जिन्हें थी मार्जिन बढ़ाने की जिम्मेदारी, वो आवाभगत में ही रहे मशगूल
अति आत्मविश्वास
ने
डूबोयी
भाजपा
की
लुटियां
संघ प्रचारकों
से
लेकर
स्वयंसेवकों
का
चुनावी
पिच
पर
कहीं
दिखाई
न
देना,
भी
हार
के
कारणों
में
से
एक
बनारस के
व्यापारियों
के
कारोबार,
विभागीय
ठेका
या
अन्य
कामकाज
पर
गुजरातियों
के
कब्जे
से
हलकान
है
लोग
ऊर्जावान कार्यकर्ताओं
की
अनदेखी
व
गुजरातियों
के
हाथों
काम
सौंपे
जाने
से
खफा
है
एक
बड़ा
तबका
गुजराती कंट्रैक्टर
काम
उसी
को
देते
है
जो
उन्हें
अच्छी-खासी
कमीशन
देते
है
सुरेश गांधी
वाराणसी। लोकसभा चुनाव के परिणाम जिस तरह सामने आएं हैं, उससे सभी तरह के पूर्वानुमान धरे रह गएं। सबसे चौकाने वाला परिणाम यूपी का रहा, जिसकी कानून व्यवस्था में सुधार के यूपी मॉडल का प्रचार पूरे देश में चर्चा है। अब तो कई भाजपा शाशित राज्य लॉ एंड आर्डर मेंटेन करने के लिए योगी बाबा के बुलडोजर संस्कृति को समय-समय पर लागू किए जाने की दुहाई भी देते है। वहां के मुख्यमंत्री खुद योगी के राह पर चलने की वचनवद्धता भी दोहराते रहते है। लेकिन उसी यूपी में भाजपा दो शहजादों की जोड़ी के सामने चारों खाने चित हो गयी, तो सवाल तो पूछे ही जायेंगे? हालांकि हार के कई कारण होते है लेकिन प्रथम दृष्टया हार की वजह भाजपा का अति आत्मविश्वास उसे ले डूबा।
खासकर टिकट वितरण में लेटलतीफी, स्थानीय संगठन व नेताओं की इच्छा या मशविरा को दरकिनार कर प्रत्याशी थोपा जाना तो एक वजह है ही, सबसे बड़ा कारण उस संगठनात्मक ढ़ाचे की रही, जिसका लोहा विपक्ष भी मानता है। उसके संघ प्रचारकों से लेकर स्वयंसेवकों का चुनावी पिच पर कहीं दिखाई न देना। बहरहाल चुनावी बेला में विपक्ष आम जनमानस को यह समझाने में सफल रहा कि अगर भाजपा 400 पार आयी, तो एससीएसटी सहित सभी आरक्षण समाप्त कर देगी। जहां तक देश की सबसे हॉट सीट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय सीट वाराणसी से जीत की मार्जिन घटने का सवाल है तो उसका बड़ा कारण शीर्ष नेतृत्व ने जिस व्यक्ति को चुनाव संचालन की जिम्मेदारी सौंपी, वह जिम्मेदारी निवर्हन के बजाय चेहरा दिखाने आएं गुजरात सहित अन्य प्रांतो से आएं नेताओं के सेवा सत्कार में ही अपनी पूरी ऊर्जा खपा दी सिर्फ इसलिए कि उसे व उसके चहेतों को कोई बड़ी जिम्मेदारी या ठेका मिल जायेगा। जबकि इससे उलट क्षेत्रीय मतदाताओं का कहना है बनारस के व्यापारियों के सारे कारोबार, विभागीय ठेका या अन्य कामकाज पर गुजरातियों का कब्जा हो गया है। ऊर्जावान कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए बनारस के काम गुजरातियों के हाथों सौंप दिया गया है और वे उसी को काम देते है जो उन्हें अच्छी-खासी कमीशन देते है।फिरहाल, देश के दो
सबसे बड़े राज्यों में
क्षेत्रीय दलों ने इस
बार भाजपा के सारे घमंड
को चकनाचूर कर दिया। हालांकि
यह संकेत इस बात का
है कि बहुत दिनों
तक स्थानीय कार्यकर्ताओं या दो सीटो
से 300 पार तक का
सफर तय करने में
महती भूमिका निभाने वाले राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ आरएसएस जैसे
बड़े संगठन को तिरस्कृत नहीं
किया जा सकता। प्रत्याशी
चयन में क्षेत्रिय पदाधिकारियों
एवं कार्यकर्ताओं के आवेदनों की
अनदेखी करते हुए जिस
तरह वाराणसी में प्रदेश स्तर
के पदाधिकारियों की की उपेक्षा
कर मेयर से लेकर
अन्य चुनावों में शीर्ष नेतृत्व
द्वारा पैराशूट प्रत्याशी उतारा गया, उसे तो
लोगों ने न चाहते
हुए भी सहन कर
लिया और भारी मतो
से विजयी भी बनाया गया।
लेकिन कांठ की हांडी
बार-बार नहीं चढ़ती।
प्रदेश संगठन के न चाहते
हुए भी सुहेलदेव भारतीय
समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर
से समझौता कर उनके बेटे
को टिकट दिये जाने
के अलावा गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, मछलीशहर, सलेमपुर, फैजाबाद-अयोध्या, प्रयागराज व चंदौली आदि
लोकसभा क्षेत्रों में बगैर समीकरण
बैठाएं प्रत्याशियों को उतारना घातक
साबित हो गया। खासकर
देश की सबसे हॉट
सीट बनारस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी के चुनावी संचालन
में जिस तरह लापरवाहियां
देखने को मिली, उससे
तो पहले से ही
अंदाज लगाया जा रहा था
कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का
असर जरुर पड़ने वाला
है।
नाम न छपने
की शर्त पर भाजपा
के एक कद्दावर नेता
का कहना है कि
पीएम मोदी के जीत
की मार्जिन घटने का सबसे
बड़ा कारण ढिलमुल चुनाव
संचालन रहा। गुजरात, राजस्थान
सहित देश के कोने
कोने से आने वाले
दिग्गज नेताओं की आवाभगत तो
खूब हुई, लेकिन वे
धरातल पर कुछ कर
नहीं सके। ठेका से
लेकर हर गतिविधि में
कुछ लोगों के वर्चस्व से
नाराज कारोबारियों, पार्टी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को
संतुष्ट नहीं कर पाएं।
उसका असर आम मतदातों
पर भी देखने को
मिला। पार्टी के जातिय नेता
व ठेकदार अपनी जाति के
वोट को भी नहीं
दिलवा पाएं। खासकर भूमिहार, यादव व कुर्मी
विरादरी तो इस बार
मोदी के पक्ष में
मतदान से दूरी बनाएं
रही, जिसका असर जीत की
मार्जिन पर पड़ा। इसके
अलावा मतदाता जागरुकता के नाम पर
दुसरे प्रांतो से आएं विधायकों
के अलावा क्षेत्रीय सामाजिक संगठने भी सिर्फ समाचार
पत्रों की सुर्खियां तो
बने, लेकिन असल मतदाताओं तक
नहीं पहुंच सके। एक वायरल
वीडियों में तो भाजपा
कार्यकर्ता बिना लाग लपेट
कहता है जो लोग
हार का ठिकरा मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ पर मढना चाहते
है वे पहले बताएं
कि टिकट वितरण व
ओमप्रकाश राजभर को एनडीए का
हिस्सा बनाने से पहले उनकी
राय ली गयी थी
क्या? पूरे वाराणसी में
जगह-जगह गुजरातियों का
कब्जा है। विकास कार्यो
का ठेका गुजरातियों के
पास है। वे मनमाना
बजट तो खर्च कर
ही रहे है, उन्हीं
स्थानीय लोगों को अपने से
जोड़ते है, जो अच्छी-खासी रकम उन्हें
कमीशन के रुप में
देते है। इसके अलावा
रियल स्टेट से लेकर होटल
व स्थानीय कारोबार में भी उनका
दबदबा बढ़ता जा रहा
है, बावजूद इसके व्यापारी या
कारोबारी व उद्यमी मोदी
के पक्ष में मतदान
किए, लेकिन जाति ठेकदारों ने
शीर्ष नेतृत्व को चेहरा दिखाकर
सिर्फ अपनी डगमगाती कुर्सी
को सेफ किया।
सिर्फ कागजों पर रही पन्ना
प्रमुखों और बूथ कमेटियों
का गठन किया गया।
हालांकि योगी-मोदी ने
मिलकर पूरी ताकत लगाई।
मोदी ने 32 और योगी ने
169 जनसभाएं कीं, फिर भी
हार रोक नहीं पाएं।
देखा जाएं तो जनता
में पीएम मोदी के
प्रति ग़ुस्सा नहीं है, बल्कि
उदासीनता है। उन्हें राशन
का श्रेय मिलता है लेकिन इस
बार उनके नाम पर
वोट पड़ता नजर नहीं
आया है। यहां मोदी
की तुलना में योगी ज़्यादा
लोकप्रिय नजर आए हैं।
उन्हें गुंडागर्दी ख़त्म करने का श्रेय
मिलता है। वोटर के
मन में महंगाई और
बेरोज़गारी को लेकर हताशा
है। तैयारी कर रहे युवाओं
में भी बेचैनी है।
गांवों में छुट्टे जानवर
भी सबसे बड़ा मुद्दा
हैं। बीजेपी के वोटर में
एक चौथाई कहते नजर आएं
कि उनकी उपेक्षा हो
रही है। दुसरों दलों
से आएं प्रत्याशियों को
तरजीह दिया गया, जो
लोग पार्टी से नहीं जुड़े
रहे लेकिन शीर्ष नेतृत्व की खातिरदारी की
उसे या तो एमएलसी
बना दिया गया या
मेयर से लेकर सांसद
विधायक बना दिया गया।
जहां तक भाजपा को
फर्श से अर्श पर
पहुंचाने वाली उसके आनुशांगिक
संगठन आरएसएस का सवाल है
तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा
यह कहा जाना कि
भाजपा आरएसएस के रहमोकरम पर
नहीं है तो वो
भी चुपचाप घर में बैठ
गया।
एक नजर घटते मार्जिन पर
वाराणसी में भाजपा के
आठ विधायक, तीन एमएलसी, प्रदेश
सरकार के तीन मंत्री
हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष
और मेयर भी भाजपा
के हैं। इसके बावजूद
इस बार के आम
चुनाव में वाराणसी में
मतदान का प्रतिशत घट
गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके
निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अजय राय
के बीच जीत का
अंतर कम हो गया।
जबकि, इससे पहले वर्ष
2014 और 2019 के आम चुनाव
में ऐसा नहीं था।
वर्ष 2014 के आम चुनाव
में वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में 58.35 प्रतिशत मतदान हुआ था। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी 5,81,022 मत पाकर अपने
निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी
के अरविंद केजरीवाल को 3,71,784 वोटों से हराया था।
वर्ष 2019 के आम चुनाव
में वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में 57.13 प्रतिशत मतदान हुआ था। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी 6,74,664 मत पाकर अपने
निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा की शालिनी
यादव को 4,79,505 वोट से चुनाव
हराया था। इस बार
के आम चुनाव में
मतदान घटकर 56.49 फीसदी रहा। इस चुनाव
में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 6,12,970 वोट
मिले। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी
कांग्रेस के अजय राय
को 1,52,513 वोट से हराया।
इस बार के आम
चुनाव में 2019 की तुलना में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्राप्त
मतों में 9.38 प्रतिशत की गिरावट दर्ज
की गई। जबकि, अजय
राय को पिछले चुनाव
की तुलना में इस बार
26.36 प्रतिशत मत ज्यादा मिले।
नोटा को मिले ज्यादा वोट
नोटा (इनमें से कोई नहीं)
का विकल्प इस बार के
आम चुनाव में चौथे स्थान
पर रहा। मोदी, अजय
राय और अतहर जमाल
लारी के बाद मतदाताओं
की पसंद नोटा का
बटन रहा। नोटा का
बटन 8478 मतदाताओं ने दबाया।
5 उम्मींदवारों के जमानत जब्त
अजय राय को
छोड़ कर शेष अन्य
पांच प्रत्याशियों अतहर जमाल लारी,
कोली शेट्टी शिवकुमार, गगन प्रकाश यादव,
दिनेश कुमार यादव और संजय
कुमार तिवारी की जमानत जब्त
हो ग्ह्मं
4 राउंड तक पीछे रहे मोदी
मतगणना के दौरान मोदी
का वोट 2014 और 2019 की अपेक्षाघट गया।
2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री को
581022 वोट मिले थे और
उन्होंने 371784 मतों से जीत
हासिल की थी। इसी
तरह 2019 के चुनाव में
नरेंद्र मोदी ने 479505 वोटों
से जीत दर्ज की
थी। गिनती के समय भी
चार राउंड तक कांग्रेस के
अजय राय आगे रहे
और पांचवें राउंड से प्रधानमंत्री को
बढ़त मिली। इसके बाद वह
बढ़त बनाते चले गए। पहले
राउंड में कांग्रेस के
अजय राय को 11480 और
भाजपा के नरेंद्र मोदी
को 5257 वोट मिले। 6223 वोट
से अजय राय आगे
रहे। दूसरे राउंड में अजय राय
को 14503 वोट मिले तो
नरेंद्र मोदी को 9505 वोट
मिले। अजय राय 4998 से
आगे रहे। वहीं तीसरे
राउंड में अजय राय
18629 और नरेंद्र मोदी को 14540 वोट
मिले। इस राउंड में
अजय राय 4089 वोटों से आगे रहे।
इसके बाद चौथे राउंड
में अजय राय को
21552 वोट मिले तो नरेंद्र
मोदी को 19924 वोट मिले, इस
राउंड में भी अजय
राय 1628 से आगे रहे।
पांचवें राउंड में नरेद्र मोदी
को 28719 वोट मिले और
अजय राय को 28283 वोट
मिले। इस राउंड में
नरेंद्र मोदी ने 436 वोटों
की बढ़त बनाई जो
अंत तक बनी रही।
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