ज्ञानवापी में नहीं लागू होगा वर्शिप एक्ट, श्रृंगार गौरी केस सुनने लायक
मुस्लिम पक्ष
की
अर्जी
खारिज,
कहा,
फैसले
के
खिलाफ
हाईकोर्ट
में
करेंगे
अपील
हिंदू पक्ष
के
हक
में
फैसले
से
गदगद
झूमी
पूरी
काशी
बीते 24 अगस्त
को
वाराणसी
की
अदालत
ने
ज्ञानवापी
मस्जिद
मामले
में
सुनवाई
की
थी.
इस
सुनवाई
के
बाद
फैसला
सुरक्षित
रख
लिया
गया
था
कोर्ट ने
पांचों
महिला
हिंदू
पक्षकार
के
पक्ष
में
फैसला
सुनाया
है
सुरेश गांधी
वाराणसी। देश-दुनिया की सुर्खियों में
छायी ज्ञानवापी मस्जिद मामले में वाराणसी की अदालत ने
सोमवार को हिंदू पक्ष
के हक में फैसला
दिया है. कोर्ट ने अंजुमन इंतेजामिया
कमेटी की याचिका खारिज
कर दी है. कोर्ट
ने पांचों महिला हिंदू पक्षकार के पक्ष में
फैसला सुनाया है. ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी विवाद मामले में फैसला सुनाते हुए जिला जज एके विश्वेश
की एकल पीठ ने मामले को
सुनवाई योग्य बताया है. मुख्य रूप से उठाए गए
तीन बिंदुओं- प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट,
काशी विश्वनाथ ट्रस्ट और वक्फ बोर्ड
से इस वाद को
बाधित नहीं माना और श्रृंगार गौरी
वाद सुनवाई योग्य माना। जिला जज ने 26 पेज
के आदेश का निष्कर्ष लगभग
10 मिनट में पढ़ा। इस दौरान सभी
पक्षकार मौजूद रहे।
ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु
शंकर जैन ने कहा, अदालत
ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को
खारिज कर दिया और
कहा कि मुकदमा विचारणीय
है. मामले की अगली सुनवाई
22 सितंबर को होगी. फैसला
आने के बाद शंख
और नगाड़े बजाने के साथ ही
लोग हर-हर महादेव
के नारे भी लगाएं. पूरे
कचहरी परिसर में हर-हर बम-बम और हर
हर महादेव का उद्घोष काफी
देर तक गूंजता रहा.
लोगों ने एक-दुसरे
को मिठाईयां भी खिलायी। ज्ञानवापी
मस्जिद मामले के याचिकाकर्ता सोहन
लाल आर्य ने कहा, यह
हिंदू पक्ष की जीत है.
यह ज्ञानवापी मंदिर की आधारशिला है.
हम लोगों से शांति बनाए
रखने की अपील करते
हैं. याचिकाकर्ता मंजू व्यास ने कहा कि
आज पूरा भारत खुश है. मेरे हिंदू भाई-बहनों को जश्न मनाने
के लिए दीए जलाने चाहिए.
बता दें, हिंदू पक्ष की ओर से ज्ञानवापी परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर नियमित पूजा अर्चना करने की अनुमति दिए जाने की मांग की गई थी. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में पोषणीय नहीं होने की दलील देते हुए इस केस को खारिज करने की मांग की थी. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 07 नियम 11 के तहत इस मामले में सुनवाई हो सकती है. इस मामले में दिल्ली की राखी सिंह और वाराणसी की निवासी चार महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हिंदू देवी देवताओं की प्रतिदिन पूजा अर्चना का आदेश देने के आग्रह वाली एक याचिका पिछले साल सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में दाखिल की थी. उसके आदेश पर पिछली मई में ज्ञानवापी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वे कराया गया था.
इसी बीच, मुस्लिम पक्ष ने इस सर्वे को उपासना अधिनियम 1991 का उल्लंघन करार देते हुए इस पर रोक लगाने के आग्रह वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी. हालांकि कोर्ट ने वीडियोग्राफी सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, मगर मामले की सुनवाई जिला जज की अदालत में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था. ज्ञानवापी सर्वे की रिपोर्ट पिछली 19 मई को जिला अदालत में पेश की गई थी. सर्वे के दौरान हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजू खाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया था जबकि मुस्लिम पक्ष ने उसे फव्वारा बताया था.
मुस्लिम
पक्ष ने इस मामले
को उपासना स्थल अधिनियम के खिलाफ बताते
हुए कहा था कि यह
मामला सुनवाई के योग्य नहीं
है. जिला जज ने इस
सिलसिले में दायर याचिका पर पहले सुनवाई
करने का निर्णय लिया
था. इस मामले में
दोनों पक्षों की दलीलें पूरी
हो चुकी हैं. हिंदू पक्ष का दावा है
कि मुस्लिम पक्ष बहुत पुराने दस्तावेज पेश कर रहा है
जो इस मामले से
संबंधित नहीं है. बता दें, हिंदू पक्ष ने तमाम दलीलों
के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर को हिंदू देवी
देवताओं का पूजा स्थल
सिद्ध करने के लिए प्रमाण
दिए थे। पूर्व में यहां पूजन अर्चन के करने वाले
गवाहों के साक्ष्य सहित
तमाम दस्तावेज अदालत को देकर फैसला
अपने हक में किया।
अदालत में दाखिल प्रार्थना पत्र के जरिए हिंदू
पक्ष ने पुराणों के
साथ मंदिर के इतिहास से
लेकर उसकी भौतिक संचरना तक का जिक्र
अपनी मांग में किया किया है। इस बात ज्ञानवापी
मस्जिद परिसर स्थित शृंगार गौरी और अन्य देवी
देवताओं के विग्रहों को
1991 की पूर्व स्थिति की तरह ही
हिंदुओं के लिए नियमित
दर्शन- पूजन के लिए सौंपे
और सुरक्षित रखे जाने की मांग की
थी।
मुस्लिम पक्षकार खटखटायेगा हाईकोर्ट का दरवाजा
फैसले से नाराज मुस्लिम
पक्षकार के वकील मेराजुद्दीन
सिद्दिकी ने अदालत पर
बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि यह
फैसला न्यायोचित नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हम फैसले के
खिलाफ ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे.
जज साहब ने फैसला 1991 के
संसद के कानून को
दरकिनार कर दिया है.
ऊपरी अदालत के दरवाजे हमारे
लिए खुले हैं.
5 महिलाओं ने मांगी पूजा की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने केस जिलाजज
को ट्रांसफर कर इस वाद
की पोषणीयता पर नियमित सुनवाई
कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया
था. मुस्लिम पक्ष की ओर से
यह दलील दी गई थी
कि ये प्रावधान के
अनुसार और उपासना स्थल
कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में
यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई
नहीं हो सकती है.
उपासना स्थल कानून 1991 के तहत धार्मिक
स्थलों की 1947 के बाद की
स्थिति बरकरार रखने का प्रावधान है.
हाई अलर्ट, चौकस इंतजाम
कचहरी परिसर, काशी विश्वनाथ धाम क्षेत्र समेत अन्य संवेदनशील इलाकों में पुलिस विशेष सतर्कता बरत रही है। जगह-जगह पुलिस सड़कों पर रुट मार्च
के साथ वाहनों की चेकिंग कर
रही है। सड़क पर चलने वालों
से पूछताछ के बाद ही
आगे बढ़ने दिया जा रहा है।
अब करेंगे ज्ञानावापी सर्वे की मांग
महिला याचिकर्ताओं के वकील विष्णु
शंकर जैन ने कहा कि
उम्मीद के मुताबिक फैसला
हमारे पक्ष में आया है। उन्होंने कहा कि अब हम
एएसआई सर्वे और शिवलिंग की
कार्बन डेटिंग की मांग करेंगे।
उन्होंने कहा कि आज का
दिन काफी महत्वपूर्ण है। कोर्ट में मस्जिद कमेटी की तरफ से
1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट
का हवाला दिया गया था। हम लोगों ने
बहुत वैज्ञानिक तौर पर अपने तर्क
कोर्ट में रखे थे। हमारा पक्ष बहुत मजबूत था।
हिंदू पक्ष की दलीलें
जिला जज की अदालत
में चार महिला वादियों की ओर से
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अधिवक्ता
हरिशंकर जैन और विष्णु जैन
पक्ष रखा। इसमें उन्होंने 26 फरवरी 1944 के गजट को
फर्जी करार दिया और दलील दी
थी कि यह धौरहरा
बिंदु माधव मंदिर के लिए था।
बादशाह आलमगीर ने हिंदू मंदिर
तोड़कर मस्जिद बनाई। वादिनी राखी सिंह के अधिवक्ता मानबहादुर
सिंह की दलील थी
कि मंदिर के स्ट्रक्चर पर
मस्जिद का ढांचा खड़ा
कर दिया गया। यह विशेष उपासना
स्थल एक्ट से बाधित नहीं
है। औरंगजेब आतताई था और मंदिर
तोड़कर मस्जिद बनवाया, लेकिन मस्जिद के पीछे मंदिर
का दीवार छोड़ दी। वक्फ मामले में दीन मोहम्मद के केस का
भी हवाला दिया गया है। अदालत में हिंदू पक्ष की ओर से
दायर प्रार्थना पत्र के अनुसार दशाश्वमेध
घाट के पास आदिविशेश्वर
महादेव का ज्योतिर्लिंग है
और पूर्व में एक भव्य मंदिर
यहां पर मौजूद था,
जिसमें आज भी हिंदुओं
की आस्था है। इसे लाखों सालों पूर्व त्रेता युग में स्वयं भगवान शिव ने ही यहां
स्थापित किया था। इस समय यह
ज्ञानवापी परिसर प्लाट संख्या 9130 पर स्थित है।
यहां पुराने मंदिर परिसर में ही मां श्रृंगार
गौरी, भगवान गणेश, हनुमान, नंदी, दृश्य और अदृश्य देवी
देवता हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने वर्ष 1193-94 से
कई बार इस मंदिर को
नुकसान पहुंचाया। हिंदुओं ने उसी स्थान
पर मंदिर का निर्माण कर
मंदिर को पुनर्स्थापित किया
है।
मुस्लिम पक्ष की दलीलें
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता शमीम
अहमद ने काशी विश्वनाथ
मंदिर ट्रस्ट एक्ट और विशेष उपासना
स्थल कानून का हवाला दिया
था। इसमें उन्होंने 1944 के गजट और
1936 के दीन मोहम्मद केस के निर्णय का
हवाला दिया। इसमें उन्होंने दावा किया कि यह मस्जिद
औरंगजेब के जमाने के
पहले से है। विशेष
उपासना स्थल कानून 1991 का जिक्र कर
कहा गया है कि अदालत
में आजादी के बाद जो
भी धर्म स्थल जिस रूप में होगा, उसी रूप में रहेगा। इसमें मुस्लिम पक्ष ने मामले को
सुनवाई योग्य नहीं मानने के लिए दलील
दी है।
ऐतिहासिक फैसला
सोमवार दोपहर अदालत का फैसला आने
से पहले एक बजे के
बाद से ही परिसर
में गहमागहमी तेज हो गई और
दोपहर दो बजे अजय
कुमार विश्वेश की अदालत ने
फैसला पढ़ना शुरू किया, सवा दो बजे अदालत
ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के प्रार्थना पत्र
को अपने फैसले में खारिज कर दिया। अदालत
का फैसला आने के बाद अब
ज्ञानवापी के वजूखने में
में मिले शिवलिंग के पूजन की
अनुमति सहित श्रृंगार गौरी और अन्य देवी
देवताओं के विग्रह के
पूजन अर्चन संबंधी वाद को गति मिल
जाएगी।
जलाएं दिएं
हिंदू पक्ष की याचिकाकर्ता मंजू
व्यास ने मीडिया से
बात करते हुए कहा कि अदालत के
फैसले से संपूर्ण देश
खुश हैं। हमारे हिंदू भाइयों और बहनों से
विनती है कि आज
फैसले के जश्न में
अपने घरों में घी के दीये
जलायें, शंख और नगाड़े बजाने
के साथ ही हर-हर
महादेव के नारे भी
लगाएं।
ऐतिहासिक तथ्य
सन 1585 में जौनपुर के तत्कालीन राज्यपाल
राजा टोडरमल ने अपने गुरु
नारायण भट्ट के कहने पर
उसी स्थान पर भगवान शिव
का भव्य मंदिर बनवाया। वह स्थान जहां
मंदिर मूल रूप से अस्तित्व में
था यानी भूमि संख्या 9130 पर केंद्रीय गर्भगृह
से युक्त आठ मंडपों से
घिरा हुआ था। इस क्षेत्र में
मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 ईस्वी में मंदिर को ध्वस्त करने
का फरमान जारी किया था। भगवान आदि विशेश्वर के प्राचीन मंदिर
को आंशिक रूप से तोड़ने के
बाद, वहां ’ज्ञानवापी मस्जिद’ नामक एक नया निर्माण
किया गया था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास
और संस्कृति विभाग के प्रोफेसर और
प्रमुख डा. एएस अल्टेकर ने अपनी पुस्तक
’हिस्ट्री ऑफ बनारस’ में
मुसलमानों द्वारा प्राचीन काल में बनाए गए निर्माण की
प्रकृति का वर्णन किया
है। औरंगजेब ने उक्त स्थान
पर मस्जिद निर्माण के लिए कोई
वक्फ नहीं बनाया था। इसलिए मुसलमानों से संबंधित किसी
भी धार्मिक कार्य के लिए भूमि
का उपयोग करने का अधिकार नहीं
है। भूमि संख्या 9130 पांच क्रोश भूमि के साथ पहले
से ही देवता आदिविशेश्वर
में लाखों साल पहले ही निहित हो
चुकी थी और देवता
मालिक हैं। वर्ष 1780-90 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई
होल्कर ने भगवान शिव
का एक मंदिर बनवाया।
पुराने मंदिर और भगवान शिव
के शिव लिंगम के बगल में
एक शिव लिंगम की स्थापना की।
सुविधा के लिए रानी
अहिल्याबाई द्वारा निर्मित मंदिर को “नया मंदिर“ और श्री आदि
विशेश्वर मंदिर को ’पुराना मंदिर’ कहा जा रहा है।
कथित ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार
के पीछे प्राचीन काल से मौजूद देवी
श्रृंगार गौरी की छवि है
और उनकी लगातार पूजा की जाती है।
स्कंदपुराण के अनुसार भगवान
विश्वनाथ की पूजा का
फल प्राप्त करने के लिए मां
देवी श्रृंगार गौरी की पूजा अनिवार्य
है। वर्ष 1936 में दीन मोहम्मद की ओर से
ज्ञानवापी को लेकर दाखिल
मुकदमें में परिसर की पैमाइस एक
बीघा नौ बिस्वा छह
धूर बताई गई है। इस
मुकदमे के गवाहों ने
देवी मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और दृश्य और
अदृश्य देवताओं की छवियों उसी
स्थान पर होने दैनिक
पूजा करने को साबित किया
है। उत्तर प्रदेश काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 के तहत मंदिरों,
मंदिरों, उप मंदिरों और
अन्य सभी छवियों की पूजा करने
के अधिकार हिंदुओं को प्राप्त है।
मां श्रृंगार गौरी की पूजा को
वर्ष में केवल एक बार प्रतिबंधित
करने का कोई लिखित
आदेश पारित नहीं किया है। मांग किया कि ज्ञानवापी परिसर
(आराजी संख्या 9130 ) में मौजूद मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान, नंदी जी और अन्य
दृश्य और अदृश्य देवताओं
के दैनिक दर्शन, पूजा, आरती, भोग का अधिकार वादियों
को है इसलिए उन्हें
ऐसा करने में बाधा पहुंचाने वालों को रोका जाए।
साथ ही उन्हें किसी
तरह की क्षति पहुंचाने
से रोका जाए। वहां सुरक्षा के लिए शासन
व जिला प्रशासन को निर्देश दिया
जाए।
हरिशंकर जैन की दलीले
1- हिंदू
मत के अनुसार जहां
पर प्राण प्रतिष्ठा होती है वह स्थल
का स्वामित्व अनंत काल तक नहीं बदलता।
इस लिहाज से यह जमीन
मस्जिद या वक्फ की
नहीं हो सकती है।
2- इस
भूखंड का आराजी संख्या
9130 (विवादित परिसर) पर पूर्व में
भी लगातार दर्शन पूजन होता रहा है। 1993 में बैरिकेडिंग बनाए जाने तक हिंंदू देवी
देवताओं की पूजा होती
रही है।
3- स्वयंभू
को स्पष्ट किया कि जिनकी प्राण
प्रतिष्ठा नहीं होती वह ज्योतिर्लिंग होते
हैं। काशी विश्वनाथ एक्ट में पूरे परिसर को ही बाबा
विश्वनाथ के स्वामित्व का
हिस्सा माना गया था। ऐसे में एक्ट के खिलाफ जो
भी फैसले जाने अनजाने हुए या लिए गए
हैं वह सभी शून्य
हैं।
4- वर्ष
1983 में हिंदू कानून में भगवान के प्रकार और
अधिकार को लेकर स्पष्ट
व्याख्या को अदालत में
पेश किया गया है। इन तथ्यों के
समर्थन में पुराने फैसलों की नजीर भी
पेश की है।
5- कोर्ट
में राम जानकी प्रकरण 1999 के मामले में
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के
नजीर को भी सामने
रखा। इसके अतिरिक्त अयोध्या प्रकरण को लेकर भी
हिंदू पक्ष ने अदालत में
दलील रखी थी।
6- हिंदू
मत में पूजा के लिए मूर्ति
की जरूरत नहीं, हिंदू धर्म में समर्पण और निराकार ईश्वर
की मान्यता के अनुसार पूजन
की पूर्व की मान्यता को
झुठलाया नहीं जा सकता।
7- हिंदू
धर्म में भगवान या ईश्वर को
जीवित माना जाता है। इसलिए उनकी आरती और भोग की
मान्यता पुरातन है। साथ ही भारत सरकार
इस पर कर भी
लगाती है।
8- ज्ञानवापी
वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती क्योंकि
वक्फ की संपत्ति का
कोई मालिक होना चाहिए लेकिन इस मामले में
संपत्ति हस्तांतरण का कोई आधार
मौजूद नहीं है।
9- दीन
मोहम्मद केस (1937) में भी 15 गवाहों ने स्पष्ट किया
था कि यहां पर
पूजा अर्चना होती है। ऐसे में यहां पर मंदिर की
मान्यता आज के लिहाज
से कोई नई बात नहीं।
10- मंदिर को
तोड़ने के बाद किन
हिस्सों में पूजा होती थी उसका दस्तावेज
भी इस समय उपलब्ध
है। लिहाजा मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाए जाने और विध्वंश के
बाद अशेष हिस्सों में हिंदू मतावलंबी पूजन करते रहे हैं।
1993 से पहले नियमित होती थी पूजा
1993 के पहले ज्ञानवापी
मस्जिद में नियमित श्रृंगार गौरी का दर्शन पूजन
होता था और बाद
में बैरिकेडिंग कर दी गई
थी। इस बाबत वादी
पक्ष का दावा है
कि बिना किसी आदेश के मां श्रृंगार
गौरी का दर्शन- पूजन
रोक दिया गया था। इसके लिए वादी पक्ष ने अपना तर्क
भी अदालत में दिया था। कहा गया है कि मस्जिद
की पश्चिमी दीवार पर मौजूद मां
श्रृंगार गौरी की प्रतिमा भी
बैरिकेडिंग के अंदर ही
आ गई। इसके चलते दर्शनार्थियों को वहां जाकर
दर्शन-पूजन करने से रोक दिया
गया। इस बारे में
किसी तरह का कोई लिखित
आदेश आज तक मौजूद
नहीं है। वर्ष 1993 में उत्तर प्रदेश में जब प्रदेश के
चुनाव हुए तो दिसंबर माह
में मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री के
तौर पर शपथ ली
थी। उस समय केंद्र
में पीवी नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार
थी। मगर, बैरिकेडिंग किसके आदेश पर हुई और
मां श्रृंगार गौरी का दर्शन-पूजन
किसने आदेश से रोका गया
यह जानकारी किसी को नहीं है।
मगर, आज लगभग तीन
दशक बाद भी बैरिकेडिंग पर
सवाल बरकरार है। अब केस नए
सिरे से खुला है
तो हौजखास नई दिल्ली निवासी
राखी सिंह, सूरजकुंड लक्सा वाराणसी की लक्ष्मी देवी,
सरायगोवर्धन चेतगंज वाराणसी की सीता साहू,
रामधर वाराणसी की मंजू व्यास,
हनुमान पाठक वाराणसी की रेखा पाठक
वादी के तौर पर
अदालत में सवाल बनकर खड़े हैं। तो दूसरी ओर
चीफ सेक्रट्ररी के माध्यम से
उत्तर प्रदेश सरकार, जिलाधिकारी वाराणसी, पुलिस कमिश्नर वाराणसी, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने
वाली अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद और श्री काशी
विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को प्रतिवादी बनाया
गया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है.
कोर्ट ने सुनवाई के
बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है.
एएसआई सर्वेक्षण को चुनौती देने
वाली याचिका पर हाईकोर्ट में
सुनवाई पूरी हुई है. कोर्ट 28 सितंबर को याचिका पर
फैसला सुनाएगा. वाराणसी कोर्ट के अप्रैल 2021 के
एएसआई सर्वेक्षण आदेश को चुनौती दी
गई थी. मस्जिद कमेटी और वक्फ बोर्ड
ने वाराणसी कोर्ट के फैसले को
चुनौती दी है .
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