यूपी की नई भवन उपविधियों से बदलेगी शहरी विकास की तस्वीर
भविष्य की बुनियाद पर वर्तमान का निर्माण
विकास
का
रोडमैप
: सरलता,
पारदर्शिता
और
तकनीकी
समावेशन.
यूपी भवन निर्माण उपविधि-2025
एवं
आदर्श
जोनिंग
रेगुलेशन
पर
वाराणसी
में
महत्वपूर्ण
कार्यशाला
संपन्न.
जी
हां,
उत्तर
प्रदेश
भवन
निर्माण
एवं
विकास
उपविधि-2025
केवल
निर्माण
के
दिशा-निर्देश
नहीं
हैं,
ये
एक
विचार
हैं
कृ
समन्वित,
समावेशी
और
स्थायी
विकास
का।
यह
बदलाव
नगरीय
भारत
के
लिए
एक
“पॉलिसी
मॉडल“
बन
सकता
है।
इस
उपविधि
को
केवल
अधिकारियों
की
फाइल
में
नहीं,
बल्कि
प्रत्येक
नागरिक
के
व्यवहार
और
हर
शहर
की
गली
में
उतरना
चाहिए।
तभी
उत्तर
प्रदेश
के
शहरों
में
’विकास’
केवल
आंकड़ों
की
बात
नहीं
रह
जाएगा,
वह
दिखाई
देने
वाला
बदलाव
बनेगा।
कार्यशाला
में
विशेषज्ञों
और
वास्तुविदों
द्वारा
नागरिकों
को
प्रेरित
किया
गया
कि
वे
भवन
निर्माण
के
पूर्व
प्राधिकृत
योजनाओं
का
पालन
करें।
अवैध
निर्माण
और
बिना
अनुमति
निर्माण
पर
सख्ती
से
रोक
लगाने
की
बात
कही
गई
सुरेश गांधी
उत्तर प्रदेश की तेजी से
शहरीकरण की ओर बढ़ती
गति को दिशा देने,
समावेशी एवं संतुलित विकास
सुनिश्चित करने, और भवन निर्माण
की प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी
एवं निवेशोन्मुखी बनाने की दृष्टि से
24 जुलाई 2025 का दिन ऐतिहासिक
बन गया। इस दिन
वाराणसी विकास प्राधिकरण के तत्वावधान में
आयोजित “उत्तर प्रदेश विकास प्राधिकरण भवन निर्माण एवं
विकास उपविधि-2025 एवं आदर्श जोनिंग
रेगुलेशन-2025“ पर केंद्रित कार्यशाला
ने न केवल निर्माण
क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों
और जनप्रतिनिधियों को एक मंच
पर लाया, बल्कि आने वाले समय
के नगरीय विकास के लिए एक
ठोस रूपरेखा भी प्रस्तुती के
साथ ही इस नए
विधान की व्याख्या, विश्लेषण
और जनप्रतिनिधियों के संवाद का
जरिया बनी। यह केवल एक
तकनीकी विमर्श नहीं था, बल्कि
यह भविष्य की उस दिशा
को परिभाषित करने का प्रयास
था जहां उत्तर प्रदेश
का नगरीय विकास, सुगठित, हरित, समावेशी और तकनीकी रूप
से सक्षम होने के साथ
ही यह उच्च स्तरीय
सहभागिता इस बात की
ओर संकेत करती है कि
राज्य सरकार नगरीय नियोजन और भवन निर्माण
को लेकर एक समग्र
दृष्टिकोण अपना रही है।
तकनीकी सहभागिता और युवाओं की भूमिका पर जोर
नगर नियोजक प्रभात
कुमार द्वारा इन उपविधियों की
तकनीकी व्याख्या और प्रस्तुति से
प्रतिभागियों को इनके गहरे
पक्षों की जानकारी दी
गयी। विधायकगण सौरभ श्रीवास्तव (कैंट),
त्रिभुवन राम (अजगरा), नील
रतन नीलू (सेवापुरी), रमेश जायसवाल (मुगलसराय)
ने भी इस उपविधि
की सराहना करते हुए इसे
वास्तविक समस्याओं का समाधान करने
वाली नीति बताया। महापौर
श्री अशोक तिवारी, जिला
पंचायत अध्यक्ष श्रीमती पूनम मौर्य, भाजपा
जिला अध्यक्ष व विधान परिषद
सदस्य हंसराज विश्वकर्मा सहित सभी अतिथियों
ने इस नीति को
“नए युग का शहरी
दस्तावेज“ करार दिया।
भविष्य की दृष्टि : हर घर, हर योजना में सहभागिता
यह कार्यशाला उस
दिशा में महत्वपूर्ण कदम
है, जहां योजनाएं कागजों
में नहीं, जमीनी स्तर पर उतरती
हैं। उत्तर प्रदेश जैसे तेजी से
शहरीकरण की ओर अग्रसर
राज्य में यदि निर्माण
प्रक्रिया सरल, पारदर्शी और
प्रोत्साहक हो, तो वह
न केवल आम जनता
के जीवन को बेहतर
बनाती है, बल्कि आर्थिक
प्रगति का मार्ग भी
प्रशस्त करती है। इस
नई उपविधि में ‘ईजी आफ
डूइंग कांस्ट्रक्शन’ की भावना स्पष्ट
झलकती है, आम आदमी
से लेकर बड़े निवेशकों
तक के लिए यह
एक समान अवसर प्रदान
करने वाली व्यवस्था है।
अतिथिं को परंपरा और पर्यावरण के संगम के साथ स्मृति चिन्ह भेंट
कार्यक्रम के अंत में
उपाध्यक्ष द्वारा सभी अतिथियों को
पारंपरिक शाल और पौधा
भेंट कर सम्मानित किया
गया। यह प्रतीकात्मक क्रिया
विकास के साथ पर्यावरण
संरक्षण के प्रति भी
प्राधिकरण की सजगता को
दर्शाती है। सचिव द्वारा
धन्यवाद ज्ञापन के साथ यह
विचारमंथन पूर्ण हुआ, लेकिन इसकी
गूंज निश्चित ही भविष्य की
निर्माण नीतियों और नगरीय योजनाओं
में सुनाई देगी।
भविष्य की बुनियाद पर वर्तमान का निर्माण
नवाचार की धाराएं : क्या-क्या है उपविधि 2025 में नया?
1. एफ.ए.आर.
में
सुधार
: वर्टिकल
डेवलपमेंट
को
बढ़ावा
नई उपविधि में
एफएआर( फ्लोर एरिया रेशियों) में संशोधन कर
उसे अधिक व्यावसायिक और
उपयोगी बनाया गया है। घनी
आबादी वाले क्षेत्रों में
अब ऊंची इमारतें अधिक
वैधानिक स्वीकृति के साथ बनाई
जा सकेंगी। इससे ज़मीन की
खपत घटेगी और आवास संकट
को कम करने में
मदद मिलेगी। या यूं कहें
एफएआर को आधुनिक आवश्यकताओं
के अनुसार संशोधित किया गया है,
जिससे अब बहुमंजिला निर्माण
को बढ़ावा मिलेगा।
2.डिजिटलीकरण : कागज़
से
क्लिक
की
ओर
अब
नक्शा स्वीकृति, निर्माण अनुमति और पूर्णता प्रमाण
पत्र की संपूर्ण प्रक्रिया
ऑनलाइन सिंगल विंडो सिस्टम के माध्यम से
होगी। इससे भ्रष्टाचार, दलालों
का वर्चस्व और विभागीय विलंब
पर अंकुश लगेगा।
3.हरित भवनों
की
अवधारणा
पर्यावरणीय
संकट को देखते हुए
नई उपविधि में 500 वर्गमीटर से बड़े भवनों
के लिए सौर ऊर्जा
संयंत्र, वर्षा जल संचयन और
ऊर्जा दक्ष तकनीक को
अनिवार्य बनाया गया है। यह
शहरी भारत को ग्रीन
सिटी मॉडल की ओर
ले जाने का प्रयास
है।
4.दिव्यांग-अनुकूल
भवनः
समावेशी
सोच
की
शुरुआत
अब सभी सार्वजनिक
और व्यावसायिक भवनों में दिव्यांगजन के
लिए रैम्प, ब्रेल संकेत, अलग शौचालय और
लिफ्ट अनिवार्य होंगे। यह निर्णय न
केवल सुविधा आधारित है, बल्कि यह
संवेदनशील प्रशासनिक सोच का प्रतीक
भी है।
5.अग्नि सुरक्षा
और
आपदा
प्रबंधन
नई उपविधियों में
पार्किंग व अग्निशमन उपायों
को लेकर कठोर प्रावधान
किए गए हैं, जैसे
फायर एस्केप, हाइड्रेंट, स्मोक डिटेक्शन सिस्टम और सुरक्षित निकास
मार्ग। यह केवल नियम
नहीं बल्कि जीवन रक्षा का
आधार है। हर भवन
में पार्किंग की न्यूनतम सीमा
तय की गई है।
अवैध निर्माण से पार पाने की चुनौती
उत्तर प्रदेश के अधिकांश शहरों
में वर्षों से अवैध निर्माण,
भू-माफिया और नियमों की
अनदेखी की समस्या रही
है। इस नई उपविधि
के माध्यम से सरकार ने
स्पष्ट किया है कि
यदि कोई बिना स्वीकृति
निर्माण करता है तो
उस पर भारी आर्थिक
दंड, विध्वंस और कानूनी कार्यवाही
की जाएगी। साथ ही यह
भी सुनिश्चित किया गया है
कि आम नागरिकों को
नियम समझने और पालन करने
में सुविधा हो, यही न्यायपूर्ण
प्रशासन की कसौटी है।
आर्थिक-सामाजिक लाभ : एक दूरगामी प्रभाव
इन उपविधियों का
प्रभाव केवल भवन निर्माण
तक सीमित नहीं रहेगा। इसका
प्रभाव दूरगामी होगा : रियल एस्टेट में
पारदर्शिता आएगी। निवेश बढ़ेगा और भवन निर्माण
उद्योग को गति मिलेगी।
नागर सुविधा और यातायात प्रबंधन
बेहतर होगा। किफायती आवास योजना (अर्फोडेबुल
हाउसिंग) को समुचित समर्थन
मिलेगा। पर्यावरणीय दबाव में कमी
आएगी।
क्या करें नागरिक?
सरकार ने दिशा दिखाई
है, लेकिन अब जिम्मेदारी समाज
और नागरिकों की भी है।
निर्माण कार्यों से पहले नक्शा
पास कराना, भवन अनुमति लेना
और हर नियम का
पालन करना, अब किसी विकल्प
नहीं बल्कि अनिवार्यता है। यदि नागरिक
नियोजन को अपने जीवन
का हिस्सा बना लें, तो
शहर सहजता से सुव्यवस्थित हो
सकता है।
नियमों की नींव पर विकास की इमारत
उत्तर प्रदेश भवन निर्माण एवं विकास उपविधि-2025 केवल निर्माण के दिशा-निर्देश नहीं हैं, ये एक विचार हैं कृ समन्वित, समावेशी और स्थायी विकास का। यह बदलाव नगरीय भारत के लिए एक “पॉलिसी मॉडल“ बन सकता है। इस उपविधि को केवल अधिकारियों की फाइल में नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक के व्यवहार और हर शहर की गली में उतरना चाहिए। तभी उत्तर प्रदेश के शहरों में ’विकास’ केवल आंकड़ों की बात नहीं रह जाएगा, वह दिखाई देने वाला बदलाव बनेगा। कार्यशाला में विशेषज्ञों और वास्तुविदों द्वारा नागरिकों को प्रेरित किया गया कि वे भवन निर्माण के पूर्व प्राधिकृत योजनाओं का पालन करें। अवैध निर्माण और बिना अनुमति निर्माण पर सख्ती से रोक लगाने की बात कही गई.
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