Friday, 24 May 2024

यूपी छठां चरण : मोदी-योगी के तिलिस्म में उलझी जातियां

यूपी छठां चरण : मोदी-योगी के तिलिस्म में उलझी जातियां 

       लोकसभा चुनाव के पांच चरणों के बाद अब पूर्वांचल की बारी है। जहां छठे चरण के 14 सीटें दलों के लिए मायने रखती है। वैसे भी चुनाव में किसी भी पार्टी की स्थिति इस क्षेत्र में उतारे गए प्रत्याशियों की हार जीत बहुत हद तक जाति समीकरण पर निर्भर करती है. लेकिन पिछले दो चुनावों से मोदी-योगी के तिलिस्म में जातियों के अगुवा तो अगुवा मतदाता भी उलझ गए है। परिणाम यह है कि पूर्वांचल में बीजेपी के प्रत्याशी मैदान में तो है, लेकिन उनके आईकॉन मोदी और योगी ही है। काफी हद तक आमजनमानस भी मोदी-योगी के कामकाज, राष्ट्रवाद, सनातन, विकास राममंदिर के प्रति उनकी आस्था पर ही फिदा है। यह अलग बात है कि विपक्ष की पूरी सियासत ही जाति समीकरण पर टिकी है और वे अपने इस जादू को बरकरार रखने के लिए सिर्फ हर हथकंडे अपना रहे है, बल्कि उम्मींदवार भी इन्हीं समीकरणों पर अपनी जीत का ख्वाब देख रहे है। बाजी किसके हाथ लगेगी ये तो 4 जून को पता चलेगा। लेकिन सात साल बाद भी मतदाताओं में दंगेश का खौफ, गंडागर्दी, आतंक मुस्लिम परस्ती सिर चढ़कर बोल रहा है। ओबीसी कोटा के तहत मुसलमानों को दिए आरक्षण विपक्ष के लिए भस्मासुर साबित हो रहा है। भदोही के राजनारायण यादव कहते है राहुल अखिलेश गलतफहमी में हैं। 4 जून तो क्या, भविष्य में भी कभी कांग्रेस सपा की सरकार नहीं बनेगी। मोदी के नाम की लहर नहीं, सुनामी है। जब 300 से ज्यादा सीटें जीतने के बाद अयोध्या में राम मंदिर बन गया, तो 400 से ज्यादा सीटें जीतने के बाद, ज्ञानवापी मस्जिद पर काशी विश्वनाथ मंदिर बनेगा और मथुरा की ईदगाह मस्जिद पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर बनेगा

सुरेश गांधी

फिरहाल, लोकसभा के चुनाव में छठे चरण में पूर्वांचल के 14 सीटों पर 162 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला 2 करोड़ 70 लाख 69 हजार 874 मतदाता करेंगे। इनमें 1,43,30,361 पुरुष, 1,27,38,257 महिला और 1256 थर्ड जेंडर हैं। इस चरण में सुलतानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, इलाहाबाद, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीर नगर, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर भदोही सीट पर 25 मई को वोटिंग है। जहां इस बार राज्य की राजनीति में भाजपा के मेनका गांधी, सकेत मिश्रा, जगदंबिका पाल, दिनेश लाल यादव निरहुआ और रितेश पांडेय जैसे बड़े धुरंधरों की अग्निपरीक्षा होने वाली है. खासकर बीजेपी की सहयोगी पार्टियों की प्रतिष्ठा और भविष्य दोनों दांव पर है. सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल के मुखिया अपनी जाति के वोटों को दिलाने के नाम पर ही सत्ता सुख भोग रहे हैं. सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. इसी तरह अपना दल की मुखिया अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री हैं और उनके पति आशीष पटेल उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री पद को सुशोभित कर रहे हैं. गोरखपुर से इलाहाबाद तक राजभर, निषाद और पटेल जातियों की उपस्थिति इन सभी सीटों पर निर्णायक है. मेनका गांधी की सुल्तानपुर में हार जीत निषाद और पटेल वोटों की बड़ी भूमिका होगी. यही कारण रहा है कि मेनका गांधी के नामांकन में संजय निषाद और आशीष पटेल दोनों की मौजूदगी सुनिश्चित की गई थी. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के खाते की सीट का भी चुनाव इसी चरण में है तो वहीं महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री रहे कृपा शंकर सिंह के चुनाव से लेकर इलाहाबाद से उज्जवल रमण सिंह का चुनाव भी इसी चरण में है. ऐसे में दोनों गठबंधन के नेताओं ने अपनी एड़ी चोटी का जोर इन दोनों चरणों के लिए लगा दिया है.

पूर्वांचल की सियासत पूरी तरह से जाति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. ओबीसी, दलित और सवर्ण वोटर काफी अहम भूमिका में है, जिसके आधार पर ही राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी सियासी बिसात बिछा रखी है. हालांकि पूर्वांचल की सभी सीटों पर पिछड़ी जातियों के वोट प्रभावी हैं. कई सीट ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक, यादव और अन्य पिछड़ी जातियां प्रभावी है. आजमगढ़ में अखिलेश का यादव और मुस्लिम समीकरण कितना काम करता है, यह देखने लायक होगा. आजमगढ़ से बीजेपी की ओर से भोजपुरी स्टार निरहुआ और अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव का मुकाबला है. यह सीट सपा का गढ़ रही है. पिछली बार उपचुनाव में निरहुआ ने बीजेपी के टिकट पर यह सीट सपा से छीन ली थी. सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, फूलपुर, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संतकबीरनगर, लालगंज, जौनपुर, मछलीशहर, भदोही और आजमगढ़ सभी सीटों पर पिछड़ी जातियों की अहम भूमिका है. यही कारण है कि अखिलेश के पीडीए फार्मूले की अग्निपरीक्षा होगा। भदोही और डुमरियागंजा में पूर्वाचल के दो जाने-माने ब्राह्मण परिवारों के वंशजों को टिकट मिला है. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी के बेटे ललितेशपति त्रिपाठी और गोरखपुर के माफिया डॉन रहे हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म शंकर तिवारी की प्रतिष्ठा दांव पर है. कमालपति त्रिपाठी और हरिशंकर तिवारी का नाम उन ब्राह्मण नेताओं में शामिल है जिनके प्रति इस समुदाय में आज भी बहुत सम्मान है. पर इनके वंशजों को टिकट बीजेपी से नहीं मिला है. आज की तारीख में ब्राह्मण बीजेपी के हार्डकोर वोटर हैं. ललितेश को टिकट टीएमसी से मिला है जिसे इंडिया गठबंधन का सपोर्ट है. भीष्मशंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी को टिकट सपा ने दिया है. अब देखना यह होगा कि इन दोनों प्रत्य़ाशियों को ब्राह्मण वोट करते हैं या नहीं

सुरिवाया के रामदयाल दुबे ने 2019 का जिक्र करते हुए कहा कि तब भाजपा ने उस रमेश बिन्द को मैदान में उतारा था, जिसका ब्राह्मणें को गाली देने वाला वीडियों खूब वायरल हुआ था। लेकिन ब्राह्मणों ने बसपा से चुनाव मैदान में उतरे रंगनाथ मिश्रा जैसे कद्दावर विकास पुरुष नेता के विकल्प के तौर पर मौजूद रहने के बावजूद भाजपा के पक्ष में वोटिंग किया था, अब तो साफ सुथरे छबि वाले विनोद बिन्द मैदान में है। इसी तरह डुमरियागंज लोकसभा सीट पर बीजेपी की तरफ से जगदंबिका पाल को फिर से चुनावी मैदान में उतारा गया है. जगदंबिका पाल पिछले 15 साल से इस सीट से सांसद हैं. जबकि सपा ने भीष्म शंकर तिवारी इस सीट से पहली बार उम्मउम्मीदवार हैं. भीष्म शंकर तिवारी इसके पहले संतकबीर नगर से 2 बार सांसद रहे हैं. जौनपुर जहां इंडिया गठबंधन ने मौर्य-कुशवाहा समुदाय के प्रभावी नेता बाबू सिंह कुशवाहा बसपा ने मौजूदा सांसद श्याम सिंह यादव को टिकट दिया हैं। जबकि भाजपा ने कृपाशंकर सिंह को मैदान में उतारा है। तीनों के बीच कांटे की टक्क्र है। सुलतानपुर में भाजपा के मेनका गांधी का सपा के रामभुआल निषाद और बसपा के उदयराज वर्मा से मुकाबला है। इलाहाबाद में पूर्व राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी के बेटे भाजपा उम्मीदवार नीरज त्रिपाठी का मुकाबलाइंडियागठबंधन से कांग्रेस कोटे के उम्मीदवार और पूर्व मंत्री उज्जवल रमण सिंह से है। आजमगढ़ सीट पर निवर्तमान भाजपा सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ का मुकाबला सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव से है। धर्मेंद्र यादव 2022 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में निरहुआ से हार गए थे। अंबेडकरनगर में भाजपा के रितेश पांडेय और सपा के पूर्व मंत्री लालजी वर्मा के बीच कड़ी टक्कर मानी जा रही है जबकि संतकबीरनगर में भाजपा के मौजूदा सांसद प्रवीण निषाद और सपा के लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद मुकाबले में हैं। यह अलग बात है कि इस चरण की 14 सीटों में से 12 पर लड़ रही सपा ने एक को छोड़ सभी जगह गैर-यादव पिछड़ी जाति के प्रत्याशी उतार भाजपा की राह में कांटे बो दिए हैं।

सच नहीं होते राहुल अखिलेश के दावे

कहा जाता है कि पूर्वांचल जीतने वाली पार्टी प्रदेश में सरकार बना लेती है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल से ही चुनाव प्रचार शुरू किया और यहीं पर खत्म भी करने वाले है। सातवें चरण में भी ज्यादातर सीटें पूर्वांचल की हैं। देखा जाएं तो 2019 के लोकसभा चुनाव में इन 14 सीटों में नौ सीटें भाजपा, चार बसपा और एक सपा की झोली में गई थी। आजमगढ़ में हुए उपचुनाव में भाजपा ने यह सीट सपा से छीन ली थी। वर्तमान में भाजपा दस सीटों पर काबिज है। छठे चरण में सबसे अधिक 26 उम्मीदवार प्रतापगढ़ में हैं जबकि सबसे कम छह डुमरियागंज में। जहां तक राहुल अखिलेश के उस दावे का सवाल है जिसमें यूपी की सभी सीटे वह जीत रहे है तो वह गलतफहमी में है। पांच साल पहले 12 मई 2019 को वोट डालने के बाद राहुल गांधी ने कहा था - ’ये चुनाव नोटबंदी, किसानों की समस्या, गब्बर सिंह टैक्स और राफेल में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर लड़ा जा रहा है, चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने नफरत का इस्तेमाल किया और हमने प्यार का इस्तेमाल किया और 23 मई को प्यार जीतेगा। बीजेपी हारेगी।हुआ उल्टा।  राहुल हार गए। अमेठी की सीट भी हाथ से गई। 17 मई 2019 को खरगौन की रैली में नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अबकी बार 300 पार होगा और फिर एनडीए सरकार ही बनेगी। वही हुआ। 15 मई 2019 को अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी बंगाल में 23 सीटें जीतेगी। ममता बनर्जी ने 13 मार्च 2019 को दावा किया था कि बीजेपी को बंगाल में एक भी सीट नहीं मिलेगी, तृणमूल कांग्रेस बंगाल में क्लीन स्वीप करेगी। ममता गलत साबित हुईं। बीजेपी 18 सीटें जीती और ममता की पार्टी 38 से 22 पर गई। अमित शाह सही साबित हुए। इसी तरह ममता ने ये भी कहा था कि देश में बीजेपी को 100 सीटें भी नहीं मिलेगी। उसके जवाब में 17 मई 2019 के अमित शाह ने कहा कि बीजेपी 300 से ज्यादा सीटें जीतेगी, नरेन्द्र मोदी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। अमित शाह फिर एक बार सही साबित हुए। 20 मार्च 2019 को अखिलेश ने कहा था लोकसभा चुनाव में बीजेपी यूपी की सभी 80 सीटें हार जाएगी लेकिन जब नतीजे आए, तो बीजेपी को कुल 80 में से 64 सीटें मिलीं और अखिलेश यादव की पार्टी को सिर्फ पांच सीटें मिलीं, बीएसपी को दस, कांग्रेस को एक।  इसलिए अगर सिर्फ दावों की बात की जाए तो विरोधी दलों के दावे बिलकुल गलत साबित हुए हैं। लेकिन मोदी इस बात की ज्यादा परवाह नहीं करते कि उनकी पार्टी जीत की तरफ बढ़ रही है।

पिछड़ी जातियों का गढ़

पूर्वांचल की ज्यादातर सीटों पर जातीय समीकरण पर पिछड़ों का प्रभाव है यानी इस क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग हार जीत को तय करता है. सुभासपा हो या अपना दल या फिर निषाद पार्टी, इन जैसी कई छोटी पार्टियों के लिए पिछड़ा वर्ग ही आधार बनता है. साल 2019 में लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल की 20 सीटों में 14 बीजेपी ने हालिस किए और अपना दल को दो पर जीत मिली. चार सीटों लालगंज, गाजीपुर, घोसी जौनपुर में बीएसपी ने जीत हासिल की. हालांकि इस बार भी जातीय समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया है. चाहे बीजेपी हो या सपा बसपा, सभी पार्टियों ने चुन चुनकर जाति के सापेक्ष ही अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. कौन सी पार्टी चुनावी बाजी में जीत हासिल करेगी और किसके पक्ष में पूर्वांचल की ज्यादातर सीटें आएंगी ये देखना होगा. 2019 में इनमें से 11 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी जबकि दो सीटें विपक्ष के खाते में गई थीं. सत्ता पक्ष के सामने जहां इनको बचाने की चुनौती होगी. वहीं, विपक्षी दल ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने की कोशिश करेंगे. 2019 में आजमगढ़, लालगंज, घोसी, गाजीपुर, जौनपुर, श्वावस्ती और अंबेडकर नगर सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था, जिसमें आजमगढ़ सीट ही सपा जीत सकी थी और बाकी सीटों पर बसपा के सांसद चुने गए थे. सीएम योगी, पीएम मोदी लहर बावजूद बीजेपी पूर्वांचल को पूरी तरह से फतह नहीं कर पाई थी, लेकिन इस बार किसी तरह की कोई गुंजाइश पार्टी नहीं छोड़ना चाहती है. इसीलिए पीएम मोदी खुद मोर्या संभाल लिया है.

पूर्वांचल में ओबीसी का दबदबा

माना जाता है कि इस पूरे इलाके में करीब 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वोट बैंक जिस भी पार्टी के खाते में गया, जीत उसकी तय हुई. 2017-2022 के विधानसभा और 2014 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का अच्छा समर्थन मिला. नतीजतन केंद्र और राज्य की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई. ऐसे में बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियां ओबीसी वोटों का साधने के लिए तमाम जतन इस बार किए हैं. बीजेपी पूर्वांचल में बीजेपी ने ओबीसी जातीय आधार वाले दलों के साथ हाथ मिलाकर सियासी समीकरण दुरुस्त करने की दांव चला है और पीएम मोदी खुद रणक्षेत्र में उतर रहे हैं. ऐसे में देखना है कि इस बार 2019 की हार का बीजेपी क्या हिसाब बराबर कर पाएगी? देखा जाएं तो पूर्वांचल के सभी जिलों में राजभर, चौहान, कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य, प्रजापति, निषाद, बिंद जैसी जातियां सबसे अधिक प्रभावी है. कुछ सीटों पर ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित वोटर भी निर्णायक भूमिका में हैं. पूर्वांचल की राजनीति में धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण का बड़ा प्रभाव रहा है. धार्मिक ध्रुवीकरण की वजह से 2014 के बाद से ओबीसी वर्ग का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा. इससे पहले जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति यहां हावी थी. इसका लाभ सपा और बसपा दोनों पार्टियों को होता था. पूर्वांचल की इसी नब्ज को सपा और भाजपा दोनों पकड़े हुए. भाजपा जहां धार्मिक ध्रुवीकरण को हवा दे रही है. वहीं सपा कांग्रेस के साथ मिलकर पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) के सहारे जातीय दूरी कारण पर फोकस कर रही है.

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