दाम्पत्य जीवन को मधुरतम बनाने का दिन ‘‘श्रीराम विवाह पंचमी’’
भारतीय
संस्कृति
में
श्रीराम-सीता
आदर्श
दंपति
के
रूप
में
सर्वस्वीकार्य
हैं।
श्रीराम
ने
जहां
मर्यादा
का
पालन
करके
आदर्श
पति
और
मर्यादा
पुरुषोत्तम
कहलाएं
वहीं
माता
सीता
ने
सारे
संसार
के
समक्ष
अपनी
पतिव्रता
का
अनोखा
उदाहरण
प्रस्तुत
करके
हर
कामकाजी
नारी
या
गृहस्थ
स्त्री
के
लिए
आर्दश
और
प्रेरणास्रोत
बनी।
सनातन
के
अनुसार
मार्गशीर्ष
अर्थात
अगहन
मास
की
शुक्ल
पक्ष
की
पंचमी
को
भगवान
श्रीराम
तथा
जनकपुत्री
जानकी
(सीता)
का
विवाह
हुआ
था।
इसीलिए
मार्गशीर्ष
की
शुक्ल
पक्ष
की
पंचमी
को
विवाह
पंचमी
कहा
जाता
है।
सदियों
से
इस
तिथि
को
विवाह
पंचमी
पर्व’
के
रूप
में
मनाये
जाने
की
परम्परा
आज
भी
कायम
है।
इस
दिन
भारत
में
विभिन्न
स्थानों
पर
विवाह
पंचमी
का
पर्व
बड़े
ही
धूमधाम
से
मनाया
जाता
है।
मर्यादा
पुरुषोत्तम
श्रीराम-सीता
के
शुभ
विवाह
के
कारण
ही
विवाह
पंचमी
का
दिन
अत्यंत
पवित्र
माना
जाता
है।
इस
पावन
दिन
सभी
दंपतियों
को
श्रीराम-सीता
से
प्रेरणा
लेकर
अपने
दांपत्य
को
मधुरतम
बनाने
का
संकल्प
करना
चाहिए।
इस
वर्ष
विवाह
पंचमी
तिथि
की
शुरुआत
5 दिसंबर
को
दोपहर
12 बजकर
49 मिनट
पर
हो
जाएगी।
जबकि
समापन
6 दिसंबर
को
दोपहर
12 बजकर
07 मिनट
पर
होगा।
उदयातिथि
के
अनुसार
विवाह
पंचमी
का
त्योहार
06 दिसंबर
को
मनाया
जायेगा।
विवाह
पंचमी
के
दिन
विशेष
मुहूर्तों
का
महत्व
है।
ब्रह्म
मुहूर्त
सुबह
05ः12
से
06ः06
तक
रहेगा,
जो
आध्यात्मिक
क्रियाओं
और
पूजा
के
लिए
सर्वोत्तम
समय
है।
विजय
मुहूर्त
दोपहर
01ः56
से
02ः38
तक
का
है।
गोधूलि
मुहूर्त
शाम
05ः21
से
05ः49
तक
रहेगा,
जो
पूजा
और
ध्यान
के
लिए
सही
समय
है।
अमृत
काल
सुबह
06ः38
से
08ः12
तक
रहेगा।
इस
साल
विवाह
पंचमी
के
दिन
दो
शुभ
योग
बन
रहे
हैं.
पहला
सर्वार्थ
सिद्धि
योग
और
दूसरा
रवि
योग
बन
रहा
है.
उस
दिन
सर्वार्थ
सिद्धि
योग
सुबह
में
07ः00
बजे
से
लेकर
शाम
5 बजकर
18 मिनट
तक
है.
पंचमी
को
शाम
5 बजकर
18 मिनट
से
रवि
योग
भी
बन
रहा
है,
जो
अगले
दिन
7 दिसंबर
को
सुबह
7 बजकर
1 मिनट
तक
है.
इनके
अलावा
ध्रुव
योग
प्रातःकाल
से
लेकर
सुबह
10 बजकर
43 मिनट
तक
रहेगा.
फिर
व्याघात
योग
बनेगा.
विवाह
पंचमी
को
प्रातःकाल
से
श्रवण
नक्षत्र
है,
तो
शाम
को
5 बजकर
18 मिनट
तक
रहेगा.
उसके
बाद
से
धनिष्ठा
नक्षत्र
है
सुरेश गांधी
राम और सीता की महत्ता को देखते हुए इनके सम्मान में ही विवाह पंचमी का शुभ मांगलिक पर्व मनाया जाता है। श्रीराम विवाह पंचमी अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी बांकेबिहारी के प्रकट होने की तिथि भी है। रामायण के अनुसार त्रेता युग में सीता-राम का विवाह इसी दिन हुआ माना जाता है। मिथिलाचंल और अयोध्या तथा भारत में यह तिथि विवाह पंचमी के नाम से प्रसिद्ध है। रामायण व पुराण आदि ग्रन्थों के अनुसार, राम विवाह के दिन ही राम सहित चारो भाई का विवाह हुआ था। पौराणिक ग्रन्थ भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि मार्गशीर्ष अर्थात अगहन माह, शुक्ल पक्ष की पंचमी की इस तिथि को भगवान राम ने जनक नंदिनी सीता से विवाह किया था। जिसका वर्णन श्रीरामचरितमानस में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने बड़ी ही सुंदरता से किया है।
तुलसीदास ने रामचरित मानस
में कहा है, श्रीराम
ने विवाह द्वारा मन के तीनों
विकारों काम, क्रोध और
लोभ से उत्पन्न समस्याओं
का समाधान प्रस्तुत किया गया है।
विवाह पंचमी के अवसर पर
विशेष रूप से मिथिला
क्षेत्र में उत्सव मनाए
जाते हैं, जहां बड़े
धूमधाम से राम और
सीता के विवाह की
कथा का श्रवण किया
जाता है। इस दिन
व्रत, पूजा और वाचन
से भक्तजन अपने जीवन में
सुख, समृद्धि और पारिवारिक खुशियों
की कामना करते हैं। विवाह
पंचमी का त्यौहार न
केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है,
बल्कि यह सामाजिक और
सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्धि
का प्रतीक है। विवाह पंचमी
के दिन पूजा विधि
का पालन बड़े श्रद्धा
भाव से किया जाता
है। सुबह स्नान के
बाद सबसे पहले मंदिर
की साफ-सफाई करें
और सूर्य देव को अर्घ्य
अर्पित करें। इसके बाद घर
और मंदिर को गंगाजल से
शुद्ध करें। पूजा की चौकी
पर सफेद कपड़ा बिछाकर
भगवान श्रीराम और माता सीता
की मूर्ति स्थापित करें। भगवान राम व माता
सीता को सुंदर वस्त्र
और आभूषण पहनाकर फूलों की माला अर्पित
करें। देसी घी का
दीपक जलाकर आरती करें और
मंत्रों का जाप करें।
व्रत कथा का पाठ
करें, फिर फल, दूध,
दही, मिठाई समेत अन्य सामग्री
का भोग लगाएं, जिसमें
तुलसी पत्र का होना
जरूरी है।
पूजा के बाद
भजन-कीर्तन करें और प्रसाद
का वितरण करें। मान्यता है कि इस
कार्य को करने से
साधक को विशेष फल
की प्राप्ति होती है और
घर में सुख-शांति
का वास रहता है।
इसके अलावा इस दिन श्रीराम
विवाह का आयोजन भी
किया जाता है, जिससे
जीवन खुशहाल होता है। भगवान
श्रीराम और माता जानकी
का विवाह ब्राह्म विवाह कहलाता है। ऐसा कहा
जाता है कि जानकी
जी श्रीराम से 9 साल छोटी
थीं। उन्होंने हमेशा राम का अनुसरण
किया और उनसे कदम
से कदम मिला कर
चलीं। हमारी मर्यादा और शास्त्रों में
श्रीराम और जानकी की
जोड़ी को आदर्श माना
गया है। लोग वर-वधू को आशीर्वाद
देते समय यही कहते
हैं कि सीता-राम
के समान एक रहो।
शुभ मुहूर्त
विवाह पंचमी के दिन ब्रह्म
मुहूर्त प्रातःकाल 5 बजकर 12 मिनट से सुबह
6 बजकर 6 मिनट तक है.
इस समय आप स्नान-दान आदि कर
सकते हैं. इस दिन
का शुभ मुहूर्त या
अभिजीत मुहूर्त सुबह में 11 बजकर
51 मिनट से दोपहर 12 बजकर
33 मिनट तक है. विजय
मुहूर्त दोपहर में 1 बजकर 56 मिनट से दोपहर
2 बजकर 38 मिनट तक है.
पंचमी तिथि वाले दिन
पंचक लग रहा है.
7 दिसंबर को पंचक सुबह
5 बजकर 7 मिनट से लगेगा
और सुबह 7 बजकर 1 मिनट पर खत्म
हो जाएगा.
विवाह पंचमी पर नहीं होते विवाह
लोक मान्यताओं के
अनुसार, विवाह पंचमी के दिन शादी
नहीं करते हैं. इस
तिथि को भगवान राम
और माता सीता का
विवाह हुआ था, लेकिन
उनका जीवन कष्ट और
संघर्षों से भरा हुआ
था. इस वजह से
लोग विवाह पंचमी के दिन शादी
नहीं करते हैं.रण
करें। इस दिन भगवान
श्रीराम और मां सीता
की पूजा अर्चना करने
से विशेष लाभ प्राप्त होते
हैं. जीवन में सुख
और समृद्धि की प्राप्ति होती
है. ज्योतिषाचार्यो का कहना है
कि विवाह पंचमी पर माता जानकी
को सुहाग सामग्री अर्पित करें. किसी ब्राह्मण महिला
को दान देने से
भी शादी में आ
रही रुकावटें दूर हो जाएंगी.
लड़का या लड़की के
लिए रिश्तों की लाइन लग
जाएगी. इस दिन किए
गए धार्मिक कार्य, राम-सीता का
विवाह अनुष्ठान वैवाहिक जीवन के तमाम
कष्टों का नाश करता
है. तुलसीदास जी रचित श्री
रामचरितमानस की सिद्ध चौपाइयों
का जाप करने पर
साधक को मनचाहे फल
की प्राप्ति होती है. श्रीराम
जानकी का विवाह हिंदू
धर्म में विशेष महत्व
का दिन होने के
कारण यह एक शुभ
तिथि है और इस
दिन अनेक धार्मिक आयोजन
होते हैं। फिर भी
हैरतनाक बात यह है
कि कुछ स्थानों पर
लोग इस दिन विवाह
नहीं करते। विशेषतः मिथिला के लोग विवाह
पंचमी के दिन अपनी
बेटियों की शादी विवाह
पंचमी के दिन नहीं
करते। मान्यता है कि भगवान
श्रीराम और सीताजी के
विवाह के बाद उन्हें
वनवास हुआ और अनेक
कष्ट सहन करने पड़े।
सीताजी का हरण हुआ
और इसके पश्चात हुए
युद्ध में अनेक लोग
मारे गए। स्वयं श्रीराम
के भाई लक्ष्मण भी
शक्तिबाण लगने से मूर्छित
हो गए थे। युद्ध
के पश्चात वे अयोध्या आए
लेकिन सीता को एक
बार फिर वनवास जाना
पड़ा। इसलिए मिथिला सहित देश के
विभिन्न स्थानों पर लोग विवाह
पंचमी को अपनी कन्याओं
की शादी नहीं करना
चाहते। संभवतः उनके मन में
सीता के कष्टों जैसी
आशंका होती है। चूँकि
सीता का संपूर्ण जीवन
कष्टों से भरा था,
इसलिए इन स्थानों पर
लोग रामचरित मानस का पाठ
भी श्रीराम-जानकी विवाह तक ही करते
हैं और वहीं से
पाठ का समापन कर
देते हैं। इसके पीछे
मान्यता है कि आगे
सीताजी को कष्टों का
सामना करना पड़ा, अतः
राम-जानकी विवाह जैसे शुभ प्रसंग
के साथ ही पाठ
संपूर्ण कर दिया जाता
है।भृगु संहिता में विवाह पंचमी
के दिन को विवाह
के लिए अबूझ मुहूर्त
के रूप में बताया
गया है। इसके बावजूद
लोग इस दिन अपनी
बेटियों की शादी करना
पसंद नहीं करते। इसके
पीछे उनकी धारणा यह
है कि इस दिन
विवाह होने से की
वजह से ही देवी
सीता और भगवान राम
को वैवाहिक जीवन का पूर्ण
सुख नहीं मिला था।
पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यतानुसार राम एवम सीता
भगवान विष्णु एवम लक्ष्मी माता
के रूप थे जिन्होंने
पृथ्वी लोक पर राजा
दशरथ के पुत्र एवम
राजा जनक की पुत्री
के रूप में जन्म
लिया था। वैसे पुराणों
व वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक
बार जब राजा जनक
यज्ञ की भूमि तैयार
करने के लिए हल
से भूमि जोत रहे
थे, उसी समय उन्हें
भूमि से एक कन्या
प्राप्त हुई। जोती हुई
भूमि को तथा हल
की नोक को सीता
कहते हैं। इसलिए इस
बालिका का नाम सीता
रखा गया। वाल्मीकि रामायण
के एक प्रसंग के
अनुसार एक बार रावण
अपने पुष्पक विमान से कहीं जा
रहा था, तभी उसे
एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम
वेदवती था। वह भगवान
विष्णु को पति रूप
में पाने के लिए
तपस्या कर रही थी।
रावण ने उसके बाल
पकड़े और अपने साथ
चलने को कहा। उस
तपस्विनी ने रावण को
श्राप दिया कि एक
स्त्री के कारण ही
तेरी मृत्यु होगी, इतना कहकर वह
अग्नि में समा गई।
उसी स्त्री ने दूसरे जन्म
में सीता के रूप
में जन्म लिया। रामायण
की कथानुसार त्रेता युग में मिथिला
नरेश जनक के राज्य
में जब अकाल पड़ा
तो उसके निवारण के
लिए जनक ऋषि-मुनियों
के पास गए। उनके
सुझाव पर जनक ने
भूमि को जोतना शुरू
किया। हल जोतते हुए
हल का अग्र भाग
किसी वस्तु से टकराया और
वहीं रुक गया। जब
जनक ने मिट्टी हटाकर
देखा तो उन्हें एक
कन्या मिली। राजा ने उसे
अपनी पुत्री स्वीकार किया। नाम रखा सीता,
जिन्हें वैदेही और जानकी भी
कहा गया। राजा जनक
शिवधनुष की पूजा करते
थे। सीता के कुछ
बड़ी होने पर एक
दिन उन्होंने देखा कि जानकी
ने शिव के धनुष
को हाथ में उठा
लिया है। राजा जनक
ने प्रतिज्ञा की कि जो
शिवधनुष तोड़ेगा जानकी का विवाह उसी
के साथ होगा। सीता
के स्वयंवर में जब कोई
धनुष को उठा भी
नहीं पाया तब श्रीराम
ने धनुष पर प्रत्यंचा
चढ़ाने का प्रयास किया
और वह टूट गया।
इस तरह राम और
सीता का विवाह हुआ।
श्रीरामचरितमानस के अनुसार महाराजा
जनक ने सीता के
विवाह हेतु स्वयंवर रचाया।
सीता के स्वयंवर में
आए सभी राजा-महाराजाओं
के द्वारा भगवान शिव का धनुष
नहीं उठाये जा सकने के
कारण ऋषि विश्वामित्र ने
प्रभु श्रीराम से आज्ञा देते
हुए कहा, हे राम!
उठो, शिवजी का धनुष तोड़ो
और जनक का संताप
मिटाओ। गुरु विश्वामित्र के
वचन सुनकर श्रीराम तत्पर उठे और धनुष
पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए आगे
बढ़ें। यह दृश्य देखकर
सीता के मन में
उल्लास छा गया। प्रभु
की ओर देखकर सीताजी
ने मन ही मन
निश्चय किया कि यह
शरीर इन्हीं का होकर रहेगा
या तो रहेगा ही
नहीं। सीता के मन
की बात प्रभु श्रीराम
जान गए और उन्होंने
देखते ही देखते भगवान
शिव का महान धनुष
उठाया। इसके बाद उस
पर प्रत्यंचा चढ़ाते ही एक भयंकर
ध्वनि के साथ धनुष
टूट गया। यह देखकर
सीता के मन को
संतोष हुआ।फिर सीता श्रीराम के
निकट आईं। सखियों के
बीच में जनकपुत्री सीता
ऐसी शोभित हो रही थी,
जैसे बहुत-सी छवियों
के बीच में महाछवि
हो। तब एक सखी
ने सीता से जयमाला
पहनाने को कहा। उस
समय उनके हाथ ऐसे
सुशोभित हो रहे थे,
मानो डंडियों सहित दो- दो
कमल चंद्रमा को डरते हुए
जयमाला दे रहे हो।
सखी के कहने पर
सीता ने श्रीराम के
गले में जयमाला पहना
दी। यह दृश्य देखकर
देवता फूल बरसाने लगे।
नगर और आकाश में
बाजे बजने लगे। श्रीराम-सीता की जोड़ी
इस प्रकार सुशोभित हो रही थी,
मानो सुंदरता और श्रृंगार रस
एकत्र हो गए हो।
पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग में
यश फैल गया कि
श्रीराम ने धनुष तोड़
दिया और सीताजी का
वरण कर लिया। इसी
के मद्देनजर प्रतिवर्ष अगहन मास की
शुक्ल पंचमी को प्रमुख राम
मंदिरों में विशेष उत्सव
मनाया जाता है। मर्यादा
पुरुषोत्तम श्रीराम-सीता के शुभ
विवाह के कारण ही
यह दिन अत्यंत पवित्र
माना जाता है। इस
पावन दिन सभी को
राम-सीता की आराधना
करते हुए अपने सुखी
दाम्पत्य जीवन के लिए
प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त
करना चाहिए।
रावण के अंत का कारण माता सीता ही रही
भगवान श्रीराम और सीता का
विवाह पूरे रामायण की
सबसे महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि
प्रकृति के नियंता को
ज्ञात था कि जीवन
में चौदह वर्ष का
वनवास और रावण जैसे
असुर का वध धैर्य
के वरण के बगैर
संभव नहीं है। अतः
श्रीराम जानकी का विवाह मुख्य
रूप से यह एक
बड़े संघर्ष से पूर्व धैर्य
वरण की घटना है।
पुष्प वाटिका में भगवान श्री
राम और सीता जी
के मिलन के पश्चात
प्रकृति ने दोनों के
ही मिलन का मार्ग
तय कर लिया था।
तुलसी रामयण में भी सीता
जी को विवाह के
समय युवावस्था का बताया गया
है भगवान श्रीराम और सीता जी
का विवाह रामायण में रावण के
अंत के लिये भगवान
का बढ़ाया हुआ एक पग
भी है, क्योंकि रावण
के अंत का सृजन
सीता जी के हरण
की घटना से ही
प्रारम्भ हो गया था।
शास्त्रों के अनुसार यह
वही दिन है, जिस
दिन भगवान श्रीराम ने सीता जी
का वरण किया था।
श्रीरामचरितमानस में श्रीराम के
द्वारा सीता के माथे
में सिन्दूर भरने की घटना
को तुलसीदास ने वर्णन करते
हुए कहा है कि
ऐसा प्रतीत होता है, मानो
भगवान श्रीराम के बाहु, कमल
स्वरूप हथेलियों में, पराग सदृश्य
सिन्दूर लेकर अमृत की
आस से सीता जी
के चंद्र मुख को अलंकृत
कर रहा है।
व्रत से पूरी होती है मनोकामनाएं
मान्यता है कि इस
दिन भगवान श्रीराम का विधिवत पूजन
और सांकेतिक रूप से या
उत्सव के रूप में
भगवान का विवाह सीता
जी से कराया जाये
तो जीवन में सांसारिक
कष्टों से मुक्ति मिलती
है। मान्यता यह भी है,
वैसे युवक-युवतियां, जिनके
विवाह में विलम्ब हो
रहा है या वैसे
विवाहित दम्पति, जिनके वैवाहिक जीवन में संतान
या परिवार से सम्बंधित कोई
भी समस्या है, वे विवाह
पंचमी के दिन श्रीराम
और सीता का पूजन
करके श्रीराम रक्षा स्त्रोत्र का पाठ करें
तो उन्हें अवश्य लाभ प्राप्त होगा।
विद्वान कहते हैं, विवाह
पंचमी पर भगवान राम
और सीता का विवाह
हुआ था। विवाह केवल
स्त्री और पुरुष के
गृहस्थ जीवन में प्रवेश
का ही प्रसंग नहीं
है बल्कि यह जीवन को
संपूर्णता देने का अवसर
है। श्रीराम के विवाह के
माध्यम से हम विवाह
की महत्ता और उसके गहन
अर्थों से परिचित हो
सकते हैं। विवाह ऐसा
संस्कार है जिसे प्रभु
श्रीराम और कृष्ण ने
भी अपनाया। भगवान राम ने अहंकार
के प्रतीक धनुष को तोड़ा।
यह इस बात का
प्रतीक है कि जब
दो लोग एक बंधन
में बंधते हैं तो सबसे
पहले उन्हें अहंकार को तोड़ना चाहिए
और फिर प्रेम रूपी
बंधन में बंधना चाहिए।
यह प्रसंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है
क्योंकि दोनों परिवारों और पति-पत्नी
के बीच कभी अहंकार
नहीं टकराना चाहिए क्योंकि अहंकार ही आपसी मनमुटाव
का कारण बनता है।
प्रमुदित
मुनिन्ह भावँरीं फेरीं। नेगसहित सब रीति निवेरीं..
राम सीय सिर
सेंदुर देहीं। सोभा कहि न
जाति बिधि केहीं..
पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा।
हियँ.हरषे तब सकल
सुरेसा..
बेदमन्त्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय
संकर सुर करहीं..
सुनु सिय सत्य
असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी..
नारद बचन सदा
सुचि साचा। सो बरु मिलिहि
जाहिं मनु राचा..
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