Tuesday, 27 December 2022

निकाय चुनाव : ओबीसी आरक्षण बना योगी के लिए जी का जंजाल!

निकाय चुनाव : ओबीसी आरक्षण बना योगी के लिए जी का जंजाल

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने नगर निकाय चुनाव को तत्काल कराने का आदेश दिया है। यह बात अलग है कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने कहा कि पहले ओबीसी आरक्षण और उसके बाद ही चुनाव कराएंगे। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या आरक्षण पर भारी पड़ा योगी सरकार का अति आत्मविश्वास! क्या पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करना सरकार की किरकिरी की बनी वजह? क्योंकि ओबीसी वर्ग को शहरी निकायों में आरक्षण देने के लिए जिस ट्रिपल टेस्ट की बात हो रही है, उसका पहला कदम ही पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन है. जबकि मोदी सरकार ने सभी राज्यों में ओबीसी आयोग के गठन को लेकर संसद में विधेयक भी पारित किया है। बावजूद इसके प्रदेश सरकार द्वारो इस आयोग का गठन करना लापरवाही नहीं तो और क्या है? मतलब साफ है पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन ना करना योगी के लिए नगर निकाय चुनाव जी का जंजाल बन गया है। खास यह है कि सप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत तो चुनाव टालना ही बचेगा एकमात्र विकल्प?

सुरेश गांधी

हो जो भी सच तो यही है कि अगर योगी सरकार ने राज्य में पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर निकायों में आरक्षण देने का फैसला किया होता तो शायद इस अप्रिय स्थिति से बचा जा सकता था. लेकिन सरकार का यह अति आत्मविश्वा कि हमने जो फैसला किया वही सही, इस मामले मे उस पर भारी पड़ गया. क्योंकि ओबीसी वर्ग को शहरी निकायों में आरक्षण देने के लिए जिस ट्रिपल टेस्ट की बात हो रही है, उसका पहला कदम ही पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन है. जबकि उत्तर प्रदेश में फिलहाल पिछड़ा वर्ग आयोग ही अस्तित्व में नहीं है, इसी आयोग को पिछड़ी जातियों के संबंध में रिपोर्ट तैयार करनी है. बता दें कि ट्रिपल टेस्ट के अंतर्गत सबसे पहले राज्य को एक कमिशन का गठन करना होगा. वो कमिशन राज्य में पिछड़ेपन की प्रकृति पर अपनी रिपोर्ट तैयार करेगा. इसके बाद पिछड़ेपन के आधार पर तय करेगा कि निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के लिए कितना आरक्षण दिया जा सकता है.

इस उहापोह की स्थिति देखते हुए चुनाव टालना ही योगी के सामने एकमात्र विकल्प है। सरकार सुप्रीम कोर्ट से चुनाव टालने की गुहार लगाते हुए अपने हलफनामें में कहेगी कि ओबीसी के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था खत्म कर चुनाव कराने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश व्यावहारिक नहीं है. ऐसे में आरक्षण व्यवस्था को खारिज करने की बजाय चुनाव की अधिसूचना स्थगित करने की मंजूरी दी जायं। योगी ने कहा भी है कि प्रदेश सरकार नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन के परिप्रेक्ष्य में आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। इसके बाद ही नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन को सम्पन्न कराया जाएगा। बता दें, उत्तर प्रदेश के शहरी निकायों में ओबीसी आरक्षण देने संबंधी योगी सरकार के अति आत्मविश्वास भरे फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया है. योगी सरकार ने अपने को ओबीसी समाज का हितैषी साबित करने के क्रम में बीती 5 दिसंबर की अधिसूचना जारी कर प्रदेश के ओबीसी को स्थानीय निकायों के सभी पदों पर 27 फीसदी का आरक्षण दे दिया था.

सरकार के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. जिस पर सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाई की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव के लिए सरकार की ओर से जारी ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने तुरंत चुनाव कराने का निर्देश दिया है. हाई कोर्ट का यह फैसला योगी सरकार के अति आत्मविश्वास में लिए गए फैसले पर बड़ी चोट है. यह अलग बात है कि प्रदेश सरकार की तरफ से निकाय चुनाव में ओबीसी को आरक्षण देने के लिए यह दलील दी गई थी कि उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए 22 मार्च 1993 को आयोग बनाया गया था, उसके आधार पर 2017 में भी निकाय चुनाव करवाए गए थे. जिस ट्रिपल टेस्ट की बात कही गई है उसका पालन करते हुए उत्तर प्रदेश में बैकवर्ड क्लास को आरक्षण देने के लिए डेडिकेटेड कमीशन बना हुआ है और उसके आधार पर ही आरक्षण दिया गया है, जो 50 फीसदी से अधिक नहीं है.

सरकार की इस दलील पर हाई कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र के विकास किशन राव गवली केस में सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी को अलग से आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट को जरूरी कहा है. सरकार निकाय चुनाव में ट्रिपल टेस्ट करते हुए एक डेडिकेटेड कमीशन बनाकर ओबीसी को आरक्षण दे, समय पर निकाय चुनाव यह सरकार सुनिश्चित करे, बिना ट्रिपल टेस्ट के जिन सीटों पर ओबीसी को आरक्षण दिया गया है, उन्हें अनारक्षित माना जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निकायवार पिछड़ेपन का आकलन अनिवार्य है. इसलिए अब पिछड़ा वर्ग आयोग को ही ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत तय करना होगा, जोकि शहरी निकाय वार होगा. यानी हर शहरी निकाय में वहां की स्थितियों को देखते हुए यह कम या ज्यादा हो सकता है. यह सारी कवायद पूरी होने के बाद ही निकाय चुनाव कराने की कार्रवाई की जाएगी, जिसमें वक्त लगेगा.

अब नहीं रहा सूबे में ओबीसी आरक्षण

कोर्ट के इस आदेश के बाद अब प्रदेश में किसी भी तरह का ओबीसी आरक्षण नहीं रह गया है. यानी सरकार द्वारा जारी किया गया ओबीसी आरक्षण नोटिफिकेशन रद्द हो गया है. अगर सरकार या निर्वाचन आयोग अभी चुनाव कराता है तो ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को जनरल मानकर चुनाव होगा. वहीं दूसरी तरफ एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटें यथावत रहेंगी, इसमें कोई बदलाव नहीं होगा.

विपक्षी दलों को मिला बोलने का मौका

फिलहाल हाई कोर्ट के फैसले के बाद विपक्षी दलों को योगी सरकार पर हमला बोलने का मौका मिल गया है और योगी सरकार के पास विपक्षी दलों के आरोपों का कोई उत्तर नहीं है. समाजवादी पार्टी के मुखिया और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया है, “आज आरक्षण विरोधी भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घड़ियाली सहानुभूति दिखा रही है. आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है, कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गए दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी.” मायावतीः बसपा प्रमुख ने कहा, ’’यूपी में बहुप्रतीक्षित निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार के तहत मिलने वाले आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने सम्बंधी माननीय हाईकोर्ट का फैसला सही मायने में भाजपा उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी सोच मानसिकता को प्रकट करता है।’’ मायावती ने कहा, ’’यूपी सरकार को मा. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पूरी निष्ठा ईमानदारी से अनुपालन करते हुए ट्रिपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को समय से निर्धारित करके चुनाव की प्रक्रिया को अन्तिम रूप दिया जाना था, जो सही से नहीं हुआ। इस गलती की सजा ओबीसी समाज बीजेपी को जरूर देगा।आप के सांसद संजय सिंह ने भी ट्वीट किया है, “मोदी जी, योगी जी, केशव मौर्य जी कहां छिपे हो सामने आओ. पिछड़ों का हक क्यों मारा? ये साफ़ बताओ. नौकरी में आरक्षण छीना, चुनाव में आरक्षण छीना, बस चले तो पिछड़ो के जीने का हक भी छीन लेगी भाजपा.”

सरकार कर सकती है कमीशन गठित

कोर्ट के इस फैसले के बाद अगर सरकार को ओबीसी आरक्षण लागू करना है, तो कमीशन गठित करना होगा। ये कमीशन पिछड़ा वर्ग की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देगा। इसके आधार पर आरक्षण लागू होगा। आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट यानी 3 स्तर पर मानक रखे जाते हैं। इसे ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला कहा गया है। अब इस टेस्ट में देखना होगा कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक-शैक्षणिक स्थिति कैसी है? उनको आरक्षण देने की जरूरत है या नहीं? उनको आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं? आरक्षण सिस्टम लागू करने के लिए सरकार जनगणना के आंकड़ें देखती है। इसमें उस वार्ड में वर्तमान जनगणना के अनुसार क्या आबादी है। अगर ओबीसी और एससी की संख्या जनगणना में ज्यादा है तो उसके हिसाब से उनको आरक्षित किया जाता है। कोविड की वजह से साल 2021 में जनगणना नहीं हो पाई थी, इसकी वजह से साल 2011 के जनगणना पर ही आरक्षण व्यवस्था तय किया गया है। इसमें यह देखना होता है कि वार्ड के परिसिमन के अंदर जो इलाका आता है, उसमें लेटेस्ट जनगणना में कौन सी आबादी लीड कर रही है। उसके आधार पर ही आरक्षण व्यवस्था तय की जाती है।

ट्रिपल टेस्ट फार्मूला

दरअसल, विकास किशनराव गवली के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए एक फॉर्म्यूला दिया था। इसे ट्रिपल टेस्ट फार्मूला कहा गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निकाय चुनाव में राज्य सरकार ट्रिपल टेस्ट फार्मूले का पालन करने के बाद ही ओबीसी आरक्षण तय कर सकती है। इस ट्रिपल टेस्ट फार्मूले में सबसे पहले स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति को लेकर अनुभवजन्य जांच के लिए एक आयोग की स्थापना की जाए। यह आयोग निकायों में पिछ़ड़पेन की प्रकृति का आकलन करेगा और सीटों के लिए आरक्षण प्रस्तावित करेगा। आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाए और उसका सत्यापन किया जाए। इसके बाद ओबीसी आरक्षण तय करने से पहले यह ध्यान रखा जाए कि एससी-एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कुल आरक्षित सीटें 50 फीसदी से ज्यादा हों।

सुप्रीम कोर्ट में सरकार की चुनौती

ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले को यूपी सरकार चुनौती दे सकती है. दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि राज्य में इस बार निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के होगा. राज्य सरकार ने इस महीने की शुरुआत में त्रिस्तरीय नगर निकाय चुनाव में 17 नगर निगमों के महापौर, 200 नगर पालिका परिषदों के अध्यक्षों और 545 नगर पंचायतों के लिए आरक्षित सीटों की अनंतिम सूची जारी करते हुए सात दिनों के भीतर सुझाव, आपत्तियां मांगी थी और कहा था कि सुझाव आपत्तियां मिलने के दो दिन बाद अंतिम सूची जारी की जाएगी. राज्य सरकार ने पांच दिसंबर के अपने मसौदे में नगर निगमों की चार महापौर सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित की थीं, जिसमें अलीगढ़ और मथुरा-वृंदावन ओबीसी महिलाओं के लिए और मेरठ एवं प्रयागराज ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थे. दो सौ नगर पालिका परिषदों में अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग के लिए कुल 54 सीटें आरक्षित की गयी थीं जिसमें पिछड़ा वर्ग की महिला के लिए 18 सीटें आरक्षित थीं. राज्य की 545 नगर पंचायतों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित की गयी 147 सीटों में इस वर्ग की महिलाओं के लिए अध्यक्ष की 49 सीटें आरक्षित की गयी थीं.

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