अस्तित्व बचाने के लिए नीतीश को जंगलराज पार्ट-3 कबूल
2020 में बीजेपी
के
साथ
मिलकर
बिहार
की
सत्ता
पर
काबिज
होने
वाले
नीतीश
कुमार
एक
बार
फिर
पाला
बदल
दिया।
इसकी
बड़ी
वजह
बीजेपी
की
वह
खौफ,
जो
उनके
अस्तित्व
को
ही
समाप्त
करने
के
उधेड़-बुन
में
जुटे
कार्यकर्ता
है।
यह
खौफ
हाल
के
एक-दो
दिन
के
नहीं
बल्कि
चुनाव
के
बाद
से
ही
उन्हें
उस
वक्त
से
सता
रहा
है
जब
बीजेपी
उन्हीं
के
कंधे
पर
सवार
होकर
बड़ी
पार्टी
होने
के
बावजूद
छोटे
दल
के
रुप
में
उन्हें
मुख्यमंत्री
का
ऑफर
दी
थी।
हाल
के
हालातों
व
बयानों
के
बाद
नीतीश
को
जब
लगने
लगा
कि
अब
उनके
अस्तित्व
पर
ही
हमला
होने
के
साथ
स्वतंत्र
राज्य
का
दर्जा
देने
जैसी
मांगों
की
अनदेखी
हो
रही
है
तो
बीजेपी
से
नाता
तोड़ने
में
अपना
हित
समझने
लगे।
ऐसे
में
बड़ा
सवाल
तो
यही
है
क्या
अस्तित्व
बचाने
के
लिए
जंगलराज
पार्ट-3
नीतीश
को
कबूल
है?
वैसे
भी
जेडीयू
का
अस्तित्व
नीतीश
कुमार
तक
ही
है.
उनके
बाद
पार्टी
का
क्या
होगा
ये
कोई
नहीं
जानता?
सुरेश गांधी
फिरहाल, बिहार में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन टूट चुका है. बिहार में एक बार फिर
सियासी सुनामी देखने को मिल रही
है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पलटी मारते
हुए बीजेपी को छोड़ आरजेडी
के साथ सत्ता पर राज की
तैयारी कर ली है.
बुधवार को शपथ ले
सकते है। हालांकि बिहार में आए इस राजनीतिक
भूचाल के स्पष्ट कारणों
पर तो अभी कुछ
कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन गौर करें तो प्रथम दृष्टया
महाराष्ट्र की धटना को
देखते हुए नीतीश पूरी तरह सहमें-सहमें नजर आ रहे थे।
खासकर 2010 से की जा
रही विशेष राज्य के दर्जे की
मांग और 5 साल पहले केंद्र से मांगे गए
स्पेशल पैकेज की अनदेखी भी
नीतीश के इस कदम
की वजह हो सकती है.
उन्हें ये अहसास हो
गया था कि बिहार
में बीजेपी उसकी कीमत पर आगे बढ़
रही है. 2020 के चुनाव में
बिहार की सबसे बड़ी
पार्टी नंबर 3 की पार्टी बन
गई. मतलब साफ है नीतीश का
अपना वोटबैंक बीजेपी की तरफ खिसकता
हुआ दिखने लगाथा। इस्तीफे के बाद नीतीश
ने कहा कि षडयंत्र के
तहत जेडीयू को खत्म करने
की कोशिश की गई. नीतीश
ने आरोप लगाया कि बीजेपी की
तैयारी जदयू विधायकों को खरीदने की
थी. यह अलग बात
है कि उनके द्वारा
जंगलराज पार्ट- 3 कबूलनामें को बीजेपी सवाल
पूछ रही है कि 2017 की
जो परिस्थितियां बनीं थीं, वह खुद वो
बताएं कि उस भ्रष्टाचार
में क्या अंतर आ गया. यह
बिहार के जनादेश के
साथ धोखा है।
5 साल पहले साल 2017 में नीतीश कुमार ने बिहार की
सेहत सुधारने का दावा करते
हुए आरजेडी का साथ छोड़कर
बीजेपी का हाथ पकड़ा
था. उस समय उन्होंने
केंद्र सरकार से राज्य के
डेवलपमेंट के लिए 2.75 लाख
करोड़ रुपये के स्पेशल पैकेज
की मांग की थी. इससे
पहले नीतीश कुमार ने अपने ट्विटर
अकाउंट से ट्वीट कर
ये भी कहा था
कि बिहार और बिहार की
जनता के लिए अगर
मुझे बार-बार याचक के तौर पर
किसी के दरवाजे जाना
पड़े, तो इसमें मुझे
कोई संकोच नहीं है. नीतीश कुमार की स्पेशल पैकेज
की मांग और बीजेपी के
साथ के बाद ऐसा
लग रहा था कि बिहार
के अच्छे दिन आने वाले हैं. लेकिन 5 साल बाद भी इस पैकेज
को लेकर बात आगे नहीं बढ़ सकी. ऐसे
में नीतीश की मांग पर
केंद्र की अनदेखी को
भी दोनों के बीच पड़ी
दरार के तौर पर
देखा जा सकता है.
हालांकि, बीजेपी की ओर से
कहा गया कि बिहार के
लिए 1.25 लाख करोड़ का बड़ा पैकेज
दिया गया. जिसका वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरा में
की गई एक जनसभा
के दौरान किया था. बिहार राज्य को विशेष राज्य
का दर्जा दिए जाने की मांग अभी
से नहीं बल्कि 2010 से उठ रही
है और अभी तक
यह मांग पूरी नहीं हो सकी. नीतीश
कुमार ने 17 मार्च 2013 को एक बड़ी
अधिकार रैली भी निकाली थी
और दिल्ली के रामलीला मैदान
में डेरा जमाकर बिहार को विशेष राज्य
का दर्जा देने की मांग की
थी. नीतीश के बीजेपी का
दामन थामने के बाद इस
मांग के पूरा होने
की उम्मीदों को पंख जरूर
लगे थे. लेकिन, केंद्र सरकार की ओर से
इस मामले पर कोई फैसला
नहीं लिया जा सका. विशेष
राज्य की मांग पर
केंद्र की बेरुखी को
भी बिहार में उठे सियासी घमासान की वजह माना
जा रहा है. हालांकि एनडीए में उनकी वापसी के बाद, शुरुआत
में सब कुछ ठीक
चल रहा था. 2020 के विधानसभा चुनावों
के लिए गठबंधन के नेतृत्व में
दरारें उभरीं. जैसा कि भाजपा नहीं
चाहती थी कि नीतीश
सारा श्रेय लेकर चले जाएं, आंतरिक कलह शुरू हो गई और
चुनाव परिणामों में भी दिखाई दी
क्योंकि एनडीए गठबंधन मुश्किल से विजयी हो
सका. सरकार बनने के बाद भी
उनके संबंध जोखिमों से भरे रहे.
क्योंकि वे जनसंख्या नियंत्रण,
जाति जनगणना, बिहार के लिए विशेष
श्रेणी के दर्जे की
मांग और अन्य कई
मुद्दों पर मतभेद रखते
थे.
नीतीश ने अब तक 7 बार पलटी मारी
देखा जाएं तो नीतीश कुमार
एक बार फिर अपने पुराने अंदाज में नजर आ रहे हैं.
सत्ता पाने में माहिर नेताओं में शीर्ष पर खड़े नीतीश
कुमार अब राजद के
साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी में
हैं. इस क्रम में
उन्होंने सभी को चौंकाते हुए
राज्यपाल को अपना इस्तीफा
भी सौंप दिया. राजद से गठजोड़ के
बाद तेजस्वी को गृह विभाग
और डिप्टी सीएम पद मिलना लगभग
तय है. गौर करने वाली बात यह है कि
नीतीश ऐसा पहली बार नहीं कर रहे. बीते
10 सालों में उन्होंने अपनी दल बदलने की
कला से 7 बार चौंकाया है. इसीलिए बिहार की सियासत में
नीतीश को ’पलटूराम’ कहा जाता हैं. खुद तेजस्वी यादव ने पिछले कार्यकाल
में सत्ता गंवाने और विधानसभा चुनाव
2020 में हारने के बाद नीतीश
कुमार पर तीखा हमला
किया था. ’पलटूराम’ नीतीश कुमार पर उनकी बार-बार की गई चुटकी
में से एक था.
बता दें, जदयू 2005 से बिहार पर
शासन कर रही है
और नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर
राज करने वाले सबसे लंबे समय के मुख्यमंत्री बन
गए हैं. अपने शासन के 15 से अधिक वर्षों
में उन्होंने दो बार एनडीए
खेमे से महागठबंधन और
फिर एनडीए के साथ जाकर
पाला बदल चुके हैं. दोनों बार जदयू संख्या के मामले में
छोटी पार्टी रही, लेकिन यह शासन में
ऊपरी हाथ लेने में सफल रही. बिहार पर शासन करने
के पिछले 9 वर्षों में नीतीश कुमार ने दो बार
पाला बदला है, बेहद विपरीत सहयोगियों के साथ गठबंधन
सरकारें बनाई हैं. उनके राजनीतिक कौशल और प्रबंधन ने
गठबंधन को आसानी से
जीवित रखा. इसने उनके प्रतिद्वंद्वियों को विशेष रूप
से राजद नेताओं को ’पलटूराम’ का ताना मारने
के लिए प्रेरित किया.
तेजस्वी को नीतीश ने बताया था भ्रष्ट नेता
2014 के लोकसभा चुनावों
से पहले नरेंद्र मोदी के बीजेपी के
पीएम चेहरा बनने के बाद, नीतीश
कुमार ने बीजेपी को
समर्थन देने से इंकार कर
दिया. उन्होंने तब कहा था
कि उनकी पार्टी धर्मनिरपेक्ष वोट और धर्मनिरपेक्ष राज्य
के लिए खड़ी होगी. 2015 के विधानसभा चुनावों
से पहले नीतीश ने महागठबंधन या
महागठबंधन बनाने के लिए कट्टर
प्रतिद्वंद्वी लालू यादव के नेतृत्व वाले
राजद और कांग्रेस और
अन्य छोटे दलों के साथ हाथ
मिलाया. इस गठबंधन ने
178 सीटें जीतीं, जिससे भाजपा सत्ता से बाहर हो
गई.2017 में आईआरसीटीसी घोटाले में लालू के आवास पर
सीबीआई के छापे के
बाद जदयू और राजद के
बीच संबंध खराब हो गए. जिसमें
लालू के बेटे तेजस्वी
यादव को भी भूमि
हस्तांतरण से लाभ प्राप्त
करने का आरोपी घोषित
किया गया. जब नीतीश ने
इस मुद्दे पर सफाई देने
के लिए कह कर नैतिक
उच्च आधार लेने की कोशिश की,
तो राजद ने इसे पार्टी
को शर्मिंदा करने के साधन के
रूप में देखा. नीतीश ने महागठबंधन से
बाहर निकलने का फैसला किया
और एनडीए से हाथ मिला
लिया. वह मुख्यमंत्री बने
रहे जबकि भाजपा नेता सुशील मोदी उनके डिप्टी बने. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने इसे नीतीश
का विश्वासघात करार दिया. इतना ही नहीं उन्होंने
महागठबंधन के विघटन के
लिए नीतीश पर दोष मढ़ा.
राजद प्रमुख ने उन पर
’अवसरवादी’ राजनेता होने का आरोप लगाया
और उनका नाम ’पलटूराम’ भी रखा. लालू
के बेटे तेजस्वी ने चुनावी रैलियों
में नीतीश पर हमला करने
के लिए ’पलटूराम’ का हमेशा इस्तेमाल
किया.
काफी दिनों से नीतीश व तेजस्वी में चल रहा था मंथन
22 अप्रैल 2022 की शाम, जब
नीतीश कुमार ने राबड़ी आवास
पर आयोजित इफ्तार पार्टी में जाकर सबको चौंका दिया था। इस पार्टी के
बाद लालू प्रसाद के बड़े बेटे
तेज प्रताप यादव के उस बयान
को भी याद कीजिए,
जब उन्होंने कहा था, उनके और नीतीश कुमार
के बीच सीक्रेट डील हुई है। जल्द ही बिहार में
तेजस्वी सरकार बनेगी। उस समय सियासत
गरमाई जरूर थी। लेकिन बीजेपी ने तेज प्रताप
के इस ऐलान को
हल्के में लेने की भूल कर
दी। आज मोहर्रम यानी
9 अगस्त के दिन नीतीश
कुमार ने जब बीजेपी
के साथ गठबंधन तोड़ा तो बिहार की
जनता दंग रह गई। 28 दिन
पहले यानी 12 जुलाई को पहले नरेंद्र
मोदी ने विधानसभा के
शताब्दी वर्ष समारोह पर जब नीतीश
की तारीफ की थी। उस
वक्त न मोदी ने
और न ही बिहार
की जनता ने सोचा था
कि नीतीश कुमार इतनी जल्दी अपना पाला बदलकर राजद के साथ सरकार
बनाएंगे। जब नीतीश कुमार
ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा
दिया तो भाजपा के
फायर ब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री
गिरिराज सिंह का एक बयान
आया। उन्होंने नीतीश कुमार पर तंज कसते
हुए कहा रमजान में गले मिले और मोहर्रम पर
नीतियों की कुर्बानी दी।
पीएम बनने का ख्वाब भी अहम्
हालांकि सवाल इस बात का
है आखिर नीतीश कुमार के इस फैसले
के पीछे का क्या गुणा-गणित हो सकता है.
क्योंकि राजनीति में जो सामने से
दिखता है उसकी कई
इनसाइड स्टोरी भी हो सकती
हैं. बीजेपी और आरजेडी के
बीच तल्खी जब बढ़ती थी
बीजेपी आलाकमान और नीतीश कुमार
सीधे बात करके मामले को सुलझाते रहे
हैं लेकिन इस बार नीतीश
ने एनडीए से अलग होने
का फैसला क्यों ले लिया. 71 साल
के हो चुके नीतीश
कुमार के इस कदम
के पीछे दूरदर्शी राजनीति भी हो सकती
है. माना जा रहा है
कि नीतीश कुमार का बीजेपी से
रिश्ता तोड़ना पहला कदम भर है वो
राजनीति में बड़ा ’खेला’ कर सकते हैं.
इस बात को समझने के
लिए हमें लोकसभा चुनाव 2019 के साथ ही
शुरू हुए कुछ घटनाक्रमों पर नजर डालनी
होगी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव
से ठीक 6 महीने पहले कांग्रेस यूपीए के कुनबे को
मजबूत करने की कवायद में
जुटी थी. लेकिन इसी बीच आंध्र प्रदेश से चंद्राबाबू नायडू
और पश्चिम बंगाल की मुख्यंत्री ममता
बनर्जी की सक्रियता बढ़
जाती है. दोनों ही नेता विपक्षी
एकता की बात कर
रहे थे लेकिन इसके
साथ ही वो कांग्रेस
की नेतृत्व स्वीकार करने की मूड में
नहीं थे. ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू
खुद की दावेदारी पीएम
पद के लिए मजबूत
करने में जुटे थे. ममता बनर्जी ने कोलकाता में
विपक्ष की एक रैली
भी आयोजित कर डाली जिसमें
उन्होंने कांग्रेस को भी न्योता
दिया था. लेकिन इस रैली में
गांधी परिवार से कोई शामिल
नहीं हुआ हालांकि पार्टी से नेताओं को
जरूर भेजा गया था. विपक्षी दलों में पीएम पद के दावेदारी
पर मंथन में ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू के बीच बिहार
के सीएम नीतीश कुमार का भी नाम
कई समीकरण के तहत आ
रहा था. कहा यह भी जा
रहा था कि अगर
एनडीए बहुमत से दूर रहता
है तो बाकी पार्टियों
का समर्थन जुटाने के लिए नीतीश
कुमार को पीएम पद
के लिए आगे किया जा सकता है.
दूसरी ओर चर्चा इस
बात की भी थी
कि संयुक्त विपक्ष की ओर से
भी नीतीश कुमार को चेहरा बनाया
जा सकता है और कांग्रेस
भी इसका समर्थन कर सकती है.
ये बातें उस समय हो
रही थीं जब नीतीश कुमार
एनडीए में शामिल थे. हालांकि नीतीश कुमार ने कभी पीएम
बनने की इच्छा खुले
तौर पर तो नहीं
जाहिर की लेकिन उनकी
पार्टी जेडीयू के नेता समय-समय पर उनको पीएम
मटेरियल बताते रहे हैं. अब बदले समीकरण
के बीच हो सकता है
राजनीति के कुशल खिलाड़ी
नीतीश कुमार ने एक बड़ा
राजनीतिक दांव चलने का फैसला किया
है. कांग्रेस के अंदर जिस
तरह से हालात हैं
उससे लगता नहीं है कि गांधी
परिवार की अगुवाई में
इस बार भी कोई बड़ा
विकल्प बन पाए. ऐसे
स्थिति में विपक्ष को हिंदी पट्टी
से एक ऐसे चेहरे
जरूरत होगी जिसको सभी पार्टियां स्वीकार कर लें. नीतीश
कुमार के नाम पर
ममता बनर्जी भी शायद विरोध
न करें और बिहार में
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस को भी ज्यादा
दिक्कत नहीं होगी. और रणनीति के
तहत लोकसभा चुनाव तक बिहार की
कमान तेजस्वी यादव को सौंप दिया
जाए और नीतीश कुमार
अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी
लड़ाई लड़ने के लिए लोकसभा
चुनाव 2024 के मैदान में
उतर जाएं. हालांकि ये भी सिर्फ
कयास हैं.
चिराग मॉडल भी बना वजह
आरसीपी सिंह द्वारा कथित तौर पर जमीन घोटाले
का आरोप उछाल कर जेडीयू के
नेताओं ने जवाब मांगा
तो आरसीपी ने पार्टी से
ही इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे
के बाद चर्चा होने लगी कि नीतीश कुमार
की पार्टी जेडीयू के कुछ विधायक
आरसीपी सिंह के संपर्क में
हो सकते हैं और बिहार में
महाराष्ट्र वाला शिंदे पार्ट-2 हो सकता है.
नीतीश कुमार कैंप तक बात पहुंचे
तो सबके कान खड़े हो गये. राष्ट्रीय
अध्यक्ष ललन सिंह ने मोर्चा संभाला
और कह दिया कि
बिहार में 2020 वाला चिराग मॉडल फिर से जिंदा किया
जा रहा है. आगे बढ़े उससे पहले चिराग मॉडल समझ लीजिए. 2020 में चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा थे.
लेकिन जब विधानसभा चुनाव
का गठबंधन फाइनल हुआ तो नीतीश कुमार
ज्यादा सीट देने को राजी नहीं
हुए. नतीजा हुआ कि चिराग एनडीए
से बाहर हुए और विधानसभा चुनाव
में जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने
उम्मीदवार उतार दिये. कई उम्मीदवार तो
बीजेपी के नेता था
जिन्हें नीतीश से गठबंधन की
कीमत अपनी सीट की कुर्बानी देकर
चुकानी पड़ी थी. रिजल्ट आया तो जेडीयू तीन
नंबर की पार्टी बन
गई. आरोप लगे कि बीजेपी ने
जानबूझकर चिराग को जेडीयू के
पीछे लगा दिया था. खैर... अब उसी चिराग
मॉडल की चर्चा है.
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