जी-20 : मेक इन इंडिया की झलक, सनातन धर्म की ब्रांडिंग
भारत
में
जी-20
का
आगाज
हो
चुका
है.
अमेरिका,
ब्रिटेन,
चीन
समेत
कई
देशों
के
नेताओं
के
साथ
बैठकों
का
दौर
जारी
है.
बैठक
में
जी
वैश्विक
मसलों
पर
चर्चा
हो
रही
है।
ऐसा
पहली
बार
हुआ
है
कि
दुनिया
के
सबसे
ताकतवर
मंचों
के
मुखिया
एक
साथ
दिल्ली
में
हैं
और
यूएन
से
लेकर
आईएमएफ
तक
डब्ल्यूटीओ
से
लेकर
वर्ल्ड
बैंक
तक
तमाम
वैश्विक
संस्थाएं
भारत
के
आह्वान
पर
दिल्ली
में
मौजूद
हैं.
लेकिन
खास
बात
यह
है
अलग-अलग
शहरों
में
हुए
जी-20
सम्मेलनों
में
इस
बार
मेहमानों
के
सम्मान
में
ताज
महल
नहीं,
बल्कि
न
सिर्फ
’मेक
इन
इंडिया’ की झलक
दिखायी
गयी,
बल्कि
सनातन
धर्म
की
जबरदस्त
ब्रांडंग
देखने
को
मिला।
दिल्ली
के
भारत
मंडपम
में
हो
रहे
जी-20
समिट
में
आएं
मेहमानों
का
स्वागत
खुद
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी
ने
किया
और
स्वागत
स्थल
के
बैकग्राउंड
में
भारत
की
सबसे
प्रमुख
मंदिरों
में
से
एक
कोणार्क
मंदिर
का
अरुण
स्तंभ,
तो
काशी
में
बाबा
विश्वनाथ
धाम
व
गंगा
आरती
से
रु-ब-रु
कराया
गया।
मतलब
साफ
है
नए
भारत
में
अब
ताजमहल,
कुतुबमीनार
व
मकबरे
नहीं,
बल्कि
सनातन
धर्म
के
प्रमुख
मंदिरों,
सांस्कृतिक
धरोहरों,
रहन-सहन
व
पूजा
पद्धतियों
के
जरिए
भारत
की
पहचान
के
साथ
ही
ब्रांड़िंग
की
जा
रही
है।
यह
अलग
बात
है
कि
विपक्ष
को
यह
सब
रास
नहीं
आ
रहा
है
भारत
की
हकीकत
को
छुपाने
का
आरोप
लगा
रहा
है
सुरेश गांधी
फिरहाल, दुनिया के सबसे बड़े
और एडवांस कंवेशन सेंटर में से एक भारत
मंडपम, दिल्ली में जी-20 सम्मेलन की बैठक हो
रही है। बैठक में वैश्विक नेता खाद्य सुरक्षा, कमजोर देशों की ऋण समस्याओं
और जलवायु परिवर्तन पर चर्चा कर
रहे है। इस बैठक में
जो मुद्दे तय होंगे, वह
अगले 24 घंटे में साफ हो जायेगा। लेकिन
बैठक से इतर मेहमानों
के स्वागत के लिए खास
तैयारियां की गयी है।
खास यह है कि
इस बैठक का आयोजन स्थल,
जहां भारतीय संस्कृति को बेहद खूबसूरती
से दर्शाने की कोशिश की
गईं हैं। वहीं, कोणार्क मंदिर का अरुण स्तंभ,
जिसे उस स्थान पर
लगाया गया है, जहां पीएम मोदी ने सभी देशों
के शीर्ष नेताओं का स्वागत किया।
इस दौरान पीएम मोदी उन्हें उसके महत्व की जानकारी देते
भी नज़र आए। इसमें भारत की संस्कृति और
विरासत के अलावा आधुनिक
भारत की झलक भी
देखने को मिल रही
है, जिसे लेकर सियासत भी हो रही
है। भारत मंडपम में भारतीय संस्कृति और कला के
प्रदर्शन के लिए जी-20
क्राफ्ट बाजार लगाया गया है। यहां भारत के सभी राज्यों
और केंद्र शासित प्रदेशों के हस्तशिल्प उत्पादों
का प्रदर्शन और बिक्री की
जा रही है। यह बाजार दुनिया
को भारत की संस्कृति और
कला से रूबरू करा
रहा है।
बता दें, जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान आज वैश्विक नेताओं और प्रतिनिधियों ने भारतीय संस्कृति की झलक देखी। मेहमान जिस गलियारे से गुजरे उसकी दीवारें नटराज मूर्ति, योग मुद्रा और कोणार्क चक्र जैसे ऐतिहासिक प्रतीकों को प्रदर्शित कर रही थीं। मेहमान राष्ट्रीय झंडों के बीच लाल कालीन पर चले और दीवारों पर अंकित विभिन्न योग मुद्राओं को देखा। दीवार पर 32 अनिवार्य योग आसन प्रदर्शित थे जो कि घेरंड संहिता के 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के पाठ से लिए गए थे। महर्षि घेरंड ने शारीरिक स्थिरता के लिए 32 आसनों की शिक्षा दी थी। कहा जाता है कि महर्षि घेरंड ने राजा चण्डकपालि को शारीरिक स्थिरता के लिए 32 आसनों की शिक्षा दी थी। वे कहते हैं कि इस जगत में जितने भी प्राणी हैं, उन सभी की सामान्य शारीरिक स्थिति को आधार बनाकर एक-एक आसन की खोज की गयी है। घेरंड संहिता में आसनों का वर्णन द्वितीय साधन में किया गया है।
योग मुद्राओं की दीवार के
बगल से गुजरने के
बाद सभी मेहमान नटराज की प्रतिमा
के बगल से गुजरे। नटराज
की यह प्रतिमा अष्टधातु
से बनाई गई है। नटराज
को भगवान शिव का रूप माना
जाता है। मान्यता है कि भगवान
शिव इस रूप में
तांडव नृत्य की एक मुद्रा
में हैं। तमिलनाडु के स्वामी मलाई
के प्रसिद्ध मूर्तिकार राधाकृष्णन स्थापति और उनकी टीम
ने नटराज की इस मूर्ति
को बनाया है। चोल साम्राज्य के समय से
राधाकृष्णन के पूर्वज मूर्तियां
बनाते आ रहे हैं।
यह मूर्ति अष्टधातु- कॉपर, जिंक, टिन, सिल्वर, गोल्ड, मरकरी और आयरन से
बनाई गई है। इस
मूर्ति का ’लॉस्ट वैक्स मेथड’ से निर्माण किया
गया है। इस विधि से
चोल साम्राज्य में भी मूर्तियों को
बनाया जाता था। लॉस्ट-वैक्स मेथड को छह हजार
साल से ज्यादा पुराना
माना जाता है। सदियों तक लॉस्ट वैक्स
मेथड से धातु की
मूर्तियां बनाई जाती रहीं। चोल साम्राज्य में इस मेथड का
खूब इस्तेमाल किया गया था। भारत मंडपम में लगाई गई नटराज की
मूर्ति थिल्लई नटराज मंदिर, उमा माहेश्वरार मंदिर और बृहदेश्वर मंदिर
में स्थापित मूर्तियों से प्रेरित है।
इन तीनों मंदिरों का चोल साम्राज्य
में 9वीं से 11वीं सदी के बीच निर्माण
किया गया था। चोल साम्राज्य का इस दौरान
भारत के एक बड़े
इलाके तक शासन था।
चोल साम्राज्य में कला और संस्कृति को
बहुत बढ़ावा मिला।
नटराज की मूर्ति के
बाद सभी देशों और संगठनों के
ध्वज लगे थे। यहां से गुजरते ही
भव्य कोणार्क चक्र की प्रतिकृति के
पास सभी नेता पहुंच रहे थे। जहां पहले से खड़े प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी इन नेताओं का
स्वागत कर रहे थे।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी
के साथ इन वैश्विक नेताओं
की तस्वीर खींची जा रही थी।
पहले सेशन की कार्यवाही शुरु
करने से पहले पीएम
मोदी ने मोरक्को में
भूकंप के कारण जानमाल
के नुकसान पर अपनी संवेदना
जताते हुए यह बताने की
कोशिश की है कि
भारत दुसरे के दुख को
भी अपना समझता है। उन्होंने अपने पहले संबोधन की शुरुआत 2500 साल
पुराने श्लोक से कर यह
बताने का प्रयास किया
कि भारत के रग-रग
में सनातन धर्म है। ’भारत दुनिया से वैश्विक विश्वास
की कमी को विश्वास और
निर्भरता में बदलने का आह्वान करता
है। यह हम सभी
के लिए एक साथ आगे
बढ़ने का समय है।’ लेकिन
विपक्ष को यह सब
रास नहीं आ रहा है,
वह विपक्ष जो कल तक
किसी विदेशी मेहमान के लिए ताजमहल
व कुतुबमीनार सहित मकबरों का दर्शन कराता
था, वह देश की
गरीबी को छुपाने की
आड में मोदी की नाकामियों को
गिना रहा है।
दरअसल, इस हाई-प्रोफाइल
प्रोग्राम के लिए केंद्र
सरकार ने दिल्ली में
सौंदर्यीकरण किया था. इसी के तहत झुग्गी-झोपड़ियों वाले इलाकों को कवर दिया
गया था. इसे लेकर राहुल गांधी ने ट्वीट कर
केंद्र सरकार पर निशाना साधा.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार
हमारे गरीब लोगों और जानवरों को
छुपा रही है. अपने मेहमानों
से भारत की हकीकत छुपाने
की जरूरत नहीं है. लेकिन राहुल को कौन समझाएं
कि भारत की परंपरा रही
है मेहमानों का स्वागत कमियों
को दिखाने के लिए नहीं
उपलब्ध्यिं को दिखाने के
लिए किया जाता है। अगर किसी गरीब के घर में
भी कोई मेहमान पहुंचता है तो उसका
स्वागत लजीज व्यंजनों, पहनाओं से करने की
कोशिश की जाती है,
फटेहाल मजनुओं की तरह नहीं।
फिरहाल, जी-20 सम्मेलन के पहले दिन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत मंडपम
में पहुंचे सभी राष्ट्राध्यक्षों का गर्मजोशी से
स्वागत किया. वैश्विक नेताओं के साथ इस
इस दौरान पीएम मोदी की लाजवाब बॉन्डिंग
साफ नजर आई. उन्होंने किसी राष्ट्राध्यक्ष से हाथ मिलाया
तो वहीं किसी को गले से
लगा लिया. जिस जगह प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी विश्व के नेताओं
का स्वागत कर रहे थे,
वहां बैकग्राउंड में ओड़िशा के विश्व प्रसिद्ध
कोणार्क सूर्य मंदिर के चक्र की
तस्वीर थी. जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के अलग अलग
नेताओं से हाथ मिलाकर
उनका स्वागत कर रहे थे,
उस वक़्त पूरे देश की निगाहें जिस
चीज पर रुकीं वो
ओड़िशा के विश्व प्रसिद्ध
कोणार्क सूर्य मंदिर का चक्र था.
इंटरनेट पर जो तस्वीरें
और वीडियो आए हैं, उनमें
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति
जो बाइडेन को कोणार्क सूर्य
मंदिर का ऐतिहासिक सांस्कृतिक
महत्व समझाते हुए देखा जा सकता है.
देखा जाएं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का शुमार देश
के उन नेताओं में
है, जो अक्सर ही
लीक से हटकर काम
करते है.और ऐसा
बहुत कुछ कर देते हैं
जो सुर्खि़यों में अपने आप ही आ
जाता है. जी 20 समिट में कोणार्क सूर्य मंदिर के चक्र को
दिखाने का मामला भी
कुछ ऐसा ही है. ध्यान रहे पूर्व में ऐसे तमाम मौके आए हैं जब
किसी पर्यटन स्थल की ब्रांडिंग के
नाम पर हमारे नेता
ताजमहल को कैश करते
थे. याद करिये वो दौर जब
कोई भी विदेशी मेहमान
भारत आता था तो उसे
कुछ दिखाया जाए न दिखाया जाए,
ताजमहल जरूर दिखाया जाता था. साथ ही जब वो
वापस अपने देश लौटता था तो उसे
ताजमहल का रेप्लिका दिया
जाता था. अब जबकि पीएम
मोदी ने कोणार्क के
सूर्य मंदिर की ब्रांडिंग कर
दी है, तो माना जा
रहा है कि इस
घटनाक्रम के बाद न केवल ओड़िशा
और कोणार्क सूर्य मंदिर की तरफ दुनिया
का ध्यान आकर्षित होगा बल्कि इससे भारत के सांस्कृतिक महत्व
को भी बढ़ावा मिलेगा.
कोणार्क सूर्य मंदिर के चक्र को
भारत की एक बड़ी
सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है. भारत मंडपम में लगा कोणार्क चक्र भारत के प्राचीन ज्ञान,
उन्नत सभ्यता और वास्तुशिल्प की
उत्कृष्टता का प्रतीक तो
है ही. साथ ही यह लोकतंत्र
के पहिये के एक शक्तिशाली
प्रतीक के रूप में
कार्य करता है जो लोकतांत्रिक
आदर्शों के लचीलेपन और
समाज में प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता
को दर्शाता है.
ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने जी20 शिखर
सम्मेलन में इसी चक्र के सामने अमेरिका
के राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन
के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज
इनासियो लूला डा सिल्वा, जापान
के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा, इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया
मेलोनी और कई अन्य
शीर्ष नेताओका स्वागत किया और एक बड़ा
संदेश ये दिया कि
भारत का अर्थ केवल
ताजमहल नहीं है. देश के प्रधानमंत्री के
इस अंदाज पर पैनी नजर
बनाए लोगों की मानें तो
अपनी इस मुहिम से
कोणार्क सूर्य मंदिर को विश्व पटल
पर लाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल
दुनिया को असली भारतीय
संस्कृति से अवगत कराया
है बल्कि इसके जरिये वो सनातन का
प्रचार और प्रसार करते
हुए भी नजर आ
रहे हैं. कोणार्क स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं
शताब्दी में राजा नरसिम्हादेव-प्रथम ने करवाया था.
सन् 1948 मेंयूनेस्को ने इसे विश्व
धरोहर स्थल के रूप में
मान्यता दी है. बताते
चलें कि भारतीय सांस्कृति
में इसके महत्व को दर्शाने के
लिए 10 रुपये के भारतीय नोट
के पपीछे कोणार्क सूर्य मंदिर को दर्शाया गया
है. बहरहाल, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का स्वाभाव है.
इस बात में कोई शक नहीं है
कि इस पहल के
बाद ओड़िशाऔर वहां के पर्यटन को
बढ़ावा मिलेगा. वहीं जिस तरह प्रधानमंत्री पर एक वर्ग
द्वारा सोशल मीडिया पर ये आरोप
लगाया जा रहा है
कि, अपनी इस रणनीति से
उन्होंने तताजमहल को नजरअंदाज किया.
तो ऐसे लोगों से हम भी
इतना जरूर कहेंगे कि भारत का
अर्थ केवल ताजमहल नहीं है. तमाम धरोहरें ऐसी हैं जिन्हें मौका दिया जाना चाहिए.और कोणार्क के
चक्र को भारत मंडपम
तक लाना इसी कड़ी का हिस्सा है.
कोणार्क का सूर्य मंदिर
अपनी पत्थर की मूर्तियों के
लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। मंदिर को एक विशाल
रथ के आकार में
डिजाइन किया गया था, जिसे 24 पहियों पर सात घोड़ों
द्वारा खींचा गया था। चक्र ओडिशा के सूर्य मंदिर
में समय, प्रगति और निरंतर परिवर्तन
का प्रतीक कहा जाता है। यह चक्र 10 और
20 रुपये के नोटों में
भी छप चुका है।
आरबीआई द्वारा 1976 में जारी 20 रुपये के नोट में
कोणार्क चक्र पहली बार छपा था। इसी तरह 2018 में जारी 10 रुपये के नोट में
भी यह छपा। इस
चक्र में आठ मोटी और
आठ पतली तीलियां हैं। कोणार्क व्हील 13वीं शताब्दी के दौरान राजा
नरसिम्हादेव-प्रथम के शासनकाल में
बनाया गया था। 24 तीलियों वाले पहिये को भारत के
राष्ट्रीय ध्वज में रूपांतरित किया गया है जो भारत
के प्राचीन ज्ञान, उन्नत सभ्यता और वास्तुशिल्प उत्कृष्टता
का प्रतीक है। कोणार्क चक्र की घूमती गति
समय, कालचक्र के साथ-साथ
प्रगति और निरंतर परिवर्तन
का प्रतीक है। यह लोकतंत्र के
पहिये के एक शक्तिशाली
प्रतीक के रूप में
कार्य करता है जो लोकतांत्रिक
आदर्शों के लचीलेपन और
समाज में प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता
को दर्शाता है।
सूर्य मंदिर पर लगे हैं कोणार्क व्हील
कोणार्क का सूर्य मंदिर
अपनी पत्थर की मूर्तियों के
लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध
है। इसी मंदिर की दीवारों पर
बाहर की तरफ बड़े-बड़े पहिए भी हैं, जिन्हें
कोणार्क व्हील के रूप में
जाना जाता है। वैसे इस मंदिर को
एक विशाल रथ के आकार
में डिजाइन किया गया था, जिसे 12 जोड़े (कुल 24 पहियों) पर 7 शक्तिशाली उत्साही घोड़ों द्वारा खींचा गया था, जिसके आधार पर भव्य रूप
से पहिये सजाए गए थे। पहिए
का आकार 9 फीट 9 इंच व्यास का है और
उनमें से प्रत्येक में
8 चौड़ी तीलियां और 8 पतली तीलियां हैं। इन 24 पहियों में से 6 मुख्य मंदिर के दोनों ओर
हैं, 4 पहिये मंदिर के दोनों ओर
हैं। पूर्व की तरफ सीढ़ियों
के दोनों ओर मुखशाला और
2 पहिये। 24 पहियों का आकार और
वास्तुकला एक समान है
लेकिन उनमें से प्रत्येक पर
अलग-अलग नक्काशी की गई है।
मोटे सभी पदक चेहरे के सबसे चौड़े
हिस्से पर उनके केंद्र
में गोलाकार पदकों से उकेरे गए
हैं। पहियों के एक्सल सतह
से लगभग एक फुट ऊपर
उभरे हुए हैं, जिनके सिरों पर समान सजावट
है।
अच्छा हुआ जो शी जिनपिंग भारत नहीं आये
जी-20 सम्मेलन में शामिल न होने वाले
दुनिया के जिन नेताओं
का जिक्र हो रहा है,
उनमें दो ही प्रमुख
नाम हैं - रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर
पुतिन और चीन के
राष्ट्रपति शी जिनपिंग. ऐसे
में जबकि दोनों देशों से भारत के
अलग तरह के रिश्ते हैं,
दोनों के न आने
का असर भी अलग ही
होगा. अगर व्लादिमिर पुतिन भारत दौरे पपर आये होते तो रूस और
यूक्रेन युद्ध बातचीत का एक मुद्दा
होता ही. बहुत सारी बातें उसी के इर्द गिर्द
होतीं. यूक्रेन को लेकर अमेरिकी
राष्ट्रपति जो बाइडेनभी चर्चाओं
के दायरे में आ जाते. रूस
का तो बिलकुल अलग
मामला है, लेकिन जो बाइडेन चीनी
नेतृत्व से भी खफा
बताये जाते हैं. अमेरिकी अधिकारी पहले ही बता चुके
हैं कि शी जिनपिंग
की जगह जी20 सम्मेलन में हिस्सा ले रहे चीन
के प्रधानमंत्री से मिलने का
उनका कोई प्लान नहीं है. जी20 आयोजन की तमाम उपलब्धियों
के बीच भारत के पास एक
चीज का श्रेय लेने
का भी बड़ा मौका
मिला है - जी20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल किये
जाने का. असल में चीन काफी समय से ग्लोबल साउथ
का नेता बनने के लिए भारत
से होड़ लगा रहा है. भौगोलिक खांचे से इतर हट
कर देखें तो भारत और
चीन के साथ साथ
ब्राजील और अफ्रीका को
मिलाकर ग्लोबल साउथ माना जाता है. अफ्रीकी मुल्कों में चीन की कारोबारी दिलचस्पी
है, और इसीलिए जी20
में अफ्रीकन यूनियन को शामिल किये
जाने का सपोर्ट करने
के साथ साथ पहल की भी क्रेडिट
लेने की कोशिश कर
रहा है - लेकिन ये तो दुनिया
को भी पता है
कि अफ्रीका में चीन का मकसद भारत
से कितना अलग है.
मोदी-शी जिनपिंग पर ही निगाहें होतीं
भारत और चीन के
रिश्तों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर जो बहस
होती है, उससे कहीं ज्यादा बवाल देश के भीर देखने
को मिलता है - अगर जी20 सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी
जिनपिंग भी हिस्सा ले
रहे होते तो अलग से
चर्चा तो होती ही.
जी20 में शी जिनपिंग की
जगहचीन की तरफ से
प्रधानमंत्री ली क्यांग शामिल
हुए हैं, ठीक वैसे ही जैसे रूस
का प्रतिनिधित्व पुतिन सरकार के मंत्री कर
रहे हैं. गलवान घाटी संघर्ष के बाद से
ही कांग्रेस नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार
के खिलाफ आक्रामक बना रहा है. हाल ही में चीन
की तरफ से जारी नक्शे
को लेकर सोशल मीडिया परभी बहस छिड़ी हुई थी. नक्शे को लेकर भारत
सरकार की तरफ से
काफी सख्त लहजे में आपत्ति जतायी गयी, लेकिन विपक्षी गठबंधन प्छक्प्। को लेकर आत्मविश्वास
से भरे हुए राहुल गांधी फिर से अपने पुराने
बयानों की याद दिलाने
लगे थे. अपने लद्दाख दौरे का हवाला देते
हुए राहुल गांधी ने कहा था,
‘पूरा लद्दाख जानता है कि चीन
ने हमारी जमीन हड़प ली है३ ये
नक्शा तो बड़ी गंभीर
बात है३ मगर इन्होंने जमीन तो ले ली
है३ उसके बारे में भी प्रधानमंत्री को
कुछ कहना चाहिये.’ शी जिनपिंग आये
होते तो निश्चित रूप
से ऐसी बातें नये सिरे से होने लगतीं.
बीजेपी नेताओं के साथ साथ
मंत्रियों और सरकार के
अफसरों को भी बार
बार सफाई देनी पड़ती. अनावश्यक रूप से जी20 सम्मेलन
के बीच चुनावा जैसा माहौल बन जाता.
अमेरिका चीन की दुश्मनी ही खबर होती
शी जिनपिंग के
जी20 सम्मेलन से दूरी बनाने
को लेकर अमेरिका की तरफ से
पहले ही कई बयान
आ चुके थे. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की
बातों से भी लगा
था कि वो इस
मामले को लेकर कितने
गंभीर हैं, और उनके स्टैंड
सेभी लगता है कि चीन
के इस रवैये से
खासे नाराज भी हैं. एक
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी
राष्ट्रपति के राष्ट्रीय सुरक्षा
सलाहकार जैक सुलिवन ने जी20 सम्मेलन
के एजेंडे को लेकर मीडिया
से बात की थी, तभी
ये भी कहा था,
’इस बार प्रेसिडेंट बाइडेन का चीन के
प्रधानमंत्री के साथ बातचीत
का कोई प्लान नहीं है.’ जाहिर है शी जिनपिंग
भारत दौरे पर आये होते
तो अमेरिका और चीन के
रिश्तों को लेकर खबरें
बनतीं ही.
अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल
कराने का क्रेडिट भारत के पास ही रहेगा
भारत की 55 देशों वाले संगठन अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की
सदस्यता दिलाने की कोशिश तो
पहले से थी ही,
चीन भी आगे बढ़
कर क्रेडिट लेना चाहता था. देखें तो रूसी मीडिया
में ये बात आयी
थी कि शुरुआती तौर
पर ऐसी मांग करने वालों में रूस भी शामिल रहा
है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 में
अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने
की पहल करते हुए कहा था, भविष्य की कोई भी
योजना सभी के प्रतिनिधित्व और
मान्यता के बिना सफल
नहीं हो सकती. शी
जिनपिंग के दिल्ली न
आने के बावजूद चीन
की तरफ से दावेदारी जतायी
गयी है कि जी20
में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने
का साफ तौर समर्थन करने वाला वो पहला देश है. चीन के विदेश मंत्रालय
की प्रवक्ता माओ निंग से पूछे जाने
पर उनका जवाब था, ’चीन पहला देश है जिसने जी20
में अफ्रीकी यूनियन के शामिल होने
के लिस्पष्ट रूप से समर्थन दिया
है.’ प्रधानमंत्री मोदी ने जून, 2023 में
जी20 के नेताओं को
चिट्ठी लिख कर अफ्रीकी यूनियन
को सदस्य बनाये जाने की वकालत की
थी। अब बयानबाजी का
क्या है, चीन जो चाहे दावा
करता रहे. ये दावा भी
तो उसके हालिया नक्शा जारी करने जैसा ही लगता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अब चार
कदम आगे बढ़ कर सीधे
सीधे श्रेय ले सकते हैं
कि भारत की मेजबानी में
हुए जी20 सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन बतौर सदस्य शामिल किया गया.
जी-20 घोषणापत्र में यूक्रेन जंग का जिक्र
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने
कहा कि ये वास्तव
में एक बड़ी बात
है. मैं पीएम को धन्यवाद देना
चाहता हूं. एक पृथ्वी, एक
परिवार, एक भविष्य यही
इस जी 20 शिखर सम्मेलन का फोकस है
और कई मायनों में,
यह भी है इस
साझेदारी का फोकस जिसके
बारे में हम आज बात
कर रहे हैं. टिकाऊ, लचीले बुनियादी ढांचे का निर्माण, गुणवत्तापूर्ण
बुनियादी ढांचे में निवेश करना और बेहतर भविष्य
का निर्माण करना. भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर और वैश्विक बुनियादी
ढांचे और निवेश के
लिए साझेदारी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “मेरे
मित्र राष्ट्रपति जो बाइडेन के
साथ मुझे इस आयोजन की
अध्यक्षता करते हुए बहुत खुशी हो रही है.
आज हम सबने एक
महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक समझौता
संपन्न होते हुए देखा है. आने वाले समय में भारत पश्चिम एशिया और यूरोप के
बीच आर्थिक एकीकरण का प्रभावी माध्यम
होगा. ये पूरे विश्व
में कनेक्टिविटी और विकास को
टिकाऊ दिशा प्रदान करेगा.“ पीएम मोदी ने कहा कि
आने वाले समय में भारत पश्चिम एशिया और यूरोप के
बीच आर्थिक एकीकरण का माध्यम बनेगा.
पीएम मोदी ने पार्टनरशिप फॉर
ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट (पीजीआईआई) और भारत-मध्य
पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा कार्यक्रम में भाग लिया. सूत्रों के अनुसार, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर जल्द ही लॉन्च किया
जाएगा. पीएम नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति
जो बाइडेन, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़
इनासियो, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो
फर्नांडीज और इटली की
प्रधानमंत्री मेलोनी की उपस्थिति में
’ग्लोबल बायोफ्यूल्स एलायंस’ का शुभारंभ किया.
जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा कि
रूस-यूक्रेन मुद्दे पर विकाशील देशों
और उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने सहमति बनाने
में अहम भूमिका निभाई. भारत ने इंडोनेशिया, ब्राज़ील,
दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर
काम किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और
अधिकारियों की अथक मेहनत
से ही यह सम्भव
हुआ है. विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने
कहा कि जी-20 नेताओं
ने आतंकवाद के सभी रूपों
और अभिव्यक्तियों की निंदा की
और माना कि यह अंतरराष्ट्रीय
शांति और सुरक्षा के
लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक है.
जी 20 घोषणापत्र में रूस का सीधे तौर
पर नाम नहीं लिया गया, इसमें यूक्रेन युद्ध लिखा है. इसमें कहा गया कि यूक्रेन में
युद्ध के संबंध में,
बाली में चर्चा को याद करते
हुए, हमने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र
महासभा में अपनाए गए अपने राष्ट्रीय
पदों और प्रस्तावों को
दोहराया. इस बात पर
जोर दिया कि सभी राज्यों
को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और
सिद्धांतों के अनुरूप कार्य
करना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप, सभी
राज्यों को किसी भी
राज्य की क्षेत्रीय अखंडता
और संप्रभुता या राजनीतिक स्वतंत्रता
के खिलाफ क्षेत्रीय अधिग्रहण की धमकी या
बल के उपयोग से
बचना चाहिए. परमाणु हथियारों का उपयोग या
उपयोग की धमकी अस्वीकार्य
है.
डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर जोर दिया
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने
कहा कि जी20 घोषणापत्र
में परिवर्तन, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने
के साथ प्रौद्योगिकी की समावेशी भूमिका
पर प्रकाश डाला गया है. जी-20 ने भारत को
विश्व के लिए तैयार
करने और विश्व को
भारत के लिए तैयार
करने में योगदान दिया है. हमारे लिए यह संतुष्टि की
बात है कि अफ्रीकन
यूनियन को आज भारत
की अध्यक्षता में जी-20 को स्थायी सदस्यता
दी गई. जी-20 पर विदेश मंत्री
एस. जयशंकर ने कहा कि
हमारी अध्यक्षता का संदेश ’वन
अर्थ, वन फैमिली, वन
फ्यूचर’ है.
भारत की अध्यक्षता में
आयोजित जी-20 में 20 सदस्य देशों 9 आमंत्रित देशों और 14 अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने हिस्सा लिया.
हमारा उद्देश्य है कि कोई
भी देश पीछे न छूटे और
वैश्विक समस्याओं को सुलझाने पर
जोर दिया जाए.
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