‘महाकुंभ’ : ‘मौनी अमावस्या’ पर होगा ‘देवताओं’ का ‘जमघट’
मान्यता है कि संगम पर स्नान करने स्वयं देवी-देवता आते है। वह दिन माघ महीने में आने वाली पहली अमावस की होती है, जिसे मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस अमावस्या की खास बात है कि इस दिन मौन रहकर पूजा-पाठ और व्रत किया जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के लिए ग्रहों की स्थिति सर्वथा अनुकूल होती है. यह तिथि एक पवित्र घटना का स्मरण कराती है जब आदि ऋषि भगवान ऋषभदेव ने अपनी मौन रहने की शपथ को तोड़कर संगम के पवित्र जल में स्वयं को लीन कर लिया था. तीर्थ यात्रियों की विशाल मंडली मौनी अमावस्या के दिन कुम्भ मेले में आती है और इस दिन को आध्यात्मिक शक्ति तथा शुद्धीकरण का महत्त्वपूर्ण दिन बनाती है. कहते है इस दिन मौन व्रत का पालन करते हुए जो व्यक्ति उपासना करता है वह सभी प्रकार के भौतिक सुखों को पाकर अंत में मोक्ष प्राप्त कर लेता है। माघ महीने की अमावस्या यानी मौनी अमावस्या इस बार 29 जनवरी को है. मौनी अमावस्या पर तीन ग्रहों की शुभ स्थिति से बेहद खास संयोग बन रहा है। इस दिन मकर राशि में सूर्य, चंद्रमा और बुध ग्रह का योग होगा, जिससे त्रिग्रह या त्रिवेणी योग का निर्माण होगा. इस दौरान देव गुरु बृहस्पति अपनी नवम दृष्टि से तीनों ग्रहों को देखेंगे जो नवपंचम योग का निर्माण करेगा. इस दिन स्नान-दान करने से कई गुना अधिक पुण्यकारी फलों की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन गंगा का जल अमृतमय हो जाता है। महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या के दिन अमृत स्नान (शाही स्नान) किया जाता है। पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि का आरंभ 28 जनवरी 2025 को शाम 7 बजकर 35 मिनट पर होगा। अमावस्या तिथि समाप्त 29 जनवरी 2025 को शाम 6 बजकर 5 मिनट पर होगी। इस दिन पितरों का पिंडदान, तर्पण करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है
सुरेश गांधी
मौनी अमावस्या का व्रत आत्मसंयम, शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। यह व्रत मन और वाणी को शुद्ध करता है और आत्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से समाज में मान-सम्मान में वृद्धि होती है और साधक की वाणी में मधुरता आती है। साथ ही, यह व्रत व्यक्ति के आंतरिक और बाहरी जीवन में संतुलन लाने में सहायक होता है। मतलब साफ है मौनी अमावस्या का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्म-नियंत्रण और ध्यान के माध्यम से मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त करने का अवसर भी प्रदान करता है। खास यह है कि इस बार मकर राशि में त्रिवेणी योग बन रहा है।
दरअसल, इस बार एक साथ मकर राशि में ग्रहों के राजा सूर्य, रानी चंद्रमा, राजकुमार बुध, एक साथ विराजमान होंगे। इसके साथ ही ज्ञान के कारक ग्रह गुरु तीनों ग्रहों को अपनी नवम दृष्टि से देखें जिससे गुरु के साथ इन तीनों ग्रहों का नवम पंचम योग बनेगा जिससे अबकी बार कुंभ से ज्ञान विज्ञान का नया प्रकाश समाज में फैलेगा। साथ ही यह योग कई राशियों के लिए भी लाभकारी साबित होने वाला है। मकर सहित कई राशियों को मौनी अमावस्या पर लाभ और उन्नति मिलेगी। नौकरीपेशा लोगों के लिए समय बहुत ही उत्तम रहेगा। उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में बड़ी सफलता मिलेगी। साथ ही आपका वैवाहिक जीवन भी पहले से काफी ज्यादा सुखद रहेगा। संतान पक्ष से आपको कोई बड़ी खुशखबरी मिल सकती है।
मान्यताओं के अनुसार मौनी अमास्या के दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। कहा जाता है कि यह दिन मुनियों के लिए अनंत पुण्यदायक है। इस दिन मौन रहने से पुण्य लोक, मुनि लोक की प्राप्ति होती है। अमावस्या के दिन काल विशेष रूप से प्रभावी रहता है। इस दिन चांद पूरी तरह अस्त रहता है। इस दिन को माघ अमावस्या और दर्श अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर महीने एक अमावस्या व एक पूर्णिमा तिथि आती है। अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित मानी गई है।
खास यह है कि इस दिन गंगा और संगम में स्नान, दान और भगवान भास्कर की पूजा से लोगों को शनि पीड़ा से मुक्ति भी मिलेगी. लोगों के सारे बिगड़े काम भी बनने लगेंगे. मनुष्य को सारे पापों से मुक्ति मिलेगी. कहते है इसी दिन कुंभ के पहले तीर्थाकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में स्नान किया था। मौनी अमावस्या का बहुत पवित्र दिन होता है। इस दिन मौन व्रत धारण किया जाता है। माघ अमावस्या के दिन भगवान मनु का जन्म हुआ था। मौनी अमावस्या जैसे की नाम से ही स्पष्ट होता है, इस दिन मौन रहकर व्रत रखना चाहिए। इस दिन सूर्य नारायण को अर्घ्य देने से गरीबी और दरिद्रता दूर होती है। साथ ही सारी बीमारी और पाप दूर हो जाते हैं। मौन व्रत का मतलब सिर्फ मौन रहना नहीं है। मौन व्रत का पालन तीन तरीकों से किया जाता है। एक वाणी पर नियंत्रण रखना, मीठी वाणी बोलना, किसी से स्वार्थवश कड़वी बात ना बोलना। दूसरा कारण है कि बिना दिखावा किए लोगों की सेवा करना। सेवा करते वक़्त सेवा की तारीफ या दिखावा ना करें। तीसरा कारण है मौन व्रत का सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति में लीन रहना। इससे संतान और पति की आयु बढ़ती है और जीवन में खुशहाली आती है।शास्त्रों में ऐसा वर्णन
मिलता है कि मौनी
अमावस्या के व्रत से
व्यक्ति के पुत्री-दामाद
की आयु बढ़ती है
और पुत्री को अखण्ड सौभाग्य
की प्राप्ति होती है। सौ
अश्वमेघ एवं हजार राजसूर्य
यज्ञ का फल मौनी
अमावस्या में त्रिवेणी संगम
स्नान से मिलता है।
मान्यता है कि यह
योग पर आधारित महाव्रत
है। इस मास को
भी कार्तिक माह के समान
पुण्य मास कहा गया
है। इसी महात्म्य के
चलते गंगा तट पर
भक्त जन एक मास
तक कुटी बनाकर कल्पवास
करते हैं। इस तिथि
को मौनी अमावस्या के
नाम से इसलिए जाना
जाता है क्योंकि ये
मौन अमवस्या है और इस
व्रत को करने वाले
को पूरे दिन मौन
व्रत का पालन करना
होता है। इसलिए यह
योग पर आधारित व्रत
कहलाता है। शास्त्रों में
वर्णित भी है कि
होंठों से ईश्वर का
जाप करने से जितना
पुण्य मिलता है, उससे कई
गुणा अधिक पुण्य मन
का मनका फेरकर हरि
का नाम लेने से
मिलता है। इसी तिथि
को संतों की भांति चुप
रहें तो उत्तम है।
अगर संभव नहीं हो
तो अपने मुख से
कोई भी कटु शब्द
न निकालें।
इन उपायों से घर में सुख-समृद्धि आएगी
कल्पवास
मान्यता है कि यह
योग पर आधारित महाव्रत
है। इस मास को
भी कार्तिक माह के समान
पुण्य मास कहा गया
है। इसी महात्म्य के
चलते गंगा तट पर
भक्त जन एक मास
तक कुटी बनाकर कल्पवास
करते हैं। इस तिथि
को मौनी अमावस्या के
नाम से इसलिए जाना
जाता है क्योंकि ये
मौन अमवस्या है और इस
व्रत को करने वाले
को पूरे दिन मौन
व्रत का पालन करना
होता है। इसलिए यह
योग पर आधारित व्रत
कहलाता है। शास्त्रों में
वर्णित भी है कि
होंठों से ईश्वर का
जाप करने से जितना
पुण्य मिलता है, उससे कई
गुणा अधिक पुण्य मन
का मनका फेरकर हरि
का नाम लेने से
मिलता है।
संगम स्नान का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसका
कथन सागर मंथन से
जुड़ी हुई है। कहते
है जब सागर मंथन
से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर
प्रकट हुए उस समय
देवताओं एवं असुरों में
अमृत कलश के लिए
खींचा-तानी शुरू हो
गयी। इस छीना छपटी
में अमृत कलश से
कुछ बूंदें छलक गइंर् और
प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में
जा कर गिरी। यही
कारण है कि इन
स्थानों की नदियों में
स्नान करने पर अमृत
स्नान का पुण्य प्राप्त
होता है। प्रयाग में
जब भी कुंभ होता
है तो पूरी दुनिया
से ही नहीं बल्कि
समस्त लोकों से लोग संगम
के पवित्र जल में डुबकी
लगाने आते हैं। इनमें
देवता ही नहीं ब्रह्मा,
विष्णु और महेश यानि
त्रिदेव भी शामिल हैं।
ये सभी रूप बदल
कर इस स्थान पर
आते हैं। त्रिदेवों के
बारे में प्रसिद्ध है
कि वे पक्षी रूप
में प्रयाग आते हैं।
संगम स्नान से प्रसंन होते है भगवान विष्णु
कहा जाता है
कि त्रिवेणी संगम के पवित्र
जल में डुबकी लगाकर
एक व्यक्ति अपने समस्त पापों
को धो डालता है
और मोक्ष को प्राप्त हो
जाता है। कुंभ मेले
में स्नान मानव के लिए
एक खास आध्यात्मिक अनुभव
होता है। ऐसी मान्यता
है कि इस दिन
ग्रहों की स्थिति पवित्र
नदी में स्नान के
लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है। पद्मपुराण
में कहा गया है
कि माघ माह में
गंगा स्नान करने से विष्णु
भगवान बड़े प्रसन्न होते
हैं। श्री हरि को
पाने का सुगम मार्ग
है माघ मास में
सूर्योदय से पूर्व किया
गया स्नान। इसमें भी मौनी अमावस्या
को किया गया गंगा
स्नान अद्भुत पुण्य प्रदान करता है।
इसी दिन से हुई द्वापर युग की शुरुवात
माना जाता है
कि मौनी अमावस्या से
ही द्वापर युग का शुभारंभ
हुआ था। एक मान्यता
के अनुसार इस दिन मनु
ऋषि का जन्म भी
माना जाता है जिसके
कारण इस दिन को
मौनी अमावस्या के रूप में
मनाया जाता है। गोस्वामी
तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस
के बालकांड में उल्लेख है
कि
माघ
मकरगति
रवि
जब
होई,
तीरथपतिहि
आव
सब
कोई
देव
दनुज
किन्नर
नर
श्रेणी,
सादर
मज्जहिं
सकल
त्रिवेणी।
यानी माघ मास
में जब सूर्य मकर
राशि में होता है
तब तीर्थपति यानि प्रयागराज में
देव, ऋषि, किन्नर और
अन्य गण तीनों नदीयों
के संगम में स्नान
करते हैं। प्राचीन समय
से ही माघ मास
में सभी ऋषि मुनि
तीर्थराज प्रयाग में आकर आध्यात्मिक-साधनात्मक प्रक्रियाओं को पूर्ण कर
वापस लौटते हैं। यह परंपरा
वैदिक काल से चली
आ रही है। महाभारत
के एक दृष्टांत में
भी इस बात का
उल्लेख है कि माघ
मास के दिनों में
अनेक तीर्थों का समागम होता
है। मान्याओं के अनुसार मौनी
अमास्या के दिन पवित्र
संगम में देवताओं का
निवास होता है। इसलिए
इस दिन गंगा स्नान
का विशेष महत्व है। इस दिन
पितरों की शांति के
लिए तर्पण किया जाता है।
कहा जाता है कि
यह दिन मुनियों के
लिए अनंत पुण्यदायक है।
इस दिन मौन रहने
से पुण्य लोक, मुनि लोक
की प्राप्ति होती है। अमावस्या
के दिन काल विशेष
रूप से प्रभावी रहता
है। इस दिन चांद
पूरी तरह अस्त रहता
है। इस दिन को
माघ अमावस्या और दर्श अमावस्या
के नाम से भी
जाना जाता है।
इन राशियों का होगा लाभ
इस दुर्लभ संयोग
से वृषभ राशि वालों
के नौकरी के रास्ते खोलेगा.
जॉब को लेकर चल
रही परेशानियों का अंत होगा,
पैत्तक संपत्ति से लाभ मिलेगा.
कन्या राशि के लोगों
के लिए भी शुभफलदायी
होगी. अविवाहितों के विवाह के
योग बनेंगे. पार्टनर के साथ रिश्ते
बेहतर होंगे. करियर में भी काफी
अच्छा प्रदर्शन करेंगे. कर्क राशि के
विवाह स्थान यानी सप्तम भाव
में त्रिवेणी योग बनने जा
रहा है. घर-परिवार
में मांगलिक कार्य का भी संयोग
बनने की संभावना है.
व्यापार में मुनाफ होगा.
मकर राशि वालों के
लिए खुशियां लेकर आ रही
है. आपके जीवन में
सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे. लंबे
समय से पैसों की
समस्या दूर होगी. धन
संपत्ति का लाभ भी
मिलेगा.
ये काम जरुर करें
गंगा या अन्य
पवित्र नदियों में स्नान जरूर
करें। ऐसा करने से
व्यक्ति के सभी पाप
मिट जाते हैं।
भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी के
साथ मां गंगा की
पूजा करें।
मौन व्रत या
उपवास रखें। ऐसा करने से
शुभ फलों की प्राप्ति
होगी।
शाम के समय
तुलसी के पास घी
का दीया जलाएं। व्यक्ति
को सभी कष्टों से
मुक्ति मिलती है।
अन्न, धन, वस्त्र आदि
का दान अवश्य करना
चाहिए। धन-धान्य में
बढ़ोतरी होगी।
सूर्य देव को अर्घ्य
जरूर दें। इससे जीवन
में सुख-समृद्धि बनी
रहेगी।
’ॐ पितृ देवतायै
नमः’ मंत्र का कम से
11 बार जाप करें। पितरों
की कृपा प्राप्त होगी।
पशु-पक्षियों को
दाना डालें। पितृ दोष से
मुक्ति मिलेगी।
सात्विक भोजन का सेवन
करें।
ये काम नहीं करना चाहिए
तामसिक चीजों से दूर रहें।
मांस-मदिरा और
प्याज-लहसुन का सेवन न
करें।
किसी से वाद-विवाद न करें।
सुबह देर तक
नहीं सोना चाहिए।
भूलकर भी झूठ नहीं
बोलना चाहिए।
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