’कल्कि’ रुप में होगा भगवान विष्णु का दशावतार
भगवान कल्कि को भगवान विष्णु का 10वां अवतार माना जाता है. दरअसल, कल्कि भगवान विष्णु के आखिरी अवतार माने जाते हैं. कल्कि पुराण और अग्नि पुराण के अनुसार, श्री हरि का ’कल्कि’ अवतार कलियुग के अंत में अवतरित होगा. उसके बाद धरती से सभी पापों और बुरे कर्मों का विनाश होगा. अग्नि पुराण के 16वें अध्याय में कल्कि अवतार का चित्रण तीर-कमान धारण किए हुए एक घुड़सवार के रूप में किया गया है. इसमें भगवान कल्कि के घोड़े का नाम देवदत्त बताया गया है. भगवान कल्कि के रोम-रोम से अतुलनीय तेज की किरणें चमक रही होंगी. वे अपने घोड़े पर सवार होकर पूरी पृथ्वी पर भ्रमण करेंगे. वे सभी दैवीय गुणों से संपन्न होंगे.वे राजा के भेष में छिपे हुए अत्याचारियों का दमन करेंगे. उन दुष्टों का अंत करेंगे, जो धर्म और सज्जनता का ढोंगे करेंगे. कल्कि 64 कलाओं से निपुण होंगे। किसी भी महाबलि का सामना करने में सक्षम होंगें। पुराण कहते हैं कि भगवान शिव भी कल्कि की लड़ाई में मदद करते हैं. पौराणिक मान्यतओं के अनुसार कलियुग 432000 वर्ष का है, जिसका अभी प्रथम चरण चल रहा है. जब कलयुग का अंतिम चरण शुरू होगा, तब कल्कि अवतार लेंगे. पुष्य नक्षत्र के पहले पल में जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक ही समय एक साथ एक राशि पर आएंगे, उसी समय से सतयुग प्रारंभ हो जाएगा. कल्कि पुराण के मुताबिक, भगवान कल्कि का जन्म भी उत्तर प्रदेश के संभल जिले में ही होगा. कल्कि का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में ही होगा. भगवान कल्कि एक महान योद्धा होंगे. जिनका जन्म कलियुग के अंत में सभी बुराइयों को दूर करने के लिए होगा.
सुरेश गांधी
म्लेच्छनिवहनिधने
कलयसि
करवालम।
धूमकेतुमिव
किमपि
करालम।
केशव
धृतकल्किशरीर
जय
जगदीश
हरे।।
अर्थात “हे जगदीश! हे
मधूसूदन! आपने कल्किरूप धारण
कर म्लेच्छों का विनाश कर
धूमकेतु समान भयंकर कृपाण
को धारण किया है.
आपकी सदा ही जय
हो.” श्रीमद्भागवत के अनुसार कल्कि
भगवान विष्णु के दसवें अवतार
हैं. कलियुगांत में, विष्णु कल्कि
के रूप में अवतार
लेते हैं और दुनिया
को बचाते हैं. ज्योतिषाचार्यो का
दावा है कि भगवान
कल्कि का जन्म हरि
मंदिर में होगा, जिसका
प्रमाण धर्म ग्रंथों में
है. खास यह है
कि संभल में इस
समय इसी बात को
लेकर वैचारिक जंग छिडी है
कि कल्कि का जन्म हरि
मंदिर के आसपास संभल
में ही होगा। संभल
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले
के एक गांव नाम
है. ये स्थान गंगा
और रामगंगा के बीच होगा,
जो पवित्र नदियों के मध्य में
स्थित है. मंदिर के
आस-पास त्रिकोणात्मक संरचना
है जो इस स्थान
की पवित्रता को दर्शाती है.
दावा है कि इस
मंदिर से तीन योजन
की दूरी पर गंगा
और रामगंगा स्थित हैं जो इसे
और भी पवित्र बनाती
है. देखा जाएं तो
संभल का स्वरूप त्रिकोणीय
है और यहां के
तीनों कोनों में महादेव के
मंदिर हैं. इस स्थान
को भगवान शिव का आशीर्वाद
प्राप्त है. पूरब दिशा
में चंद्रेश्वर महादेव, दक्षिण में गोपालेश्वर महादेव,
और उत्तर दिशा में भूवनेश्वर
महादेव के मंदिर हैं
जो इस स्थान की
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता
को दर्शाते हैं.
अग्नि पुराण के 16 अध्याय में वर्णन मिलता
है, कि कल्कि अवतार
तीर कमान धारण किए
हुए सफेद रंग का
घोड़े पर सवार होंगे।
उनके घोड़े का नाम
देवदत्त होगा। यह अवतार भगवान
के भक्त होने के
साथ-साथ वेदों और
पुराणों के ज्ञाता और
एक महान योद्धा भी
होंगे। कल्कि भगवान के गुरु, विष्णु
के ही अवतार परशुराम
जी होंगे। दावा है कि
कल्कि भगवान का जन्म ब्राह्मण
परिवार में होगा. उनके
पिता का नाम विष्णु
यश, मां का नाम
सुमति और बाबा का
नाम ब्रह्म यश होगा. कल्कि
भगवान के चार भाई
होंगे, जिनमें सुमंत, परागिक, कवि और कल्कि
शामिल होंगे. कल्कि भगवान की दो पत्नियां
होंगी जिनका नाम पदमा और
रमा होगा. पदमा लक्ष्मी स्वरूपा
होंगी और रमा का
चेहरा कभी किसी ने
नहीं देखा क्योंकि वह
भगवान राम से आशीर्वाद
प्राप्त कर चुकी हैं.
कल्कि भगवान के जन्म के
प्रमाण धर्म ग्रंथों में
स्पष्ट रूप से दिए
गए हैं और उनका
आगमन कलयुग के अंत के
संकेत होगा. कल्कि का अवतरण सावन
महीने के शुक्ल पक्ष
की षष्ठी तिथि पर होगा.
उनका उद्देश्य पाप का नाश
कर सत्य और धर्म
की स्थापना करना होगा। कल्कि
पुराण के अनुसार भगवान
कल्कि के शासन काल
में पृथ्वी पर कोई भी
धर्महीन, अल्पायुष्य, दरिद्री, पाखण्डी तथा कपटपूर्ण आचरण
वाला व्यक्ति नहीं रहेगा। धीरे-धीरे धरा से
पाप का अंत होने
लगेगा और जो मनुष्य
सत्कर्मों और भगवान की
भक्ति में लीन होकर
अपना कार्य करेंगे। भगवान कल्कि उनकी मदद करेंगे।
भगवान कल्कि के नाम को
जपने से धन, यश
और आायु की वृद्धि
होकर परमानन्द की प्राप्ति होगी।
महाभारत ग्रंथ के रचयिता महर्षि
वेद व्यास जी ने हजारों
वर्ष पहले भविष्यवाणी की
थी कि जब कलयुग
में धरती पर अत्याचार
और पाप बढ़ते चले
जाएंगे, जब व्यक्ति में
संस्कारों का नाश हो
जाएगा, जब कोई गुरुओं
के उपदेशों का पालन नहीं
करेगा, कोई वेदों को
मानने वाला नहीं होगा
और जब अधर्म अपने
चरम पर होगा. तब
भगवान कल्कि भगवान शिवजी की तपस्या करेंगे
और दिव्यशक्तियों को प्राप्त कर
देवदत्त घोड़े पर सवार
होकर पापियों का संहार करेंगे
और दोबारा धर्म की स्थापना
करेंगे. इस तरह से
कल्कि के जन्म के
बाद कलयुग का अंत हो
जाएगा और पुनः सतयुग
की शुरुआत हो जाएगी. इसका
वर्णन कल्कि पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्मांड पुराण, भविष्योत्तर पुराण और महाकाव्य महाभारत
में भी मिलता है।
कल्कि पुराण और अग्नि पुराण
में यह भविष्यवाणी की
गई है कि भगवान
विष्णु के ’कल्कि’ अवतार
कलियुग के अंत में
अवतरित होंगे। विष्णु जी के कल्कि
अवतार का उवैसे भी
संभल को अनादि काल
से एक महत्वपूर्ण धार्मिक
स्थान माना जाता है.
इस स्थान का निर्माण त्रिशंकु
राजा ने किया था
जो शिव के परम
भक्त थे.
भगवान कल्कि के अवतार से
पहले संभल में देवताओं
ने दो महत्वपूर्ण यज्ञ
किए थे. एक राजा
ययाति का यज्ञ और
दूसरा राजा दक्ष का
यज्ञ. भगवान कल्कि का स्वरूप विष्णु
के रूप में होगा
और उनका जन्म हिंदू
धर्म के अनुयायियों के
लिए एक ऐतिहासिक घटना
होगी. संभल में भगवान
कल्कि के आगमन के
बाद ये नगर तीर्थराज
के रूप में प्रसिद्ध
होगा. संभल का धार्मिक
नक्शा लगभग 1000 साल पुराना है
और इसे स्कंद पुराण
से प्राप्त किया गया है.
ये नक्शा बेहद पवित्र है
और इस नक्शे के
अनुसार संभल के आसपास
स्थित शिवलिंग और महादेव के
मंदिर भविष्य में इस स्थान
को और भी पवित्र
बना देंगे. भगवान कल्कि कलियुगी राक्षसों को मारने के
बाद 20 वर्षों तक पृथ्वी पर
रहेंगे. अपने जन्म के
कर्तव्यों को पूरा करने
के बाद, वैकुंठ चले
जायेंगे। हिंदू धर्म ग्रंथों में
चार युग सतयुग, त्रेतायुग,
द्वापरयुग और कलयुग का
वर्णन किया गया है.
इनमें कलयुग आखिरी युग होगा जो
कि अभी चल रहा
है और इसके समाप्त
होते ही फिर से
सतयुग की शुरुआत हो
जाएगी. जिस तरह हर
युग में भगवान विष्णु
ने धरती पर मौजूद
पापों का अंत करने
के लिए अलग-अलग
अवतार लिए, उसी प्रकार
कलयुग में भी भगवान
विष्णु अवतार लेंगे. धर्म ग्रंथों में
इस बात का उल्लेख
किया गया है कि
कलयुग में भगवान विष्णु
के अवतार का नाम कल्कि
होगा जो कि उनका
10वां अवतार होगा.
मान्यताओं के अनुसार, जब
कलयुग में अधर्म की
प्रधानता बढ़ जाएगी और
धर्म का पतन होने
लगेगा, तब धर्म की
स्थापना और असुरों के
संहार के लिए भगवान
कल्कि अवतरित होंगे. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कलयुग
की शुरुआत 3102 ईसा पूर्व से
हुई थी. जब भगवान
श्रीकृष्ण ने पृथ्वीलोक को
त्यागा, तब कलयुग का
प्रथम चरण शुरू हो
चुका था. ऐसा कहा
जाता है कि पृथ्वी
पर कलयुग का इतिहास 4 लाख
32 हजार वर्षों का होगा, जिसमें
अभी प्रथम चरण ही चल
रहा है यानी कलियुग
के 426875 साल अभी बचे
हैं. कल्कि भगवान विष्णु का ऐसा अवतार
है, जिसकी पूजा उनके जन्म
के पहले से ही
की जा रही ळें
संभल उस वक्त चर्चा
में आया जब वहां
की जामा मस्जिद पर
हुई हिंसा के दौरान चार
युवक मारे गए। खासतौर
से जब कांग्रेस नेता
राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी
के मुखिया अखिलेश यादव से लेकर
अन्य विपक्षी पार्टियों ने सड़क से
लेकर संसद तक माहौल
को गर्म बनाए रखा.
पर यूपी विधानसभा के
शीतकालीन सत्र की शुरुआत
में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ भी संभल को
अपने तरीके से सनातन पर
हो रहे अत्याचार की
व्याख्या की।
मतलब साफ आने
वाले दिनों में योगी आदित्यनाथ
संभल में श्रीराम मंदिर
की तर्ज पर एक
बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकते
है। संभल में हर
रोज हिंदू धर्म से संबंधित
मंदिर, मूर्तियां, कुएं और बावड़ियां
मिलने के सिलसिले को
उसी कड़ी से जोड़कर
देखा जा रहा है।
इन सभी के तार
पुराणों, बौद्ध शास्त्रों आदि से जोड़े
जा रहे ळे निकोलस
और हेलेना रोएरिच ने 1924-1928 में शंभाला के
लिए अभियान चलाया. उनका यह भी
मानना था कि अल्ताई
पर्वत में बेलुखा पर्वत
शम्भाला का प्रवेश द्वार
था, जो उस क्षेत्र
में एक आम धारणा
थी. उन्होंने 1934 और 1935 के बीच मंगोलिया
में शम्भाला की तलाश के
लिए एक दूसरे अभियान
का नेतृतत्व किया. बोल्शेविक क्रिप्टोग्राफर और सोवियत गुप्त
पुलिस के कर्णधारों में
से एक ग्लेब बोकी
ने अपने लेखक मित्र
अलेक्जेंडर बारचेंको के साथ मिलकर
1920 के.दशक में कालचक्र-तंत्र और साम्यवाद के
विचारों को मिलाने की
कोशिश में शम्भाला की
खोज शुरू की थी. फ्रांसीसी
बौद्ध एलेक्जेंड्रा डेविड-नील ने शम्भाला
को वर्तमान अफ़गानिस्तान के बल्ख से
जोड़ा.कहा जाता है
कि हिटलर ने 1930 के दशक में
तिब्बत में अगरथा और
शंभाला से संपर्क साधने
के लिए कई मिशन
भेजे पर सफलता न.हीं मिली.
बताया जाता है कि
सतयुग में संभल का
नाम सत्यव्रत था, त्रेता में
महदगिरि, द्वापर में पिंगल और
कलियुग में संभल है.
प्राचीन शास् में यहां
68 तीर्थ और 19 कुओं का जिक्र
मिलता है. यहां एक
अति विशाल प्राचीन मन्दिर है, इसके अतिरिक्त
तीन मुख्य शिवलिंग है, पूर्व में
चन्द्रशेखर, उत्तर ..में भुबनेश्वर और
दक्षिण में सम्भलेश्वर हैं.
प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल चतुर्थी और पंचमी को
यहाँ मेला लगता है
और यात्री इसकी परिक्रमा करते
हैं. इतिहास
बताता है कि संभल
की जामा मस्जिद 1529 में
(राम जन्मभूमि को तोड़कर बाबरी
मस्जिद बनाने के ठीक एक
साल बाद) बाबर के
निर्देश पर हरिहर मंदिर
को तोड़करबनाया गया था. इस
बात का उल्लेख मस्जिद
पर भी है. बाबारनामा
और अकबरनामा से भी यह
संकेत मिलता है कि यहां
पहले मंदिर हुआ करता था.
पर यह मंदिर विष्णु
के दशावतार से संबंधित होने
के चलते और चर्चा
में आ गया है.
एक बात और ध्यान
देने वाली है कि
संभल में ही कुछ
महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी कल्कि अवतार... मंदिर का शिलान्यास करने
भी पहुंचे थे.
जैसे पौराणिक कथाओं
के अनुसार मथुरा भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है.
जैसे भगवान राम त्रेता युग
में विष्णु के सातवे अवतार
थे, वैसे ही कल्कि
दसवें और अंतिम अवतार
होंगे. जो कलियुग के
अंत में घोड़े पर
सवार होकर आएंगे. हिंदू
पौराणिक कथाओं के अनुसार कल्कि
का अवतरण अंधकारमय, पतित और अराजक
कलियुग को समाप्त कर
देगा और अगले, सत्य
युग की शुरुआत करेगा.
इतिहासकारों का मानना है
कि पृथ्वीराज चौहान ने 12वीं शताब्दी
में संभल में भगवान
विष्णु के प्रसिद्ध मंदिर
की स्थापना की होगी. संभल
वह भूमि है जहां
’पुनर्जन्म लेने वाले भगवान..के मंदिर का
निर्माण हुआ और फिर
उसे नष्ट कर दिया
गया. बाद में जिस
तरह अहिल्याबाई होल्कर ने देश के
कई तीर्थ स्थलों का निर्माण करवाया
उसी क्रम में कल्कि
को समर्पित एक मंदिर 18वीं
शताब्दी में संभल में
भी बनवाया था. रिपोर्टों के
अनुसार, ’कल्कि मंदिर’ के नाम से
प्रसिद्ध इस मंदिर का
निर्माण मूल मंदिर के
नष्ट होने के लगभग
300 वर्ष बाद, संभल में
बाबर की शाही जामा
मस्जिद के ठीक बगल
में, किया गया था.
कल्कि मंदिर संभल के कोट
पूर्वी मोहल्ले में है और
शाही जामा मस्जिद के
पास है.
कल्कि पुराण के अनुसार भगवान
परशुराम भगवान कल्कि के गुरु बनेंगे।
भगवान कल्कि गुरुकुल में जाकर शिक्षा
ग्रहण करेंगे। भगवान कल्कि को महेन्द्र पर्वत
निवासी परशुराम अपने आश्रम में
ले जाएंगे। वहां जाकर परशुराम
भगवान कल्कि को अपना परिचय
देते हुए कहेंगे- “ मैं
भृगु वंश मे उत्पन्न,
महर्षि जमदग्नि का पुत्र, वेद-वेदाग के तत्व को
जानने वाला, धनुर्वेद-विद्या- विशारद परशुराम हूं। मैं इस
महेन्द्र पर्वत पर तपस्या करने
के लिए आया हूं,
आप यहां अपना वेदाध्ययन
करो। इसके साथ ही
कई शास्त्रों का अध्ययन करो।“
बालक रूप में भगवान
कल्कि ने परशुराम जी
को प्रणाम किया और वेद
और पुराणों के अध्ययन में
लग गए। भगवान कल्कि
केवल वेद और शास्त्रों
के ज्ञाता ही नहीं होंगे
बल्कि उन्हें तलवारबाजी सहित 64 युद्ध और अन्य कलाएं
आती होंगी। भगवान कल्कि शिव जी के
उपासक होंगे और तपस्या करके
उन्हें प्रसन्न करेंगे। विल्वोदकेश्वर महादेव की पूजा और
अर्चना करने पर देवी
पार्वती सहित भगवान शिव
प्रकट होंगे। महादेव से भगवान कल्कि
को उनकी तलवार और
और कई दिव्य शक्तियां
मिलेंगी, जिससे वे इस संसार
से अधर्म का नाश करेंगे।
भगवान को उच्चैश्रवा के
समान देवदत्त नामक सफेद अश्व
शिवजी से ही प्राप्त
होगा। संभल डीएम ने
कूप, मंदिर खोज को लेकर
पूछे गए सवाल पर
कहा कि देखिए कल्कि
धाम संभल का प्राचीन
नक्शा है जिसके मुताबिक
हम लोग काम कर
रहे हैं. इस दौरान
मिल रहे प्राचीन निर्माणों
का एएसआई से परीक्षण भी
कराया जा रहा है.
डीएम ने कहा
कि संभल के प्राचीन
नक्शे में प्रदर्शित सभी
19 कूप, 68 तीर्थ, 36 पूरे, 52 सराय का जीर्णोद्धार
किया जाएगा ताकि संभल की
संस्कृति और पर्यटन को
बढ़ावा मिले और यहां
विकास हो. हमें अभी
तक 19 कूप में से
17-18 कूप मिल चुके हैं.
सिर्फ एक या दो
कूप बाकी खोजने रह
गए हैं. इस दौरान
उन्होंने संस्कृत का श्लोक पढ़
कर सुनाया जिसमें कलयुग में संभल में
कल्कि भगवान के अवतार का
जिक्र है. चंदौसी में
और सराय तरीन में
भी दो मंदिर मिले
हैं संभल के 24 मील
की परिधि जो 48 किलोमीटर होती है उसमें
68 तीर्थ हैं. प्रशासन की
मंशा संभल को तीर्थ
नगरी के रूप में
विकसित करना है. जिससे
यहां का पर्यटन बढ़ेगा
और कलयुग में होने वाले
कल्कि भगवान के अवतार से
पहले संभल नगरी को
सनातन धर्म नगरी के
रूप में विकसित किया
जाएगा. जिसका विवरण प्राचीन ग्रंथों में मिलता है
और जो नक्शा मौजूद
है उसके अनुसार राजस्व
विभाग से लेकर तमाम
विभाग काम कर रहे
हैं. संभल का विकास
होगा तो यहां रोजगार
भी बढ़ेगा.
अनोखा होगा कल्कि धाम मंदिर
संभल
का कल्कि धाम दुनिया का
पहला ऐसा धर्म स्थल
होगा, जहां भगवान के
जन्म से पहले ही
उनकी मूर्ति स्थापित होगी. इस मंदिर का
निर्माण श्री कल्कि धाम
निर्माण ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा
है, जिसके अध्यक्ष आचार्य प्रमोद कृष्णम हैं. संभल
में बनने जा रहे
श्री कल्कि धाम को विश्व का सबसे
अनोखा मंदिर कहा जा रहा
है. इस मंदिर में
भगवान विष्णु के 10 अवतारों के लिए 10 अलग-अलग गर्भगृह होंगे.
श्री कल्कि धाम मंदिर परिसर
पांच एकड़ में बनकर
तैयार होगा, जिसमें 5 वर्ष का समय
लगेगा. इस मंदिर का
निर्माण भी राजस्थान के
भरतपुर जिले में स्थित
बंशी पहाड़पुर के गुलाबी पत्थरों
से होगा. गुजरात के सोमनाथ मंदिर
और अयोध्या राम मंदिर का
निर्माण भी यहीं के
पत्थरों से हुआ है.
मंदिर का निर्माण 11 फीट
ऊंचे चबूतरे पर होगा, इसके
शिखर की ऊंचाई 108 फीट
होगा. मंदिर में 68 तीर्थों की स्थापना होगी,
जबकि कहीं भी स्टील
या लोहे का इस्तेमाल
नहीं किया जाएगा. कल्कि
धाम में भगवान कल्कि
के नए विग्रह की
स्थापना होगी, जबकि पुराना कल्कि
पीठ यथावत बना रहेगा.
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