औरंगजेब की निशानियां सियासत के बजाय कानून बनाकर नेस्तनाबूद हो!
मांग व समय के लिहाज से परिवर्तन हर कालखंड में होता रहा है। चाहे वो सतीप्रथा जैसी कुरीतियां रही हो या बाल विवाह जैसी अनुपयुक्त सामाजिक रीति-रिवाज व चलन। या यूं कहे अक्सर हम बड़े बजुर्गो से कहते-सुनते आ रहे है “जमाना बदल गया है या बदल रहा है, यह परमात्मा की लीला है।” मतलब साफ है जब दुनिया के राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक हर क्षेत्र में परिवर्तन हो रहे हैं तो मुगल आक्रांता औरंगजेब के सनातनी क्रूरता को बयां करती निशानियों को क्यों नहीं उखाड़ फेका जा सकता? खासतौर से तब जब उसकी निशानियां हमारे युवा पीढ़ी को पूवर्जो पर हुए बर्बरता की दास्तां कहते हुए मुंह चिढ़ा रही हो और अबू आजमी व ओवैसी सरीके कट्टरपंथी औरंगजेब की क्रूरता को अपना आदर्श बताती फिर रही है। जबकि ज्ञानवापी, श्रीकृष्ण जन्मस्थली जैसे अनगिनत मंदिर औरंगजेब की क्रूरता का न सिर्फ जीवंत उदाहरण हैं, बल्कि फिल्म ’छावा’ की वह डायलॉग जिसमें अपनी क्रूरता को बयां करते हुए औरंगजेब कहता है “पूरे खानदान की लाश पर खड़े होकर हमने ये ताज पहना था, इसे दोबारा उसी वक्त पहनेंगे जब सांभाजी की चीख गूंजेगी।“ जवाब में सांभाजी ने कहा, तू मरेगा तब यह तेरी मुगल सल्तनत भी मर जाएगी...! ल्ेकिन अफसोस है कि हमारे पूर्व की सरकारे औरंगजेब के कब्र को मकबरे के रुप में संरक्षित की। लेकिन अब वक्त आ गया है सनातन की दुहाई देने वाली मोदी-योगी सरकार एएमएएसआर अधिनियम की धारा 35 के तहत कानून बनाकर आताताई मुगल आक्रांता औरंगजेब की हर निशानी को नेस्तनाबूद करें... इस धारा में केंद्र सरकार को अगर लगता है कि कोई ऐतिहासिक स्थल अब राष्ट्रीय महत्व का नहीं रहा, तो किसी भी स्मारक को एएसआई की सूची से हटा सकती है
सुरेश गांधी
औरंगजेब की क्रूरता, औरंगजेब की कब्र और इतिहास में मंदिर तोड़े जाने को लेकर पूरे देश में सियासी जंग छिड़ी हुई है। वो औरंगजेब जिसने गद्दी खातिर अपने पिता शाहजहां को बंदी बनाकर खुद बादशाह बनकर क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए देगे में खौलवा कर मार डालता था. उसने न सिर्फ अपने भाई दाराशिकोह की हत्या करवाई, बल्कि दूसरे भाई मुराद को भी विष देकर मरवा दिया। तबके जनता पर अनगिनत जुल्म किए और हिंदुओं से कर वसूला। उसने हिंदुओं पर कई तरह की पाबंदियां भी लगा दी थीं। उसने अपने 49 साल के कार्यकाल में 46 लाख से भी अधिक हिंदुओं का कत्ल करवा दिया, तो दुसरी तरफ लाखों हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनने पर मजबूर किया था। भारत का इतिहास ऐसी हजारों घटनाओं से भरा है, जिनसे पता चलता है कि औरंगजेब क्रूर मुगल शासक था।
बता दें, औरंगजेब
ने भारत के 15 करोड़
लोगों पर वर्ष 1658 से
1707 तक करीब 49 साल तक शासन
किया। इस दौरान उसने
भारत के कई मंदिरों
को तुड़वा दिया, जिसमें प्रमुख रूप से बाबा
श्रीकाशी विश्वनाथ का मंदिर और
सोमनाथ मंदिर शामिल हैं। औरंगजेब का
सिर्फ एक लक्ष्य था
वो पूरे भारत पर
राज करना चाहता था।
इसके लिए उसने राज्यों
का दमन किया, लेकिन
उसकी इच्छा पूरी नहीं हो
पाई। औरंगजेब को शिवाजी महाराज
से मुंह की खानी
पड़ी। यह अलग बात
है कि उसने शिवाजी
के बड़े बेटे संभाजी
महाराज को 1689 में धोखे से
पकड़वाकर कू्ररता की सारी हदें
पार करते हुए हत्या
कराई थी। औरंगजेब ने
संभाजी महाराज को जिंदा रहने
के लिए इस्लाम कबूल
करने का प्रस्ताव दिया,
लेकिन जब उन्होंने इससे
इंकार किया तो उनकी
चमड़ी उधेड़ दी गई,
उनके हाथ काट दिए
गए, नाखून उखाड़ लिए, आंखे
निकाल ली गयी और
जीभ काट दिए गए,
लेकिन सांभाजी महाराज झुके नहीं।
यह अलग बात
है कि कुछ तत्कालीन
मुस्लिम इतिहासकारों ने औरंजगेब की
कट्टरता को अपना आदर्श
बताते हुए न सिर्फ
उसका महिमामंडन किया, बल्कि ‘जिंदा-पीर’ की उपाधि
भी दी। जो तथ्यों
के लिहाज से सच से
परे है। खासकर उन्हें
जो यह कहना चाहते
है कि औरंगजेब के
दौर में कई हिंदु
उसके सिपह-सलाहकार थे।
उसने हिन्दुओं को रोजगार दी,
लेकिन वो भूल गए
कि इसके पीछे उसकी
मजबूरी थी, ऐसा वह
सिर्फ और सिर्फ शिवाजी
तथा उनके वंशजों को
वश में करने के
लिए करता था। खासकर
उसने उन सभी हिंदू
सरदारों को अपनी सेना
में भर्ती कर उन्हें जागीरें
दी, जो शिवाजी के
विरोधी थे। दो-तीन
जागीरदारों को छोड़कर अन्य
हिंदू जागीरदार औरंगजेब के दरबार में
उच्च-पदों पर नहीं
थे। उसके खिलाफ राजपूतों,
जाटों, बुंदेलों, सिखों, शियों एवं संन्यासियों के
विद्रोह देखने को मिलते रहे।
हद तो यह है
कि पाकिस्तान की किताबों में
जहां अकबर को महान
मुगल बादशाह बताते हुए उसके बारे
में नफरत भरी बातें
लिखी हुई है. वहीं,
औरंगजेब को अपने धर्म
को ऊपर रखने के
लिए एक महान मुस्लिम
शासक बताते हुए सम्मानित किया
गया है. पाकिस्तान में
औरंगजेब को एक आर्दश
मुस्लिम नेता माना जाता
है. पाकिस्तान में औरंगजेब के
सम्मान होने के पीछे
उसकी इस्लाम को मानने की
धारणा को बताया जाता
है. अल्लामा इकबाल ने जहां औरंगजेब
को एक राष्ट्रवादी और
भारत में मुसलमान राष्ट्रीयता
का संस्थापक बताया है. वहीं, मौलाना
अबुल अला मौदूदी जैसे
प्रभावशाली नेता ने इस्लाम
के प्रति औरंगजेब की प्रतिबद्धता देखकर
उसकी प्रशंसा की. यहां तक
की पाकिस्तानी के उज्जवल राजनीतिक
भविष्य के लिए औरंगजेब
के रास्ते पर चलने तक
का आह्वान किया है.
लेकिन फिल्म छावा के बाद आज औरंगजेब भारतीय राजनीति का वो रक्तबीज बनकर उभरा है, जिससे देश की सियासत को गर्मा गयी है। आज भी वह देश में अलग अलग रूपों में जिंदा होकर करोड़ों हिन्दुस्तानियों के सीने पर मूंग दर रहा हैं। अबू आज़मी व ओवैसी जैसे कट्टरपंथी उसकी शान में कसींदे गढ़ रहे है। औरंगज़ेब के नाम पर इंडी गठबंधन में भी फूट पड़ गई है? ऐसे में बड़ा सवाल तो यही आज़मी जैसे कट्टरपंथियों ने जो कहा वो सच की ज़ुबान है या क्रूर का गुणगान है? खासकर पूर्व की वो सरकारें जिसने सबकुछ जानते हुए भी मुस्लिमपरस्ती में औरंगाबाद में उसका मकबरा बनाकर एएसआई के हाथों संरक्षित करवाई है। हालांकि कुछ साल पहले भाजपा शिवसेना गंठबंधन सरकार के मुखिया उधव ठाकरे ने उसके नाम पर बने जनपद औरंगाबाद की जगह छत्रपति शिवाजी नगर रखा है।
भला क्यों नहीं जब
उस समय औरंगजेब
के विश्वासपात्रों में से एक
इफ्तार खान, कश्मीर का
सूबेदार था. और औरंगजेब
ने इफ्तार खान को ये
आदेश दिया था कि
कश्मीर में एक भी
हिन्दू बचना नहीं चाहिए.
यानी पहले तो कश्मीरी
हिन्दुओं पर इस्लाम धर्म
अपनाने के लिए दबाव
डाला जाए और अगर
फिर भी वो इसके
लिए तैयार नहीं होते हैं
तो उनकी हत्या कर
दी जाए. ये बात
1674 और 1675 की है. लेकिन
कश्मीरी पंडितों ने इसी तरह
का दर्द 1990 के दशक में
भी देखा, जब इस्लामिक कट्टरपंथियों
ने उन्हें तीन विकल्प दिए
थे. पहला वो इस्लाम
धर्म अपना लें. दूसरा
कश्मीर छोड़ कर भाग
जाएं और तीसरा या
फिर मरने के लिए
तैयार रहें.
औरंगजेब के मुंह पर करारा तमाचा
लम्बी चौड़ी सेना के
बीच रहने वाले औरंगज़ेब
के मुंह पर करारा
तमाचा था और वो
इस अपमान को बर्दाश्त नहीं
कर पा रहा था.
जिसके बाद औरंगज़ेब ने
गुरु तेग बहादुर का
सिर कलम करने का
आदेश दे दिया. इस
तरह उन्होंने 24 नवम्बर 1675 को कश्मीरी पंडितों
के लिए अपनी शहादत
दी. उनकी शहादत के
बाद संयुक्त पंजाब और जम्मू कश्मीर
में मुगलों के खिलाफ विद्रोह
शुरू हो गया. दिल्ली
में जिस स्थान पर
गुरु तेग बहादुर का
शीश कलम किया गया
था, वो जगह अब
गुरुद्वारा सीस गंज साहिब
के नाम से जानी
जाती है. हालांकि ये
इस देश का दुर्भाग्य
ही है कि कुछ
साल पहले तक इस
गुरुद्वारे से सिर्फ़ 8 किमी
दूर एक सड़क का
नाम, औरंगज़ेब रोड हुआ करता
था. जिसे वर्ष 2015 में
बदल कर डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल
कलाम रोड कर दिया
गया था.
औरंगजेब के शासन काल में भारत में शरियत के आधार पर फतवा-ए-आलमगीरी लागू किया और बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया.
काशी और सोमनाथ मंदिरों को नष्ट करवाया और लाखों हिंदुओं की हत्या करवाई. इसकी क्रूरता के कारण पूरे भारतीय उपमहादीप में मुगल साम्राज्य अपना सबसे ज्यादा विस्तार कर पाया. मरने से पहले औरंगजेब ने अपने संदेश में लिखा उससे भी उसके क्रूरता की कहानी झलकती है। राम कुमार वर्मा की लिखी किताब ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ में औरंगजेब के खत का मजमून कुछ यूं जिक्र किया गया है. ”अब मैं बूढ़ा और दुर्बल हो गया हूं. मैं नहीं जानता मैं कौन हूं और इस संसार में क्यों आया. मैंने लोगों का भला नहीं किया, मेरा जीवन ऐसे ही निरर्थक बीत गया. भविष्य को लेकर मुझे कोई उम्मीद नहीं है, मेरा बुखार अब उतर गया है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि शरीर पर केवल चमड़ी हो. दुनिया में कुछ लेकर नहीं आया था, लेकिन अब पापों का भारी बोझ लेकर जा रहा हूं. मैं नहीं जानता कि अल्लाह मुझे क्या सजा देगा, मैंने लोगों को जितने भी दुख दिए हैं, वो हर पाप जो मुझसे हुआ है उसका परिणाम मुझे भुगतना होगा. बुराईयों में डूबा हुआ गुनाहगार हूं मैं.” मौत के तीन सौ से अधिक साल बाद आज भी यह मुगल शासक फिल्मों, किताबों से लेकर सेमिनारों, बयानों और तकरीरों के बीच चर्चा और विवाद का केंद्र बना रहता है. बुरहानपुर के कोतवाल मीर अब्दुल करीम के मुताबिक उसके पहले शहर में साल भर में छब्बीस हजार रुपया जजिया के तौर पर वसूला जाता था लेकिन उसने सिर्फ तीन महीने में आधे शहर से इसकी चौगुनी रकम वसूल दी. औरंगजेब जजिया को कितना जरूरी मानता था, इसका पता वजीरों को उसके निर्देशों से पता चलता है, ” तुम्हें बाकी करों में छूट की आजादी है. लेकिन काफिरों पर जजिया लगाने में मुझे मुश्किल से कामयाबी मिली है. इसलिए अगर कहीं तुम लोगों ने जजिया में छूट दी तो यह इस्लाम के खिलाफ होगा.”जिंदगी भर रही मराठों से लड़ाई
औरंगजेब ने अपने शासनकाल
में मराठों के साथ कई
युद्ध लड़े थे. इनमें
से उम्बरखिंड की लड़ाई (1661), सूरत
की लड़ाई (1664), पुरंदर का युद्ध (1665) और
सिंहगढ़ का युद्ध (1670) प्रमुख
थे. छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों से
11 युद्ध लड़े थे. उनके
बाद उनके पुत्र छत्रपति
संभाजी महाराज ने औरंगजेब से
युद्ध किया था. छत्रपति
राजाराम प्रथम ने 11 साल लगातार मुगलों
से युद्ध किया था. छत्रपति
शिवाजी द्वितीय संरक्षिका महारानी ताराबाई ने सात साल
तक युद्ध किया था. साल
1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के
समय से लेकर 1707 में
औरंगजेब की मृत्यु तक
मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य
में संघर्ष चला था.
27 साल तक दिल्ली नहीं लौटा
औरंगजेब की भारत के
दक्षिणी हिस्से पर कब्जा करने
और राज करने की
इच्छा इतनी बलवती थी
कि वो साल 1680 में
अपने पूरे लाव-लश्कर
के साथ दक्षिण भारत
की ओर कूच कर
गए थे. उनके साथ
मुगलों की विशाल फौज,
तीन बेटे और पूरा
हरम था. दरअसल औरंगजेब
पुरानी मुगल रिवायत का
पालन कर थे जिसके
अनुसार राजधानी हमेशा बादशाह के साथ चलती
थी. लेकिन औरंगजेब दूसरे मुगल बादशाहों से
इस मामले में अलग थे
कि एक बार दक्षिण
जाने के बाद वो
दोबारा दिल्ली कभी नहीं लौटे.
अपनी मृत्यु के समय औरंगजेब
महाराष्ट्र में थे.
औरंगजेब का मकबरा
औरंगजेब ने अपनी मौत
से पहले ही बता
दिया था कि उनकी
कब्र और कहां होनी
चाहिए. इस बारे में
औरंगजेब ने अपनी विरासत
में सब कुछ लिख
दिया था. उन्होंने सबको
ताकीद की थी कि
उनकी मौत पर कोई
शोक न मनाया जाए
ना ही किसी तरह
का कोई समारोह आयोजित
किया जाए. औरंगजेब को
औरंगाबाद से 25 किमी की दूरी
पर स्थित खुल्दाबाद में दफनाया गया.
यहीं पर मुगल बादशाह
औरंगजेब की कब्र मौजूद
है. कहा जाता है
कि औरंगजेब चाहते थे कि उनका
मकबरा बिल्कुल साधारण हो, उसे बनाने
में अधिक पैसा न
खर्च किया जाए. उन्होंने
खुद कमाए पैसों (कुरान
लिखने और टोपी सिलने
से) से अपनी कब्र
का खर्च उठाने को
कहा था. पहले उनके
मकबरे को कच्ची मिट्टी
से तैयार किया गया था.
लेकिन बाद में लॉर्ड
कर्जन उस पर संगमरमर
मढ़वा दिया था. इस
मकबरे की वास्तुकला इस्लामिक
शैली की है. यह
मकबरा बेहद सादा और
सफेद रंग का है.
औरंगजेब के मकबरे के
पास ही उनके बेटे
आजम शाह का मकबरा
है. शेख जैनुद्दीन दरगाह
भी इसके करीब ही
स्थित है. मकबरे की
दीवारों पर औरंगजेब के
बारे में कुछ जानकारी
दी गई है. इस
मकबरे पर औरंगजेब का
पूरा नाम अब्दुल मुजफ्फर
मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब लिखा हुआ है.
No comments:
Post a Comment