मझवां : बिछी राजनीतिक बिसात, सुचिस्मिता,
ज्योति व दीपक में होगी टक्कर
2017 के विधानसभा चुनाव
में
इस
सीट
से
बसपा
के
रमेश
बिंद
को
सुचिस्मिता
मौर्या
ने
41159 मतों
से
हराया
था
सुचिस्मिता मौर्य
इस
सीट
से
वर्ष
2017 से
2022 तक
विधायक
रहीं
सभी सियासी
दल
चुनाव
में
जीत
का
दावा
कर
रहे
हैं
इस सीट
पर
पिछड़ा
वर्ग,
दलित,
ब्राह्मण
और
बिंद
मतदाताओं
का
प्रभुत्व
है
सुरेश गांधी
वाराणसी। मझवां विधानसभा सीट पर होने
जा रहे उपचुनाव के
लिए राजनीति बिसात बिछ चुकी है।
भाजपा ने इस सीट
से मैदान मारने के लिए सुचिस्मिता
मौर्या को मैदान में
उतारा है। सपा ने
पूर्व सांसद रमेश बिंद की
पुत्री ज्योति को अपना उम्मींदवार
बनाया है। जबकि बसपा
से दीपक तिवारी मैदान
में है। बता दें,
2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट
से बसपा के रमेश
बिंद को सुचिस्मिता मौर्या
ने 41159 मतों से हराया
था। इसके बाद 2019 के
आम चुनाव में रमेश बिंद
भाजपा के टिकट पर
भदोही से सांसद बन
गए, लेकिन 2024 के आम चुनाव
में उनको टिकट नहीं
मिला और वे सपा
से मिर्जापुर से लोकसभा चुनाव
लड़े, लेकिन अनुप्रिया पटेल से हार
गए। एक बार फिर
इसी विधानसभा क्षेत्र से उनकी पुत्री
का सामना भाजपा की सुचिस्मिता मौर्य
से हैं।
मझवां विधानसभा सीट को लेकर
होने वाले उपचुनाव के
लिए आखिरकार भाजपा ने गुरुवार को
अपने पत्ते खोल दिए। भाजपा
ने इसी सीट के
लिए एक बार फिर
पूर्व विधायक सुचिस्मिता मौर्या पर भरोसा जताया
है और उनको अपना
उम्मीदवार बनाया है। कहा जा
रहा है कि विपक्ष
में महिला उम्मीदवार व राजनीति में
लगातार सक्रियता के चलते ही
पार्टी की वह पसंद
बनीं। सुचिस्मिता मौर्य इस सीट से
वर्ष 2017 से 2022 तक विधायक रहीं।
2022 के विधानसभा चुनाव में उनको टिकट
नहीं मिला और यह
सीट भाजपा की सहयोगी पार्टी
निषाद पार्टी के डॉ. विनोद
बिंद को दे दी
गई। विनोद बिंद चुनाव जीते।
लेकिन उसके बाद वह
2024 के आम चुनाव में
भदोही सीट से लोकसभा
का चुनाव लड़े और जीत
गए। उनके सांसद बनने
के बाद मझवां सीट
रिक्त हो गई। इस
पर भी निषाद पार्टी
की उम्मीदवारी का कयास लगाया
जा रहा था, लेकिन
भाजपा ने सुचिस्मिता मौर्य
को अपना उम्मीदवार घोषित
कर दिया। सुचिस्मिता उद्योगपति व पूर्व विधायक
स्व. रामचंद मौर्य की पुत्रवधू हैं।
वह एमबीए की हुई हैं
और राजनीति में खासा दखल
रखती हैं। उनका कालीन
का व्यवसाय है।
भाजपा, सपा व बसपा
प्रत्याशी घोषित होने के बाद
मझवां विधानसभा में चुनावी सरगर्मियां
तेज हो गई हैं.
सभी सियासी दल चुनाव में
जीत का दावा कर
रहे हैं. इस सीट
पर पिछड़ा वर्ग, दलित, ब्राह्मण और बिंद मतदाताओं
का प्रभुत्व है। जातीय समीकरण
की बात की जाए
तो इस सीट पर
दलित, ब्राह्मण, बिंद वोटरों की
संख्या करीब 60-60 हजार है। इनके
अलावा कुशवाहा वोटर 30 हजार, पाल 22 हजार, राजपूत 20 हजार, मुस्लिम 22 हजार, पटेल 16 हजार हैं। 1960 में
अस्तित्व में आई इस
सीट पर ब्राह्मण, दलित
और बिंद बिरादरी का
बर्चस्व है। मिर्जापुर लोकसभा
सीट के तहत यह
सीट आती है। मिर्जापुर
से लगातार तीसरी बार अपना दल
एस प्रमुख अनुप्रिया पटेल सांसद बनी
हैं। मझवां विधानसभा सीट कई दिग्गजों
का राजनीतिक अखाड़ा रह चुका है।
लोकपति त्रिपाठी भी यहां से
विधायक चुने जा चुके
हैं। साल 1952 में मझवां विधानसभा
सीट अस्तित्व में आया था।
क्षेत्र में ब्राह्मण और
बिंद बिरादरी का ज्यादा दबदबा
रहा है। 2002 से लगातार तीन
बार इस सीट पर
रमेश बिंद का कब्जा
था। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव
में भाजपा की सुचिस्मिता मौर्य
ने रमेश बिंद को
हरा दिया था।
मझवां सीट बहुत लंबे
समय तक रिजर्व सीट
रही थी, लेकिन 1974 में
यह सामान्य सीट हो गई।
1952 में कांग्रेस के बेचन राम,
1957 में कांग्रेस के बेचन राम,
1960 में कांग्रेस के बेचन राम,
1962 में भारतीय जनसंघ के राम किशुन,
1967 में कांग्रेस के बेचन राम,
1969 में कांग्रेस के बेचन राम,
1974 में कांग्रेस के रुद्र प्रसाद
सिंह, 1977 संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिवदास, 1980 में
कांग्रेस के लोकपति त्रिपाठी
चुनाव जीते थे। 1985 में
कांग्रेस के लोकपति त्रिपाठी,
1989 में जनता दल के
रुद्र प्रसाद, 1991 में बसपा के
भागवत पाल, 1993 में बसपा के
भागवतपाल, 1996 में भाजपा के
रामचंद्र, 2002 में बसपा के
डॉक्टर रमेश चंद बिंद,
2007 में बसपा के रमेश
चंद बिंद, 2012 में बसपा के
रमेश चंद बिंद, 2017 में
भाजपा के टिकट पर
सुचिष्मिता मौर्य ने चुनाव जीता,
2022 में निषाद पार्टी के विनोद बिंद
ने चुनाव जीता।
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