शिवशक्ति स्वरुपा हैं किन्नर समाज
किन्नरों के लिए, देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर मजहिं सकल त्रिवेणी.. कहा गया है। मतलब साफ है किन्नरों का बहुत बड़ा स्थान है। बावजूद इसके पहले के समय में समाज किन्नरों का तिरस्कार करता था। उन्हें अल्पसंख्यक वर्ग में रखा जाता था. लेकिन, किन्नर वर्ग समाज का सबसे ताकतवर वर्ग होता है, क्योंकि ये वर्ग शिवशक्ति का रूप भी होता है. समाज ने हमेशा किन्नरों को गलत नजरों से देखा है. लेकिन, सनातन धर्म ने किन्नरों को अपनाया और समाज में एक उच्च स्थान दिया. आज सनातन धर्म की वजह से ही लोग किन्नरों का तिरस्कार न करके उनका आशीर्वाद लेते हैं. जिसके चलते 2013 में किन्नर अखाड़ा की स्थापना उज्जैन नगरी में हुई और 2016 में हुए सिंहस्थ कुंभ में किन्नरों को एक स्थान दिया गया. वहीं, साल 2025 के महाकुंभ में भी किन्नर समाज का झंडा बुलंद है। पहले शाही स्नान में किन्नर अखाड़ा ने जिस तरह पेशवाई की, उसकी सराहना हर तरफ हो रही है। यह किन्नर वर्ग के लिए बहुत ही बड़ी बात है. किन्नर अखाड़े के संत बहुत ही हाईटेक होते हैं। डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के फेसबुक पर 1 लाख से ज्यादा और इंस्टाग्राम पर 80 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। इसी तरह किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कौशल्यानंद गिरि, कल्याणी नंद गिरि, मोहनी नंद गिरि के अलावा पवित्रा नंद आदि के लाखों फॉलोअर्स हैं। कुंभ हो या महाकुंभ, सोशल मीडिया पर इनके रील्स भी सबसे ज्यादा वायरल होते हैं
सुरेश गांधी
सृष्टि की रचनाकाल से
ही किन्नर समाज का अस्तित्व
है। या यूं कहें
किन्नर हर काल और
परिस्थिति में मानव समाज
का हिस्सा रहे हैं। पौराणिक
ग्रंथों में भी उन्हें
यक्षों और गंधर्वों के
बराबर का स्थान दिया
गया है। धर्मग्रंथ शिखंडी,
इला, मोहिनी आदि किरदारों से
भरे हुए हैं। महाभारत
में शिखंडी के पात्र से
हम सभी परिचित हैं।
शिखंडी की वजह से
युद्ध का स्वरूप ही
बदल गया था और
पांडव विजयी हुए थे। माना
तो यह भी जाता
है कि किन्नर भगवान
शिव का वो अंश
हैं जिन्हें हम अर्धनारीश्वर के
रूप में जानते हैं।
रामायण में किन्नरों का
उल्लेख मिलता है। करीब 3 हजार
साल पहले रामायण में
इनका एक महत्वपूर्ण प्रसंग
प्रस्तुत किया गया है।
जब भगवान राम अयोध्या से
वनवास के लिए निकल
रहे थे, तब पूरा
राज्य उनके पीछे चल
पड़ा। भगवान राम ने लोगों
से कहा कि वे
आंसू पोंछकर अपने-अपने घर
लौट जाएं। तब अधिकतर लोग
लौट गए। लेकिन कुछ
लोग, जो ना पुरुष
थे ना स्त्री, वहीं
जंगल में रुक गए।
वे भगवान राम के 14 साल
के वनवास के दौरान वहीं
रहे। फिर राम की
वापसी के साथ ही
राज्य में लौटे। इसी
प्रसंग के आधार पर
इन्हें किन्नर माना जाता है।
महाभारत में भी किन्नरों
का जिक्र है, जहां उन्हें
अर्ध-मानव और अर्ध-अश्व कहा गया
है। इससे पहले वेदों
में भी 3 प्रकार के
व्यक्तियों का उल्लेख मिलता
है, जो उनके स्वभाव
पर निर्भर करते हैं। यही
वजह है कि भारतीय
समाज में किन्नरों को
शुभ माना जाता है।
बच्चे की पैदाइश से
लेकर मुंडन व विवाह तक
जैसे सनातन संस्कारों में उनकी मौजूदगी
को शुभ माना जाता
है। मतलब साफ है
समाज में किन्नर समुदाय
को एक विशेष स्थान
प्राप्त है। इन्हें प्राचीन
भारतीय संस्कृति में धार्मिक और
सांस्कृतिक दृष्टि से एक अलग
दर्जा दिया गया है।
या यूं कहे सनातन
में किन्नरों को भगवान शिव
के उपासक और विशेष रूप
से किन्नर समुदाय को शुभकामनाएं देने
वाले और आशीर्वाद देने
वाले के रूप में
देखा जाता है। यही
वजह है कि अध्यात्म,
समर्पण और परम्पराओं का
प्रतीक कुम्भ में किन्नरों की
विशेष और ऐतिहासिक भूमिका
होती है।
किन्नर अखाड़ा अध्यात्म, समर्पण और परंपराओं का
प्रतीक है। किन्नर अखाड़े
की स्थापना का उद्देश्य किन्नर
समुदाय को समाज में
सम्मान और धार्मिक स्थान
दिलाना है। कुंभ के
दौरान किन्न्र अखाड़ा विभिन्न धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों
में भाग लेता है,
शाही स्नान में शामिल होता
है, और अपने अखाड़े
की विशेष परंपराओं का पालन करते
हैं। किन्नर अखाड़ा ने भारतीय समाज
में अपनी पहचान बनाई
है और यह अखाड़ा
अपनी अनूठी पहचान के कारण ध्यान
आकर्षित करता है। इस
अखाड़े के इष्ट देव
अर्धनारीश्वर और बउचरा हैं
जिनके पूजा के उपरांत
ही किन्नर संत कोई कार्य
शुरू करते हैं। महाकुंभ
के पहले शाही स्नान
के दौरान भी किन्नर अखाड़े
के सदस्य शस्त्रों के साथ अपनी
परंपराओं का अद्भुत प्रदर्शन
करते नजर आए। तलवारों
और अन्य शस्त्रों को
लहराते हुए उन्होंने अपनी
शक्ति और परंपरा का
परिचय दिया। जयघोष और हर हर
महादेव के नारों के
बीच पूरा माहौल उत्साह
और आस्था से भर गया।
किन्नर अखाड़े के इस आयोजन
ने महाकुम्भ 2025 में एक विशेष
छवि प्रस्तुत की। उनके संदेश
ने यह स्पष्ट किया
कि समाज के हर
वर्ग का उत्थान और
कल्याण भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा
है। उनकी लोकप्रियता का
अंदाजा इससे भी लगाया
जा सकता है कि
जब शाही स्नान के
लिए दो हजार से
ज्यादा किन्नर संत व महामंडलेश्वर
रथ पर सवार होकर
संगम नोज की तरफ
निकले तो लोगों ने
पुष्पवर्षा भी की। हाथ
में त्रिशूल व शंख लेकर
किन्नर संतों ने अमृत स्नान
किया। मां गंगा का
दूध से अभिषेक किया।
इस दौरान बड़ी संख्या में
भक्त उनका पैर छूने
के लिए रथों के
पीछे भाग रहे थे।
पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स
के जवान लोगों को
रोक रहे थे और
एक किनारे कर रहे थे
लेकिन लोग बैरिकेडिंग लांघकर
किन्नर संतों का चरण स्पर्श
करने के लिए धक्कामुक्की
करते देखे गए। स्नान
करके लौटेते समय किन्नर संतों
ने लोगों को निराश नहीं
किया और भक्तों के
सिर पर हाथ रखकर
उन्हें आशीर्वाद दिया। बता दें कि
इसके पहले किन्नर अखाड़ा
2019 के कुंभ में भी
इसी तरह से अमृत
स्नान किया था। अब
मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी
के दिन भी किन्नर
संत अमृत स्नान में
शामिल होंगे।
जहां तक किन्नरों
के श्रृंगार की बात है
तो इसके बिना वो
अधूरी हैं। श्रृंगार नारी
के लिए बहुत ही
महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि
हमारे देवी देवता भी
श्रृंगार से परिपूर्ण हैं.
हर किन्नर वर्ग के व्यक्ति
की पहचान ही श्रृंगार से
होती है. श्रृंगार एक
गहना और एक कला
है. माथे पर त्रिपुंड
और लाल बिंदी, उनका
श्रृंगार है। उनका कहना
है हम अपने प्रभु
के लिए श्रृंगार करते
हैं। हर दिन दुल्हन
की तरह सजती-संवरती
हैं। इसमें 2 से 3 घंटे का
वक्त लगता हैं। इसी
स्वरूप के साथ वो
अपने आराध्य भगवान शिव की आराधना
करते हैं। किन्नर संत
एक-दूसरे को तिलक लगाते
हैं। कुंभ क्षेत्र में
रहने के दौरान भी
यह साधना हर रोज जारी
रहेगी। इसके बाद ही
वो भक्तों से भेंट करते
है। कुंभ में भी
मां गंगा का श्रृंगार
किया गया है। उन्हें
हर कोई प्रणाम करता
है और करता रहेगा.
मंडलेश्वर का संबंध अखाड़ों
से होता है. कुंभ
में अखाड़ों की परंपरा किसी
भी पद के लिए
बहुत ही महत्वपूर्ण होती
है. अखाड़ा शब्द अखंड से
बना है. अखाड़ों की
पूरी नींव शस्त्र और
शास्त्र पर होती है.
अखाड़ों का दायित्व बहुत
ही खास होता कुंभ
में जून अखाड़े में
300000 संन्यासी थे जिनमें से
200 महिलाएं संन्यासिनी थी. और धीरे
धीरे यह संख्या बढ़
रही है. अर्धकुंभ में
महिलाओं सन्यासियों की..संख्या थोड़ी
ही बढ़ती है लेकिन
पूर्णकुंभ में महिला संन्यासियों
की संख्या काफी बढ़ जाती
है.’ ’अखाड़ा शब्द का मतलब
शस्त्रों से है. अखाड़ों
में पहले शस्त्रों की
ट्रेनिंग दी जाती थी.
धीरे धीरे इसमें बदलाव
आया, शस्त्र से हटकर लोग
शास्त्रों पर आ गए.
ठीक उसी तरह महिला
संन्यासियों के लिए भी
अखाड़े होते हैं और
उनकी भी ट्रेनिंग होती
है. संन्यासी बनने के लिए
हर उम्र की महिला
आती है जिसका खास
ख्याल रखना होता है
जैसे शारीरिक विकास, मासिक विकास. साथ ही, महिला
संन्यासी क्या सीखना चाहती
हैं, वो भी ध्यान
में रखा जाता है.
सबसे कम उम्र की
महिला संन्यासी को ज्यादा प्रशिक्षण
की जरूरत होती है. और
उम्र बढ़ने के साथ-साथ उन्हें भक्ति
की तरफ अग्रसित किया
जाता है.
13 अक्टूबर 2015 को अस्तित्व में
आए किन्नर अखाड़े का लगातार विस्तार
हो रहा है। इस
अखाड़े के महामंडलेश्वर लक्ष्मी
नारायण त्रिपाठी हैं, जिन्हें उज्जैन
सिंहस्थ कुंभ में महामंडलेश्वर
घोषित किया गया था।
बता दें कि विभिन्न
क्षेत्रों से आए 60 किन्नरों
को प्रयागराज के बद्रिकाआश्रम मठ
स्थित कार्यालय पर स्वामी वासुदेवानंद
सरस्वती द्वारा वैदिक संस्कारों से दीक्षित किया
गया था। दीक्षा लेने
के बाद किन्नरों ने
संन्यासी का वेश धारण
कर वो वैदिक संस्कार
पूरे किए जो एक
संन्यासी करता है। साल
2018 के सितंबर माह में अखाड़े
के महामंडलेश्वर द्वारा देश के प्रमुख
राज्यों तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश,
मध्य प्रदेश, के अतिरिक्त दक्षिण
भारत, उत्तर भारत, विदर्भ, पूर्वोत्तर भारत के लिए
अलग-अलग महामंडलेश्वर बनाए
गए। यहां यह जानना
अहम है कि किन्नर
अखाड़ा अपनी स्थापना के
बाद से ही अलग
अखाड़े के रूप में
मान्यता दिए जाने की
मांग करता आ रहा
है। अखिल भारतीय अखाड़ा
परिषद ने किन्नर अखाड़े
को 14वें अखाड़े के
रूप में मान्यता देने
से साफ इनकार कर
दिया है। इसी आधार
पर उज्जैन कुंभ में अखाड़ों
ने किन्नर अखाड़े को कोई महत्व
नहीं दिया और बहिष्कार
किया था। गले में
सोने के मोटे-मोटे
हार, कलाई पर रुद्राक्ष,
सोने और हीरे से
बने ब्रेसलेट, कानों में कई तोले
की ईयर-रिंग, नाक
में कंटेंपरेरी नथ, माथे पर
त्रिपुंड और लाल बिंदी...
ये पहचान है आचार्य महामंडलेश्वर
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की। आचार्य लक्ष्मी
नारायण किन्नर अखाड़े की प्रमुख हैं।
उन्होंने किन्नर अखाड़े के अस्तित्व के
लिए बड़ा संघर्ष किया
है। वह बताती हैं-
वर्षों से समाज में
किन्नर उपेक्षित ही रहे। लेकिन
2014 में सुप्रीम कोर्ट का नालसा जजमेंट
आया। इसमें किन्नर (थर्ड जेंडर) को
उन्हें अपना हक मिला।
इसमें वह खुद इंटरविनर
थीं। अखाड़े का गठन जितना
आसान था, उसे आगे
बढ़ाना और अस्तित्व में
लाना उतना ही मुश्किल।
अखाड़े का गठन करने
के बाद हम उज्जैन
के कलेक्टर के पास गए
और इसके लिए आवेदन
भी दिया। सभी 13 अखाड़े हमारे विरोध में खड़े हो
गए.
डॉ. त्रिपाठी कहती
हैं- इस नए अखाड़े
के बारे में जब
सभी 13 अखाड़ों के पदाधिकारियों और
साधु-संतों को जानकारी हुई,
तो हमारे विरोध में खड़े हो
गए। बहुत विवाद हुआ,
पर मैं अडिग रही।
सनातन धर्म में किन्नरों
को उपदेवता की श्रेणी में
रखते हैं। इसमें देव,
दानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, अप्सरा, संत महात्मा आदि
हैं। किन्नरों के लिए, देव
दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर
मजहिं सकल त्रिवेणी.. कहा
गया है। मतलब साफ
है किन्नरों का बहुत बड़ा
स्थान है। उस स्थान
को हासिल करने के लिए,
उस स्थान पर किन्नरों को
स्थापित करने के लिए
हमने यह निर्णय लिया
कि किन्नर अखाड़े को आगे बढ़ाना
होगा। अब दूसरे देशों
जैसे बैंकाक, मलेशिया, अमेरिका में भी किन्नर
अखाड़े के गठन की
मांग हो रही है।
खास बात यह है
कि इस अखाड़े में
सिर्फ किन्नर या ट्रांसजेंडर ही
नहीं, महिला-पुरुष भी शामिल होते
हैं। यह सभी को
साथ लेकर चलता है।
दूसरे धर्म के लोग
भी हमारे साथ आना चाहते
हैं। जूना अखाड़े के
संतों ने किन्नरों के
लिए खोला दरवाजा वह
आगे कहती हैं- 2019 में
हमें जूना अखाड़े का
सपोर्ट मिला। जूना अखाड़े के
संरक्षक हरि गिरि महाराज
से मुलाकात हुई। हमारा अनुबंध
जूना अखाड़े के साथ हुआ।
इसमें यह तय हुआ
कि कुंभ-महाकुंभ में
किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े के
साथ शाही स्नान करेगा।
इसके बाद 2019 में साधु-संन्यासियों
ने अपने दरवाजे हम
किन्नरों के लिए खोल
दिए। अब इस किन्नर
अखाड़े की पहचान सिर्फ
देश ही नहीं, पूरी
दुनिया में होती है।
महाकुंभ में मिलेगा ‘किन्नर आर्ट विलेज’
आचार्य लक्ष्मीनारायण बताती हैं- किन्नर अखाड़े
के शिविर में इस बार
किन्नर आर्ट विलेज भी
तैयार किया गया है।
इसमें पेंटिंग, मूर्तिकला, फोटोग्राफी भी है। किन्नर
अखाड़ा का शिविर महाकुंभ
के सेक्टर-16 संगम लोवर मार्ग
के दाहिनी पटरी पर लगा
है। शिविर में पौष पूर्णिमा
से लेकर महाशिवरात्रि तक
हर दिन पूजन, रुद्राभिषेक,
हवन और सनातन धर्म
को लेकर गोष्ठी सहित
अन्य कार्यक्रम होंगे। आचार्य महामंडेश्वर के जरिए बदली
किन्नरों के प्रति धारणा
किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर
डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने थर्ड जेंडरों
से जुड़ी 2 किताबें भी लिखी हैं।
पहली किताब ‘मी हिजड़ा- मी
लक्ष्मी’ है। यह हिंदी,
मराठी, इंग्लिश और गुजराती में
है। इसी तरह दूसरी
किताब ‘द रेड लिप्स्टिक
मेनन माई लाइफ’ है।
आचार्य कहती हैं कि
इन किताबों के जरिए किन्नरों
की असली दुनिया के
बारे में बताया है।
इससे किन्नरों के प्रति लोगों
की धारणा भी बदली है।
लोग कटाक्ष करते हैं, लेकिन
इससे मुझे कोई फर्क
नहीं पड़ता। किन्नरों पर जर्मन प्रोडक्शन
ने ’थर्ड जेंडर बिटविन
द लाइंस’ फिल्म बनाई। इसी तरह अक्षय
कुमार की जो ’लक्ष्मी’
फिल्म बनी थी, उसमें
भी किन्नरों का संघर्षों दिखाया
गया था। इसमें लक्ष्मी
नारायण त्रिपाठी ने बतौर ब्रांड
एंबेसडर सपोर्ट किया था। उन्होंने
अक्षय कुमार के साथ इस
फिल्म की ब्रांडिंग भी
की थी।
अभी बहुत कुछ करना बाकी है : महामण्डलेश्वर
आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी कहती हैं- मां
का दूध पीकर हर
बच्चा बड़ा होता है
उसी मां का दूध
पीकर मैं भी बड़ी
हुई हूं लेकिन कभी-कभी हमारा बचपन
हमसे छीन लिया जाता
है, इसके लिए दोषी
समाज है, हम नहीं।
धारा-377 और किन्नरों का
सामाजिक दर्जा साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट
ने समलैंगिकता को अपराध बताने
वाली धारा-377 को खत्म कर
दिया, लेकिन इसकी शुरुआत 1864 में
हुई थी। अंग्रेजों ने
उस समय ब्रिटेन के
बुगेरी एक्ट 1533 को भारत में
लागू किया, जिससे समलैंगिकता को अपराध माना
जाने लगा। इससे किन्नरों
को उनके किन्नर होने
की वजह से अपराधी
माना जाने लगा। राइट
ऑफ एजुकेशन पर काम करना
होगा। भले ही दुनिया
में हम वर्ल्ड लीडर
हैं, लेकिन ट्रांसजेंडर राइट्स को लेकर और
काम करना बाकी है।
हमारे लीडर को और
भी सेंसिटिव होने की जरूरत
है।’ उन्होंने कहा, ‘जो हमारे खिलाफ
भ्रांतियां हैं, उन्हें दूर
करना होगा। तभी समाज में
बदलाव आएगा। जैसे ‘बेटी पढ़ाओ’ की
मुहिम चलाई गई है।
वैसे ही हमारे देश
के लीडर्स को किन्नरों के
लिए आगे आने की
जरूरत है।
किन्नर अखाड़े को वैश्विक स्तर पर ले जाने का उद्देश्य
उनका इरादा किन्नर
अखाड़े को वैश्विक स्तर
पर ले जाने का
है। उन्होंने बताया कि, बैंकॉक, थाईलैंड,
मलेशिया, सिंगापुर, सेंट फ्रांसिस्को, अमेरिका,
हॉलैंड, फ्रांस और रूस सहित
दुनिया भर के विभिन्न
देशों से 200 से अधिक ट्रांसजेंडर
लोगों को किन्नर अखाड़े
में शामिल किया जाएगा। किन्नर
अखाड़े से जुड़े ट्रांसजेंडर
लोग विशेष रूप से विदेशों
में किन्नर अखाड़ा स्थापित करना चाहते हैं।
12 से अधिक किन्नर बनेंगे महामंडलेश्वर
महाकुंभ में किन्नर अखाड़े
का होगा भव्य विस्तार।
महाराष्ट्र उत्तराखंड राजस्थान और उत्तर प्रदेश
सहित कई राज्यों के
12 से अधिक किन्नरों को
महामंडलेश्वर की उपाधि से
नवाजा जाएगा। इसके साथ ही
50 से अधिक किन्नरों को
संन्यास मिलेगा। अखाड़े में नए सिरे
से पद की जिम्मेदारी
भी सौंपी जाएगी। वहीं वंचित समाज
के 71 संत महामंडलेश्वर बनेंगे।
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