नामचीन फिल्मी हस्तियों की मौजूदगी में मुख्तार अब्बास नकवी ने किया अन्तर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव का आगाज
फिल्म शूटिंग के लिए यूपी सबसे महत्वपूर्ण स्थल : मुख्तार अब्बास
ऐसे आयोजन न सिर्फ उभरते कलाकारों को मंच प्रदान करता है, बल्कि फिल्मकार और दर्शक सीधे सीधे एक दूसरे से जुड़ते हैं और अपनी बातें साझा करते है : प्रकाश झा
वाराणसी। सांस्कृतिक पर्यटन को समर्पित व
दुनिया भर में प्रतिष्ठित
अंतरराष्ट्रीय शॉर्ट फिल्म महोत्सव (आईएफएससी) का आगाज देश
के नामचीन फिल्मी हस्तियों के बीच पूर्व
मंत्री अल्पसंख्यक मंत्रालय व पूर्व मंत्री
सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के मुख्तार अब्बास
नकवी ने द्वीप प्रज्वलित
कर किया। लघु फिल्मों को बढ़ावा देने
के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश
सरकार और इंडियन इन्फोटेनमेंट
मीडिया कार्पोरेशन द्वारा कमिश्नर आडीटोरियम सभागार में चल रहे तीन
दिवसीय अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म महोत्सव में स्क्रीन पर कई भाषाओं
का संगम दिखा, जिसे दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों ने गड़गड़ाहटभरी तालियों
के बीच खूब प्रशंसा की। दीप प्रज्जवलन के दौरान प्रकाश
झा (निर्माता-निर्देशक-अभिनेता), देबाश्री रॉय (अभिनेत्री), सुधीर पांडे (अभिनेता), अश्विनी अय्यर तिवारी (निर्देशक), रूमी जाफ़री (निर्देशक-लेखक), मनीष तिवारी (निर्माता-निर्देशक), मधुरिमा तुली (अभिनेत्री और मॉडल), वरुण
शेट्टी (निर्माता), विनोद गनात्रा (निर्माता-निर्देशक) आदि मौजूद रहे।
सामने बैठे युवाओं एवं कलाकारों को संबोधित करते
हुए बीजेपी के वरिष्ठ नेता
मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि
उत्तर प्रदेश में नदियां, वन और पहाड़
फिल्म की शूटिंग के
लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं. अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म महोत्सव को वाराणसी सहित
आसपास के कलाकारों को
प्रोत्साहन देने वाला बताते हुए कहा कि स्थानीय प्रतिभाओं
को इस महोत्सव में
पहुंचे दिग्गज कलाकारों से प्रेरणा भी
मिलेगी। उन्होंने कहा कि “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धि) जुगाड़ को आर्टिस्टिक इंटेलीजेंट
(कौशल बुद्धिमता) जुनून“ से पछाड़कर “कला
कुबेर“ करिश्माई
कामयाबी क़ायम कर सकते हैं।
लघु फिल्में आतंकवाद, युद्ध, असहिष्णुता, ड्रग माफियाओं, नस्ली हिंसा, साईबर अपराधों की विभीषिका और
चुनौती के खिलाफ सशक्त
संदेशवाहक और मानवीय मूल्यों
की बेहतरीन ब्रांड एम्बेसेडर साबित हो सकती हैं।
निर्माता, निर्देशक व अभिनेता प्रकाश
झा ने कहा, ऐसे
आयोजन होते रहने चाहिए। क्योंकि फिल्म फेस्टीवल ही ऐसे मंच
प्रदान करता है, जहां फिल्मकार और दर्शक सीधे
सीधे एक दूसरे से
जुड़ते हैं और अपनी बातें
साझा करते हैं। दर्शकों का स्वागत करते
हुए फेस्टीवल चेयरमैन देवन्द्र खंडेलवाल ने बाताया कि
इस फिल्मोत्सव का एकमात्र उद्देश्य
पर्यटन को बढ़ावा देना
ही नहीं, बल्कि विश्व की संस्कृतियों को
समझना व जानना भी
है। दोनों के संप्रेषण से
ही इको टूरिज्म व रूरल टूरिज्म
जैसे अनेक टूरिज्म के साथ साथ
सांस्कृतिक पर्यटन का भी विस्तार
व प्रसार होगा। उन्होंने कहा कि हमेशा से
इस फिल्मोत्सव को बेहतरीन रिस्पोंस
मिला है। इस बार भी
115 देशों से 3212 फिल्म एन्ट्रीस मिली है, वो मात्र 25 से
30 दिन के नोटिस पर।
उन्होंने कहा कि अगर और
पहले अनाऊंस करते तो शायद ये
फिल्म सबमिशन 5 हज़ार के अंक को
पार कर जाता।
फिल्म में दिखी कई भाषाओं का संगम व दर्द भरी दास्तां
मास्टर क्लास भी लगी
फिल्में देखने के अलावा फिल्म
जगत को समझने के
लिए फिल्मोत्सव के दौरान फिल्मों
पर मास्टर क्लास लगाई गई। प्रकाश झा (निर्माता-निर्देशक-अभिनेता) ने दोपहर 2.30 बजे
से शाम 5.30 बजे तक मास्टर क्लास
सत्र लिया और अपने फिल्मी
अनुभव के साथ फिल्मी
दुनिया में कदम रखने वाले नवयुवाओं को हिदायतें दीं।
आज 38 फिल्में दिखाई जायेंगी
2 दिसम्बर के तीन शो़
में लगभग 38 फिल्में दिखाई जायेंगी। हर शो में
भारत की दो दो
फिल्में प्रदर्शित होंगी। वैसे तो सभी फिल्में
रुचिकर हैं, लेकिन प्रिलिमिनरी जूरी ने 3212 फिल्मों में से 94 फिल्में चुनी हैं, जो बेहतरीन है।
दावा है कि समय
की बंदिश व बड़ी होने
के कारण जो फिल्में नहीं
दिखाई जा सकी, अगर
उन्हें दिखाया जाता तो जूरी और
प्रसंन्न होते। फिर भी आज दिखाई
गयी स्क्रीन फिल्मों में नेपाल से आई बाइसिकल
हीरो जो एक जांबाज़
साईकिल चालक की कहानी कहती
है जिसने 11 साल में सायकल पर दो लाख
इक्कीस हज़ार कि.मी. का
सफर तय किया और
पूरी दुनिया में घूमा और न जाने
कितने ही खतरों से
खेलना पड़ा। ब्राज़ील की फिल्म - आईसलैंड,
ऐन इंटरप्लैनेटरी जर्नी, सवा तीन मिनट की ये फिल्म
सुन्दर दृश्यों के साथ बताती
है, आईसलैंड में रोमांचक पर्यटन की कितनी सम्भावनाएं
हैं। वहीं फ्रांस की एनीमेशन फिल्म
दृ कारापथ भेड़चाल संस्कृति का अच्छा उदाहरण
प्रस्तुत करती है कि कैसे
जब एक केकड़े का
खोल बदल जाता है तो उसके
समुदाय के लोग उसे
खुदा बना लेते हैं लेकिन जो रंग चढ़ता
है सो एक दिन
उतरता भी है। ईरान
की सौदादे फिल्म का लुब्बो लुबाब
बड़ा ही वैश्विक है,
लड़के की चाहत में
स्त्री को संतानोत्पत्ति के
चक्कर में मौत तक के कितने
ही दर्द झेलने पड़ते हैं। फेस्टीवल स्क्रेट्री केतकी कपाड़िया कहती हैं कि सभी फिल्मों
का रहस्य रोमांच यहां न खोला जाए
दर्शकों को खुद आकर
पूरी फिल्मों का मज़ा लेना
चाहिए।
टेरर और टॉक एक साथ संभव नहीं : मुख्तार अब्बास नकवी
योगी
सरकार
फिल्म
निर्माण
को
प्रोत्साहित
और
प्रमोट
करने
हेतु
सकारात्मक
सोंच
के
साथ
सक्रिय
है
वैश्विक
फिल्म
समुदाय
के
बीच
संबंध
को
बढ़ाता
है
महोत्सव
सुरेश गांधी
वाराणसी। पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पत्रकारों से बाचतीत के दौरान महोत्सव में पाकिस्तान की किसी भी लघु फिल्म को जगह नहीं दिए जाने के सवाल पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कभी भी टेरर और टॉक एक साथ संभव नहीं हो सकता. हम भी चाहते हैं कि सभी देशों के साथ सांस्कृतिक संबंध बेहतर हों, लेकिन पाकिस्तान को भारत से सांस्कृतिक संबंध रखने के लिए आतंक का अखाड़ा खत्म करना होगा. आतंक के अखाड़े से कभी भी सांस्कृतिक स्वर नहीं सुनाई देंगे. नकवी ने कहा कि धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर उत्तर प्रदेश फिल्म निर्माण का हब बनने की योग्यता से परिपूर्ण है। योगी सरकार फिल्म निर्माण को प्रोत्साहित और प्रमोट करने हेतु सकारात्मक सोंच के साथ सक्रिय है।
नकवी ने कहा कि कलात्मक फिल्में और लघु फिल्में दुनिया के सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरण, पर्यटन, मानव अधिकारों, असहिष्णुता, आतंकवाद, लोकतान्त्रिक मूल्यों, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला अधिकारों, लैंगिक असमानता, तथा अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर जनमानस को सुन्दर-सरल ढंग से सशक्त सबक-संदेश देने में सफल रहीं है। प्रसारण प्लेटफॉर्म्स का विस्तार, क्रियेटिव फिल्मकारों के लिए उपहार है। नकवी ने कहा कि ऐसे ही कई ज्वलंत मुद्दों पर बनी नाइट एंड फॉग, बैटल आफ मिडवे, अर्ध सत्य, मंडी, भूमिका, नायक (सत्य जीत रे), चारुलता, विनिंग योर विंग्स, डिनर फॉर वन, 12 हावर्स, ख्वाहिश, ब्लू हैलमेट, आखरी मुनादी, आरक्षण, गंगाजल, चक्रव्यूह आदि जैसी कई फिल्में और शॉर्ट फिल्में लोगों को मनोरंजन के साथ मैसेज की जानदार जुगलबन्दी जनमानस पर जबरदस्त असरदार साबित हुई हैं।
नकवी ने कहा कि
अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव यूपी के लिए एक
महत्वपूर्ण कार्यक्रम बन गया है,
जो वैश्विक फिल्म समुदाय के बीच गहरे
संबंध को बढ़ावा देता
है। सिनेमा के माध्यम से
हम अपनी संस्कृति, मूल्यों और कहानियों को
दुनिया के साथ साझा
करते हैं।नकवी ने कहा कि
आज दमदार लघु फिल्मों का महत्व इस
लिए भी बढ़ गया
है क्योंकि सामाजिक सरोकार से जुड़े ज्वलंत
मुद्दों पर अधिकांश बड़े
फिल्म प्रोडक्शन एवं मीडिया हाउस, सार्थक संदेश के बजाय, कमर्शियल
उद्देश्य को प्राथमिकता दे
रहें हैं। जबकि देखा गया है कि कामर्शियल
और सोशल कमिटमेंट के सयुंक्त संकल्प
के साथ निर्मित फ़िल्में निर्माताओं के कला, कौशल,
करिश्मों और कमाई में
कामयाब हुई हैं। मेनस्ट्रीम सिनेमा और मीडिया से
नजरअंदाज कई अत्यंत महत्वपूर्ण,
संवेदनशील और गंभीर विषयों
पर छोटी फिल्में, बड़ा संदेश दे सकती हैं।
नकवी ने कहा कि
आज विश्व के 190 से ज्यादा देशों
में उपस्थिति रखने वाले विभिन्न ओटीटी, डिजिटल-इन्टरनेट प्लेटफॉर्म्स के विस्तार और
पहुंच ने अच्छी लघु
फिल्मों का व्यापक बाज़ार
और दर्शकों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की है। आने
वाले दिनों में विश्व भर में इन
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स उपभोक्ताओं की संख्या 500 करोड़
से अधिक होने का आकलन है।
उन्होंने ने कहा कि
भारत में ओटीटी, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स यूजर्स की संख्या लगभग
48 करोड़ से ज्यादा है,
जिसके आने वाले तीन वर्षों में 80 करोड़ से ऊपर जाने
की उम्मीद है, भारत में लगभग 46 ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, 900 से ज्यादा सेटेलाइट
चैनल और 100 करोड़ से अधिक स्मार्ट
फोन इस्तेमाल करने वाली जनसंख्या है, ओटीटी कम्पनियों का व्यापार वर्ष
2022 में हजारों करोड़ रूपए से अधिक रहा।
जिसके आने वाले दिनों में दिन दूना रात चौगुना उछाल की प्रबल सम्भावनाएं
हैं। इन सभी प्रसारण
सुविधा, संसाधनों का व्यापक विस्तार
क्रियेटिव कौशल-कला के करिश्माई प्रस्तुति
के साथ कमाई का भी परफेक्ट
मौका, मार्केट मुहैय्या कराने का अद्भुत अवसर
है।
नकवी ने कहा कि
भारतीय फिल्म जगत का दादा साहेब
फाल्के की पहली मूक
फिल्म “राजा हरिश्चंद्र“ से
शुरू हुआ सफर संघर्ष, सुधार, संकटों, समस्याओं और सफलता का
साक्षी रहा है। वर्ष 1944 से 1960 के दशक तक
की अवधि को फिल्म इतिहासकारों
द्वारा भारतीय सिनेमा का “स्वर्ण युग“ माना जाता है, जब मनोरंजन प्रधान
कलात्मक फिल्मों के निर्माण का
बोलबाला था। 70 और 80 का दशक कामर्शियल
“मसाला“ लेकिन
दमदार पटकथा आधारित फिल्मों के निर्माण का
शानदार दौर रहा; 90 के दशक में
कॉर्पोरेट जगत ने धीरे-धीरे
निर्माता के रूप में
फिल्म उद्योग पर वर्चस्व कायम
किया और फिल्म निर्माण
“कलात्मक पैशन से ज्यादा कमर्शियल
फैशन“ बन
गया।
नकवी ने कहा कि
इन चुनौतियों के बावजूद समर्पित
फिल्म निर्माता-निर्देशकों के कलात्मक जुनून
ने भारतीय फिल्म उद्योग की साख बढाते
हुए विश्व भर से भारतीय
फिल्मों के कला, कौशल
और कमाई की धाक-धमक
क़ायम की और भारत
को विश्व फिल्म निर्माण में 5वें पायदान पर खड़ा किया,
भारत में प्रति वर्ष 20 से अधिक भाषाओं
में 1900 से ज्यादा फ़िल्में
और रिकार्ड 5000 हजार से अधिक लघु
फ़िल्में बनाई, दिखाई जाती हैं। फिल्मों के साथ लघु
फिल्में भी मनोरंजन और
मीडिया मार्केट में अपने व्यापक विस्तार का कीर्तिमान स्थापित
करती हुई, विश्व के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स
पर प्रभावी प्रदर्शन कर रहीं हैं।
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