Sunday, 25 December 2022

’वीर बाल दिवस’ : जब इस्लाम कबूल न करने पर दीवारों में चुने गए साहिबजादे

वीर बाल दिवस’ : जब इस्लाम कबूल करने पर दीवारों में चुने गए साहिबजादे

जी हां, सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटे धर्म रक्षा के लिए ही शहीद हो गए थे। इस्लाम कबूल करने पर उन्हें दीवारों में चुन दिया गया, लेकिन मुगलों की गुलामी स्वीकार नहीं की। ऐसे चार साहिबजादों की याद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 दिसम्बर को वीर बाल दिवस के रुप में मनाने का ऐलान किया है। सोमवार को पूरे देश में इस दिन को शहादत दिवस के रुप में मनाया जायेगा। इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटों को मुगलों ने मौत के घाट उतार दिया था. साहिबजादा जोरावर सिंह, साहिबजादा फतेह सिंह, साहिबजादा अजीत सिंह साहिबजादा जुझार सिंह को 9 साल की उम्र में औरंगजेब ने इस्लाम कबूल करने पर दीवारों में चुनवा दिया था। मतलब साफ है दोनों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मृत्यु को प्राथमिकता दी 

सुरेश गांधी

गुरु गोबिंद सिंह जी बचपन से ही बहादुर योद्धा थे. उनके पिता और सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब ने शहीद किया था, जिसकी वजह से गुरु गोबिंद सिंह जी ने 09 वर्ष की आयु में पिता की गद्दी पर आसीन हो गए. वे सिखों के 10वें गुरु बने. उन्होंने ही मुगलों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने और धर्म की रक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना थी. उन्होंने ही गुरु ग्रंथ साहिब को अपना उत्तराधिकारी और सिखों का निर्देशक घोषित किया था. गुरु गोविंद सिंह ने पांच प्यारों को अमृत पान करवाकर खालसा बनाया और खुद भी उनके हाथों से अमृत पान किया. गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ में जीवन के पांच सिद्धांत दिए हैं, जिन्हें पंच ककार के नाम से जाना जाता है। इसका मतलबशब्द से शुरु होने वाले पांच सिद्धांत हैं, जिनका अनुसरण करना हर खालसा सिख के लिए अनिवार्य है।

 ये पांच ककार हैं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा। उन दिनों औरंगजेब गद्दी पर था। औरंगजेब के शासन में इस्लाम को राजधर्म घोषित किया गया। वह जबरन हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करवा रहा था। औरंगजेब की मौत के बाद नवाब वजीत खां ने धोखे से गुरु गोबिंद सिंह जी की हत्या करवा दी। उन्होंने धर्म रक्षा के लिए अपने परिवार को कुर्बान कर दिया. उनके दो बेटों को दुश्मनों ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था. सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के चार बेटे थे पहले साहिबजादे अजीत सिंह 1687 से 1705, दूसरे साहिबजादा जुझार सिंह 1691 1705, तीसरे साहिबजादा जोरावर सिंह 1696 से 1705 और चौथे साहिबजादे फतेह सिंह 1699 1705 थे।

कहते है साहिबजादा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा फतेह सिंह जी ने दीवार में जिंदा चिनवा दिए जाने के बाद शहीदी प्राप्त की थी। इन दो महान हस्तियों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मौत को चुना।’’ संघर्ष की शुरुआत आनंदपुर साहिब किले से हुई थी। जब गुरु गोविंद सिंह और मुगल सेना के बीच कई महीनों तक युद्ध हुआ था। उनके साहस को देखकर औरंगजेब भी दंग रह गया था। अंत में औरंगजेब ने गुरुजी को चिट्ठी लिखी थी। औरंगजेब अपने वादे से मुकर गया और किले पर हमला कर दिया। तो गुरु जी का परिवार उनसे बिछड़ गया था। छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी अपने रसोईए गंगू के साथ सरसा नदी पार कर बड़े साहिबजादे चमकौर साहिबगढ़ी पहुंचे। जबकि दो छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और साहिबजादे फतेह सिंह अपनी दादी गुजरी देवी के साथ चले गए। इसी दौरान मुगल आक्रांताओं के सिपाही ने साहिबजादों और माताजी को कैद कर लिया। यहां नवाब वजीर खान ने साहिबजादा को धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा था। उन्होंने मना कर दिया। जवाब सुनकर नवाब आग बबूला हो गया। मौके पर मौजूद काजी ने फतवा जारी किया। इस फतवे में लिखा था कि यह बच्चे बगावत कर रहे हैं और इन्हें जिंदा दीवार में चुनवा दिया जाना चाहिए। ऐसा ही हुआ और अंत तक उन्होंने इस्लाम को कबूल नहीं किया और शहीद हो गए।

बात वर्ष 1705 की है। मुगलों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से बदला लेने के लिए जब सरसा नदी पर हमला किया तो गुरु जी का परिवार उनसे बिछड़ गया था। छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी अपने रसोईए गंगू के साथ उसके घर मोरिंडा चले गए। रात को जब गंगू ने माता गुजरी के पास मुहरें देखी तो उसे लालच गया। उसने माता गुजरी और दोनों साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह को सरहिंद के नवाब वजीर खां के सिपाहियों से पकड़वा दिया। वजीर खां ने छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह तथा माता गुजरी जी को पूस महीने की तेज सर्द रातों में तकलीफ देने के लिए ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। यह चारों ओर से खुला और उंचा था। इस ठंडे बुर्ज से ही माता गुजरी जी ने छोटे साहिबजादों को लगातार तीन दिन धर्म की रक्षा के लिए सीस झुकाने और धर्म बदलने का पाठ पढ़ाया था। यही शिक्षा देकर माता गुजरी जी साहिबजादों को नवाब वजीर खान की कचहरी में भेजती रहीं। 7 9 वर्ष से भी कम आयु के साहिबजादों ने तो नवाब वजीर खां के आगे शीश झुकाया और ही धर्म बदला। इससे गुस्साए वजीर खान ने 26 दिसंबर, 1705 को दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया था। जब छोटे साहिबजादों की कुर्बानी की सूचना माता गुजरी जी को ठंडे बुर्ज में मिली तो उन्होंने भी शरीर त्याग दिया। इसी स्थान पर आज गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब बना है। इसमें बना ठंडा बुर्ज सिख इतिहास की पाठशाला का वह सुनहरी पन्ना है, जहां साहिबजादों ने धर्म की रक्षा के लिए शहादत दी थी। मासूम साहिबजादों की इस शहादत ने सभी को हिला कर रख दिया था। कहा जाता है छोटे साहिबजादों की शहादत ही आगे चलकर मुगल हकूमत के पतन का कारण बनी थी। श्री गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों में दो अन्य चमकौर की जंग में शहीद हुए थे। गुरु गोबिद ने अपने दो पुत्रों को स्वयं आशीर्वाद देकर जंग में भेजा था। चमकौर की जंग में 40 सिखों ने हजारों की मुगल फौज से लड़ते हुए शहादत प्राप्त की थी। 6 दिसंबर, 1705 को हुई इस जंग में बाबा अजीत सिंह (17) बाबा जुझार सिंह (14) ने धर्म के लिए बलिदान दिया था। 

साहिबजादों’ के साहस और न्याय स्थापना की कोशिश 

को मोदी की उचित श्रद्धांजलि है : अजीत बग्गा  

सिख नेता अजीत सिंह बग्गा ने उन्हें नमन करते हुए कहा, आज माता गुजरी, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और 4 साहिबजादों की बहादुरी और आदर्श लाखों लोगों को ताकत देते हैं. वे कभी अन्याय के आगे नहीं झुके. उन्होंने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जो समावेशी और सामंजस्यपूर्ण हो. यह लोगों को जानने की जरूरत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बधाई के पात्र है और सिख समाज उनका आजीवन ऋणी रहेगा जिन्होंने गुरु गोविंद सिंह के वीर पुत्रों के बलिदान पर 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस घोषित किया है। इसके चलते 21 से 27 दिसम्बर तक शहीदी सप्ताह शौर्य दिवस मनाया जा रहा है। क्योंकि इन्हीं 7 दिनों में गुरु गोविंद सिंह का पूरा परिवार शहीद हो गया था। उसी रात माता गूजरी ने भी ठंडे बुर्ज में प्राण त्याग दिए। यह सप्ताह भारत के इतिहास में शोक सप्ताह होता है। शौर्य का सप्ताह होता है। पहली बार दिल्ली के मेजर ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम में वीर बाल दिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। खुशी की बात है कि इस मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें शामिल हो रहे हैं। इसी साल 9 जनवरी 2022 को पीएम नरेंद्र मोदी ने श्री गुरु गोविंद सिंह की जयंती पर हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने का ऐलान किया था। साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह जी की शहादत को सम्मान देने के लिए वीर बाल दिवस मनाया जाता है। यहसाहिबजादोंके साहस और न्याय स्थापना की उनकी कोशिश को उचित श्रद्धांजलि है।

सिखों के दसवें गुरु थे गुरु गोबिंद सिंह

चिड़ियां नाल मैं बाज लड़ावां गिदरां नुं मैं शेर बनावां सवा लाख से एक लड़ावां तां गोविंद सिंह नाम धरावांसिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह द्वारा 17 वीं शताब्दी में कहे गए ये शब्द आज भी सुनने को मिलती है. गुरु गोबिंद सिंह जी गोबिंद राय के रूप में पटना में पैदा हुए जो दसवें सिख गुरु बने. वह एक आध्यात्मिक नेता, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे. वह औपचारिक रूप से नौ साल की उम्र में सिखों के नेता और रक्षक बन गए, जब नौवें सिख गुरु और उनके पिता गुरु तेग बहादुर औरंगजेब द्वारा इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार करने के लिए मार दिए गए थे. गुरु गोबिंद जी ने अपनी शिक्षाओं और दर्शन के माध्यम से सिख समुदाय का नेतृत्व किया और जल्द ही ऐतिहासिक महत्व प्राप्त कर लिया. वह खालसा को संस्थागत बनाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी मृत्यु से पहले 1708 में गुरु ग्रंथ साहिब को सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ घोषित किया था.

गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा थे

वह कविता और दर्शन और लेखन के प्रति अपने झुकाव के लिए जाने जाते थे. उसने मुगल आक्रमणकारियों को जवाब देने से इनकार कर दिया और अपने लोगों की रक्षा के लिए खालसा के साथ लड़ाई लड़ी. उनके मार्गदर्शन में उनके अनुयायियों ने एक सख्त संहिता का पालन किया. उनके दर्शन, लेखन और कविता आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं. 1708 में उनका निधन हो गया लेकिन उनके मूल्य और विश्वास उनके अनुयायियों के माध्यम से जीवित हैं। कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दी थी. गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती है.

प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया

गुरु गोविंद सिंह जी ने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया. उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना नहीं चाहिए और किसी से डरना चाहिए. उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी. उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दी थी. गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु 42 वर्ष की उम्र में 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र में हुई.

गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रमुख कार्य

गुरु गोबिंद साहब जी ने ही सिखों के नाम के आगे सिंह लगाने की परंपरा शुरू की थी, जो आज भी सिख धर्म के लोगों द्धारा चलाई जा रही है. गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई बड़े सिख गुरुओं के महान उपदेशों को सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित कर इसे पूरा किया था. वाहेगुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही गुरुओं के उत्तराधिकारियों की परंपरा को खत्म किया. सिख धर्म के लोगों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को सबसे पवित्र एवं गुरु का प्रतीक बनाया.

लड़े हुए कुछ प्रमुख युद्ध

सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने अ्पने सिख अनुयायियों के साथ मुगलों के खिलाफ कई बड़ी लड़ाईयां लड़ीं. इतिहासकारों की माने तो गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में 14 युद्ध किए, इस दौरान उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ कुछ बहादुर सिख सैनिकों को भी खोना पड़ा, लेकिन गुरु गोविंद जी ने बिना रुके बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी।

भंगानी का युद्ध (1688)

नंदौन का युद्ध (1691) 

गुलेर का युद्ध (1696)

आनंदपुर का पहला युद्ध (1700)

निर्मोहगढ़ का युद्ध (1702) 

बसोली का युद्ध (1702) 

चमकौर का युद्ध (1704)

आनंदपुर का युद्ध (1704) 

सरसा का युद्ध (1704) 

मुक्तसर का युद्ध (1705)

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