहों पर ना साइकिल
चली, न हाथी दौड़ा
सिर्फ और सिर्फ सपा
के गढ़ में बाबा
का बुलडोजर चला। यह अलग बात
है कि हार के
बाद आजम खान मीडिया को ही पानी-पानी पी-पीकर कोस
रहे है। कहा, चुनाव तो हुआ ही
नहीं. मुसलमानों के मुहल्ले से
बस एक वोट?
हालांकि उन्होंने कहा कि घृणा का
जवाब घृणा से न दें.
जबकि योगी बाबा इसे सबका साथ सबका विकास व सबका विश्वास
बता रहे है। गंदी और नकारात्मक सोच,
परिवारवादी ताकतों की सफाया बता
रहे है। गरीब कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाना
और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच की
जीत बता रहे है। दावा तो यहां तक
कररहे है कि 2024 में
भाजपा प्रदेश के 80 के 80 सीटों पर विजयी होगी
उसी की जनादेश आज
की है. इस हार के
बाद लोकसभा में सपा की संख्या पांच
से घटकर तीन रह गई है.
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव
में दोनों ही सीटों पर
सपा का कब्ज़ा रहा
था. आजमगढ़ से सपा के
राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव तो रामपुर से
आजम खान की जीत हुई
थी. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव
में विधायक बनने के बाद दोनों
ही नेताओं ने लोकसभा की
सदस्यता से इस्तीफा दे
दिया था, जिसकी वजह से उपचुनाव हुआ.
रामपुर में सपा की तरफ से
आसिम राजा और बीजेपी के
घनश्याम लोधी मैदान में थे, जबकि बसपा ने यहां से
उम्मीदवार नहीं उतरा. आजमगढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला. सपा
ने धर्मेंद्र यादव को मैदान में
उतारा, जबकि बीजेपी की तरफ से
दिनेश लाल यादव निरहुआ ताल ठोकते नजर आए. बसपा ने शाह आलम
उर्फ़ गुड्डू जमाली को मैदान में
उतारा. चुनाव प्रचार के दौरान जहां
एक ओर अखिलेश यादव
नजर नहीं आए वहीं बीजेपी
ने पूरी ताकत झोंक दी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों ही सीटों पर
प्रचार करने पहुंचे और बीजेपी उम्मीदवार
के लिए वोट मांगे.
घनश्याम लोधी कभी आजम के करीबी रहे
रामपुर उपचुनाव में बीजेपी के घनश्याम सिंह
लोधी ने आजम खान
को बड़ा झटका दिया है और उपचुनाव
के दंगल में आजम खान के करीबी उम्मीदवार
को उनके ही घर में
मात दी है. एक
समय था कि घनश्याम
सिंह आजम खान के राइट हैंड
माने जाते थे. रामपुर उपचुनाव में यूं तो टक्कर बीजेपी
और सपा में थी. लेकिन यहां आमने-सामने थे आजम खान
के दो शागिर्द. ये
दो नेता हैं आसिम रजा और घनश्याम सिंह
लोधी. आसिम रजा सपा से चुनाव लड़
रहे थे तो घनश्याम
सिंह लोधी भगवा खेमे का प्रतिनिधित्व कर
रहे थे. इन दोनों ही
नेताओं ने आजम खान
की छत्र-छाया में अपनी-अपनी सियासत को आगे बढ़ाया
और सूबे की राजनीति में
अपना मुकाम हासिल किया. यूं तो रामपुर कई
सालों सेसपा का गढ़ था
और यहां आजम खान का सिक्का चलता
था. लेकिन इस चुनाव में
घनश्याम सिंह लोधी ने आजम खान
के वर्चस्व को तोड़ दिया.
आर्यमगढ़ को लेकर योगी जी से बात करेंगे : निरहुआ
आजमगढ़ से नवनिर्वाचित सांसद
दिनेश लाल यादव निरहुआ ने कहा कि
यह लोगों के भरोसे की
जीत है. जो विश्वास लोगों
ने जताया है उसका पूरा
सम्मान करेंगे. अभी तो मैं आजमगढ़
का सांसद हूं. आर्यमगढ़ को लेकर योगी
जी से बात करेंगे.
यह जनता की जीत! आजमगढ़वासियों
आपने कमाल कर दिया है.
यह आपकी जीत है. उपचुनाव की तारीखों की
घोषणा के साथ ही
जिस तरीके से आप सबने
बीजेपी को प्यार, समर्थन
और आशीर्वाद दिया, यह उसकी जीत
है. यह जीत आपके
भरोसे और देवतुल्य कार्यकर्ताओं
की मेहनत को समर्पित है.“
ओवैसी बोले : सपा में नहीं है बीजेपी को हराने की काबिलियत
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि
रामपुर और आज़मगढ़ चुनाव
के नतीजे से साफ़ ज़ाहिर
होता है कि सपा
में बीजेपी
को हराने की न तो
क़ाबिलियत है और ना
क़ुव्वत. मुसलमानों को चाहिए कि
वो अब अपना क़ीमती
वोट ऐसी निकम्मी पार्टियों पर ज़ाया करने
के बजाये अपनी खुद की आज़ाद सियासी
पहचान बनाए और अपने मुक़द्दर
के फ़ैसले ख़ुद करे.
तुष्टिकरण, गुंडागर्दी, जातिवाद से चुनाव नहीं जीत सकते : केशव
केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, अहंकार
और गुंडागर्दी को रामपुर और
आजमगढ़ की जनता मतगणना
के रुझानों में जबाब दे रही है।
तुष्टिकरण, गुंडागर्दी, जातिवाद से चुनाव नहीं
जीत सकते हो। सदन में अखिलेश यादव और सभा में
आजम खान द्वारा किए गए मेरे अपमान
का पिछड़ा वर्ग सहित सभी वर्ग जबाब दे रहे हैं।
भाजपा का नया रिकार्ड
सात साल पहले भाजपा यूपी में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़
रही थी। लेकिन, 2014 से भाजपा की
जीत का जो सिलसिला
शुरू हुआ, वह हर बार
एक नया रेकॉर्ड गढ़ रहा है।
2022 के विधानसभा चुनाव में जब विपक्ष हवा
बना रहा था, तब भाजपा ने
नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ
की अगुआई में सत्ता की ऐसी जमीन
बनाई, जिससे न केवल विपक्ष
के पांव उखड़ गए बल्कि भाजपा
ने जीत की वह फसल
उगाई जो साढ़े तीन
दशक में नहीं उगी थी। मोदी के राशन और
योगी के प्रशासन को
घर-घर पहुंचाकर विपक्ष
के जातीय गणित को ढहा दिया।
ब्रांड मोदी और योगी इस
चुनाव में भी बड़ी छाप
छोड़ता नजर आया। उपचुनाव में भी यह करिश्मा
दिखाई दे रहा है।
बता दें, भाजपा को मात देने
के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने प्रदेश के
अलग-अलग हिस्सों में जातीय नुमाइंदगी वाले दलों को साथ लेकर
रणनीति तैयार की थी। वेस्ट
यूपी में जाटों-मुस्लिमों को एक साथ
लाने के लिए उन्होंने
रालोद से गठबंधन किया,
तो पूरब में राजभरों के असर वाले
सुभासपा को साथ लिया।
क्षेत्रवार जातीय गणित के हिसाब से
अपना दल (कमेरावादी), महानदल जैसे दलों को साथ लिया।
इस जातीय गोलबंदी का जवाब देने
के लिए भाजपा ने अपना एक
अलग लाभार्थी वोटर वर्ग तैयार किया। खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने जीत के
बाद माना कि यूपी जैसे
राज्य में भाजपा सरकार ने 2.61 करोड़ गरीबों के घरों में
शौचालय बनवाए, 45.50 लाख गरीबों के लिए आवास
बनवाए, 1.47 करोड़ घरों में बिजली पहुंचाई तो कोरोना काल
से 15 करोड़ गरीबों को राशन भी
दिया। केंद्र सरकार की इन कल्याणकारी
योजनाओं से उपजे लाभार्थी
वर्ग ने जातीय गणित
को तोड़कर भाजपा के पक्ष में
मतदान किया। राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते
हैं कि 2017 में बसपा को मिले 22 फीसदी
वोटों का एक बड़ा
हिस्सा इन लाभार्थी योजनाओं
की वजह से भाजपा का
वोटर बन गया है।
बुलडोजर ने मुद्दों को भी ढहाया
सीएम योगी ने माफिया पर
हुए ऐक्शन को ‘बुलडोजर’ बताकर बड़ा मुद्दा बनाया। इसे भाजपा ने सुरक्षा से
जोड़कर पेश किया। भाजपा की इस रणनीति
ने पश्चिमी यूपी के कई जिलों
में किसान आंदोलन, छुट्टा पशुओं की समस्या, निघासन
में किसानों की मौत, हाथरस
कांड और कोरोना काल
में मौतों के विपक्ष के
मुद्दों को ‘सियासी’ नहीं होने दिया। इन मुद्दों को
शिथिल करने के लिए भाजपा
ने रणनीति बनाई। इसके बाद किसान आंदोलनकारियों के ’अहम’ को संतुष्ट करने
के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने माफी तक
मांगी, वहीं ध्रुवीकरण की धार बनाए
रखने के लिए भाजपा
नेताओं ने शामली के
पलायन से लेकर मुजफ्फरनगर
दंगे के जख्म भरने
नहीं दिए। इस चुनाव में
भाजपा की सीटें भले
घटीं पर उसका हौसला
बढ़ गया है। खासकर जब यूपी के
हर हिस्से में भाजपा सरकार के लिए सवाल
तैर रहे थे, तब भी भाजपा
ने अपने वोटों की फसल मुरझाने
नहीं दी। भाजपा गठबंधन ने करीब 5 फीसदी
वोट बढ़ाकर नतीजे अपने पक्ष में कर लिए। पिछली
बार करीब 40 फीसदी वोट प्रतिशत हासिल करने वाले भाजपा गठबंधन ने 45 फीसदी से ज्यादा वोट
हासिल किए। इसके पीछे संगठन के कार्यकर्ताओं को
365 दिन काम में जुटाने वाली रणनीति कारगर रही। भाजपा संगठन ने हर मुद्दे
और हर वर्ग को
वोटर मानकर काम किया। रेहड़ी-पटरी से लेकर लाभार्थी
तक के लिए अलग-अलग समूह बनाए। इन समूहों ने
नियमित तौर पर उनके बीच
काम किया। इसका फायदा उनके ‘वोटबैंक’ में तब्दील करने में मिला। कोरोना काल में भी भाजपा ने
अपने कार्यकर्ताओं को घर में
नहीं बैठने दिया और गरीबों के
बीच राशन और दवा पहुंचाने
से लेकर गांवों में ‘स्वास्थ्य’ स्वयंसेवक भी तैनात किए।
मतदाता सूची के हर पन्ने
के हिसाब से पन्ना प्रमुखों
की टीम भी तैनात की।
उन्होंने भी वोटरों तक
पहुंचने में अहम भूमिका निभाई।