आज होगा शत्रुओं का नाश, पुरी होगी मन की मुरादें, मिलेगा सुख-सृद्धि का आर्शीवाद!
समय, मृत्यु, और सुरक्षा के देवता है काल भैरव
देवों के देव हैं महादेव...! हर दुख को खुद पर लेकर भक्तों को भयमुक्त करने वाले है बाबा कालभैरव। पहले तो उन्होंने समुद्र मंथन में निकले विष को पीकर देवताओं को बचाया और नीलकंठ कहलाए, फिर उन्होंने ब्रह््रा को राह दिखाने के लिए न सिर्फ अपने नेत्र से काल भरैव को प्रकट किया, बल्कि भक्तों की बुराईयों को अपने अंदर समाने के लिए खुद मदिरा का पान करने लगे. वो भी साक्षात, सबके सामने. जी हां, भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की जयंती 22 नवंबर, शुक्रवार को है. भैरव को शिव का पांचवा अवतार माना जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है. ब्रह्म योग, इंद्र योग और रवि योग में मनेगी भैरव जयंती. शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप माने जाते है बाबा कालभैरव.
सुरेश गांधी
तंत्र साधना खासकर शिव की तंत्र साधना
में भैरव का विशेष महत्व है। भैरव वैसे तो
शिव जी के ही रौद्र रूप हैं, परंतु कहीं-कहीं पर इनको शिव का पुत्र भी माना जाता है।
तो कहीं-कहीं पर ये भी माना जाता है कि जो कोई भी शिव के मार्ग पर चलता है, उसे भैरव
कहा जाता है। इनकी उपासना से भय और अवसाद का नाश होता है, व्यक्ति को अदम्य साहस मिल
जाता है। शनि और राहु की बाधाओं से मुक्ति के लिए भैरव की पूजा अचूक होती है। शत्रु
और विरोधियों को शांत करने के लिए इनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। कलयुग में लोग बहुत
धोखेबाज़ होते हैं। कदम-कदम पर धोखा और फरेब मिलता है। धोखेबाज़ों से भैरव जी ही बचाते
हैं। चूकि कालाष्टमी को भैरव महाराज का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन अगर विधि-विधान से
पूजा व व्रत कर ली गयी तो हर बाधाएं दूर हो जायेगी।
अगर आपको लगता है कोई धोखा देनेवाला है,
कोई दुश्मनी या बेईमानी कर रहा है या आपका पैसा जमीन हड़पने की कोशिश कर रहा है तो शिव
मंदिर और भैरव मंदिर जाकर पूजा अर्चना करने मात्र से उसका नाश हो जायेगा। नारद पुराण
के अनुसार कालाष्टमी को कालभैरव और मां दुर्गा दोनों की आराधना करने से सभी मनोकामनाओं
की पूर्ति होती है। इस दिन माता के कालिका स्वरूप की आराधना अर्धरात्रि में करने का
विधान है। कुत्ते की सेवा करने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष
मास के कृष्ण पक्ष
की अष्टमी तिथि को भगवान
काल भैरव का अवतरण
हुआ था. इस दिन
विधि विधान से पूजा किए
जाने से भय और
अवसाद का नाश होता
है, साथ ही महादेव
का आशीर्वाद भी प्राप्त होता
है. कहते है पूजन
से प्रसन्न होकर भगवान काल
भैरव सुख और समृद्धि
का आशीर्वाद ही नहीं देते
हैं, बल्कि व्यक्ति के जीवन से
सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती
हैं।
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष
माह के कृष्ण पक्ष
की अष्टमी तिथि का शुभारंभ
22 नवंबर को शाम 6 बजकर
7 मिनट पर होगा। मार्गशीर्ष
माह के कृष्ण पक्ष
की अष्टमी तिथि का समापन
23 नवंबर को शाम 7 बजकर
56 मिनट पर होगा। काल
भैरव जी की पूजा
के लिए ब्रह्म मुहूर्त
सुबह 4 बजकर 54 मिनट से सुबह
5 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।
अभिजीत मूहूर्त सुबह 11 बजकर 36 मिनट से दोपहर
12 बजकर 19 मिनट तक रहेगा।
वहीं अमृत काल दोपहर
3 बजकर 27 मिनट से शाम
5 बजकर 10 मिनट तक रहेगा।
इस साल काल भैरव
जयंती पर काफी शुभ
योगों का निर्माण हो
रहा है। इस योग
में पूजा करने से
कई गुना अधिक फलों
की प्राप्ति हो सकती है।
इस दिन ब्रह्म योग
के साथ ही इंद्र
योग का निर्माण होगा.
इसके अलावा, रवि योग भी
बनेगा. इन योग में
भगवान शिव के रौद्र
रूप काल भैरव देव
की पूजा करने से
साधक को सभी प्रकार
के शारीरिक और मानसिक कष्टों
से मुक्ति मिलेगी.
ये काम जरुर करें
·
इस
दिन भगवान काल भैरव के
साथ भगवान भोलेनाथ की भी पूजा
करें।
·
इस
दिन कुत्तों को मीठी रोटी
खिलाएं और दूध दें।
काला कुत्ता काल भैरव का
सवारी मानी जाती है।
·
इस
दिन भैरव बाबा को
नीले रंग के फूल,
फल, मिठाइयां और सरसों का
तेल अर्पित करें।
·
सरसों
तेल, फल, नमक और
काला तिल का दान
करें।
·
इस
दिन भैरव बाबा की
प्रतिमा या तस्वीर के
सामने तेल का दीया
जलाएं और काल भैरव
अष्टक या भैरव चालीसा
का पाठ करें।
·
इस
दिन संयम, साधना, और सत्कर्म करने
से लाभ मिलता है।
·
इस
दिन पूजा में काल
भैरव जी को मांस
और मदिरा का भोग लगाया
जाता है। लेकिन पूजा
में इन चीजों का
अर्पण करने के अलावा
अगर आप इनका सेवन
कर लेते हैं तो
इसे बहुत अशुभ माना
जाता है। जिन चीजों
का भोग भगवान आपने
भगवान को लगाया है,
अगर आप उन्हें खाते
हैं तो इससे आपकी
किस्मत रूठ सकती है
और काल भैरव रुष्ट
हो सकते हैं। इसलिए
काल भैरव जयंती के
दिन गलती से भी
मांस-मदिरा का सेवन न
करें।
·
कई
लोग काल भैरव महाराज
की तांत्रिक पूजा भी करते
हैं। लेकिन गृहस्थ लोगों को काल भैरव
जी की तांत्रिक पूजा
करने से बचना चाहिए।
तांत्रिक पूजा में जरा
सी चूक आपको बड़ी
हानि दे सकती है।
आपके पारिवारिक जीवन में दिक्कतें
बढ़ सकती हैं, धन
हानि आपको हो सकती
है और किस्मत भी
आप से रूठ सकती
है।
·
काल
भैरव जी को भगवान
शिव का न्यायप्रिय रूप
माना जाता है। इसलिए
काल भैरव जयंती के
दिन गलती से भी
आपको किसी के साथ
भी छल-कपट नहीं
करना चाहिए। साथ ही असत्य
बोलने से भी इस
दिन बचें।
·
काल
भैरव जी का वाहन
कुत्ता है और पशु
पक्षियों से काल भैरव
अति प्रेम करते हैं। इसलिए
काल भैरव जयंती के
दिन आपको किसी भी
जानवर के साथ दुर्व्यवहार
नहीं करना चाहिए। अगर
आप पशु-पक्षियों को
भोजन करवाते हैं तो शुभ
फलों की आपको प्राप्ति
होती है।
·
यूं
तो अपवित्रता से आपको हर
रोज ही बचना चाहिए।
लेकिन भैरव अष्टमी के
दिन आपको विशेष रूप
से पवित्रता बरतनी चाहिए। इस दिन स्नान-ध्यान करें और वासना
जनित विचारों से बचें। ऐसा
करने से भैरव जी
आप से प्रसन्न होते
हैं।
·
इस
दिन आपको हिंसा करने
से बचना चाहिए और
हिंसक विचारों को मन में
नहीं आने देना चाहिए।
गलत विचार आपके मन में
न आएं इसके लिए
धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करें
या ध्यान का सहारा लें।
·
भगवान
काल भैरव उन लोगों
रूठ जाते हैं जो
बड़े-बुजुर्गों का अपमान करते
हैं। शिक्षकों के साथ बुरा
व्यवहार करते हैं। इसलिए
ऐसा काम करने से
भी बचें नहीं तो
भाग्य आपका साथ देना
छोड़ सकता है।
·
काले
कुत्ते को मीठी रोटी
खिलाते हैं उन्हें भैरवनाथ
की कृपा से तरक्की
मिलती है.
·
गरीबों
या जरुरतमंदों गेंहूं, गर्म कपड़े, कंबल
का दान करें. राहु
दोष को खत्म करने
में ये उपाय मदद
करता है.
·
इस
दिन रोगों से मुक्ति पाने
के लिए इमरती का
भोग लगाएं. इससे सेहत में
लाभ मिलता है.
·
ऊपरी
बाधा और भूत-प्रेत
जैसी समस्याओं से मुक्ति पाने
के लिए काल भैरव
मंदिर में काल भैरवाष्टक
का पाठ करें, कुत्ते
को भोजन कराएं.
·
इस
दिन काल भैरव को
पांच या सात नींबू
की माला बनाकर काल
भैरव को चढ़ानी चाहिए.
मान्यता है इस उपाय
से हर शत्रु बाधा
का नाश होता है.
·
रात
के 12 बजे ॐ श्री
बम् बटुक भैरवाय नमः।।
मंत्र का जप करना
बहुत लाभकारी माना गया है.
इससे नौकरी, धन की समस्या
खत्म होती है.
भैरव ने किया ब्रह्मा के अहंकार का अंत
भगवान काल भैरव को
भूत संघ नायक के
रूप में वर्णित किया
गया है। पंच भूतों
के स्वामी-जो पृथ्वी, अग्नि,
जल, वायु और आकाश
हैं। वह जीवन में
सभी प्रकार की वांछित उत्कृष्टता
और ज्ञान प्रदान करने वाले हैं।
भगवान काल भैरव का
प्राकट्य यह संदेश देता
है कि अहंकार, अधर्म
और अन्याय का अंत अवश्य
होता है। भगवान काल
भैरव का प्राकट्य शिवपुराण
की एक महत्वपूर्ण कथा
से जुड़ा है, जो
उनके क्रोध, शक्ति, और न्याय के
प्रतीक के रूप में
उनकी उपस्थिति को दर्शाती है।
इस कथा के अनुसार,
एक बार त्रिदेवों (ब्रह्मा,
विष्णु और महेश) के
बीच सृष्टि के सर्वोच्च देवता
को लेकर विवाद हुआ।
सभी देवता इस चर्चा में
शामिल हुए, और यह
प्रश्न उठा कि कौन
सबसे महान है। इस
विवाद में भगवान ब्रह्मा
ने अपने पांच मुखों
के माध्यम से यह दावा
किया कि वे सृष्टि
के रचयिता हैं और इसलिए
सर्वोच्च हैं। उनकी बातों
में अहंकार झलक रहा था।
भगवान शिव, जो विनम्रता
और सृष्टि की मूल चेतना
के प्रतीक हैं, ने उन्हें
अहंकार त्यागने की सलाह दी।
परंतु ब्रह्मा ने इसे अनसुना
कर दिया और भगवान
शिव का अपमान कर
दिया। भगवान शिव ने यह
अपमान सहन नहीं किया
और अपने क्रोध से
एक उग्र स्वरूप उत्पन्न
किया। इस स्वरूप को
“काल भैरव“ कहा गया। काल
भैरव एक भयानक और
अजेय रूप में प्रकट
हुए, जिनके हाथ में त्रिशूल
और कमंडल था, और उनकी
गले में नरमुंड की
माला थी। उनका प्रकट
होना सृष्टि के संतुलन और
न्याय को स्थापित करने
के लिए था। भगवान
काल भैरव ने ब्रह्मा
के पांचवें सिर को काट
दिया, जिसे अहंकार का
प्रतीक माना गया। इस
घटना के बाद, भगवान
ब्रह्मा ने अपनी गलती
स्वीकार की और भगवान
शिव से क्षमा मांगी।
इस प्रकार, काल भैरव ने
ब्रह्मा के अहंकार को
समाप्त कर सत्य और
न्याय की स्थापना की।
हालांकि, ब्रह्मा का सिर काटने
के कारण काल भैरव
ब्रह्म हत्या के पाप के
भागी बन गए। इस
पाप के प्रायश्चित के
लिए उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा की।
अंततः वे काशी पहुंचे,
जहां इस पाप से
मुक्त हो गए। इसलिए,
काशी को “मुक्ति स्थली“
और काल भैरव को
“काशी के कोतवाल“ कहा
जाता है। श्री लिंगपुराण
अध्याय 106 के अनुसार दारुक
नामक अनुसार ने जब ब्रह्मा
से यह वरदान प्राप्त
किया कि मेरी मृत्यु
सिर्फ किसी स्त्री से
हो तो बाद में
उसका वध करने के
लिए माता पार्वती का
एक रूप देवी काली
प्रकट हुई. असुर को
भस्म करने के बाद
मां काली का क्रोध
शांत ही नहीं हो
रहा था तब उस
क्रोध को शांत करने
के लिए शिवजी बीच
में आए परंतु शिवजी
के 52 टुकड़े हो गए, वही
52 भैरव कहलाए. तब 52 भैरव ने मिलकर
भगवती के क्रोध को
शांत करने के लिए
विभिन्न मुद्राओं में नृत्य किया
तब भगवती का क्रोध शांत
हो गया. इसके बाद
भैरवजी को काशी का
आधिपत्य दे दिया तथा
भैरव और उनके भक्तों
को काल के भय
से मुक्त कर दिया तभी
से वे भैरव, ‘कालभैरव’
भी कहलाए.
काशी के कोतवाल है बाबा कालभैरव,
आज्ञा लिए बगैर नहीं होता कोई काम
काशी में बाबा
कालभैरव की विशेष आराधना
होती है। इन्हें काशी
का कोतवाल भी कहते है।
हर मंगलवार, शनिवार और रविवार को
उनके भक्त उन्हें शराब,
नारियल, और काले तिल
अर्पित करते हैं। कहते
है इनके भक्तों का
अनिष्ट करने वालों को
तीनों लोकों में कोई शरण
नहीं दे सकता। काल
भी इनसे भयभीत रहता
है। इसलिए इन्हें काल भैरव एवं
हाथ में त्रिशूल, तलवार
और डंडा होने के
कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता
है। इनकी पूजा-आराधना
से घर में जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी
भी प्रकार का भय नहीं
रहता बल्कि इनकी उपासना से
मनुष्य का आत्मविश्वास बढ़ता
है। काशी के इस
कोतवाल की अनुमति बगैर
परिंदा तो परिंदा, स्वयं
महाकाल यमराज भी नहीं फटकते।
मान्यता है कि काशी
के इस कोतवाल के
क्रोध से सृष्टि रचयिता
ब्रह्मा भी नहीं बच
सके थे। ऐसे बाबा
की दर्शनमात्र से हो जाती
है भक्तों को अनंत सुखों
की प्राप्ति। कट जाते है
समस्त पाप, मिल जाता
है पुत्र रत्न की प्राप्ति
व मोक्ष का वरदान। वैसे
भी बाबा भोलेनाथ की
त्रिशूल व डमरु पर
ही टिकी है काशी।
उन्हीं के अंश रुप
है बाबा कालभैरव, जो
बनारस यानी काशी के
विश्वेश्वरगंज स्थित भैरवनाथ मुहल्ले में विराजमान है।
मंदिर पुजारी राजेश की मानें तो
द्वादस ज्योतिर्लिंगों में एक बाबा
विश्वनाथ की पूजन-वंदन
से पहले काशी के
कोतवाल भैरवनाथ की स्तुति बगैर
पूजा फलीभूत नहीं होती। कहते
है यहां अगर आप
41 दिन तक पूजा कर
लेते हैं तो आपको
शनि, राहु और केतु
की तिकड़ी के प्रकोप से
जीवन भर के लिए
छुटकारा मिल जाएगा। इस
दूसरे रूप को विग्रह
रूप के नाम से
भी जाना जाता है।
कहते है काशी के
कोतवाल बाबा यानी कालभैरव
पूरे काशी परिक्षेत्र की
सुरक्षा अपने आठ गणों
के साथ आठों दिशाओं
में करते है। रुद्रभैरव-हनुमान घाट, अग्निय कोण
दक्षिण-पूर्व दिशा में, चंड
भैरव-दुर्गाकुंड दक्षिण दिशा में, असितांग
भैरव-वृद्धकालेश्वर मंदिर पूरब दिशा में,
लाटभेरव-कज्जाकपुरा वायव्यकोण उत्तर पश्चिम दिशा में, आदि
भैरव-कमच्छा ने़त्यकोण दक्षिण पश्चिम दिशा में, उन्मत
भैरव कर्दमेश्वर मंदिर पंचकोशी रोड पश्चिम दिशा
में, संहार भैरव गायघाट ईशान
कोण उत्तर पूर्व दिशा में व
भूत भैरव लोहटिया उत्तर
दिशा में विराजमान रहकर
हर आपदा से बचाते
है। इसका प्रमाण यह
है कि पिछले सौ
सालों में काशी में
कभी आपदा नहीं आई
है। ब्रिटिशकाल में अंग्रेज सैनिक
व मुगलकाल में मुगलिक सैनिक
बाबा विश्वनाथ सहित कई मंदिरों
पर अटैक किए लेकिन
सफल नहीं हो सके
और भगवान ने भौरा का
रुप घारण कर उन्हें
खदेड़ दिया। बाबा भैरवनाथ पर
51 पीठों की भी सुरक्षा
की जिम्मेदारी भगवान भोलेनाथ ने दी है।
कहते है भगवान शिव
की इस नगरी काशी
के व्यवस्था संचालन की जिम्मेदारी उनके
गण सम्भाले हुए हैं। उनके
गण भैरव हैं जिनकी
संख्या चौसठ है एवं
इनके मुखिया काल भैरव हैं।
मान्यता के अनुसार शिव
के सातवें घेरे में बाबा
काल भैरव है। इनका
वाहन कुत्ता है। इसलिए काशी
के बारे में कहा
भी जाता है कि
यहां विचरण करने वाले तमाम
कुत्ते काशी की पहरेदारी
करते हैं। जहां तक
मंदिर निर्माण का प्रश्न है
तो काशी के लोगों
का योगदान तो है ही
मध्य प्रदेश के सिंधिया घराने
का भी बड़ा योगदान
है। मंदिर का गुंबद आज
भी स्वर्ण के रुप में
चमक रहा है।
पूजा विधिः
·
सबसे
पहले भगवान भैरव का आवाहन
करें और उनका स्मरण
करें।
·
उनके
सामने दीपक जलाएं, अगर
संभव हो तो दीपक
में तिल का तेल
या घी डालें।
·
भैरव
जी के चित्र या
मूर्ति पर दूध, शहद,
घी और पानी मिलाकर
अर्पित करें।
·
तिल,
पुष्प और चंदन से
पूजा करें।
·
विशेष
रूप से काले तिल,
तंबाकू और शराब का
भैरव जी के सामने
अर्पण करने की परंपरा
है क्योंकि वे इनसे प्रसन्न
होते हैं।
·
“ॐ
काल भैरवाय नमः“ मंत्र का
जाप करें। इस मंत्र का
108 बार जाप करें।
·
यदि
संभव हो, तो इस
दिन उपवास रखें और केवल
फलाहार या जल ही
ग्रहण करें। इससे मानसिक शांति
और भगवान भैरव की कृपा
प्राप्त होती है।
काल भैरव सिद्ध मंत्र
·
ॐ
कालभैरवाय नमः।
·
ॐ
भयहरणं च भैरव।
·
ॐ
भ्रां कालभैरवाय फट्।
·
ॐ
ह््रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय
ह््रीं।
·
ॐ
हं षं नं गं
कं सं खं महाकाल
भैरवाय नमः।
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