Saturday, 8 February 2025

क़ुदरत की बरकतों का खजाना है बसंत...

क़ुदरत की बरकतों का खजाना है बसंत... 

बसंत का मौसम प्रकृति के बदलाव का अहसास दिलाता है। हर बदलती हुई ऋतु अपने साथ एक संदेश लेकर आती है। भारत की प्रकृति के अनुसार हमारे यहां छः ऋतुएं प्रमुख रूप से मानी गई है। हेमंत, शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा शरद ऋतु। इनमें वसंत को सबका राजा कहा गया है। बसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नई उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना प्रदान करता है। वसंत विविध रंगों के पुष्प, सबमें सौंदर्य, विविध स्वाद के फल, सबमें पोषण की क्षमता, विविध नदियों के जल और सबमें रस के भाव को समाज में जागृत करने का पर्व है। विविधता में भी एक साथ आने की ताकत है। दुर्गा के सरस्वती रूप में अंतरण का यह पर्व संहार से सृजन की ओर मानवीय चेतना के अंतरण का पर्व है। इस रूप में यह बोध का भी पर्व है। मनुष्य के अंदर सद्गुणों की कामना का पर्व है। हमारी रचना श्रेष्ठ है, इस मोह से तो ब्रह्मा भी शापित हो जाते हैं। मनुष्य को रचनात्मकता के अहंकार और मोह से भी मुक्त कराकर विशुद्ध संवेदना के धरातल पर खड़ा करने का पर्व है। यही भारत का सनातन विश्वास है और भारतीयों की सनातन साधना

सुरेश गांधी 

वसंत को ऋतुओं का राजा कहने के पीछे कई कारण हैं जैसे- फसल तैयार रहने से उल्लास और खुशी के त्यौहार, मंगल कार्य, विवाह, सुहाना मौसम, आम की मोहनी खुशबू, कोयल की कूक, शीतल मन्द सुरभित हवा, खिलते फूल, मतवाला माहौल, सुहानी शाम, फागुन के मदमस्त करने वाले गीत सब मिलकर अनुकूल समां बाधते है। यही कारण है कि वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी गई है। भागवदगीता में वसंत वसंत को ऋतुओं का राजा इसलिए कहा गया है क्योंकि इस ऋतु में धरती की उर्वरा शक्ति यानि उत्पादन क्षमता अन्य ऋतुओं की अपेक्षा बढ़ जाती है। यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं को ऋतुओं में वसंत कहा है। वे सारे देवताओं और परम शक्तियों में सबसे ऊपर हैं वैसे ही बसंत ऋतु भी सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है। पौराणिक कथानुसार, अंधकासुर नाम के राक्षस का वध सिर्फ भगवान शंकर के पुत्र से ही संभव था। तो शिवपुत्र कैसे उत्पन्न हो तब इसके लिए कामदेव के कहने पर ब्रह्माजी की योजना के अनुसार वसंत को उत्पन्न किया गया था।

ब्रह्मा जी ने शक्ति की स्तुति की उसके बाद देवी सरस्वती पक्रट हुई। ब्रह्मा और देवी सरस्वती ने सृष्टि सृजन किया। इसलिए वसंत में नए पेड़-पौधे उगते हैं। उनमें लगने वाले फूलों में कामदेव को स्थान दिया गया। कालिका पुराण में वसंत का व्यक्तीकरण करते हुए इसे सुदर्शन, अति आकर्षक, सन्तुलित शरीर वाला, आकर्षक नैन-नक्श वाला, अनेक फूलों से सजा, आम की मंजरियों को हाथ में पकड़े रहने वाला, मतवाले हाथी जैसी चाल वाला आदि सारे ऐसे गुणों से भरपूर बताया है. वसंत पंचमी के दिन कामदेव ने अपनी पत्नी रति के साथ भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए प्रयास किया था। इसे प्रेम और सौंदर्य के उत्सव के रूप में भी देखा जाता है। वैदिक काल में इसी ऋतु से नए साल की शुरुआत मानी जाती थी। वसंत ऋतु को सबसे खास बताते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं ऋतुओं में वसंत हूं। इस बात का जिक्र श्रीमद्भागवत महापुराण में मिलता है। ऋतुओं का खगोलीय आधार सूर्य होता है। इसके राशि परिवर्तन से ही मौसम बदलते हैं। ज्योतिष के सबसे खास ग्रंथ सूर्यसिद्धांत में बताया है कि जब सूर्य मीन और मेष राशि में हो तो वसंत शुरू होता है। वसंत को ऋतुओं का राजा इसलिए कहा गया है क्योंकि इस ऋतु में धरती की उर्वरा शक्ति यानि उत्पादन क्षमता अन्य ऋतुओं की अपेक्षा बढ़ जाती है। यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं को ऋतुओं में वसंत कहा है। वे सारे देवताओं और परम शक्तियों में सबसे ऊपर हैं वैसे ही बसंत ऋतु भी सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है।

उत्साह और सकारात्मकता वाला मौसम वसंत को ऋतुओं का राजा कहने के पीछे कई कारण हैं। इस ऋतु की शुरुआत में सूर्य अपनी मित्र और उच्च राशि यानी मीन और मेष में रहता है। जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है। इस वक्त तो ज्यादा ठंड और ज्यादा गर्मी होने से मौसम सुहाना होता है। जिससे उत्साह और सकारात्मकता बढ़ती है। इस मौसम में नई फसल आने पर उल्लास और खुशी के साथ त्यौहार मनाए जाते हैं। इस ऋतु में ही इंसानों और जीवों में प्रजनन शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए इसे सृजन की ऋतु भी कहते हैं। माना जाता है वैदिक काल की पहली ऋतु वसंत ही थी। खास ये है कि जब ऋतुएं बदलती हैं तो मानसिक और शारीरिक बदलाव भी होते हैं। जिससे शरीर में त्रिदोष बढ़ते हैं यानी वात, पित्त और कफ के असंतुलन से बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए व्रत करने की परंपरा बनाई गई है। इसलिए वसंत ऋतु बड़े व्रत और पर्वों पर व्रत किए जाते हैं। जिससे शरीर में हार्मोंन और अन्य चीजों का संतुलन बना रहता है। इस कारण रोगों से लड़ने की ताकत और उम्र बढ़ती है। फसलों के पीले रंग और खेतों की स्वर्णिम आभा स्वर्णिम भारत का आभास कराती है, समृद्ध भारत के नवनिर्माण की प्रेरणा देती है। खास बात यह है कि ऋतुओं का राजा है बसंत, जिसके आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है। पेड़-पौधों से लेकर मन तक प्रफुल्लित हो उठता है। प्रकृति अपने निखार पर है। चारों और फूल खिलकर, खुशबू और रंग की वर्षा कर रहे है। धरती, जल, वायु, आकाश, पशु-पक्षी से लेकर फसलों और अग्नि सभी इतरा रहे है। खेतों में पीली-पीली सरसों अपने पीले-पीले फूलों से किसान को बाग-बाग कर दिया है। आम में मंजरिया आने को है। इसके कई रंग है। प्रेम और उल्लास का उत्सव है। रंगों का त्योहार होली का आगाज है।

ऋतुओं के राजा है बसंत

वर्ष की सारी ऋतुओं में वसंत को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है. इसी कारण इस दिन को बसंत पंचमी भी कहा जाता है. इस दिन से ही शीत ऋतु का जब समापन होता है तो वसंत का आगमन होता है. इस ऋतु में खेतों में फसलें लहलहा उठती है और फूल खिलने लगते हैं और हर जगह खुशहाली आती है. जी हां मौसम का राजा है बसंत। और क्यों ना हो? सबसे खुशनुमा, तमाम फूलों-फसलों से संपंन है ये महीना। इस समय पंचतत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने हो गए हैं। जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप में हैं। मौसम और प्रकृति में मनोहारी बदलाव हैं। पेड़ों पर फूल गए हैं। पेड़ों में बौर झूम रहे है। दक्षिण से आने वाली हवाएं बर्फीली शीत लहरे मीठी ठंड में बदल गयी है। सरसों की धानी चादर पर पीली छिंट बिखरी पड़ी है। फूल झर-झर झड़ रहे है। या यूं कहें पूरी प्रकृति पीली छठा, पीली चादर ओढ़ मदमस्त होकर झूम रही है।सरसैया फुलवा झर लागा, फागुन में बाबा देवर लागा‘, के बोल आबोहवा में तैरने लगे हैं। सुनाई देने लगी है बसंत की आहट। सच! कहे तो प्रकृति उन्मादी हो गयी है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो गया है। उसका सौन्दर्य लौट आया है। बसंत का अर्थ है मादकता। इस समय धरती पर उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है। जिन व्यक्तियों को डायबिटीज, अतिसार, रक्त विकार की समस्या है उन्हें आम की मंजरी के सेवन से इन समस्याओं

से छुटकारा मिल सकता है। इसलिए वसंत पंचमी के दिन आम की मंजरी अथवा आम के फूलों को हाथों पर मलना चाहिए। इससे उन्हें उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। वसंत जीवन को समारोह बनाता है, उत्सव बनाता है। रोजमर्रा का जीवन जीते-जीते समाजों में एकरसता आती है और व्यक्तियों में भी। इसीलिए यही अवसर है स्वप्न देखने का, फैंटेसी बुनने का, फूलों की आभा में खो जाने का, चिड़ियों के पंख फैलाने का। वसंत में सहज वृत्तियों की शक्ल से उत्पन्न मनोभावों के प्रतिमानों और भावनाओं के तीव्र मिलन से स्मृति को स्वतंत्रता मिलती है और संपूर्ण अनुभवात्मक प्रतिमानों का निर्माण होता है। यही वसंत का हेतु है। यही वसंत अनेक बार प्रतिमान बनाता है, फिर तोड़ देता है।

पूरी कायनात दिखती है मदमस्त

वैसे भी जिस देश में मौसम के बदलाव का संदेश भी ऋतु बदल जाने के साथ आता हो वहां सबसे सुन्दर, मनमोहक और सुहावने मौसम के मायने बहुत खास हो जाते हैं। खेतों का लहलहाना, रंग-बिरंगे फूलों का खिलना, उन पर सुंदर तितलियों का मंडराना, वृक्षों से पुराने पत्तों के गिरने और नए पत्तों के आने, उस पर पक्षियों के चहचहाने तथा प्रकृति में होने वाले नवसृजन के हर्षोल्लास का एक खुबसूरत -सा समय जहां प्रकृति की हर छटा मन को आल्हादित कर देती है। ऐसी ही मनमोहक होती है वसंत ऋुतु। यही वजह है कि वसंत की बात हमारी पौराणिक कथाओं से लेकर कविताओं तक का हिस्सा है। गांवों के सहज जीवन से लेकर शहरी व्यस्तता तक, हर कहीं प्रकृति के इस खिलखिलाते रुप की चर्चा होती है। वसंत जिसके नाम से ही मानो रोम-रोम पुलकित हो उठता है। प्रकृति के साथ तारतम्य बनने लग जाता है। ज्यादा शीत और गर्मी। हर किसी को यह ऋतु लुभाने लगती है। पशु-पक्षी से लेकर पूरी धरा पर इसकी खुशी नयी उर्जा के रुप में दिखाई पड़ने लगती हैं तभी तो हर मन कह उठता है स्वागत है वसंत... वाकई वसंत ऋतु प्रभु और प्रकृति का एक वरदान है। तभी तो इसे मधु ऋतु भी कहते हैं। वैसे भी त्योहार वहीं जो प्रकृति से प्रेम करना सिखाएं अपनों को करीब लाएं। ऐसा ही कुछ है, ये वसंत पंचमी का सादगी, बदंगी और प्यार भरा प्राकृतिक त्योहार... इसके आगमन होते ही अलसाई बेरंग सर्दियों से बाहर निकल प्रकृति ओढ़ने लगती है वसंत की रंगीन ओढ़नी। इसके साथ ही कई उत्सव, मेले और त्योहार दस्तक देते हैं। चारों ओर खिले पुष्पों की सुहानी सुगंध से भरे परिवेश में मांगलिक कार्य होते हैं। यानी कि इस ऋतु में प्रकृति का निखार चरम पर होता है। इसीलिए स्वागत करो इस वसंत का... क्योंकि मन में उमंगे भरती, प्रकृति और पुरुष को जोड़ने वाली ऋतु है यह। जिस उत्साह के साथ जीवन में परिवर्तन का मनुष्य ने स्वागत किया

है वही परिवर्तन त्योहारों के रुप में हमारी परंपरा में शामिल होता गया। वसंत पंचमी भी ऋतुओं के उसी सुखद परिवर्तन का एक रुप है। इसके कई रंग है। यह प्रकृति के नए श्रृगार का पर्व हैं। प्रेम और उल्लास का उत्सव है। इस समय प्रकृति अपने निखार पर होती है। चारों ओर फूल खिलकर, खुशबू और रंग की वर्षा कर रहे होते हैं। धरती, जल, वायु, आकाश और अग्नि सभी पंचतत्व मोहक रुप में होते हैं।

प्रकृति का अद्भूत दिखता है सौन्दर्य

सर्दी की अधिकता के कारण जो पक्षी और जंतु अपने घरों में छिपे होते है, वे भी बाहर निकलकर चहकने लगते हैं। नवजीवन का आगमन इसी ऋतु में होता है। खेतों में पीली-पीली सरसों, अपने पीले-पीले फूलों से किसान को हर्षित करती हैं। या यूं कहे वसंत ऋतु पूरी प्रकृति के रुप को निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ती। यह प्रकृति खुलकर अपने दोनों हाथों से कैसे प्यार और सौगात लुटाती है और इस धरा को सजाने में कैसे अपना हुनर दिखाती है, इसे इन दिनों देखा जा सकता है। तभी तो इस दिन सरस्वती पूजन के साथ ही लोग भी प्रकृति के रंग में रंगे दिखाई दे जाते हैं। यानी ऋतुओं में खिला हुआ, फूलों से लदा हुआ, उत्सव का क्षण हैं वसंत। वसंत यानी फूलों में पल्लवन, वनस्पतियों में प्रमोद और धरती का शृंगारमय रचाव। वसंत हमारे मन का हरियाला क्षेत्र है। जितनी उल्लासमय श्रेष्ठताएं हमारे भीतर बाहर हैं, वे वसंत का ही रूपक हैं। वसंत को अनंग का मध्याह्न कहा जाता है। यह हमारे सृजन, चिंतन अग्रसरण का भी मध्याह्न है। यही समय है, जब केवल वन-उद्यान में पुष्प खिल जाते हैं, वरन हम अपनी और किसी अन्य की आंखों में भी पुष्प खिलते हुए देखते हैं।

प्रेम का पर्याय है वसंत

वसंत वह रंग है, जो छूटता नहीं। वह भाव-अनुभाव है। वसंत हमें अभिभूत करता है, क्योंकि वसंत प्रेम का पर्याय है। प्रेम विद्रोही होता है और टेसू के आरक्त विप्लव वाला वसंत भी विद्रोही है। जिस तरुणाई में विद्रोह नहीं, वह अकारथ है। यह विद्रोह मात्र प्रतिरोध के लिए नहीं होता। यह होता है गतिशीलता की अभिकेंद्रिता को अर्थगर्भित करती मनुष्यता की यात्रा के लिए। इस गतिमयता में वसंत के प्राणतत्व सहृदयता का आधारिक पक्ष होता है। जीवन के हर क्षण में यही जीवन-प्रेम आत्मीयता प्रकट होती है। वसंत की गतिमयता होनी चाहिए हमारे पर्यावरण में। इस बहाने शब्दों के अर्थ और उनके अर्थभेद की गंभीरता को हम समझ पा रहे हैं। यह अवसर है, जहां से हम वाक् की शक्ति को ग्रहण करने के लिए आधार पा लेते हैं। यह शक्ति शब्दों के शब्दकोषीय अर्थों से भिन्न होती है। यही वह बात है, जहां वसंत के जरिये, बिंबों और प्रतीकों के जरिये हमें नयी दृष्टि मिलती है, जिसका अपना सौंदर्य होता है। वसंत पंचमी को मात्र आनुष्ठानिकता से जोड़ देना वाक् और वसंत की अनुगामिता का उल्लंघन है। यहीं हमें नया विश्वास नया संकल्प चाहिए। सौंदर्य है और ऐश्वर्य भी। विद्या के माध्यम से यह सौंदर्य हजारों ग्रामीण, आदिवासी, शहरी दरिद्रताओं तक लाना होगा। पीले कपड़े पहनकर हम बाहरी वातावरण जरूर बना सकते हैं, लेकिन असली उल्लास तो उन चेहरों पर लाना होगा, जिनके घरों में रोजगार नहीं है। वसंत के वास्तविक फूल तो वे बच्चे हैं, जिन्हें स्कूल जाना है। व्यक्तिगत प्रार्थना को संकल्प में बदलकर समूहवाची संकल्प तक जाना होगा। 

नसीहत भी देती है देती है वसंत

व्यक्ति को इतनी प्रतिष्ठा देनी है कि वह वाक् बन जाये, वसंत बन जाये। व्यक्ति-विभेद को निरंतर कम करना वसंत के और निकट जाना है। जितनी समरसता बढ़ेगी, श्रेणीकरण कम होगा, हमें लगेगा कि फूलों में गंध और उनकी खूबसूरती बढ़ रही है। व्यवस्था में विकट असंतोष की एक वजह ऊंच-नीच का विभेदीकरण भी है। रोज-रोज रोटी के लाले, तो वहीं बड़ी कंपनियों, संस्थाओं और सिस्टम में पैसे बहाने की वीभत्स लालसा। यह दूर किया जाना चाहिए, वरना दुनिया में आग लगे रहने की स्थिति जारी रहेगी। साहित्य और कला का वसंत राजनीति का वसंत नहीं। अब जो नये किस्म की राजनीति रही है, उसे साहित्य कलाओं की तरह संवेदनशील बनाना होगा। सृजनात्मक अनुभूति से ऐसा हो पायेगा। आज राजनीति सर्जना का विषय नहीं, मात्र सत्ता का हेतु है। आज जीवन आनंदहीन-प्रेमहीन लगता है। जैसे जीवन से मादकता बिछुड़ गयी हो, लगता है उसके पास समाज को देने के लिए प्रगाढ़ता बची नहीं है। बिना प्रगाढ़ता मनुष्यता का अर्थ क्या? जहां विलगन बढ़ता जा रहा हो, वहां नीरसता, रंगहीनता छायेगी ही। वसंत के उल्लास विद्रोह को पहले जीवन के आवेग में लायें, परिवर्तनशीलता का वाहक बनायें, फिर वर्चुअलिटी की ओर जायें। वरना आप इंद्रधनुष नहीं देख सकते, जो ठीक आपके सिर के ऊपर है। आप चंद्रमा की शीतलता नहीं महसूस कर सकते, जो दूधिया शक्ल में आपके पास बिखरी हुई है। 

 

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