Friday, 31 May 2024

साधना के जरिए 57 सीटों को साधने की कवायद?

साधना के जरिए 57 सीटों को साधने की कवायद?

पीएम मोदी कन्याकुमारी में ध्यान साधना कर रहे हैं. इधर दिल्ली में इसको लेकर घमासान मचा हुआ है. विपक्ष आरोप लगा रहा है कि कैमरे के सामने ध्यान करके मोदी नाटक कर रहे हैं और इतना ही नहीं तमिलनाडु कांग्रेस इसके खिलाफ़ कोर्ट तक जा पहुंची है. वहीं, बीजेपी कांग्रेस को सनातन विरोधी बता रही है. बता दें, पहली जून होने वाले मतदान या यूं कहे चक्रव्यूह के सातवें फाटक पर फतह करने के लिए सभी सियासी पार्टियां खूब पसीने बहाएं। इस चरण के लिए प्रचार थमते ही एक तरफ इंडी गठबंधन ईवीएम को लेकर हायतौबा मचाने के बजाय 4 जून के बाद कौन प्रधानमंत्री बनेगा के मंथन में जूट गए गए है। जबकि दुसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के दक्षिण छोर, समुंद्र के बीच विवेकानंद रॉक मेमोरियल में 45 घंटे के ध्यान साधना में लीन हैं. उनकी इसतपस्यापर सियासी संग्राम छिड़ा है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्याध्यान योगसे पीएम मोदी की साइलेंट चुनावी प्रचार है? क्या साधना के जरिए सातवें चक्र के 57 सीटों को साधने की कवायद है? पीएम मोदी की साधना शनिवार शाम को खत्म हो जाएगी, लेकिन उम्मीद है कि वो यहां से नया सामर्थ्य, नई सोच और सामंजस्य के साथ विकसित भारत बनाने का मजबूत इरादा लेकर लौटेंगे

सुरेश गांधी

फिरहाल, 4 जून को पूरा देश सियासी संग्राम के अंजाम पर टकटकी लगाए बैठा है। देश की सियासत में ये चुनाव सबसे अहम पड़ाव पर पहुंच चुका है. मोदी की पूरी साख दाव पर है और विपक्ष के सामने अपना वजूद का सवाल है. सियासी घमासान के बीच पीएम मोदी अपने 45 घंटे के ध्यान में हैं. देश के दक्षिण छोर, समुंद्र के बीच ये वही विवेकानंद रॉक मेमोरियल है. जहां पीएम मोदी साधना में लीन हैं. इस साधना स्थल पर स्वामी विवेकानंद ने 3 दिनों तक ध्यान लगाया था. पूरे देश का भ्रमण कर स्वामी जी यहां पहुंचे थे. कहते हैं इस शिला पर 3 दिनों तक साधना करने के बाद उन्होंने विकसित भारत का सपना देखा था. विवेकानंद रॉक मेमोरियल को बनाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन जनरल सेक्रेटरी एकनाथ रानाडे की बड़ी भूमिका थी.

लोकसभा चुनाव के सातवें यानी आखिरी चरण में सात राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की कुल 57 लोकसभा सीटों पर 1 जून को मतदान है। चार जून को मतणना होगी। इस चरण में बिहार, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में वोटिंग है। शायद यही वजह है कि मोदी के साधना को विपक्ष सियासी चश्मे से देख रहा है। उसे लगता है कि साधना के बहाने यह मोदी का साइलेंट प्रचार है। बता दें, गेरुए वस्त्र पहने पीएम मोदी ने भगवान सूर्य को जल चढ़ाया और फिर पूजा के बाद साधना में लीन हो गए. भौतिक जीवन की माया और आध्यात्मिक जीवन की साधना के सामंजस्य की तस्वीरें सामने आई हैं. इन तस्वीरों में गेरुए वस्त्र पहने पीएम मोदी का किसी संन्यासी की तरह हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की लहरों के बीच एकांतवास जारी है. इससे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कन्याकुमारी पहुंचकर सबसे पहले माँ भगवती अम्मन मंदिर में दर्शन किए.

तो दुसरी तरफ मोदी के ध्यान साधना पर विपक्ष ने कड़ी आपत्ति जताई है. विपक्षी दलों का कहना है कि इससे उनके वोटरों पर असर पड़ सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान आज चर्चा के केंद्र में है. उन्होंने शुक्रवार को सुबह मां अम्मन मंदिर में पूजा अर्चना की और इसके बाद विवेकानंद रॉक मेमोरियल के ध्यान केंद्र में ध्यान साधाना में तल्लीन हो गए. मोदी 48 घंटे तक ध्यान शाधना में तल्लीन रहेंगे. ध्यान भारत की बहुत प्राचीन परंपरा है और योग का अगला पड़ाव. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले योग को देश-विदेश में प्रचारित कर चुके हैं और अब ध्यान की ताकत को भी दुनिया से परिचित कराना चाहते हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक बार फिर निशाना साधा. ममता बनर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोलकाता में रोड शो करते हैं, नेताजी की मूर्ति पर माल्यार्पण करते हैं, लेकिन अगर वो उन्हें सम्मान देते तो 23 जनवरी को उनका जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करते। माना जाता है कि यह मंदिर करीब तीन हजार साल पुराना है. पीएम मोदी ने यहां पर बीस मिनट पूजा-अर्चना की और फिर बोट के जरिए विवेकानंद रॉक मेमोरियल के लिए रवाना हो गए. देखा जाएं तो प्रधानमंत्री मोदी चुनाव प्रचार के बाद पहले भी आध्यात्मिक यात्रा पर जाते रहे हैं.

2019 के चुनाव प्रचार के बाद प्रधानमंत्री ने केदारनाथ के गरुड़ चट्टी में ध्यान लगाया था और इस बार कन्याकुमारी के विवेकानंद रॉक मेमोरियल पहुंचे हैं, लेकिन स्वामी विवेकानंद से उनका नाता क्या है, इस बारे में आम लोगों की अलग अलग राय है. आम लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम और विवेकानंद जी के बचपन का नाम भी नरेंद्र था तो यहां से भारत को विश्व गुरु बनाने का एक नया संकल्प लेकर प्रधानमंत्री दिल्ली लौटेंगे. वहीं महिलाओं ने कहा कि मोदी के रहते भारत विकसित देश बनेगा. सीधे तौर पर विवेकानंद आश्रम किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़ा है, लेकिन भारत के दर्शन और आध्यात्म को दुनिया भर में फैलाने का काम नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. सुदूर दक्षिण के इस छोटे से कस्बे कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल के साथ ही महात्मा गांधी का स्मारक और पवित्र भगवती अम्मन मंदिर के साथ मशहूर कवि तिरुवल्लुवर की मूर्ति मौजूद है. इससे पता चलता है कि हजारों साल से यहां कई आध्यात्मिक दर्शन और विचारधाराओं का संगम होता रहा है. गौरतलब है कि पीएम मोदी की यह साधना 1 जून की शाम को खत्म होगी. इससे पहले साल 2014 और 2019 का चुनाव खत्म होने के बाद भी पीएम मोदी ध्यान साधना में गये थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रतापगढ़ में ध्यान लगाया था जबकि, 2019 लोकसभा चुनाव में प्रचार के बाद उन्होंने केदारनाथ गुफा में इसी तरह ध्यान लगाया था. विपक्ष ने इसे बीजेपी का चुनावी हथकंडा बताया है और चुनाव आयोग से इसकी मीडिया कवरेज पर रोक लगाने की मांग भी की थी. वहीं, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी के ध्यान को नौटंकी कहा है.

लेकिन बड़ा सवाल तो यही है विवेकानंद रॉक मेमोरियल पर ही ध्यान क्यों? विवेकानंद रॉक मेमोरियल का विशेष महत्व हैं. श्री गुरु रत्ना प्रभु के मुताबिक हमारे शास्त्रों में यह वर्णित है कि माता पार्वती अपनी कामना की पूर्ति के लिए इसी पत्थर पर साधना की थी जिसके बाद भगवान शिव प्रसन्न होकर उनकी कामना की पूर्ति की थी. कन्याकुमारी में आज भी देवी मां का मंदिर स्थित है. स्वामी विवेकानंद भी इसी पत्थर पर समंदर में तेज लहरों के बीच तैरकर साधाना करने गए थे. उन्होंने देवी मां से अपने आध्यात्मिक विकास के लिए मांगा था. इसी उद्येश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने तीन दिनों तक कठोर साधना की थी. इसकी बदौलत उन्होंने अपने भीतर आध्यात्मिक विकास को साधा. इसी को उन्होंने देश-विदेश तक फैलाया. विवेकानंद के लिए यह स्थान निवृति स्थल था. दरअसल, प्रवृति के समय विवेकानंद अपने विचारों को फैलाते थे और निवृति के समय अपने विचारों को ध्यान में जाकर और तटस्थ करते थे. ऐसा माना जाता है कि विवेकानंद को इसी जगह ध्यान के दिव्य अनुभवों में बोध की प्राप्ति हुई. आजकल हम किसी विचार को 48 मिनट तक नहीं रोक पाते हैं लेकिन मोदी जी किसी निश्चय से ही एक विचार को 48 घंटे तक प्रवाहित करना चाहते हैं. यह बहुत बड़ी बात है. लेकिन आवश्यक यह है कि हम जिस विचार को लेकर चल रहे है वह दिशा पकड़ कर रखें. इसमें दिशा भटके. जब कोई विचार 48 घंटे तक सतत प्रवाहित होता है तो वो विचार अपने अस्तित्व को धारण करने लगता है वह सत्य होने लगता है. यह कार्य सिद्धि की ओर जाता है. ध्यान में असीमित शक्ति होती है. ध्यान से केवल आध्यात्मिक बल्कि मानसिक और शारीरिक फायदे भी होते हैं. इसलिए हर किसी को ध्यान करना चाहिए. आज के जीवन में तनाव सबसे बड़ी बीमारी है. अधिकांश बीमारियों के लिए तनाव जिम्मेदार है. ध्यान तनाव को दूर कर देता है. अगर मन तनाव से आजाद हो जाए तो शरीर स्वतः ही स्फूर्त महसूस करेगा. कुछ नया करने का रोमांच पैदा होगा. ध्यान तनाव को भगाता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है. ध्यान हमारे मनोभावों को क्रेंद्रित कर देता है.

पौराणिक महत्व

प्रधानमंत्री मोदी जिस विवेकानंद रॉक पर साधना कर रहे हैं, उन पर सिर्फ स्वामी विवेकानंद ने साधना की थी, बल्कि इस स्थान का पौराणिक और धार्मिक महत्व भी है। मान्यता है कि इसी स्थान पर मां पार्वती के कन्या रूप ने भी पूजा की थी और इसी के बाद इसका नाम कन्याकुमारी पड़ा। आपको इस लेख में इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ने की कारण बताते हैं। दरअसल, मान्यता है कि एक समय में बाणासुर नाम का दैत्य था, जिसने भोलेनाथ की घनघोर तपस्या कर यह वर प्राप्त किया कि उनका वध कुमारी कन्या के हाथों ही होगा। यह वर प्राप्त करने के बाद बाणासुर निर्भय होकर ऋषियों और देवताओं को सताने लगा और चारों ओर उसका आतंक फैल गया। बाणासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता और ऋषि भगवान विष्णु के पास सहायता के लिए पास पहुंचे। जहां श्री हरि ने सभी को मां आदिशक्ति की आराधना करने के लिए कहा। जिसके बाद ऋषियों और देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर मां आदिशक्ति ने कुमारी कन्या का अवतार लिया। कहते है इस स्थान पर आज भी भगवान शिव की प्रतीक्षाआदिशक्तिकर रहीं है। मान्यता है कि कुमारी कन्या का अवतार लेने के बाद भी भगवान शिव के प्रति उनका प्रेम कम नहीं हुआ और उन्होंने भगवान शिव से विवाह करने का मन बना लिया और भोलेनाथ की तपस्या में लीन हो गई। कुमारी कन्या की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव भी उनसे विवाह करने के लिए मान गए। भगवान शिव और कुमारी कन्या के विवाह का समाचार सुनकर सभी देवता और ऋषि चिंता में गए, क्योंकि बाणासुर का अंत कुमारी कन्या के हाथों ही होना था। ऐसे में देवर्षि नारद ने मुर्गे का रूप धारण कर यह विवाह रुकवा दिया। दरअसल, यह विवाह ब्रह्म मुहूर्त में होना था, इसके लिए भोलेनाथ कैलाश पर्वत से बारात लेकर चले। लेकिन नारद ने रात में मुर्गे का रूप धारण का बांग दे दी, ऐसे में भगवान शिव को लगा कि सुबह हो चुकी है और वे ब्रह्म मुहूर्त तक नहीं पहुंच पाएंगे, तो वे बारात लेकर वापस कैलाश पर्वत लौट गए। मान्यता है कि भगवान शिव से विवाह होने के बाद बाणासुर ने कुमारी कन्या को विवाह के लिए प्रस्ताव भेज दिया। जिसके बाद कुमारी कन्या और बाणासुर के बीच घनघोर युद्ध हुआ और मां ने बाणासुर का अंत कर दिया। बाणासुर के वध के बाद भगवान परशुराम और नारद ने कलयुग के अंत तक कुमारी कन्या से इसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसके बाद भगवान परशुराम ने त्रिवेणी में एक विशाल मंदिर की स्थापना की और कन्या के रूप में देवी की स्थापना की गई। जहां मां आज भी विराजित है और भगवान शिव की प्रतीक्षा कर रहीं हैं। इसके बाद से ही यह स्थान कन्याकुमारी के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर देवी ने तपस्या की थी, उसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद ने भी शिकागो जाने से पूर्व साधना की। जहां आज भी देवी के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं, जिसे तमिल मेंश्रीपद परईकहते हैं। एक मान्यता यह भी है कि कुमारी कन्या राजा भरत की आठ पुत्रियों में से एक थीं, जिन्होंने दक्षिणी क्षेत्र में शासन किया था। मान्यता है कि कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता है।

क्या होता है ध्यान

ध्यान मन को साधने की प्रक्रिया है जिसका उद्येश्य सत्य के लिए कुछ मांगना हो सकता है. इसमें मन की चेतना को एक खास अवस्था में स्थिर करना होता है. वैसे तो ध्यान का उद्येश्य अपने आप में एक लक्ष्य है लेकिन इससे कुछ प्राप्त करने के निमित्त से भी ध्यान किया जाता है. इसमें कई विधियां हैं. आमतौर पर साधक एक खास मुद्रा में एकांत में स्थिर होकर बैठ जाता है और मन से सभी विचारों को निकालकर सिर्फ उद्येश्य वाले विचारों पर ध्यान केंद्रित करता है. यह कुछ मिनटों से लेकर कई घंटों तक का हो सकता है. ध्यान की कई विधियां होती हैं और हरेक को ध्यान ही कहा जाता है. ध्यान में सबसे पहले हमें अपने सांस पर नियंत्रण रखना होता है. इसके बाद अपने मन को विश्राम की अवस्था में ले जाना होता है. जब हम इस विश्राम में ऊंचे मन वाले विचार या प्रार्थना को आरोपित करते हैं तो ब्रहांडीय शक्ति अपने फल की तरफ अपनी यात्रा शुरू कर देती है. मोदी जी आंख बंद कर क्या विचार कर रहे हैं ये तो शायद ही कोई बता पाएगा लेकिन जिस जगह पर मोदी जी प्रार्थना कर रहे हैं उस जगह पर ध्यान का परिणाम बहुत अलग होता है. अगर वे मन को शांत कर कोई प्रार्थना या उचित विचार डाल रहे हैं तो यह सभी के हित में है. ध्यान का निहित उद्येश्य होता है. उन्होंने बताया कि जिस तरह गांधी जी अपनी मांगों को लेकर अनशन करते थे, ध्यान कुछ-कुछ इसी तरह से होता है. इसमें ब्रह्मांडीय शक्ति से उद्येश्य प्राप्ति के लिए एकाग्रचित होकर मांगें की जाती है. जब हम ब्रह्माडीय शक्ति से कुछ मांगों को पूरा करावाना चाहते हैं तब ध्यान के आधार का सहारा लिया जाता है. अगर यह उद्येश्य ब्रह्मांड के औचित्य के लिए हो, सृष्टि के लाभ के लिए हो, तो ब्रह्माडीय सत्ता इस उद्येश्य को पूरा करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क्या उद्येश्य है यह तो उनके मन में ही होगा लेकिन निश्चित रूप से प्रधानमंत्री उच्च उद्येश्यों को प्राप्त करने के लिए यह ध्यान कर रहे

हैं.

 

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