Thursday, 18 July 2024

सावन, सोमवार, शिवलिंग और महादेव की महिमा है अनंत

सावन, सोमवार, शिवलिंग और महादेव की महिमा है अनंत

भगवान शंकर की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन महाशिवरात्रि है। उसके बाद सावन के महीने में आने वाला प्रत्येक सोमवार। फिर हर महीने आने वाली शिवरात्रि और सोमवार का विशेष महत्व है। लेकिन यह संयोग ही है कि इस बार सावन माह सोमवार से शुरू होकर सोमवार को ही खत्म होगा। सावन के पहले दिन ही सोमवार को शिव मंदिरों में जलाभिषेक करने भक्त उमड़ेंगे वहीं आखिरी सोमवार को रक्षा बंधन पड़ रहा है। ऐसा संयोग सालों में एक बार आता है, इस संयोग में भगवान शिवजी की आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है

                                                    सुरेश गांधी 

सावन वो महीना है जिसमें भगवान शंकर यानी भक्ति की ऐसी अविरल धारा है जहां हर हर महादेव और बम बम भोल की गूंज से कष्टों का निवारण होता है। मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यूं तो भगवान शंकर की पूजा के लिए सोमवार का दिन पुराणों में निर्धारित किया गया है। लेकिन पौराणिक मान्यताओं में भगवान शंकर की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन महाशिवरात्रि, उसके बाद सावन के महीने में आने वाला प्रत्येक सोमवार, फिर हर महीने आने वाली शिवरात्रि और सोमवार है। भगवान को सावन यानी श्रावण का महीना बेहद प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में खासकर सोमवार के दिन व्रत-उपवास और पूजा पाठ (रुद्राभिषेक, कवच पाठ, जाप इत्यादि) का विशेष लाभ होता है। सनातन धर्म में यह महीना बेहद पवित्र माना जाता है। यही वजह है कि मांसाहार करने वाले लोग भी इस मास में मांस का परित्याग कर देते है।

सावन के महीने में सबसे अधिक बारिश होती है जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य गर्म है जो उष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा है जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिश होती है। जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोले को ठंडक सुकून मिलता है। इसलिए शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है। इस माह किया गया जलाभिषेक, रुद्राभिषेक का बड़ा महत्व है। वेद मंत्रों के साथ भगवान शंकर को जलधारा अर्पित करना साधक के आध्यात्मिक जीवन के लिए महाऔषधि के सामान है। पांच तत्व में जल तत्व बहुत महत्वपूर्ण है। पुराणों ने शिव के अभिषेक को बहुत पवित्र महत्व बताया गया है। जल में भगवान विष्णु का वास है, जल का एक नामनारभी है। इसीलिए भगवान विष्णु को नारायण कहते हैं। जल से ही धरती का ताप दूर होता है। जो भक्त, श्रद्धालु भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं उनके रोग-शोक, दुःख दरिद्र सभी नष्ट हो जाते हैं।

भगवान शंकर को महादेव इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वह देव, दानव, यक्ष, किन्नर, नाग, मनुष्य, सभी द्वारा पूजे जाते हैं। सावन मास में शिव भक्ति का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसीसे उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। शिवपुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रुप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है जिसमें कोई संशय नहीं है। संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्। भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः।। अर्थात् जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए। पुराणों में यह भी कहा गया है कि सावन के महीने में सोमवार के दिन शिवजी को एक बिल्व पत्र चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। इसलिए इन दिनों शिव की उपासना का बहुत महत्व है।

पशु पक्षियों में भी होता है नव चेतना का संचार

श्रावण का सम्पूर्ण मास मनुष्यों में ही नही अपितु पशु पक्षियों में भी एक नव चेतना का संचार करता है। इस मौसम में प्रकृति अपने पुरे यौवन पर होती है। रिमझिम फुहारे साधारण व्यक्ति को भी कवि हृदय बना देती है। सावन में मौसम का परिवर्तन होने लगता है। प्रकृति हरियाली और फूलो से धरती का श्रुंगार कर देती है, परन्तु धार्मिक परिदृश्य से सावन मास भगवान शिव को ही समर्पित रहता है। मान्यता है कि शिव आराधना से इस मास में विशेष फल प्राप्त होता है। इस महीने में हमारे 8 ज्योतिर्लिंगों की विशेष पूजा, अर्चना और अनुष्ठान की बड़ी प्राचीन एवं पौराणिक परम्परा रही है। रुद्राभिषेक के साथ साथ महामृत्युंजय का पाठ तथा काल सर्प दोष निवारण की विशेष पूजा का महत्वपूर्ण समय रहता है। यह वह मास है जब कहा जाता है जो मांगोगे वही मिलेगा। भोलेनाथ सबका भला करते है।

सावन की मान्यता

हिंदू धर्म में सावन का महीना काफी पवित्र माना जाता है। इसे धर्म-कर्म का माह भी कहा जाता है। सावन महीने का धार्मिक महत्व काफी ज्यादा है। यही ववह है कि बारह महीनों में से सावन का महीना विशेष पहचान रखता है। इस दौरान व्रत, दान पूजा-पाठ करना अति उत्तम माना जाता है। इससे कई गुणा फल भी प्राप्त होता है। इस महीने में ही पार्वती ने शिव की घोर तपस्या की थी और शिव ने उन्हें दर्शन भी इसी माह में दिए थे। तब से भक्तों का विश्वास है कि इस महीने में शिवजी की तपस्या और पूजा पाठ से शिवजी जल्द प्रसन्न होते हैं और जीवन सफल बनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि प्रबोधनी एकादशी (सावन के प्रारंभ) से सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने के लिए निकल जाते हैं। वे अपना सारा कार्यभार महादेव को सौंप देते है। भगवान शिव पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दुःख-दर्द को समझते है। उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं, इसलिए सावन का महीना खास होता है।

सावन मास का महत्व...

श्रावण मास हिंदी कैलेंडर में पांचवें स्थान पर आता हैं और इस ऋतु में वर्षा का प्रारंभ होता हैं। शिव जो को श्रावण का देवता कहा जाता हैं। उन्हें इस माह में भिन्न-भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं। पूरे माह धार्मिक उत्सव होते हैं। विशेष तौर पर सावन सोमवार को पूजा जाता हैं। भारत देश में पूरे उत्साह के साथ सावन महोत्सव मनाया जाता हैं।

विधि

पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें। घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें

मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये।

इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें

ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।

पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।

ध्यान के पश्चात ओउम् नमः शिवाय से शिवजी का तथा ओउम् नमः शिवाय से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें और आरती करके प्रसाद वितरण करें। इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।

सावन सोमवार व्रत का फल

सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा देवी पार्वती की अनुकंपा बनी रहती है। जीवन धन-धान्य से भर जाता है। सभी अनिष्टों का हरण कर भगवान शिव अपने भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं। सावन माह में सोमवार के शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है। चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है। शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है। भक्तजन दूर स्थानों से जल भरकर लाते हैं और उस जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं। सावन के सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सावन सोमवार, सोलह सोमवार और सोम प्रदोष। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। मान्यता है कि सावन में पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल अर्पित करने से भगवान् शिव अति प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। गौरतलब है कि बारह ज्योतिर्लिंगों में काशी विश्वनाथ का अहम् स्थान है मान्यता है कि बाबा को जल चढ़ाने से मुक्ति मिलती हैं। भक्त इस दौरान प्रवित्र गंगाजल, दूध-दही, बेलपत्र आदि से भगवान शिव की अर्चना करेंगे। इसके अलावा भोले बाबा को घी, शहद, जनेऊ, रोली, बेलपत्र, भांग, धतूरा और नैवेद्य से पूजा जाता है।

सावन में बरसेगीशिवकी कृपा

वैसे तो साल का हर दिन पावन होता है। लेकिन सावन मास में शिवलिंग के दर्शन पूजन का अलग ही महत्व माना गया है। वैसे भी आप चाहे महादेव की प्रतिमा की पूजा करें या फिर लिंग रूप उनकी आराधना। महादेव की कृपा अपने हर भक्त पर बरसती है। क्योंकि भोले में सारी दुनिया समायी है। जगत के कण-कण में महादेव का वास है। धरती पर शिवलिंग को शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है। तभी तो शिवलिंग के दर्शन को स्वयं महादेव का दर्शन माना जाता है। इसी मान्यता के चलते भक्त पूरे सावन भर शिवलिंग को मंदिरों और घरों में स्थापित कर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। इस बार सावन व्रतधारियों के लिए कमाई, आमदनी और रोजगार बढ़ाने वाला रहेगा। जीवन की आशाएं पूरी होंगी। उम्दा खेती के आसार हैं तथा यह सावन विद्यार्थियों के लिए ज्ञान, दरिद्रता और बीमारी नष्ट करने वाला सिद्ध होगा। श्रावण में भगवान आशुतोष का गंगाजल पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है। भगवान शिव की हरियाली से पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है। खासतौर से श्रावण मास के सोमवार को शिव का पूजन बेलपत्र, भांग, धतूरे, दूर्वाकुर आक्खे के पुष्प और लाल कनेर के पुष्पों से पूजन करने का प्रावधान है। इसके अलावा पांच तरह के जो अमृत बताए गए हैं उनमें दूध, दही, शहद, घी, शर्करा को मिलाकर बनाए गए पंचामृत से भगवान आशुतोष की पूजा कल्याणकारी होती है। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के लिए एक दिन पूर्व सायंकाल से पहले तोड़कर रखना चाहिए। सोमवार को बेलपत्र तोड़कर भगवान पर चढ़ाया जाना उचित नहीं है। भगवान आशुतोष के साथ शिव परिवार, नंदी भगवान परशुराम की पूजा भी श्रावण मास में लाभकारी है। शिव की पूजा से पहले नंदी की पूजा की जानी चाहिए। सावन के महीने में सोमवार का विशेष महत्व होता है। इसे भगवान शिव का दिन माना जाता है। इसलिए सोमवार के दिन शिव भक्त शिवालयों में जाकर शिव की विशेष पूजा अर्चना करते हैं।

 

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