’परे भूमि नहिं उठत उठाए, बर करि कृपासिंधु उर लाए‘
काशी की नाटी इमली भरत मिलाप देखने को उमड़ा आस्थावानों का सैलाब
चारों भाईयों
के
गले
मिलते
ही
नम
हुई
हर
आंखें,
धूमधाम
से
हुआ
राजतिलक
नाटी इमली
मैदान
में
राम,
लक्ष्मण,
भरत
और
शत्रुघ्न
की
उतारी
गई
आरती
रथ को
खींचने
को
मची
रही
होड़
युवा काफी उत्साहित दिखे सभी रथ के साथ अपनी तसवीर खींच रहे थे
सुरेश गांधी
वाराणसी। ’परे भूमि नहिं
उठत उठाए, बर करि कृपासिंधु
उर लाए। स्यामल गात
रोम भए ठाढ़े, नव
राजीव नयन जल बाढ़े‘।। कहते है
इस दिन जब सूरज
डूबता है तब भगवान
का अंश यहां के
राम लक्ष्मण में आ जाता
है। खासियत यह है कि
यहां बनने वाले राम,
लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न
सप्ताहभर पहले से अन्न
सहित अन्य भोग विलासता
वाली वस्तुओं का त्याग कर
देते है। गंगा स्नान,
पूजा-पाठ व फल
आदि का ही सेवन
करते है। कुछ ऐसे
ही परंपरा के बीच रविवार
को धर्म एवं आस्था
की नगरी काशी में
विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली के
भरत मिलाप का मंचन बड़े
ही धूमधाम से किया गया।
आंखों में काजल, माथे पर चंदन, सिर पर लाल पगड़ी में सज-धज युवाओं के बीच गोधूली बेला में जब भगवान राम, लक्ष्ण, भरत व शत्रुघ्न आपस में गले मिले तो इस मनोरम दृश्य देख लोगों की आंखे भर आई। राजा रामचंद्र समेत चारों भाईयों के जयकारे से पूरा परिसर गूंजायमान हो गया।
चारों भाईयों के इस पांच मिनट की अलौकिक व मनोरम दृश्य को निहारने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा था। क्या गलियां, क्या दीवारें, क्या घर, क्या छत। जिधर नजर जा रही थी, उधर आस्थावानों का रेला ही रेला। हर तरफ ठसाठस। घंटों इंतजार, मगर क्या मजाल कि कोई किसी को उसके स्थान से इंच भर भी डिगा दे। इस मौके पर हाथी पर सवार काशी नरेश के वंशज कुंवर अनन्त नारायण सिंह के हाथों लीला का शुभारंभ किया गया। प्रभु श्रीराम का रथ खीचने वाले बंधुओं द्वारा जयश्रीराम जयश्रीराम का उद्घोष पूरे वातावरण को भक्तिरस से सराबोर हो गया। आसपास के घरों की छतों से फूलों की वर्षा होती रही। मैदान में भरत मिलाप एवं राम के राजतिलक प्रसंग की प्रस्तुति दी गई। और जब आया भगवान श्रीराम व भाई भरत के मिलाप का नयनाभिराम दृश्य, भीग उठीं हर किसी की पलकें। श्रीरामचंद्र का जयकारा और आस्था इस कदर परवान चढ़ी पूरा वातावरण भक्तिरस में सराबोर हो गया।
यह लीला लगभग 481 वर्ष पुरानी है। लीला के शुभारंभ के दौरान श्रीराम को महाराज अनंत नारायण सिंह ने सोने की गिन्नी सौंपी। यह दृश्य तब देखने को मिला जब महाराज ने गज पर सवार होकर लॉग पुष्पक विमान की फेरी लगाई। श्रीराम को गिन्नी सौंपी। भगवान को गिन्नी देने की परम्परा बरसों से चली आ रही है। इस दौरान भव्य चारों भाईयों की शोभायात्रा निकाली गई। रथ पर सवार राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, भरत, शत्रुघ्न समेत अन्य देवी-देवताओं का जगह-जगह स्वागत किया गया। लोगों ने शोभायात्रा में शामिल चारों भाईयों को भगवान की प्रतिमूर्ति मानकर उन्हें नमन किया।
मान्यता है कि प्रभु श्रीराम के चैदह वर्ष वनवास काटने व लंका पर अपनी विजय पताका लहराने के बाद जब अयोध्या की ओर आगमन होते हैं तो इसकी सूचना मिलने पर उनके अनुज भरत उनके दर्शन को पाने के लिए एक संकल्प लेते है कि अगर गोधुली बेला तक प्रभु के दर्शन ना हुए तो वह अपने प्राण त्याग देंगे, लेकिन लीलाधारी प्रभु श्रीराम गोधुली बेला तक भरत के सामने उपस्थित हो जाते हैं। उन्हें देख भरत उनके पैरों में गिर जाते हैं जिस पर श्रीराम उन्हें गले से लगा लेते हैं।बता दें, श्रीचित्रकूट
रामलील समिति की ओर से
होने वाले इस विश्वप्रसिद्ध
आयोजन का 481वां वर्ष है।
इस आयोजन में काशीराज परिवार
के अनंत नारायण सिंह
परंपरानुसार हाथी पर सवार
होकर शामिल होते हैं। इसके
बाद जिला प्रशासन के
लोगों ने हाथी पर
सवाल अनंत नारायण सिंह
को सलामी दी। इसके पहले
भगवान श्रीराम के पांच टन
वजनी पुष्पक विमान को उठाने के
लिए यादव बंधु परी
सिद्दत से जटे रहे।
हर साल काशी और
काशी की जनता यदुकुल
के कंधे पर रघुकुल
के मिलन की साक्षी
बनती है। नाटी इमली
के भरत मिलाप की
कहानी मेघा और तुलसी
के अनुष्ठान से आरंभ हुई।
संकट मोदचन मंदिर के महंत पं. विश्वंभरनाथ मिश्र द्वारा पांच टन के वजनी पुष्पक विमान का वैदिक मंत्रोचार के बीच पूजन किया गया। चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पं. मुकुंद उपाध्याय बताते हैं कि 480 साल पहले रामभक्त मेघा भगत को प्रभु के सपने में हुए थे। सपने में प्रभु के दर्शन के बाद ही रामलीला और भरत मिलाप का आयोजन किया जाने लगा।
आज भी
ऐसी मान्यता है कि कुछ
पल के लिए प्रभु
श्रीराम के दर्शन होते
हैं। यही वजह है
कि महज कुछ मिनट
के भरत मिलाप को
देखने के लिए हजारों
की भीड़ यहां हर
साल जुटती है। बनारस के
यादव बंधुओं का इतिहास तुलसीदास
के काल से जुड़ा
हुआ है।
तुलसीदास ने बनारस के
गंगा घाट किनारे रह
कर रामचरितमानस तो लिख दी,
लेकिन उस दौर में
श्रीरामचरितमानस जन-जन के
बीच तक कैसे पहुंचे
ये बड़ा सवाल था।
लिहाजा प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा
तुलसी के समकालीन गुरु
भाई मेघाभगत ने उठाया। जाति
के अहीर मेघाभगत विशेश्वरगंज
स्थित फुटे हनुमान मंदिर
के रहने वाले थे।
सर्वप्रथम उन्होंने ही काशी में
रामलीला मंचन की शुरुआत
की। लाटभैरव और चित्रकूट की
रामलीला तुलसी के दौर से
ही चली आ रही
है।
मची भगदड़
भरत मिलाप के पूर्व पुष्पक विमान का गेट खोलने के दौरान भगदड़ मच गई। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी। इस दौरान कुछ लोगों को हल्की चोटें भी आईं। आयोजन शुरू होने से पहले स्थिति पर काबू पा लिया गया था। इस मौके पर जिलाधिकारी एस राजलिंगम, अपर पुलिस आयुक्त चनप्पा, पं. विश्वंभरनाथ मिश्र, अंबरीश सिंह भोला, आयुश जायसवाल आदि मौजद रहे।
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