Friday, 12 July 2024

बाबा बैद्यनाथ धाम : जहां ’पंचशूल’ के दर्शन मात्र से कट जाते है सारे दुख-दर्द

बाबा बैद्यनाथ धाम : जहांपंचशूलके दर्शन मात्र से कट जाते है सारे दुख-दर्द

देवताओं का घरयानी झारखंड के देवघर में स्थित है बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर। देवघर अर्थातदेवताओं का घर यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे नौवे ज्योतिर्लिंग का दर्जा प्राप्त है। इसे शिव जी का पवित्र निवास माना जाता है। देश का यह पहला ऐसा धार्मिक स्थल है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ है शक्तिपीठ, यानी शिव के साथ मां पार्वती भी विराजमान है। यहां माता सती का हृदय गिरा था। श्रद्धालु जब देवघर आते हैं तो जल का एक पात्र शिवलिंग पर अर्पित करते हैं और दूसरा पार्वती मंदिर में अर्पित करते हैं. कहते है यहां मांगी गई सभी मनोकामपूर्ण होती है. शक्तिपीठ होने के कारण महिलाएं यहां प्रसाद के रूप में सिंदूर जरूर चढ़ाती हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, ’पंचशूलहै, जिसे सुरक्षा कवच माना गया है. कहते हैपंचशूलका दर्शन करने से ही सभी मनोकामना पूरी हो जाती है. पूरे सावन माह तक यहां कांवड़ियो का जमघट होता है। 25 लाख से भी अधिक जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि बाबा भोले के भक्त जब सावन में बाबा बैजनाथ मंदिर में कांवड़ लेकर आते हैं तो उन्हें शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद मिलता है. श्रद्धालु देवघर से करीब 108 किललोमीटर दूर बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर पैदल यात्रा के बाद बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां गंगा के इसी तट से भगवान राम ने पहली बार भोलेनाथ को कांवड़ भरकर गंगा जल अर्पित किया था.

सुरेश गांधी

बाबा धाम की महिमा बेहद खास है. सावन के महीने में किया गया बाबा वैद्यनाथ का अभिषेक जीवन में सफलता के द्वार खोल देता है. तभी तो कावड़िएं सुल्तानगंज से 108 किमी की कठिन यात्रा को तय कर पहुंचते हैं बाबा धाम और सावन के महीने में भोले का अभिषेक कर कमाते हैं सात जन्मों का पुण्य. देवघर में भगवान शंकर बाबा वैद्यनाथ के नाम से विराजमान हैं. ये द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक है. मान्यता के मुताबिक इसे रावण ने स्थापित किय़ा इसलिए इसे रावणेश्वर भी कहा जाता है. बाबा बैद्यनाथ प्रसिद्ध तीर्थस्थलों और 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है. इसे भगवान शिव का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. ये एक ज्योतिर्लिंग है, जो शक्तिपीठ भी है. मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वंय भगवान विष्णु ने की थी. इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसलिए मंदिर में स्थापित शत शिवलिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है. यूं तो ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है. लेकिन शिवपुराण में इसकी विस्तारपूर्वक जानकारी मिलती है. इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है. इस स्थान के कई नाम प्रचलित है...जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, हार्दपीठ और कामना लिंग. कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसलिए मंदिर मे स्थापित शविलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं. वेदों में वर्णित है कि राजा दक्ष के महायज्ञ में शिव को नहीं बुलाए जाने पर माता सती रुष्ट हो गई थीं और अग्निकुंड में खुद को समाहित कर लिया था. इसके बाद भगवान शिव क्रोधित हो गए थे और माता सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर तांडव करने लगे थे. शिव के इस क्रोध से प्रलय जाता. ऐसे में भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. जहां जहां भी सती के शरीर का हिस्सा गिरा वह शक्तिपीठ कहलाया. देवघर बैद्यनाथ धाम में माता का हृदय कटकर गिरा था इसलिए इसे शक्तिपीठ या हार्दपीठ भी कहते हैं.

पंचशूल

धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शंकर ने अपने प्रिय शिष्य शुक्राचार्य को पंचवक्त्रम निर्माण की विधि बताई थी, जिनसे फिर लंकापति रावण ने इस विद्या को सिखा था। पंचशूल की अजेय शक्ति प्रदान करता है. कहा जाता है कि रावण ने लंका के चारों कोनों पर पंचशूल का निर्माण करवाया था, जिसे राम को तोड़ना आसान नहीं हो रहा था. बाद में विभिषण द्वारा इस रहस्य की जानकारी भगवान राम को दी गई और तब जाकर अगस्त मुनि ने पंचशूल ध्वस्त करने का विधान बताया था. रावण ने उसी पंचशूल को इस मंदिर पर लगाया था, जिससे इस मंदिर को कोई क्षति नही पहुंचा सके. त्रिशूलको भगवान का हथियार कहा जाता है, परंतु यहां पंचशूल है, जिसे सुरक्षा कवच के रूप में मान्यता है. भगवान भोलेनाथ कोरुद्र रूप पंचमुख है. हालांकि सभी ज्योतिर्पीठों के मंदिरों के शीर्ष परत्रिशूलहै, परंतु बाबा बैद्यनथ के मंदिर में ही पंचशूल स्थापित है. सुरक्षा कवच के कारण ही इस मंदिर पर आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ है. कई धर्माचार्यो का मानना है कि पंचशूल मानव शरीर में मौजूद पांच विकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह ईर्ष्या को नाश करने का प्रतीक है. पंचशूल पंचतत्वों-क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर से बने मानव शरीर का द्योतक है. मान्यता है कि यहां आने वाला श्रद्धालु.अगर बाबा के दर्शन किसी कारणवश कर पाए, तो मात्र पंचशूल के दर्शन से ही उसे समस्त पुण्यफलों की प्राप्ति हो जाती है. मुख्य मंदिर में स्वर्ण कलश के ऊपर .लगे पंचशूल सहित यहां बाबा मंदिर परिसर के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार शिवरात्रि के दिन पूरे विधि-विधान से नीचे उतारा जाता है और भभी को एक निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा कर फिर से वहीं स्थापित कर दिया जाता है. खास यह है कि पंचशूल को मंदिर से नीचे लाने और फिर ऊपर स्थापित करने का अधिकार एक ही परिवार को प्राप्त है

गठबंधन की अनोखी परंपरा

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर से लेकर माता पार्वती मंदिर के शिखर तक ग्रंथिबंधन एक लाल धागे से बांधा जाता है. यह अनुष्ठान किसी अन्य ज्योतिर्लिंग में देखने को नहीं मिलता है. खास यह है कि मंदिर परिसर में शिव, शक्ति, विष्णु, ब्रह्मा की भी पूजा होती है. इस परिसर में शिव मंदिर के शिखर से मां पार्वती मंदिर के शिखर तक गठबंधन की एक अनोखी परंपरा है, जो यहां आने वाला हर भक्त करना चाहता है. प्राचीनकाल से चले रहे इस धार्मिक अनुष्ठान कोगठजोड़वायागठबंधनभी कहा जाता है. मान्यता है कि इस अनुष्ठान को करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है और राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. गठबंधन का कार्य मंदिर के उपर चढ़कर भंडारी समाज के एक ही परिवार के लोग करते रहे हैं. यह गठबंधनलाल रज्जुसे निर्मित होता है. इस अनुष्ठान में पति-पत्नी दोनों ही सम्मिलित होते हैं. भंडारी समाज के लोगों का कहना है कि इस गठबंधन को हमारे पूर्वज करते थे और आज हम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि परंपरा निर्वाह करने से अच्छी आमदनी हो जाती है, जिससे पूरा परिवार चलता है. मंदिर के उपर जाने के लिए एक मोटी जंजीर लगी है जिसके सहारे दोनों मंदिर पर चढ़ा जाता है. गठबंधन के संकल्प के बाद वे आगे शिव मंदिर के शिखर पर गठबंधन करते हैं. इसके बाद भक्त ही इस लाल रज्जु को पार्वती मंदिर तक ले जाते हैं जहां हमलोग उसे लेकर फिर पार्वती के मंदिर के शिखर में बांध देते हैं.

पौराणिक मान्यताए

दरअसल वेदों में वर्णित है कि राजा दक्ष के महायज्ञ में शिव को नहीं बुलाए जाने पर माता सती रुष्ट हो गई थीं और अग्निकुंड में खुद को समाहित कर लिया था जिसके बाद भगवान शिव क्रोधित हो गए थे और माता सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर तांडव करने लगे थे. शिव के इस क्रोध से प्रलय जाता ऐसे में भगवान विष्णु के चक्र से सती के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए जहां जहां भी शरीर का हिस्सा गिरा शक्तिपीठ कहलाया. देवघर बैद्यनाथ धाम में माता का हृदय कटकर गिरा था इसलिए इसे शक्तिपीठ भी कहते हैं. यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. यहां आने वाले भक्तों को शिव और शक्ति दोनों के आशीर्वाद मिलते हैं. यहां सच्चे मन और श्रद्धा से मांगी गई सभी मनौति पूरी हो जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार लंकापति रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक के बाद एक अपनी सर की बलि देकर शिवलिंग पर चढ़ा रहे थे, एक के बाद एक कर दशानन रावण ने भगवान के शिवलिंग पर 9 सिर काट कर चढ़ा दिए, जैसे ही दशानन दसवें सिर की बलि देने वाला था वैसे ही भगवान भोलेनाथ प्रकट हो गए. भगवान ने प्रसन्न होकर दशानन से वरदान मांगने को कहा, इसके बाद वरदान के रूप में रावण भगवान शिव को लंका चलने को कहते हैं. उनके शिवलिंग को लंका में ले जाकर स्थापित करने का वरदान मांगते हैं, भगवान रावण को वरदान देते हुए कहते हैं कि जिस भी स्थान पर शिवलिंग को तुम रख दोगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा. भगवान भोलेनाथ शिवलिंग को लंका ले कर जा रहे रावण को रोकने के लिए सभी देवों के आग्रह पर मां गंगा रावण के शरीर में प्रवेश कर जाती है. जिस कारण उन्हें रास्ते में जोर की लघुशंका लगती है, इसी बीच भगवान विष्णु वहां एक चरवाहे के रूप में प्रकट हो जाते हैं, जोर की लघु शंका लगने के कारण रावण धरती पर उतर जाता है और चरवाहे के रूप में खड़े भगवान विष्णु के हाथों में शिवलिंग देकर यह कहता है कि इसे उठाए रखना जब तक में लघु शंका कर वापस नहीं लौट आता. इधर मां गंगा के शरीर में प्रवेश होने के कारण लंबे समय तक रावण लघुशंका करता रहता है. इसी बीच चरवाहे के रूप में मौजूद बच्चा भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग का भार नहीं सहन कर पाता और वह उसे जमीन पर रख देता है. लघुशंका करने के उपरांत जब रावण अपने हाथ धोने के लिए पानी खोजने लगता है जब उसे कहीं जल नहीं मिलता है तो वह अपने अंगूठे से धरती के एक भाग को दबाकर पानी निकाल देता है. जिसे शिवगंगा के रूप में जाना जाता है. शिव गंगा में हाथ धोने के बाद जब रावण धरती पर रखे गए शिवलिंग को उखाड़ कर अपने साथ लंका ले जाने की कोशिश करता है तो वो ऐसा करने असमर्थ हो जाता है. इसके बाद आवेश में आकर वह शिवलिंग को धरती में दबा देता है जिस कारण बैधनाथ धाम स्थित भगवान शिव की स्थापित शिवलिंग का छोटा सा भाग ही धरती के ऊपर दिखता है, इसे रावणेश्वर बैधनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है.

श्रावणी मेला

मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त कांधे पर कांवर लेकर सुल्तानगंज से जल उठा कर पैदल भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है, इसीलिए ऐसी मनोकामना लिंग के रूप में भी जाना जाता है. सावन के महीने में हर दिन लाखों श्रद्धालु की भीड़ सुल्तानगंज से जल उठा कर कांवर में जल भरकर पैदल 108 किलोमीटर की दूरी तय कर देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं, सावन के महीने में देवघर में लगने वाली विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला देश की सबसे लंबे दिनों तक चलने वाली धार्मिक आयोजनों में से एक है.

कांवड का है नियम

रास्ते में विश्राम और लघुशंका की स्थिति होने पर कांवर को ऊंचे और पवित्र स्थान पर रखा जाता है। पुनः स्नान करते हैं। अपने को शुद्ध कर कांवर को प्रणाम कर फिर यात्रा के लिए प्रस्थान करते हैं। सुल्तानगंज और देवघर के बीच कांवरिए अपने सामर्थ के अनुसार विश्राम करते हैं। रास्ते में ब्रह्मचर्य, सत्य वचन, परोपकार एवं सेवा भाव का पालन करना पड़ता है। इसके साथ ही तेल साबुन का प्रयोग वर्जित है। जूता-चप्पल पहनना भी वर्जित है। कुत्ते से जल को बचाकर रखना पड़ता है।

राम ने भी सीता के साथ किया था जलाभिषेक

पुराणों के अनुसार भगवान शिव को खुश करने के लिए लंकेश्वर रावण ने हरिद्वार से कांवर में जल लाकर बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण किया था। रामायण के अनुसार राज्याभिषेक के पश्चात राम अपनी पत्नी सीता एवं तीनों भाईयों के साथ देवघर आए थे और बाबा बैद्यनाथ पर जलाभिषेक किए थे।

24 घंटे में चढ़ाना होता है डाक बम

कांवरियों में जो डाक बम होते हैं, उन्हें 24 घंटे के अंदर बाबा को जल चढ़ाना पड़ता है। सुल्तानगंज से डाक बम पवित्र जल लेकर चलते हैं। इनका पात्र खास तरह का होता है। ये रास्ते में कहीं नहीं रुकते हैं। वैसे तो फलाहार कर सकते हैं। लेकिन चलते-चलते ही इन्हें खाना-पीना पड़ता है।

हवन कुंड  

मंदिर परिसर में स्थित हवन कुंड की बनावट अलग है. यह मुख्य मंदिर के उत्तर की ओर प्रसाशनिक भवन के पास स्थित है. हवन कुंड के मंडप की लम्बाई लगभग 30 चौडाई 30 फीट है. इस हवन कुंड के शिखर पर पंचशूल लगा है. हवन कुंड के अंदर प्रवेश करने की इजाजत किसी को नहीं है. इस हवन कुंड में लकड़ी का दरवाजा लगा है. इस हवन कुंड में पूर्व सरदार पंडा स्वर्गीय श्रीश्री रामदत्त ओझा द्वारा मां शक्ति दुर्गा की तांत्रिक विधि से हवन पूजन की थी, जो आज तक जारी है. इस हवन कुंड में आश्विन मास नवरात्र के एक दिन पहले महालया के दिन विशेष पूजा के उपरांत हवन कुंड से भस्मभभूत निकाला जाता है. इसके उपरांत भस्मभभूत का वितरण किया जाता है. इसके बाद पूरे नवरात्र में पूजारी द्वारा हवन कुंड में तांत्रिक विधि से हवन पूजन किया जाता है. इसके अलावा मंदिर स्टेट की ओर से मंदिर स्टेट पुरोहित द्वारा प्रतिदिन हवन कुंड में हवन किया जाता है.

बेलपत्रो का चमत्कार!

देवघर के बेलपतरियों का सामना जंगलों में हिंसक जानवरों से भी हुआ है, लेकिन कोई अप्रिय घटना कभी भी घटित नहीं हुई है. सब बाबा का चमत्कार ही माना जाता है. बिल्वपत्र अर्पण करने की परंपरा को अक्षुण्ण बनाये रखने का श्रेय परमपूज्य ब्रह्मचारी बम बम बाबा को जाता है. बैद्यनाथधाम के तीर्थ पुरोहित एवं स्थानीय निवासियों द्वारा आसपास के जंगलों पहाड़ों से बिल्व-पत्र तोड़ कर बाबा बैद्यनाथ पर समर्पण की परंपरा प्राचीन काल से चली रही है. इन्हें आमतौर पर स्थानीय भाषा मेंबेलपतरियाके नाम से संबोधित किया जाता है. ऐसा देखा गया है कि वो रात भर जंगलों में बिल्ववृक्ष के पास पहरेदार बने बैठे रहते हैं, ताकि उनके प्रतिद्वंदी उनसे पहले नमुनेदार पत्तियों को तोड़कर ले जायें. रात में उनके अन्य दोस्त ढूंढते हुए आकर उन्हें भोजन, पानी और सुरक्षा प्रदान करते हैं. बेलपतरियों का सामना जंगलों में हिंसक जानवरों से भी हुआ है, लेकिन कोई अप्रिय घटना कभी भी घटित नहीं हुई है. सब बाबा का चमत्कार ही माना जाता है. बिल्वपत्र अर्पण करने की परंपरा को अक्षुण्ण बनाये रखने का श्रेय परमपूज्य ब्रह्मचारी बम बम बाबा को जाता है.

पंचशूल में प्रपंच पंचक देता है विशेष ज्ञान

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल पांच योग पंचक को जानने की प्रेरणा देता है. वे पांच योग पंचक हैं- मंत्र योग, स्पर्श योग, भाव योग, अभाव योग और पांचवां महायोग. जिसकी दूसरी वृत्तियों का निरोध हो गया है, ऐसे चित्त की भगवान शिव में निश्चल वृत्ति स्थापित हो जाती है. संक्षेप में इसी कोयोगकहा गया है. प्रपंच पंचक : पंचशूल संकेत देता है कि प्रकृति में भासित और पांच प्रकार के पंचकों को प्रपंच पंचक कहा गया है. पहला पंचक मह तत्व, सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण और अहंकार है. दूसरा पंचक- शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध है. तीसरा पंचक दृ आकाश, वायु, अग्नि,जल और पृथ्वी है. चौथा पंचक- कान, त्वचा, आंख, जीभ और नाक है. पांचवां पंचक दृ हाथ, पैर, वाणी, पायु और उपस्थ है. ये सभी पांचों पंचक जगत प्रपंच कहलाते हैं और इन्हें जड़ प्रकृति या माया नाम दिया गया है. इन जड़ वृत्तियों के शमन को ही ज्ञान कहते हैं. बिना ठीक से जाने समझे, अनुभूत किये इस जगत प्रपंच को त्याज्य मानकर त्याग देना भी अज्ञान है. इस प्रपंच रूप अंधकार को हटाने के लिए ज्ञान का दीपक जलाना पड़ता है. इस ज्ञान ज्योति के हृदय में उदय लेते ही सारे अज्ञान अंधकार क्षण भर में मिट जाते हैं.

 

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