शक्ति की गरिमा दर्शाता है नवरात्र
वैसे
तो
ईश्वर
का
आशीर्वाद
हम
पर
सदा
ही
बना
रहता
है,
किन्तु
कुछ
विशेष
अवसरों
पर
उनके
प्रेम,
कृपा
का
लाभ
हमें
अधिक
मिलता
है।
पावन
पर्व
नवरात्र
में
देवी
दुर्गा
की
कृपा,
सृष्टि
की
सभी
रचनाओं
पर
समान
रूप
से
बरसती
है।
इसके
परिणामस्वरूप
ही
मनुष्यों
को
लोक
मंगल
के
क्रिया-कलापों
में
आत्मिक
आनंद
की
अनुभूति
होती
है।
नवरात्र
महिलाओं
के
प्रति
आदर-सत्कार
की
भावना
जागृत
करता
है,
जो
हमारी
संस्कृति
का
आधार
है।
ये
पर्व
ऋतु
परिवर्तन
के
कारण
तन
व
मन
में
निर्मल
शुद्धि
का
भाव
उत्पंन
करता
है।
इस
नौ
दिन
में
पूजन-अर्चन
और
व्रत
हमारे
जीवन
में
संचार
और
उमंग
की
तरंग
भरता
है।
कहते
है
कि
नवरात्र
में
महाशक्ति
की
पूजा
कर
श्रीराम
ने
अपनी
खोई
हुई
शक्ति
पाई,
इसलिए
इस
समय
आदिशक्ति
की
आराधना
पर
विशेष
बल
दिया
गया
है।
शक्ति
जो
जीवन
का
आधार
है
और
नवरात्र
इसी
शक्ति
को
आध्यात्मिक
रुप
से
पाने
का
महापर्व
है।
मार्कण्डेय
पुराण
के
अनुसार,
दुर्गा
सप्तशती
में
स्वयं
भगवती
ने
इस
समय
शक्ति-पूजा
को
महापूजा
बताया
है।
कलश
स्थापना,
देवी
दुर्गा
की
स्तुति,
सुमधुर
घंटियों
की
आवाज,
धूप-बत्तियों
की
सुगंध
दृ
यह
नौ
दिनों
तक
चलने
वाले
साधना
पर्व
नवरात्र
का
चित्रण
है
सुरेश गांधी
नवरात्र यानि नौ रातों
का समूह। इन नौ रातों
में तीन देवी पार्वती,
लक्ष्मी और सरस्वती के
नौ रुपों की पूजा होती
है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। देवी
दुर्गा के नौ स्वरुप
हैं-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। नवरात्र
ही एक ऐसा वक्त
है जिसमें ईश-साधना और
अध्यात्म का अद्भुत संगम
होता है। इसीलिए माता
भगवती की आराधना का
श्रेष्ठ समय नवरात्र ही
है। नवरात्र ही एक ऐसा
पर्व है जो हमारी
संस्कृति में महिलाओं के
गरिमामय स्थान को दर्शाता है।
आनन्द, और अध्यात्म की
अनुभूति करवाता है। आनन्द की
अवस्था में शरीर में
तनाव पैदा करने वाले
हार्मोन्स समाप्त हो जाते है।
जो हार्मोन्स उत्सर्जित होते है वे
हमारी सेहत के लिये
अत्यंत लाभदायक होते है। देवी
दुर्गा की स्तुति, कलश
स्थापना, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध- नौ
दिनों तक चलने वाला
आस्था और विश्वास का
यह अनोखा त्योहार है। यही वजह
है कि नवरात्र के
दौरान हर कोई एक
नए उत्साह और उमंग से
भरा दिखाई पड़ता है।
देवी दुर्गा की
पवित्र भक्ति से भक्तों को
सही राह पर चलने
की प्रेरणा मिलती है। इन नौ
दिनों में मानव कल्याण
में रत रहकर, देवी
के नौ रुपों की
पूजा या आह्वान की
जाय तो देवी का
आशीर्वाद, शारीरिक तेज में वृद्धि,
मन निर्मल, आत्मिक, दैविक, भौतिक शक्तियों का लाभ मिलता
है, सभी संकटों, रोगों,
दुश्मनों, प्राकृतिक आपदाओं से छुटकारा और
मनोवांछित फल की प्राप्ति
होती है। इसके अतिरिक्त
इन्हें साधना सिद्धि के लिये भी
प्रयोग किया जा सकता
है। तांन्त्रिकों व तंत्र-मंत्र
में रुचि रखने वाले
व्यक्तियों के लिये यह
समय और भी अधिक
उपयुक्त रहता है। गृहस्थ
व्यक्ति भी इन दिनों
में माता की पूजा
आराधना कर अपनी आन्तरिक
शक्तियों को जाग्रत करते
हैं। इन दिनों में
साधकों के साधन का
फल व्यर्थ नहीं जाता है।
मां अपने भक्तों को
उनकी साधना के अनुसार फल
देती है। इन दिनों
में दान पुण्य का
भी बहुत महत्त्व कहा
गया है।
रूपक के द्वारा
हमारे शरीर को नौ
मुख्य द्वारों वाला कहा गया
है। इसके भीतर निवास
करने वाली जीवनी शक्ति
का नाम ही दुर्गा
देवी है। इन मुख्य
इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता,
तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक
रूप में, शरीर तंत्र
को पूरे साल के
लिए सुचारू रूप से क्रियाशील
रखने के लिए नौ
द्वारों की शुद्धि का
पर्व नौ दिन मनाया
जाता है। इनको व्यक्तिगत
रूप से महत्त्व देने
के लिए नौ दिन
नौ दुर्गाओं के लिए कहे
जाते हैं। वैसे भी
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के
काल में एक साल
की चार संधियां हैं।
उनमें मार्च व अक्टूबर में
पड़ने वाली गोल संधियों
में साल के दो
मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस
समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना
होती है। ऋतु संधियों
में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं, अतः
उस समय स्वस्थ रहने
के लिए, शरीर को
शुद्ध रखने के लिए
और तनमन को निर्मल
और पूर्णतरू स्वस्थ रखने के लिए
की जाने वाली प्रक्रिया
का नाम नवरात्र है।
सात्विक आहार के व्रत
का पालन करने से
शरीर की शुद्धि, साफ
सुथरे शरीर में शुद्ध
बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम
कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और
क्रमशः मन शुद्ध होता
है।
स्वच्छ मन मंदिर में
ही तो ईश्वर की
शक्ति यानी शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी,
चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री के
रुप में मां का
स्थायी निवास होता है। इसीलिए
नवरात्र में लोग अपनी
आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों
में वृद्धि करने के लिये
अनेक प्रकार के उपवास, संयम,
नियम, भजन, पूजन योग
साधना आदि करते हैं।
माता के सभी 51 पीठों
पर भक्त विशेष रुप
से माता के दर्शनों
के लिये एकत्रित होते
हैं। जिनके लिये वहां जाना
संभव नहीं होता है,
वह अपने निवास के
निकट ही माता के
मंदिर में दर्शन कर
लेते हैं। नवरात्र शब्द,
नव अहोरात्रों का बोध करता
है। इस समय शक्ति
के नव रूपों की
उपासना की जाती है।
रात्रि शब्द सिद्धि का
प्रतीक है।
उपासना और सिद्धियों के
लिये दिन से अधिक
रात्रियों को महत्त्व दिया
जाता है। नवरात्र के
साथ रात्रि जोड़ने का अर्थ है,
माता शक्ति के इन नौ
दिनों की रात्रियों को
मनन व चिन्तन के
लिये प्रयोग करना चाहिए। चैत्र
नवरात्र मां भगवती जगत
जननी को आह्वान कर
दुष्टात्माओं का नाश करने
के लिए जगाया जाता
है। फिर चाहे व्रत
रखें, मंत्र जाप करें, अनुष्ठान
करें या अपनी-अपनी
श्रद्धा-भक्ति अनुसार कर्म करते रहें।
कहा जाता है कि
वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी
हैं कि जब-जब
किसी आसुरी शक्तियों ने अत्याचार व
प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को
तबाह करने की कोशिश
की तब-तब किसी
न किसी दैवीय शक्तियों
का अवतरण हुआ। इसी प्रकार
जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से
भू व देव लोक
व्याकुल हो उठे तो
परम पिता परमेश्वर की
प्रेरणा से सभी देवगणों
ने एक अद्भुत शक्ति
का सृजन किया जो
आदि शक्ति मां जगदंबा के
नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड
में व्याप्त हुईं। उन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर
भू व देव लोक
में पुनःप्राण शक्ति व रक्षा शक्ति
का संचार कर दिया।
सोच में आता है बदलाव
विचारो को सकारात्मक बनाये
रखने के लिए मां
दुर्गा के जिन नौ
रूपों की पूजा अर्चना
की जाती है, वे
रूप असल में मनुष्य
की विभिन्न मनोदशाओं के परिष्कार से
जुडी है। दुर्गा सप्तसती
में जिन राक्षसो का
संहार के विषय में
जिन रूपों का जिक्र आता
है वे असल में
हमारी नकारात्मक ऊर्जा का प्रतिक है।
विज्ञानं भी व्रत का
उलेख करते है। व्रत
रखने से शरीर में
सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता
है। शरीर से अनेक
व्याधि दूर होती है।
मन विचलित नहीं होता है।
मन में शुद्ध विचारो
का आदान प्रदान होता
है। देवी दुर्गा की
स्तुति, कलश स्थापना, सुमधुर
घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध- नौ
दिनों तक चलने वाला
आस्था और विश्वास का
यह अनोखा त्योहार है। इस दौरान
हर कोई एक नए
उत्साह और उमंग से
भरा दिखाई पड़ता है। देवी
दुर्गा की पवित्र भक्ति
से भक्तों को सही राह
पर चलने की प्रेरणा
मिलती है।
शुद्ध होता है तनमन
नवरात्र के इन नौ
दिनों में जो व्यक्ति
श्रद्धा, भावना से परिपूर्ण हो,
नियम से जप, शौच,
अहिंसा, स्वाध्याय, चिंतन का अभ्यास करता
रहे तो इस परायण
के फलस्वरूप उसकी अपनी गूढ़तम्
दिव्य शक्तियां जागृत हो सकती हैं।
फिर इस देवत्व को
प्राप्त कर वह अपने
जीवन को एक नई
दिशा, एक नई उमंग,
एक नई तरंग प्रदान
कर सकता है। देवी
हमसे बाहर नहीं हैं।
देवी हमीं में हैं।
शिव हमसे अन्यत्र नहीं
हैं। शिव भी मेरी
ही परम चेतना हैं।
अपने अंदर मौजूद इस
शिव और शक्ति की
पहचान करने का यह
दुर्लभ सुअवसर किन्हीं सौभाग्यशालियों को मिलता है।
मानव अधिकतर देह से संबंधित
इच्छाओं, अभिलाषाओं की ही पूर्ति
करने में अपना सारा
जीवन व्यर्थ कर देता है।
किन्हीं धन्यभागी, पुण्यशील मानवों के जीवन में
अवसर आता है, जहां
वह अपने अंदर मौजूद
उस परम आदिशक्ति की
पहचान कर पाता है
और उस शक्ति की
दिव्य लीला का अनुभव
करके कृतकृत होता है।
शिव की कार्यशक्ति ही है मां दुर्गा
जब पूरे विश्व
के प्रमुख धर्मों में परमात्मा को
एक पिता, एक पुरुष की
तरह पूजा गया तो
वहीं भारत ही एक
ऐसा अद्वितीय और अलौकिक देश
था, जहां उस परब्रह्मा
को एक स्त्री-शक्ति
के रूप में, एक
माता के रूप में
भी स्वीकार किया गया। हालांकि
स्त्रैण और पुरुषैण, यह
दोनों शक्ति के ही स्वरूप
होते हैं, परन्तु जैसे
माता और पिता के
संयोग से संतान उत्पन्न
होती है, उसी प्रकार
शक्ति के स्वरूप का
आधार शिव और शिव
की कार्यशक्ति को ही हम
देवी शक्ति कहते हैं। यानी
प्रकृति स्त्रैण है और परब्रह्मा
परमात्मा पुरुष है। प्रकृति और
पुरुष के समागम से
ही यह सारे संसार
का बनना, चलना और संहार
होता है।
रात्रि जागरण का वैज्ञानिक तथ्य
मां की आराधना
के बाबत सर्वमान्य वैज्ञानिक
तथ्य भी है कि
रात्रि में प्रकृति के
बहुत सारे अवरोध खत्म
हो जाते हैं। हमारे
ऋषि-मुनि आज से
कितने ही हजारों-लाखों
वर्ष पूर्व ही प्रकृति के
इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके
थे। आप अगर ध्यान
दें तो पाएंगे कि
अगर दिन में आवाज
दी जाए, तो वह
दूर तक नहीं जाती
है, किंतु यदि रात्रि में
आवाज दी जाए तो
वह बहुत दूर तक
जाती है। इसके पीछे
दिन के कोलाहल के
अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य
यह भी है कि
दिन में सूर्य की
किरणें आवाज की तरंगों
और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने
से रोक देती हैं।
रेडियो इस बात का
जीता-जागता उदाहरण है। आपने खुद
भी महसूस किया होगा कि
कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों
को दिन में पकड़ना
अर्थात सुनना मुश्किल होता है जबकि
सूर्यास्त के बाद छोटे
से छोटा रेडियो स्टेशन
भी आसानी से सुना जा
सकता है। इसका वैज्ञानिक
सिद्धांत यह है कि
सूर्य की किरणें दिन
के समय रेडियो तरंगों
को जिस प्रकार रोकती
हैं ठीक उसी प्रकार
मंत्र जाप की विचार
तरंगों में भी दिन
के समय रुकावट पड़ती
है। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने
रात्रि का महत्व दिन
की अपेक्षा बहुत अधिक बताया
है। मंदिरों में घंटे और
शंख की आवाज के
कंपन से दूर-दूर
तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो
जाता है। यही रात्रि
का तर्कसंगत रहस्य है। जो इस
वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान
में रखते हुए रात्रियों
में संकल्प और उच्च अवधारणा
के साथ अपनी शक्तिशाली
विचार तरंगों को वायुमंडल में
भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि
अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प
के अनुसार उचित समय और
ठीक विधि के अनुसार
करने पर अवश्य होती
है।
जागृत होती है दिव्य शक्तियां
देवी के इन
नौ स्वरूपों का सीधा-सीधा
संबंध हमारे अंतःकरण और हमारी आज
की उस स्थिति से
है, जहां आज अंधकार
है। जहां अभी वासनाओं
के असुरों का दल, जो
हमारे मन के ही
भीतर है, मन को
ही घायल कर रहा
है। हमारे मन की दैवी
शक्तियां सुप्त हैं, अभी जागृत
ही नहीं हुई हैं।
तो इन असुरों के
ताण्डव-नृत्य को समाप्त करने
हेतु हमें दैवी-शक्तियों
को जागृत करना होगा और
इन दैवी-शक्तियों को
जागृत करने के लिए
देवी की उपासना सर्वोपरि
कही गई है। प्रश्न
यह उठता है कि
है कोई ऐसा मानव,
जिसको अपने जीवन में
साहस नहीं चाहिए? है
कोई ऐसा मानव, जिसको
जीवन में शांति, कूटस्थता,
स्थिरता और गम्भीरता की
जरूरत नहीं? कोई भी मानव
जिसके जीवन में आत्म-संयम, नियम और अनुशासन
नहीं है, क्या वह
किसी भी प्रकार की
उन्नति को चख सकता
है? अंधकार में भटक रहे
मन के लिए विश्रंति
प्रदान करने वाले जप-तप की सभी
को आवश्यकता है। इसलिए दुर्गा
के इन नौ स्वरूपों
की आराधना इन नौ दिनों
में जो भक्त करेंगे,
वह अपने जीवन में
देवी की परमकृपा को
प्राप्त होंगे। इस परमशक्ति के
साथ अपने मन को
जोड़ने का अवसर है-
नवरात्र। दिव्य देवी चिह्न् है-
शक्ति का, सौंदर्य का।
देवी चिह्न् है- विद्या का,
समाधि का, यान का।
देवी चिह्न् है- व्रत का,
अनुशासन का। देवी चिह्न्
है- अध्यात्म की सर्वोत्कर्ष उपलब्धियों
का। देवी चिह्न् है-
सिद्धियों का। कोई भी
मानव अपने जीवन में
शक्ति, विद्या, धन, गुण, अनुशासन,
संयम, ज्ञान-चिंतन, शास्त्र-चिंतन, आत्म-चिंतन के
बगैर मानवीयता को प्राप्त कैसे
हो सकता है? इसलिए
देवी की आराधना मानव
के अंदर छिपी हुई
उन रहस्यमयी दिव्य शक्तियों को जागृत करने
का एक माध्यम है।
पौराणिक कथाएं
मान्यता है कि देवियों
के शक्ति स्वरुप की उपासना का
पर्व नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक,
निश्चित नौ तिथि, नौ
नक्षत्र, नौ शक्तियों की
नवधा भक्ति के साथ सनातन
काल से मनाया जा
रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी
ने इस शारदीय नवरात्रि
पूजा का प्रारंभ समुद्र
तट पर किया था
और उसके बाद दसवें
दिन लंका विजय के
लिए प्रस्थान किया और विजय
प्राप्त की। तब से
असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म
की जीत का पर्व
दशहरा मनाया जाने लगा। नवरात्रि
के नौ दिनों में
आदिशक्ति माता दुर्गा के
उन नौ रूपों का
भी पूजन किया जाता
है जिन्होंने सृष्टि के आरम्भ से
लेकर अभी तक इस
पृथ्वी लोक पर विभिन्न
लीलाएं की थीं। माता
के इन नौ रूपों
को नवदुर्गा के नाम से
जाना जाता है। पौराणिक
कथानुसार प्राचीन काल में दुर्गम
नामक राक्षस ने कठोर तपस्या
कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न
कर लिया। उनसे वरदान लेने
के बाद उसने चारों
वेद व पुराणों को
कब्जे में लेकर कहीं
छिपा दिया। जिस कारण पूरे
संसार में वैदिक कर्म
बंद हो गया। इस
वजह से चारों ओर
घोर अकाल पड़ गया।
पेड़-पौधे व नदी-नाले सूखने लगे।
चारों ओर हाहाकार मच
गया। जीव जंतु मरने
लगे। सृष्टि का विनाश होने
लगा। सृष्टि को बचाने के
लिए देवताओं ने व्रत रखकर
नौ दिन तक माँ
जगदंबा की आराधना की
और माता से सृष्टि
को बचाने की विनती की।
तब मां भगवती व
असुर दुर्गम के बीच घमासान
युद्ध हुआ। माँ भगवती
ने दुर्गम का वध कर
देवताओं को निर्भय कर
दिया। तभी से नवदुर्गा
तथा नव व्रत का
शुभारंभ हुआ।
रात्रि जागरण फलदायी होता है
नवरात्र के समय रात्रि
जागरण अवश्य करना चाहिये और
यथा संभव रात्रिकाल में
ही पूजा हवन आदि
करना चाहिए। नवदुर्गा में कुमारिका यानि
कुमारी पूजन का विशेष
अर्थ एवं महत्व होता
है। कहीं-कहीं इन्हें
कन्या पूजन के नाम
से भी जाना जाता
है। जिसमें कन्या पूजन कर उन्हें
भोज प्रसाद दान उपहार आदि
से कुमारी कन्याओं की सेवा की
जाती है। इसमें मास
के शुक्लपक्ष कि प्रतिपद्रा से
लेकर नौं दिन तक
विधि पूर्वक व्रत करें। प्रातः
काल उठकर स्नान करके,
मन्दिर में जाकर या
घर पर ही नवरात्रों
में दुर्गाजी का ध्यान करके
कथा पढ़नी चहिए। यदि
दिन भर का व्रत
न कर सकें तो
एक समय का भोजन
करें। इस व्रत में
उपवास या फलाहार आदि
का कोई विशेष नियम
नहीं है। कन्याओं के
लिये यह व्रत विशेष
फलदायक है। कथा के
अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा
माता तेरी सदा जय
हो’ का उच्चारण करें।
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