घाटी में मां का ऐसा दरबार जहां रंग बदलता है कुंड
नमस्ते
शारदे
देवि
काश्मीरपुरवासिनि।
त्वामहं
प्रार्थये
नित्यं
विद्यादानं
च
देहि
मे।।
अर्थात,
’हे
काश्मीरपुर
में
निवास
करने
वाली
शारदा
देवी!
हे
माँ! तुम्हे नमस्कार
है।
मैं
नित्य
तुम्हारी
प्रार्थना
करता
हूँ।
मुझे
विद्या
(ज्ञान)
प्रदान
करो।’
कहते
है
प्राचीन
समय
में
एक
कश्मीरी
पुरोहित
को
माता
ने
सपने
में
बताया
कि
उनके
मंदिर
का
नाम
खीर
भवानी
ही
रखें.
शायद
इसी
वजह
से
हर
साल
पूजासे
पहले
मंदिर
के
कुंड
में
दूध
और
खीर
की
भेंट
चढ़ाई
जाती
है.
कहते
है
जब
किसी
अनहोनी
या
आपदा
का
प्रकोप
होने
वाला
होता
है
तो
कुंड
का
पानी
पहले
ही
खतरे
का
संकेत
देता
है।
कुंड
के
पानी
का
रंग
बदल
जाता
है।
यह
पानी
आमतौर
पर
हरा
गुलाबी
या
दूधिया
रहता
है,
लेकिन
मुसीबत
आने
पर
काला
हो
जाता
है।
2014 में
भी
कुंड
का
पानी
काला
हो
गया
था।
उस
वक्त
कश्मीर
में
बाढ़
आई
थी।
इसी
तरह
1947 और
1987 में
कुंड
का
पानी
सुर्ख
लाल
हो
गया
था।
इसके
बाद
ही
घाटी
पर
हमला
और
आतंक
का
साम्राज्य
स्थापित
हो
गया
था।
जब
करगिल
युद्ध
होने
वाला
था
तब
कुंड
का
पानी
लाल
हो
गया
था।
इतना
ही
नहीं,
जब
कश्मीर
से
आर्टिकल
370 हटाया
गया
था
तो
इसके
पानी
का
रंग
हरा
हो
गया
था।
कुंड
को
लेकर
मान्यता
है
कि
जब
कुंड
का
पानी
हरा
हो
जाता
है
तो
इसका
मतलब
है
कि
अब
कश्मीर
में
तरक्की
और
खुशहाली
आने
वाली
है
सुरेश गांधी
फिरहाल, भारत विश्व का
एकमात्र ऐसा देश है,
जहां विज्ञान से ज्यादा लोग
आज भी भगवान को
पूजते है। यहां कई
ऐसे धार्मिक स्थल है, जो
आपको भगवान और उनके शक्तियों
के होने का सबूत
देते हैं। कश्मीर में
स्थित माता खीर भवानी
का मंदिर भी कुछ ऐसा
ही है। यहां माता
रानी की कृपा उनके
भक्तों पर हमेशा बनी
रहती है। कश्मीर की
खूबसूरत वादियों के बीच स्थित
माता खीर भवानी का
विशेष महत्व है। जम्मू-कश्मीर
के श्रीनगर से 22 किमी दूर गांदेरबल
जनपद के तुलमुल गांव
में मां भवानी का
ऐसा मंदिर है, जहां का
कुंड रंग बदलता है।
यहां शिव और
शक्ति का ऐसा अद्भूत
संगम है, जो इसे
देखता है एकटक देखते
ही रह जाता है।
मां के इस मंदिर
को खीर भवानी के
नाम से जाना जाता
है। यह एक देवी
दुर्गा का मंदिर है।
देवी दुर्गा के इस मंदिर
में देवी की पूजा
उपासना मां रागनी के
रूप में होती है।
कश्मीरी पंडित इस मंदिर को
अपना कुलदेवी व विद्या की
देवी मानते है। खास यह
है कि मंदिर एक
झरने के बीच में
है, इसके चारों तरफ
एक विशाल और आकर्षक पत्थर
है।
कहते है लंका
नरेश एवं भगवान शिव
के भक्त रावण इस
देवी का भी बड़ा
भक्त था। उसके पूजन
व भक्ति से हमेशा ही
प्रसन्न रहती थीं। लेकिन
जब रावण ने माता
सीता का हरण किया
तब देवी उससे रुष्ट
हो गईं और अपना
स्थान ही त्याग दिया।
देवी ने हनुमानजी से
मूर्ति को लंका से
उठाकर किसी अन्य स्थान
पर स्थापित करने को कहा,
देवी की आज्ञा का
पालन करते हुए हनुमान
जी ने मूर्ति को
कश्मीर में स्थापित कर
दिया, तभी से माता
का स्थान कश्मीर हो गया और
नियमित रूप से माता
के भक्त यहां पर
उनकी पूजा-आराधना करते
आ रहे हैं।
महाराजा प्रताप सिंह ने साल
1912 में मंदिर का पुनर्रोद्दार करवाया
था, बाद में महाराज
हरि सिंह ने दिव्य
एवं भव्य मंदिर को
रुप दे दिया। हर
साल ज्येष्ठ माह की अष्टमी
तिथि को यहां पर
एक भव्य मेले का
आयोजन किया जाता है।
कश्मीरी हिंदू यहां पर रोज
देवी की पूजा करते
हुए अपनी रक्षा की
प्रार्थना करते हैं। देवी
दुर्गा के इस मंदिर
का नाम खीर भवानी
इसलिए प्रचलित हुआ, क्योंकि माता
को विशेष रूप से खीर
का भोग लगाया जाता
है।
वसंत के मौसम
में खीर चढ़ाई जाती
है। घाटी के लोग
इस मंदिर को महारज्ञा देवी,
राज्ञा देवी मंदिर, रजनी
देवी मंदिर और राज्ञा भवानी
मंदिर के नाम से
भी पुकारते हैं। घाटी में
अमरनाथ यात्रा के बाद खीर
भवानी मंदिर की सबसे ज्यादा
मान्यता है. यहां लोग
सुदूर क्षेत्रों से दर्शन करने
पहुंचते हैं। मंदिर के
भक्त बताते हैं की मां
भवानी के पवित्र कुंड
में हर सुबह कभी
दीप, कभी चंद्र, कभी
सर्प तो कभी मां
गौरी की आकृति पानी
में अपने आप बनती
है। कुंड के इस
रहस्य से वैज्ञानिक भी
हैरान है।
मंदिर के पुजारी दीपू
शास्त्री बताते हैं कि मंदिर
की मान्यता माता के 51 शक्ति
पीठों में होती है।
मां भवानी को लोग उमा
देवी, महारज्ञा देवी, राज्ञा देवी और राज्ञा
भवानी नाम से भी
बुलाते हैं। मंदिर के
सचिव दर्शन सिंह बताते हैं
कि नवरात्र पर मंदिर को
विशेष रूप से सजाया
गया है। कलश स्थापना
के साथ ही हर
दिन माता की विशिष्ट
पूजा होती है। अष्टमी
में दिन विशेष पूजा-अर्चना के साथ कंजक
पूजन होता है। इस
बार घाटी में बहुत
अच्छा माहौल है तो नवरात्र
को लेकर उत्साह है।
मुख्य द्वार पर स्थानीय मुसलमान भक्तों के लिए प्रसाद तैयार करते हैं जिसे वे मंदिर के अंदर माता को चढ़ाते हैं. यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां इस तरह का भाईचारा देखने को मिलता है. स्थानीय दुकानदार मोहम्मद असलम ने कहा कि इस मेले का इंतज़ार साल भर रहता है जब हमारे पंडित भाई यहाँ आते हैं, हम उनके लिए प्रसाद की सारी सामग्री यहाँ रखते हैं जो कुछ उन्हें चाहिए पूजा के लिए वो यहाँ मिलता है” असलम ने आगे कहा हमारा कारोबार भी चलाता है मगर इनकी आस्था में शामिल होना संतुष्टि भी देता है”। श्रद्धालु किरण वाताल ने कहा यहां 12 सालों से आता हूं। यहाँ लंगर भी लगता हूं। मगर इस बार व्यवस्था बहुत अच्छी है ऐसा पहले देखने को नहीं मिलता है। हम एलजी और सभी अधिकारियों का शुक्रिया करते हैं खाने पीने से लेकर सुरक्षा तक हर चीज़ का आछे से ध्यान रखा गया है.”
मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य आकर्षण पवित्र झरना है, जिस पर मंदिर स्थित है. श्रद्धालुओं का मानना है कि झरने के पानी का रंग भविष्य के बारे में भविष्यवाणी करता है. अगर इस पवित्र झरने का रंग लाल या काला हो जाता है, तो दुनिया भर में मानवता के साथ कुछ बुरा होने वाला है, लेकिन अगर इसका रंग हल्का नीला या सफेद है, तो यह भविष्यवाणी करता है कि वह साल खुशियों और अच्छी घटनाओं से भरा होगा. और इस साल इसका रंग हल्का नीला है.श्रद्धालु रीना पंडिता ने
भी कहा कि यह
चमत्कारी मंदिर है कश्मीरी पंडितों
के का यह सब
से बड़ा तीरथ स्थल
है यह हमारी कुलदेवी
है. इस का कुंड
आनेवाले के बारे में
चेतावनी देता है लेकिन
आज इसका रंग यह
दर्शाता है कि अच्छा
समय आने वाला है.”
जम्मू में चार आतंकी
हमलों के बावजूद इस
साल पिछले साल के मुकाबले
श्रद्धालुओं की भारी भीड़
देखी गई. सभी ने
प्रशासन द्वारा किए गए सुरक्षा
इंतजामों की तारीफ की.
मंदिर और उसके आसपास की सुरक्षा के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस, सेना, सीआरपीएफ और एसएसबी को तैनात किया गया है. निगरानी रखने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया गया, ड्रोन, सीसीटीवी कैमरे, तलाशी के लिए एक्स-रे मोबाइल वैन मंदिर के सभी दरवाजों पर रखी गई.
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